शेष नारायण सिंह
क्या अमरीका पाकिस्तान पर जल्द ही हमला करने वाला है ? यह सवाल पाकिस्तान के गली- कूचों और टेलिविज़न चैनलों के दफ्तरों में बहुत जोर शोर से पूछा जा रहा है . यही नहीं पाकिस्तानी हुक्मरान भी डरे हुए हैं कि कहीं अमरीका ने और सख्ती कर दी तो पाकिस्तान के लिए बहुत मुश्किल हो जायेगी. हक्कानी ग्रुप नाम के अफगान संगठन के पाकिस्तानी फौज और आई एस आई से रिश्तों के बारे में जब से अमरीकी फौज के आला अफसरों ने खुले आम बात करना शुरू कर दिया है ,तब से ही पाकिस्तान में अफरा तफरी का माहौल है . पूरे देश में जनमत का दबाव इतना ज़्यादा है कि प्रधान मंत्री युसूफ रजा गीलानी ने सर्वदलीय बैठक बुला ली है . इस बैठक में पाकिस्तानी फौज के मुखिया जनरल कयानी और आई एस आई की मुखिया जनरल शुजा पाशा भी शामिल हो रहे हैं . अमरीका ने साफ़ कह दिया है कि हक्कानी ग्रुप ने अफगानिस्तान में अमरीकी हितों को नुकसान पंहुचाने का अभियान चला रखा है , अमरीकी ठिकानों पर लगातार हमले कर रहा है इसलिए उसको ख़त्म करना ज़रूरी है .अमरीका ने इस काम में पाकिस्तान की मदद भी माँगी है . अमरीका का यह भी आरोप है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई एस आई और हक्कानी ग्रुप में गहरे ताल्लुकात हैं . अमरीका की मांग है कि आई एस आई अब हक्कानी से दोस्ती ख़त्म करे और उसे दुश्मन मानना शुरू कर दे. अमरीका के इस रवैय्ये के बाद पाकिस्तान में बहुत गुस्सा है .देश के ज़्यादातर राजनेता और ताक़तवर फौजी लाबी मानती है कि पाकिस्तान को तिल तिल कर ख़त्म करने की अमरीकी कोशिश के चलते ही हक्कानी ग्रुप से उसके रिश्तों को मुद्दा बनाया जा रहा है . यह सच है कि हक्कानी ग्रुप से पाकिस्तान के बहुत अच्छे रिश्ते हैं लेकिन पाकिस्तानी सरकार का कहना है कि अमरीका ने ही हक्क़ानी ग्रूप को पैदा किया , उसे समर्थन दिया और आर्थिक मदद भी की. अब जब हक्कानी उनके खिलाफ हो गया है तो उसको ख़त्म करने के अभियान में पाकिस्तान को इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है . पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने तो पिछले हफ्ते अमरीका में ही बार बार बयान दिया कि हक्कानी ग्रुप अमरीका का दोस्त संगठन है ,इसलिए उसको पाकिस्तान के मत्थे मढना ठीक नहीं है. पाकिस्तान के इस तर्क में कोई दम नहीं है क्योंकि अब तक का अमरीका का रिकार्ड रहा है कि जब दोस्त की ज़रुरत नहीं रहती तो वह उसे ख़त्म कर देता है .. आखिर तालिबान और अल कायदा भी तो अमरीका की कृपा और उसके पैसे से ही पैदा हुए थे लेकिन बाद में अल कायदा अमरीका का दुश्मन नंबर एक बन गया . अल कायदा के मुखिया ओसामा बिन लादेन को जिंदा या मुर्दा पकड़ना अमरीकी विदेश नीति का मुख्य एजेंडा बन गया और अंत में पाकिस्तान जैसे दोस्त के देश में ख़ुफ़िया तरीके से घुस कर अमरीका ने ओसमा को क़त्ल किया. उसी तरह से हक्कानी ग्रुप भी अमरीका की देन है लेकिन आजकल वह उसके लिए मुसीबत बना हुआ है . अमरीकी फौज का दावा है कि अफगानिस्तान में सक्रिय अमरीका के दुश्मनों में हक्कानी ग्रुप से सबसे ज्यादा ताक़तवर है .
हक्कानी ग्रुप के मौजूदा मुखिया मौलाना जलालुद्दीन हक्कानी को अमरीका ने अफगानिस्तान से सोवियत सेना को भगाने के अभियान में इस्तेमाल किया था. जलालुद्दीन हक्क़ानी का इतना दबदबा था कि अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन ने उन्हें व्हाईट हाउस में बतौर मेहमान आमंत्रित किया था. हक्कानी को अमरीकी खुफिया संगठन सी आई ए का पूरा और खुला समर्थन रहता था. इसके अलावा हक्कानी ने पाकिस्तानी आई एस आई से भी बिरादराना ताल्लुकात कायम कर लिया . उसे सउदी अरब के बहुत सारे धनवानों से आर्थिक मदद मिलती रही . अब भी मिलती है . आजकल उसे अमरीका से मिलने वाला पैसा बंद हो गया है तो उस कमी को हक्कानी ग्रुप फिरौती वगैरह के गैरकानूनी धंधों के ज़रिये पूरा कर लेता है .जब १९९६ में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर क़ब्ज़ा किया तो सीनियर हक्कानी को मंत्री भी बनाया गया था .अभी पिछले दिनों अफगानिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति, हामिद करज़ई ने भी हक्कानी ग्रुप के संस्थापक मौलाना जलालुद्दीन के बेटे सिराजुद्दीन हक्कानी को प्रधानमंत्री पद देने की पेश कश की थी. उनको उम्मीद थी कि इस से तालिबान का आतंक कम हो जाएगा. लेकिन सिराजुद्दीन हक्कानी ने मना कर दिया . मौलाना जलालुद्दीन हक्कानी तो अब बूढ़े हो चले हैं लेकिन उनके बेटे सिराजुद्दीन ने काम संभाल लिया है . उन्हीं की अगुवाई में करीब पंद्रह हज़ार लड़ाके काम कर रहे हैं और अफगानिस्तान में सक्रिय अमरीकी सेना के दुश्मन बने हुए हैं . हक्कानी ग्रुप आजकल अफगान और अमरीकी फौज के निशाने पर है . शायद इसीलिये उसने अपना ठिकाना पाकिस्तान सीमा के अंदर ,पाक-अफगान बार्डर पर कहीं बना रखा है .इसी हक्कानी ग्रुप को ख़त्म करने में अमरीका को पाकिस्तानी मदद की ज़रुरत है लेकिन पाकिस्तान के लिए हक्कानी ग्रुप के खिलाफ युद्ध का ऐलान करना बहुत ही मुसीबत का कारण बन सकता है . सच्ची बात यह है कि हक्कानी ग्रुप आजकल पाकिस्तानी फौज और आई एस आई का गहरा दोस्त है . जहां पाकिस्तानी सेना खुले आम कुछ नहीं कर पाती वहां हक्कानी ग्रुप का इस्तेमाल किया जाता है . ऐसी हालत में हक्कानी ग्रुप को ख़त्म करने का मतलब यह भी होगा कि पाकिस्तानी फौज अपनी ही एक शाखा को नेस्तनाबूद करने जा रही होगी.
इस स्थिति में पाकिस्तान सरकार में हक्कानी के खिलाफ कार्रवाई करने से बचने के उपायों पर चर्चा हो रही है . पाकिस्तानी राजनीति को समझने वालों का कहना है कि अगर आज हक्कानी ग्रुप के खिलाफ काम करने के लिए पाकिस्तानी फौज़ को मजबूर कर दिया गया तो कल अमरीका यह भी कह सकता है कि आई एस आई ने बहुत सारे आतंकी काम किये हैं इसलिए उसे भी ख़त्म कर दिया जाना चाहिए . इतने ज़बरदस्त दबाव के चलते ही प्रधान मंत्री युसूफ रजा गीलानी ने सर्वदलीय बैठक बुलाई है . उधर इस्लामबाद में अमरीका से रिश्ते ख़त्म होने के बाद के रिश्तों पर चर्चा के लिए बैठकें शुरू हो गयी हैं . पाकिस्तानी राजधानी में सउदी अरब और चीन के राजनयिकों से मुलाकातों का सिलसिला जारी है . राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी और विदेश सचिव सलमान बशीर ने अमरीकी राजदूत से मुलाक़ात करके कुछ रास्ता निकालने की बात शुरू कर दिया है . प्रधान मंत्री गीलानी ने चीनी उपप्रधान मंत्री मेंग जियानझू से मुलाक़ात के बाद दावा किया कि चीन ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि वह पाकिस्तान की स्वतंत्रता , अखंडता और सार्व भौमिकता का समर्थन करता है . पाकिस्तान की सरकार और फौज को डर है कि अमरीका अफगानिस्तान की तरफ से उत्तरी पाकिस्तान के उन ठिकानों पर हमला कर सकता है जहां हक्क़ानी ग्रुप का मुख्यालय है . हक्कानी ग्रुप ने अपने सारे महत्वपूर्ण ठिकाने पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान इलाके में बना रखे हैं . पाकिस्तान को मालूम है कि अगर उसने हक्कानी के खिलाफ अमरीका की मदद करने में आनकानी की तो अमरीका हमला भी कर सकता है . पाकिस्तान में इस संभावित हमले को पाकिस्तानी ज़मीन पर किया गया हमला माना जायेया. पाकिस्तानी हुक्मरान की घबडाहट इसी संदर्भ में समझी जानी चाहिए . समाचार एजेंसी रायटर्स के साथ बातचीत में पाकिस्तानी प्रधान मंत्री ने साफ़ कहा कि उनका देश एक सार्वभौम देश है उनके ऊपर कोई अन्य मित्र देश हमला कैसे कर सकता है . पाकिस्तान में अब अमरीका के बाद की योजना पर काम होना शुरू हो गया है लेकिन क्या यह संभव है . सोमवार को आई एस आई के मुखिया जनरल शुजा पाशा सउदी अरब गए थे .उनकी कोशिश है सउदी अरब से मदद ली जाए .लेकिन क्या सउदी अरब की हिम्मत है कि वह अमरीका को नाराज़ कर सकता है . जहां तक चीन का सवाल है वह अमरीका के दबाव में नहीं है लेकिन क्या वह पाकिस्तान जैसे गरीब देश के लिए अमरीका से अपने व्यापारिक रिश्तों को तबाह करके उसकी सेना को रोकने की किसी पाकिस्तानी कोशिश में उसकी मदद करेगा. ऐसी हालत में अब पाकिस्तान के लिए सबसे सही और सुरक्षित रास्ता यही लगता है कि वह स्वीकार कर ले कि उसके लिए अमरीका को नाराज़ कर पाना बिलकुल संभव नहीं है और उसे अब अमरीका की प्रभुता स्वीकार कर लेनी चाहिए. पिछले साठ साल की अमरीकापरस्त विदेशनीति की यही तार्किक परिणति है .
Friday, September 30, 2011
Thursday, September 29, 2011
कांग्रेस ने बीजेपी की खिल्ली उडाई
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,२८ सितम्बर .बीजेपी ने आज दोपहर कांग्रेस और प्रधानमंत्री पर राजनीतिक हमला किया था. शाम को कांग्रेस ने उसका तुर्की-ब-तुर्की जवाब दे दिया. आज यहाँ कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी के प्रवक्ता, अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बीजेपी के नेता यह स्वीकार नहीं कर पाए हैं कि इनके इंडिया शाइनिंग नारे के बावजूद २००४ में उनके हाथ से सत्ता खिसक गयी थी. उसके बाद से हे वे समय समय पर कांग्रेस के सरकार के पतन के बारे में भविष्यवाणी करते रहते हैं . कांग्रेस ने आज २ जी मामले में भे बीजेपी के उस आरोप का ज़बरदस्त जवाब दिया जिसमें कहा जाता है कि कैश फार वोट के मामले में अमर सिंह के काम से फायदा यू पी ए की सरकार को हुआ था . इसलिए कांग्रेस के ऊपर भी जांच बैठाई जानी चाहिए . कांग्रेस ने कहा कि यह आरोप बिलकुल गलत है .कांग्रेस ने पलटवार किया और कहा कि सच्चाई यह है कि बीजेपी को मालूम था कि कांग्रेस ने परमाणु नीति के बारे में एक सही स्टैंड लिया है . जिसमें लोक सभा में उसकी जीत निश्चित है .सत्ता की लालच में बैठे हुए बीजेपी के बड़े नेता को इससे बहुत निराशा हुई और पार्टी ने उस जीत को शक़ के घेरे में फंसाने के उद्देश्य से कैश फार वोट का खेल कर दिया . कांग्रेस का दावा है कि कैश फार वोट का फायदा बीजेपी को ही होने वाला था लेकिन पकडे जाने की वजह से उनका खेल बिगड़ गया. २ जी घोटाले के बारे में कांग्रेस ने कहा कि वित्त मंत्रालय के जिस नोट की बात करके बीजेपी पी चिदंबरम को कटघरे में खड़ा करना चाहती है उसमें नया कुछ भी नहीं है . वह केवल जो कुछ हुआ था उसका ब्योरेवार वर्णन है . उसमें एक अफसर ने जजमेंटल होने की कोशिश की है . क्या किसी अफसर के दोषी करार देने से कोई दोषी हो जाएगा.
कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने बीजेपी की खिल्ली उड़ाने के अंदाज़ में कहा कि बीजेपी के सारे आरोप झूठे हैं .जब उनके बारे में कोई सही बात की जाती है तो वे बौखला जाते हैं और बेबुनियाद और झूठे आरोप लगाने लगते हैं . उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी बीजेपी से सौदा करने को तैयार है . उन्होंने कहा कि सौदा यह है कि अगर बीजेपी कांग्रेस के बारे में झूठ बोलना बंद कर दे तो कांग्रेस बीजेपी ke बारे में सच बोलना बंद कर देगी.जब उनको याद दिलाया गया कि बीजेपी का कहना है कि लाल कृष्ण आडवाणी के पूर्व सहायक ,सुधीन्द्र कुलकर्णी ने तो कैश फार वोट के मामले में कांग्रेस को एक्सपोज करने का काम किया था तो उन्होंने कहा कि यह बातें बीजेपी को शोभा नहीं देतीं. उन्होंने सवाल किया कि १९९८ से २००४ तक जब तक बीजेपी सत्ता में थी उन्होंने न तो कभी काले धन का ज़िक्र किया और न ही कभी किसी अपराध का भंडाफोड़ किया . कैश फार वोट शुद्ध रूप से बीजेपी की राजनीतिक डिजाइन का कार्यक्रम था जब उन्हें बताया गया कि अमर सिंह तो आपके लिए काम कर रहे थे तो सिंघवी ने कहा कि अमर सिंह की पार्टी लोकसभा में यू पी ए के सिद्धांत पर आधारित कार्यक्रम का समर्थन कर रही थी.कैश फार वोट केस में कांग्रेस को शामिल बताकर बीजेपी राष्ट्र को गुमराह करने के कोशिश कर रही है .कांग्रेस ने आरोप लगाया कि आज जो विज्ञप्ति बीजेपी की तरफ से बांटी गयी है वह डॉ सुब्रमन्यम स्वामी के आरोपों का सारांश मात्र है . अभी उस केस में पर सुनवाई चल रही है . अभी सुप्रीम कोर्ट ने उस पर कोई आदेश नहीं दिया है लेकिन तकलीफ की बात है कि बीजेपी ने उसको अपनी तरफ से प्रेस कानफरेंस में बाँट दिया है .और आदेश सुना दिया है कि कांग्रेस दोषी है . यह ठीक नहीं है . कांग्रेस ने इस बात का भी बुरा माना है कि जब प्रधानमंत्री विदेश यात्रा पर हों तो उनपर राजनीतिक हमला न करने की परम्परा को बीजेपी बार बार तोड़ रही है . यही उन्होंने बंगलादेश की यात्रा के समय भी किया था और अब अमरीका के यात्रा के समय भी यही किया.
नई दिल्ली,२८ सितम्बर .बीजेपी ने आज दोपहर कांग्रेस और प्रधानमंत्री पर राजनीतिक हमला किया था. शाम को कांग्रेस ने उसका तुर्की-ब-तुर्की जवाब दे दिया. आज यहाँ कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी के प्रवक्ता, अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बीजेपी के नेता यह स्वीकार नहीं कर पाए हैं कि इनके इंडिया शाइनिंग नारे के बावजूद २००४ में उनके हाथ से सत्ता खिसक गयी थी. उसके बाद से हे वे समय समय पर कांग्रेस के सरकार के पतन के बारे में भविष्यवाणी करते रहते हैं . कांग्रेस ने आज २ जी मामले में भे बीजेपी के उस आरोप का ज़बरदस्त जवाब दिया जिसमें कहा जाता है कि कैश फार वोट के मामले में अमर सिंह के काम से फायदा यू पी ए की सरकार को हुआ था . इसलिए कांग्रेस के ऊपर भी जांच बैठाई जानी चाहिए . कांग्रेस ने कहा कि यह आरोप बिलकुल गलत है .कांग्रेस ने पलटवार किया और कहा कि सच्चाई यह है कि बीजेपी को मालूम था कि कांग्रेस ने परमाणु नीति के बारे में एक सही स्टैंड लिया है . जिसमें लोक सभा में उसकी जीत निश्चित है .सत्ता की लालच में बैठे हुए बीजेपी के बड़े नेता को इससे बहुत निराशा हुई और पार्टी ने उस जीत को शक़ के घेरे में फंसाने के उद्देश्य से कैश फार वोट का खेल कर दिया . कांग्रेस का दावा है कि कैश फार वोट का फायदा बीजेपी को ही होने वाला था लेकिन पकडे जाने की वजह से उनका खेल बिगड़ गया. २ जी घोटाले के बारे में कांग्रेस ने कहा कि वित्त मंत्रालय के जिस नोट की बात करके बीजेपी पी चिदंबरम को कटघरे में खड़ा करना चाहती है उसमें नया कुछ भी नहीं है . वह केवल जो कुछ हुआ था उसका ब्योरेवार वर्णन है . उसमें एक अफसर ने जजमेंटल होने की कोशिश की है . क्या किसी अफसर के दोषी करार देने से कोई दोषी हो जाएगा.
कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने बीजेपी की खिल्ली उड़ाने के अंदाज़ में कहा कि बीजेपी के सारे आरोप झूठे हैं .जब उनके बारे में कोई सही बात की जाती है तो वे बौखला जाते हैं और बेबुनियाद और झूठे आरोप लगाने लगते हैं . उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी बीजेपी से सौदा करने को तैयार है . उन्होंने कहा कि सौदा यह है कि अगर बीजेपी कांग्रेस के बारे में झूठ बोलना बंद कर दे तो कांग्रेस बीजेपी ke बारे में सच बोलना बंद कर देगी.जब उनको याद दिलाया गया कि बीजेपी का कहना है कि लाल कृष्ण आडवाणी के पूर्व सहायक ,सुधीन्द्र कुलकर्णी ने तो कैश फार वोट के मामले में कांग्रेस को एक्सपोज करने का काम किया था तो उन्होंने कहा कि यह बातें बीजेपी को शोभा नहीं देतीं. उन्होंने सवाल किया कि १९९८ से २००४ तक जब तक बीजेपी सत्ता में थी उन्होंने न तो कभी काले धन का ज़िक्र किया और न ही कभी किसी अपराध का भंडाफोड़ किया . कैश फार वोट शुद्ध रूप से बीजेपी की राजनीतिक डिजाइन का कार्यक्रम था जब उन्हें बताया गया कि अमर सिंह तो आपके लिए काम कर रहे थे तो सिंघवी ने कहा कि अमर सिंह की पार्टी लोकसभा में यू पी ए के सिद्धांत पर आधारित कार्यक्रम का समर्थन कर रही थी.कैश फार वोट केस में कांग्रेस को शामिल बताकर बीजेपी राष्ट्र को गुमराह करने के कोशिश कर रही है .कांग्रेस ने आरोप लगाया कि आज जो विज्ञप्ति बीजेपी की तरफ से बांटी गयी है वह डॉ सुब्रमन्यम स्वामी के आरोपों का सारांश मात्र है . अभी उस केस में पर सुनवाई चल रही है . अभी सुप्रीम कोर्ट ने उस पर कोई आदेश नहीं दिया है लेकिन तकलीफ की बात है कि बीजेपी ने उसको अपनी तरफ से प्रेस कानफरेंस में बाँट दिया है .और आदेश सुना दिया है कि कांग्रेस दोषी है . यह ठीक नहीं है . कांग्रेस ने इस बात का भी बुरा माना है कि जब प्रधानमंत्री विदेश यात्रा पर हों तो उनपर राजनीतिक हमला न करने की परम्परा को बीजेपी बार बार तोड़ रही है . यही उन्होंने बंगलादेश की यात्रा के समय भी किया था और अब अमरीका के यात्रा के समय भी यही किया.
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बीजेपी ने कांग्रेस को घेरने की पूरी पेशबंदी की
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,२८ सितम्बर.बीजेपी ने कांग्रेस की सरकार को घेरने के लिए सारी ताक़तों को आगे कर दीया है . आज संसद में दोनों सदनों के नेताओं, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने प्रेस को संबोधित किया और कहा कि कांग्रेस की सरकार के सामने विश्वसनीयता का संकट है और वह अपने ही विरोधाभासों के नीचे बुरी तरह से दब चुकी है . बीजेपी ने प्रधान मंत्री के उस बयान को गलत बताया जिसमें उन्होंने कहा है कि बीजेपी समेत विपक्ष की कुछ पार्टियां सरकार क स्थिर करने की कोशिश कर रही हैं . प्रधान मंत्री ने अपनी विदेश यात्रा से लौटते समय यह आरोप लगाया था कि विपक्ष की कोशिश है कि देश में जल्दी ही चुनाव हो जाएँ जबकि अभी सरकार का कार्यकाल पूरा होने में करीब ढाई साल बाकी हैं . बीजेपी ने पी चिदंबरम को बचाने के मामले में प्रधान मंत्री को दोषी ठहराया लेकिन प्रधान मंत्री के इस्तीफे की मांग नहीं की जबकि अरुण जेटली ने साफ़ कहा कि प्रधान मंत्री को मालूम था कि २००८ में वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम और ए राजा मिलकर २ जी घोटाला कर रहे थे.
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लोक सभा में विपक्ष की नेता,सुषमा स्वराज ने कहा कि बीजेपी अभी चुनाव के लिए दबाव नहीं डाल रही है . अगर मध्यावधि चुनाव होता है तो उसके लिए कांग्रेस और उसकी अगुवाई वाली सरकार का गलत काम ही ज़िम्मेदार होंगें . दोनों नेताओं ने गृह मंत्री पी चिदंबरम को भ्रष्ट बाताया और मांग की कि उनकी जांच की जानी चाहिए. बीजेपी ने दावा किया है कि जब यू पी ए सरकार में शामिल गैर कांग्रेस पार्टियों के नेता किसी गलती में पकडे जाते हैं तो कांग्रेस नेतृत्व और प्रधान मंत्री उन्हें अपने हाल पर छोड़ देते हैं ./ उन्होंने २ जी मामले में ए राजा को जेल में भेजने का ज़िक्र किया . सुषमा स्वराज ने कहा कि जब मंहगाई के बढ़ने की बात आती है तो एन सी पी के शरद पवार को ज़िम्मेदार ठहरा दिया जाता है . इसी तरह जब एयर इंडिया में भ्रष्टाचार की बात आती है तो एन सी पी के प्रफुल पटेल का नाम ले लिया जाता है लेकिन जब कांग्रेस के पी चिदंबरम पर बात आती है तो कांग्रेस उनके बचाव में आ जाती है . अरुण जेटली ने प्रधान मंत्री पर आरोप लगाया कि वे पी चिदंबरम का बचाव करके भ्रष्टाचार को शह दे रहे हैं ..उन्होंने कहा कि पी चिदंबरम दागी हैं और उन पर अगर भरोसा करते रहे तो प्रधान मंत्री देश का भरोसा बहुत जल्द खो देगें.बीजेपी ने अब कैश फार वोट मामले में फंसे अपने सदस्यों का बचाव करने का फैसला कर लिया है . कल सुषमा स्वराज जेल में बंद अपनी पार्टी के कैश फार वोट के अभियुक्तों से मिल कर आई हैं और आज अरुण जेटली और आडवानी से सुधीन्द्र कुलकर्णी और अन्य दो पूर्व सांसदों से मिलने जा रहे हैं . जब पूछा गया कि अब कैश फार वोट के केस से आप लोग अपनी पार्टी को कैसे बचायेगें तो अरुण जेटली ने कहा कि उनकी पार्टी के लोग तो भ्रष्टाचार को एक्सपोज कर रहे थे . वे अपराधी नहीं हैं .
नई दिल्ली,२८ सितम्बर.बीजेपी ने कांग्रेस की सरकार को घेरने के लिए सारी ताक़तों को आगे कर दीया है . आज संसद में दोनों सदनों के नेताओं, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने प्रेस को संबोधित किया और कहा कि कांग्रेस की सरकार के सामने विश्वसनीयता का संकट है और वह अपने ही विरोधाभासों के नीचे बुरी तरह से दब चुकी है . बीजेपी ने प्रधान मंत्री के उस बयान को गलत बताया जिसमें उन्होंने कहा है कि बीजेपी समेत विपक्ष की कुछ पार्टियां सरकार क स्थिर करने की कोशिश कर रही हैं . प्रधान मंत्री ने अपनी विदेश यात्रा से लौटते समय यह आरोप लगाया था कि विपक्ष की कोशिश है कि देश में जल्दी ही चुनाव हो जाएँ जबकि अभी सरकार का कार्यकाल पूरा होने में करीब ढाई साल बाकी हैं . बीजेपी ने पी चिदंबरम को बचाने के मामले में प्रधान मंत्री को दोषी ठहराया लेकिन प्रधान मंत्री के इस्तीफे की मांग नहीं की जबकि अरुण जेटली ने साफ़ कहा कि प्रधान मंत्री को मालूम था कि २००८ में वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम और ए राजा मिलकर २ जी घोटाला कर रहे थे.
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लोक सभा में विपक्ष की नेता,सुषमा स्वराज ने कहा कि बीजेपी अभी चुनाव के लिए दबाव नहीं डाल रही है . अगर मध्यावधि चुनाव होता है तो उसके लिए कांग्रेस और उसकी अगुवाई वाली सरकार का गलत काम ही ज़िम्मेदार होंगें . दोनों नेताओं ने गृह मंत्री पी चिदंबरम को भ्रष्ट बाताया और मांग की कि उनकी जांच की जानी चाहिए. बीजेपी ने दावा किया है कि जब यू पी ए सरकार में शामिल गैर कांग्रेस पार्टियों के नेता किसी गलती में पकडे जाते हैं तो कांग्रेस नेतृत्व और प्रधान मंत्री उन्हें अपने हाल पर छोड़ देते हैं ./ उन्होंने २ जी मामले में ए राजा को जेल में भेजने का ज़िक्र किया . सुषमा स्वराज ने कहा कि जब मंहगाई के बढ़ने की बात आती है तो एन सी पी के शरद पवार को ज़िम्मेदार ठहरा दिया जाता है . इसी तरह जब एयर इंडिया में भ्रष्टाचार की बात आती है तो एन सी पी के प्रफुल पटेल का नाम ले लिया जाता है लेकिन जब कांग्रेस के पी चिदंबरम पर बात आती है तो कांग्रेस उनके बचाव में आ जाती है . अरुण जेटली ने प्रधान मंत्री पर आरोप लगाया कि वे पी चिदंबरम का बचाव करके भ्रष्टाचार को शह दे रहे हैं ..उन्होंने कहा कि पी चिदंबरम दागी हैं और उन पर अगर भरोसा करते रहे तो प्रधान मंत्री देश का भरोसा बहुत जल्द खो देगें.बीजेपी ने अब कैश फार वोट मामले में फंसे अपने सदस्यों का बचाव करने का फैसला कर लिया है . कल सुषमा स्वराज जेल में बंद अपनी पार्टी के कैश फार वोट के अभियुक्तों से मिल कर आई हैं और आज अरुण जेटली और आडवानी से सुधीन्द्र कुलकर्णी और अन्य दो पूर्व सांसदों से मिलने जा रहे हैं . जब पूछा गया कि अब कैश फार वोट के केस से आप लोग अपनी पार्टी को कैसे बचायेगें तो अरुण जेटली ने कहा कि उनकी पार्टी के लोग तो भ्रष्टाचार को एक्सपोज कर रहे थे . वे अपराधी नहीं हैं .
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Wednesday, September 28, 2011
भ्रष्टाचार के बहाने बीजेपी को चाहिए गृहमंत्री का इस्तीफा
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,२७ सितम्बर.बीजेपी किसी भी कीमत पर पी चिदंबरम को सरकार से बाहर देखना चाहती है . आज अपनी नियमित ब्रीफिंग में पार्टी ने पी चिदम्बरम को निशाने पर लिया . २ जी के मुख्य खलनायक के रूप में चिदंबरम को प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही बीजेपी ने रामदेव के रामलीला मैदान वाले कार्यक्रम के दौरान घायल हुई महिला , राजबाला के मृत्यु के लिए भी गृह मंत्री को ज़िम्मेदार ठहराया और उनका इस्तीफा माँगा . जबकि कांग्रेस का दावा है कि पी चिदम्बरम को बीजेपी इसलिए हटाने की कोशिश कर रही है कि उनके विभाग के अधीन काम करने वाली जांच एजेंसी,एन आई ए की जांच के चलते बीजेपी और आर एस एस के कथित आतंकवादी नेटवर्क का पर्दाफ़ाश हो रहा है. कांग्रेस महामंत्री दिग्विजय सिंह का दावा हैकि बीजेपी वाले गृह मंत्री के रूप में ,पी चिदंबरम की सफलता से बहुत परेशान हैं और इसीलिये वे पी चिदंबरम को गृह मंत्री पदसे हटाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं .
बीजेपी मुख्यालय में आज पार्टी की ब्रीफिंग में प्रवक्ता, निर्मला सीतारामन ने देश के सामने आये कई संकटों के लिए गृह मंत्री पी चिदंबरम को ज़िम्मेदार ठहराया और उनके इस्तीफे की मांग की.उन्होंने प्रधानमंत्री को सुझाव दिया कि अगर चिदंबरम इस्तीफा न दें तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाए. पार्टी ने २५ मार्च के उस पत्र का हवाला दिया जो सूचना के अधिकार का इसेतमाल करके निकाला गया है जिसमें वित्त मंत्रालय की ओर से बताया गया है कि अगर तत्कालीन वित् मंत्री चिदंबरम ने चाहा होता तो संचार मंत्री, ए राजा स्पेक्ट्रम के काम में हेराफेरी न कर पाते..निर्मला सीतारामन ने कहा कि २००१ के कीमतों पर २००७ में स्पेक्ट्रम क्यों बेचा गया. कुल मिलाकर तत्कालीन वित्तमंत्री को ज़िम्मेदार बताते हुए बीजेपी प्रवक्ता ने गृह मंत्री के इस्तीफे के फरमाइश कर दी. रामदेव के रामलीला मैदान वाले आन्दोलन में घायल हुई महिला राजबाला की मृत्यु के मामले में भी बीजेपी प्रवक्ता ने बहुत दुःख जताया और कहा कि राजबाला की हत्या दिल्ली पुलिस की लाठियों से चोट खाकर हुई थी. दिल्ली पुलिस चिदम्बरम के मातहत एक महकमा है इसलिए राजबाला की मौत के लिए भी पी चिदंबरम को ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए और इस्तीफ़ा दे देना चाहिए . ठीक इसी तरह का बयान लोकसभा में विपक्ष की नेता ,सुषमा स्वराज ने भी दिया . सुषमा स्वराज राजबाला के अंतिम संस्कार में शामिल होने आज हरियाणा गयी हुई हैं . बीजेपी प्रवक्ता ने तेलंगाना में अलग राज्य की मांग बनाने के लिए चल रहे आन्दोलन के केस में भी पी चिदंबरम के इस्तीफे की मांग कर डाली. उन्होंने कहा कि यह बहुत ही दुखद है कि २ जी मामले में हुई सरकारी खजाने की लूट में पी चिदंबरम की संलिप्तता को कांग्रेस अध्यक्ष , सोनिया गाँधी अपनी पार्टी का मामला मान रही हैं और प्रणव मुखर्जी और पी चिदंबरम के बीच सुलह कराने की कोशिश कर रही हैं . बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि यह न तो कांग्रेस का आन्तरिक माला है और न ही इसमें किसी सुलह की ज़रुरत है . इसमें तो गृह मंत्री का इस्तीफ़ा ही समस्या का हल निकाल सकता है.
उधर कांग्रेस भी हमलावर मूड में दिखी.कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने बयान दिया है कि बीजेपी हाथ धोकर पी चिदंबरम के पीछे इसलिए पड़ गयी है कि अब आर एस एस के आतंकवाद के तामझाम का पर्दाफाश बहुत जल्द होने वाला है .दिग्विजय सिंह ने दावा किया कि पी चिदंबरम दिग्विजय सिंह के अधीन काम करने वाली एन आई ए की जांच का नतीजा है कि देश में पिछले कुछ वर्षों में हुई कई आतंकवादी घटनाओं में संघ से जुड़े लोग पकडे जा रहे हैं . मालेगांव, समझौता ,अजमेर आदि आतंकवादी घटनाओं में आर एस एस शामिल पायी गयी है . उन्होंने साफ़ कहा कि आर एस एस ने पहले तो आतंकवादी वारदात में पकडे जा रहे अपने कार्यकर्ताओं से पल्ला झाड़ते रहने का सिलसिला अपनाया था लेकिन जब आर एस एस के राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी भी जांच के घेरे में आ गए तो पी चिदंबरम को निशाने पर लिया गया. उत्तर प्रदेश के कांग्रेस सांसद जगदम्बिका पाल ने भी चिदंबरम को निशाना बनाने की बीजेपी की कोशिश की आलोचना की और कहा कि बीजेपी की साम्प्रदायिक राजनीति का भंडाफोड़ हो रहा है . यह काम गृह मंत्रालय कर रहा है.इसलिए बीजेपी पी चिदंबरम के खिलाफ अभियान चला रही है .इस मुद्दे पर देश के मुस्लिम बुद्धिजीवियों के संगठन सेकुलर फ्तंत के अध्यक्ष जमशेद जैदी भी दिग्विजय सिंह के एबात को सही मानते हैं . उन्होंने कहा कि देश के जागरूक वर्ग को चाहिए कि वह आर एस एस /बीजेपी की हर साज़िश को जनता के सामने लाये. जहां तक २ जे एस्पेत्रम का सवाल है उसकी जांच में राजनीति घुसाने की ज़रूरत नहीं है . २ जी घोटाले में शामिल हर दोषी व्यक्ति को सजा मिलनी चाहिए
नई दिल्ली,२७ सितम्बर.बीजेपी किसी भी कीमत पर पी चिदंबरम को सरकार से बाहर देखना चाहती है . आज अपनी नियमित ब्रीफिंग में पार्टी ने पी चिदम्बरम को निशाने पर लिया . २ जी के मुख्य खलनायक के रूप में चिदंबरम को प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही बीजेपी ने रामदेव के रामलीला मैदान वाले कार्यक्रम के दौरान घायल हुई महिला , राजबाला के मृत्यु के लिए भी गृह मंत्री को ज़िम्मेदार ठहराया और उनका इस्तीफा माँगा . जबकि कांग्रेस का दावा है कि पी चिदम्बरम को बीजेपी इसलिए हटाने की कोशिश कर रही है कि उनके विभाग के अधीन काम करने वाली जांच एजेंसी,एन आई ए की जांच के चलते बीजेपी और आर एस एस के कथित आतंकवादी नेटवर्क का पर्दाफ़ाश हो रहा है. कांग्रेस महामंत्री दिग्विजय सिंह का दावा हैकि बीजेपी वाले गृह मंत्री के रूप में ,पी चिदंबरम की सफलता से बहुत परेशान हैं और इसीलिये वे पी चिदंबरम को गृह मंत्री पदसे हटाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं .
बीजेपी मुख्यालय में आज पार्टी की ब्रीफिंग में प्रवक्ता, निर्मला सीतारामन ने देश के सामने आये कई संकटों के लिए गृह मंत्री पी चिदंबरम को ज़िम्मेदार ठहराया और उनके इस्तीफे की मांग की.उन्होंने प्रधानमंत्री को सुझाव दिया कि अगर चिदंबरम इस्तीफा न दें तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाए. पार्टी ने २५ मार्च के उस पत्र का हवाला दिया जो सूचना के अधिकार का इसेतमाल करके निकाला गया है जिसमें वित्त मंत्रालय की ओर से बताया गया है कि अगर तत्कालीन वित् मंत्री चिदंबरम ने चाहा होता तो संचार मंत्री, ए राजा स्पेक्ट्रम के काम में हेराफेरी न कर पाते..निर्मला सीतारामन ने कहा कि २००१ के कीमतों पर २००७ में स्पेक्ट्रम क्यों बेचा गया. कुल मिलाकर तत्कालीन वित्तमंत्री को ज़िम्मेदार बताते हुए बीजेपी प्रवक्ता ने गृह मंत्री के इस्तीफे के फरमाइश कर दी. रामदेव के रामलीला मैदान वाले आन्दोलन में घायल हुई महिला राजबाला की मृत्यु के मामले में भी बीजेपी प्रवक्ता ने बहुत दुःख जताया और कहा कि राजबाला की हत्या दिल्ली पुलिस की लाठियों से चोट खाकर हुई थी. दिल्ली पुलिस चिदम्बरम के मातहत एक महकमा है इसलिए राजबाला की मौत के लिए भी पी चिदंबरम को ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए और इस्तीफ़ा दे देना चाहिए . ठीक इसी तरह का बयान लोकसभा में विपक्ष की नेता ,सुषमा स्वराज ने भी दिया . सुषमा स्वराज राजबाला के अंतिम संस्कार में शामिल होने आज हरियाणा गयी हुई हैं . बीजेपी प्रवक्ता ने तेलंगाना में अलग राज्य की मांग बनाने के लिए चल रहे आन्दोलन के केस में भी पी चिदंबरम के इस्तीफे की मांग कर डाली. उन्होंने कहा कि यह बहुत ही दुखद है कि २ जी मामले में हुई सरकारी खजाने की लूट में पी चिदंबरम की संलिप्तता को कांग्रेस अध्यक्ष , सोनिया गाँधी अपनी पार्टी का मामला मान रही हैं और प्रणव मुखर्जी और पी चिदंबरम के बीच सुलह कराने की कोशिश कर रही हैं . बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि यह न तो कांग्रेस का आन्तरिक माला है और न ही इसमें किसी सुलह की ज़रुरत है . इसमें तो गृह मंत्री का इस्तीफ़ा ही समस्या का हल निकाल सकता है.
उधर कांग्रेस भी हमलावर मूड में दिखी.कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने बयान दिया है कि बीजेपी हाथ धोकर पी चिदंबरम के पीछे इसलिए पड़ गयी है कि अब आर एस एस के आतंकवाद के तामझाम का पर्दाफाश बहुत जल्द होने वाला है .दिग्विजय सिंह ने दावा किया कि पी चिदंबरम दिग्विजय सिंह के अधीन काम करने वाली एन आई ए की जांच का नतीजा है कि देश में पिछले कुछ वर्षों में हुई कई आतंकवादी घटनाओं में संघ से जुड़े लोग पकडे जा रहे हैं . मालेगांव, समझौता ,अजमेर आदि आतंकवादी घटनाओं में आर एस एस शामिल पायी गयी है . उन्होंने साफ़ कहा कि आर एस एस ने पहले तो आतंकवादी वारदात में पकडे जा रहे अपने कार्यकर्ताओं से पल्ला झाड़ते रहने का सिलसिला अपनाया था लेकिन जब आर एस एस के राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी भी जांच के घेरे में आ गए तो पी चिदंबरम को निशाने पर लिया गया. उत्तर प्रदेश के कांग्रेस सांसद जगदम्बिका पाल ने भी चिदंबरम को निशाना बनाने की बीजेपी की कोशिश की आलोचना की और कहा कि बीजेपी की साम्प्रदायिक राजनीति का भंडाफोड़ हो रहा है . यह काम गृह मंत्रालय कर रहा है.इसलिए बीजेपी पी चिदंबरम के खिलाफ अभियान चला रही है .इस मुद्दे पर देश के मुस्लिम बुद्धिजीवियों के संगठन सेकुलर फ्तंत के अध्यक्ष जमशेद जैदी भी दिग्विजय सिंह के एबात को सही मानते हैं . उन्होंने कहा कि देश के जागरूक वर्ग को चाहिए कि वह आर एस एस /बीजेपी की हर साज़िश को जनता के सामने लाये. जहां तक २ जे एस्पेत्रम का सवाल है उसकी जांच में राजनीति घुसाने की ज़रूरत नहीं है . २ जी घोटाले में शामिल हर दोषी व्यक्ति को सजा मिलनी चाहिए
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Monday, September 26, 2011
मीडियाकर्मी को न्याय के निजाम की स्थापना के लिए काम करना चाहिए
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,२४ सितम्बर. सुप्रीम कोर्ट की जज ,न्यायमूर्ति श्रीमती ज्ञान सुधा मिश्रा ने कहा है कि मीडिया में काम करने वालों अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुनकर ही काम करना चाहिए . उन्होंने ख़ास तौर से टेलिविज़न वालों को संबोधित करते हुए कहा कि मीडियाकर्मी भी एक तरह के जज हैं , जो भी विषय उनके सामने आता है ,वे उस पर एक तरह से फैसला ही देते हैं . वे लोगों का क्रास एग्जामिनेशन करते हैं और उनके काम का असर देश काल पर पड़ता है . मीडियाकर्मी को ध्यान रखना चाहिए कि उनका भी एक मुख्य न्यायाधीश होता है जो उनकी आत्मा के अंदर बैठा रहता है . ज़रूरी यह है कि मीडिया में काम करने वाले अपने उस मुख्य न्यायाधीश की बात सुनें और चैनल के मालिक के व्यापारिक हितों के प्रभाव में आकर काम न करें .क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो वे मीडियाकर्मी के पवित्र काम से विचलित हो जायेगें और अपने मालिक के व्यापारिक हितों के साधक के रूप में काम करते पाए जायेगें जो कि उनके लिए निश्चित रूप से ठीक नहीं होगा
नई दिल्ली में गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा की जन्मशती के अवसर पर आयोजित एक गोष्ठी में जस्टिस श्रीमती ज्ञानसुधा मिश्रा ने इस बात पर दुःख व्यक्त किया किया कि समाज में बहुत सारी रूढ़ियाँ और कुरीतियाँ व्याप्त हैं . समाज के कई क्षेत्रों में बहुत सारी बुराइयां हैं . उन बुराइयों को ख़त्म करने की ज़रूरत है लेकिन यह काम कानून के सहारे नहीं किया जा सकता . उसके लिए ज़रूरी है व्यक्ति की मानसिकता में बदलाव आये . अगर व्यक्ति बदलेगा ,तो समाज भी बदल जाएगा. समाज में बदलाव आने के बाद जो भी कानून बनेगा वह आसानी से लागू किया जा सकेगा. जस्टिस मिश्रा ने कहा कि इसके लिए समाज में विचार क्रान्ति की ज़रुरत है . उन्होंने भरोसा जताया कि विचार क्रान्ति के ज़रिये बहुत सारी समस्याओं का शान्तिपूर्ण और सकारात्मक हल निकाला जा सकता है . विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा के विचार क्रान्ति के दर्शन की उन्होंने तारीफ़ की और कहा कि इस विचार क्रान्ति के दर्शन से बहुत कुछ बदला जा सकता है और समाज में चौतरफा शांति का निजाम कायम किया जा सकता है .अगर समाज की मासिकता शुद्ध नहीं है तो कानून बनने के बाद भी हालात सुधरने की गारंटी नहीं की जा सकती . उन्होंने कन्या भ्रूण की हत्या के हवाले से अपनी बात समझाने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि उनकी नानी -दादी बताया करती थीं कि उनके बचपन में उनके इलाके में कुछ लोगों के घर अगर बच्ची पैदा हो जाती थी तो उसे पैदा होते ही नमक चटाकर मार डालते थे. आज विज्ञान तरक्की कर गया है ,अल्ट्रासाउंड के ज़रिये लोग पता लगा लेते हैं कि गर्भ में बेटी है कि बेटा. विज्ञान की इतनी तरक्की हो जाने के बाद भी आज ऐसे बहुत सारे केस मालूम हैं जहां बच्ची को गर्भ में आते ही मार डाला जाता है . इस तरह के काम के खिलाफ बहुत ही मज़बूत कानून है लेकिन जब तक व्यक्ति के विचार में शुद्धता नहीं आयेगी , वैज्ञानिक और कानूनी प्रगति के बाद भी न्याय का निजाम नहीं कायम हो सकेगा और समाज में पीड़ा व्याप्त रहेगी. गायत्री परिवार के संस्थापक के काम की उन्होंने प्रशंसा की और कहा कि यह खुशी की बात है कि उनके उत्तराधिकारी डॉ प्रणव पंड्या ने आचार्य श्रीराम शर्मा के विचार क्रान्ति वाले दर्शन को सामाजिक परिवर्तन के एक निमित्त के रूप में अपनाया और समाज में शुचिता का माहौल बनाने में अपने संगठन का योगदान दे रहे हैं . इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश , जस्टिस आर सी लाहोटी ने विश्व गायत्री परिवार के वर्तमान प्रमुख डॉ प्रणव पंड्या से अपने करीबी संबंधों का उल्लेख किया और बताया कि आचार्य श्रीराम शर्मा ने आज की समस्याओं का अपनी किताबों में बाकायदा हल सुझा दिया था . उन्होंने विश्व गायत्री परिवार के कार्यक्रमों की तारीफ़ की और कहा कि भारतीय संस्कृति में ऐसे तत्व मौजूद हैं जो हमारी मौजूदा समस्याओं का हल निकाल सकते हैं . हमें ज्ञान के प्रकाश के ज़रिये अज्ञान और निराशा के अँधेरे के ऊपर विजय पाने की कोशिश करनी चाहिए . अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ प्रणव पंड्या ने इस अवसर पर बताया कि पूरी दुनिया में उनके संगठन के करीब दस करोड़ लोग सक्रिय है जो भारतीय वैदिक मूल्यों के सहारे अपने विचार परिवर्तन करके समाज में परिवर्तन लाने की कोशिश कर रहे हैं . उन्होंने बताया कि कोशिश की जा रही है कि सभी समस्याओं का हल सबसे पहले व्यक्ति खुद अपने अंदर परिवर्तन करके निकालने के लिए उपाय करे. अगर ऐसा हो सका तो सारे समाज में परिवर्तन आ जाएगा.
नई दिल्ली,२४ सितम्बर. सुप्रीम कोर्ट की जज ,न्यायमूर्ति श्रीमती ज्ञान सुधा मिश्रा ने कहा है कि मीडिया में काम करने वालों अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुनकर ही काम करना चाहिए . उन्होंने ख़ास तौर से टेलिविज़न वालों को संबोधित करते हुए कहा कि मीडियाकर्मी भी एक तरह के जज हैं , जो भी विषय उनके सामने आता है ,वे उस पर एक तरह से फैसला ही देते हैं . वे लोगों का क्रास एग्जामिनेशन करते हैं और उनके काम का असर देश काल पर पड़ता है . मीडियाकर्मी को ध्यान रखना चाहिए कि उनका भी एक मुख्य न्यायाधीश होता है जो उनकी आत्मा के अंदर बैठा रहता है . ज़रूरी यह है कि मीडिया में काम करने वाले अपने उस मुख्य न्यायाधीश की बात सुनें और चैनल के मालिक के व्यापारिक हितों के प्रभाव में आकर काम न करें .क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो वे मीडियाकर्मी के पवित्र काम से विचलित हो जायेगें और अपने मालिक के व्यापारिक हितों के साधक के रूप में काम करते पाए जायेगें जो कि उनके लिए निश्चित रूप से ठीक नहीं होगा
नई दिल्ली में गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा की जन्मशती के अवसर पर आयोजित एक गोष्ठी में जस्टिस श्रीमती ज्ञानसुधा मिश्रा ने इस बात पर दुःख व्यक्त किया किया कि समाज में बहुत सारी रूढ़ियाँ और कुरीतियाँ व्याप्त हैं . समाज के कई क्षेत्रों में बहुत सारी बुराइयां हैं . उन बुराइयों को ख़त्म करने की ज़रूरत है लेकिन यह काम कानून के सहारे नहीं किया जा सकता . उसके लिए ज़रूरी है व्यक्ति की मानसिकता में बदलाव आये . अगर व्यक्ति बदलेगा ,तो समाज भी बदल जाएगा. समाज में बदलाव आने के बाद जो भी कानून बनेगा वह आसानी से लागू किया जा सकेगा. जस्टिस मिश्रा ने कहा कि इसके लिए समाज में विचार क्रान्ति की ज़रुरत है . उन्होंने भरोसा जताया कि विचार क्रान्ति के ज़रिये बहुत सारी समस्याओं का शान्तिपूर्ण और सकारात्मक हल निकाला जा सकता है . विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा के विचार क्रान्ति के दर्शन की उन्होंने तारीफ़ की और कहा कि इस विचार क्रान्ति के दर्शन से बहुत कुछ बदला जा सकता है और समाज में चौतरफा शांति का निजाम कायम किया जा सकता है .अगर समाज की मासिकता शुद्ध नहीं है तो कानून बनने के बाद भी हालात सुधरने की गारंटी नहीं की जा सकती . उन्होंने कन्या भ्रूण की हत्या के हवाले से अपनी बात समझाने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि उनकी नानी -दादी बताया करती थीं कि उनके बचपन में उनके इलाके में कुछ लोगों के घर अगर बच्ची पैदा हो जाती थी तो उसे पैदा होते ही नमक चटाकर मार डालते थे. आज विज्ञान तरक्की कर गया है ,अल्ट्रासाउंड के ज़रिये लोग पता लगा लेते हैं कि गर्भ में बेटी है कि बेटा. विज्ञान की इतनी तरक्की हो जाने के बाद भी आज ऐसे बहुत सारे केस मालूम हैं जहां बच्ची को गर्भ में आते ही मार डाला जाता है . इस तरह के काम के खिलाफ बहुत ही मज़बूत कानून है लेकिन जब तक व्यक्ति के विचार में शुद्धता नहीं आयेगी , वैज्ञानिक और कानूनी प्रगति के बाद भी न्याय का निजाम नहीं कायम हो सकेगा और समाज में पीड़ा व्याप्त रहेगी. गायत्री परिवार के संस्थापक के काम की उन्होंने प्रशंसा की और कहा कि यह खुशी की बात है कि उनके उत्तराधिकारी डॉ प्रणव पंड्या ने आचार्य श्रीराम शर्मा के विचार क्रान्ति वाले दर्शन को सामाजिक परिवर्तन के एक निमित्त के रूप में अपनाया और समाज में शुचिता का माहौल बनाने में अपने संगठन का योगदान दे रहे हैं . इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश , जस्टिस आर सी लाहोटी ने विश्व गायत्री परिवार के वर्तमान प्रमुख डॉ प्रणव पंड्या से अपने करीबी संबंधों का उल्लेख किया और बताया कि आचार्य श्रीराम शर्मा ने आज की समस्याओं का अपनी किताबों में बाकायदा हल सुझा दिया था . उन्होंने विश्व गायत्री परिवार के कार्यक्रमों की तारीफ़ की और कहा कि भारतीय संस्कृति में ऐसे तत्व मौजूद हैं जो हमारी मौजूदा समस्याओं का हल निकाल सकते हैं . हमें ज्ञान के प्रकाश के ज़रिये अज्ञान और निराशा के अँधेरे के ऊपर विजय पाने की कोशिश करनी चाहिए . अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ प्रणव पंड्या ने इस अवसर पर बताया कि पूरी दुनिया में उनके संगठन के करीब दस करोड़ लोग सक्रिय है जो भारतीय वैदिक मूल्यों के सहारे अपने विचार परिवर्तन करके समाज में परिवर्तन लाने की कोशिश कर रहे हैं . उन्होंने बताया कि कोशिश की जा रही है कि सभी समस्याओं का हल सबसे पहले व्यक्ति खुद अपने अंदर परिवर्तन करके निकालने के लिए उपाय करे. अगर ऐसा हो सका तो सारे समाज में परिवर्तन आ जाएगा.
Saturday, September 24, 2011
पी चिदंबरम को बचाने की डगर पर बार बार फिसल रही है कांग्रेस
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,२३ सितम्बर.पी चिदंबरम के बचाव के मामले में कांग्रेस पूरी तरह से बैकफुट पर है .प्रणब मुखर्जी के उस नोट ने ज़रूरी तूफान मचा दिया है . बीजेपी ने पी चिदंबरम के २ जी मामले में कथित रूप से शामिल होने की बात को राजनीति और मीडिया के एजेंडे पर लाने में कोई कसर नहीं छोडी है . हर संभावित मंच पर आज बीजेपी ने पी चिदंबरम के माले को परवान चढाने की कोशिश की लेकिन कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी के पास मामले में तकनीकी तौर पर बचाव करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. कांग्रेस प्रवक्ता लगभग गिडगिडाते हुए बोले कि बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों ने कांग्रेस की मुसीबत में उसे परेशान करने का अभियान शुरू कर दिया है जो ठीक नहीं है .
बीजेपी ने आज पी चिदंबरम के मामले में पूरी तरह से हमलावर रुख अपनाते हुए कहा कि २ जी मामले में प्रधान मंत्री की हर बात को नहीं माना जा सकता क्योंकि उन्होंने पहले तो ए राजा को भी निर्दोष बताया था लकिन बाद में उनकी सरकार की एजेंसियों ने जांच में उन्हें घोटाले में लिप्त पाया और आजकल वे जेल में हैं .बीजेपी का दावा है कि २ जी घोटाला देश का सबसे बड़ा घोटाला है औत्र उसकी पारदर्शी जांच ज़रूरी है . बीजेपी के प्रवक्ता रवि शंकर प्रसाद ने आज पार्टी मुख्यालय की अपनी नियमित ब्रीफिंग में कहा कि पी चिदंबरम को क्या इस लिए बचाया जा रहा है कि कहीं २ जी घोटाले की जांच की लपटें प्रधान मंत्री कार्यालय तक न पंहुच जाएँ . इस ब्रीफिंग में बीजेपी प्रवक्ता ने सी बी आई की भूमिका को भी विवाद के दायरे में लेने की कोशिश की. बीजेपी ने प्रधान मंत्री से मांग की कि पी चिदंबरम को क्लीन चिट देने से बात ख़त्म नहीं हो जायेगी. उन्हें चाहिए वे चिदंबरम के खिलाफ कार्रवाई करे. मामले को कोर्ट में बता कर बचने की सरकार की कोशिश अपराध पर पर्दा डालने की कोशिश है और इसका हर स्तर पर विरोध किया जाएगा.
कांग्रेस प्रवक्ता के पास बीजेपी के आरोपों का कोई जवाब नहीं था . आज कांग्रेस के तरफ से मोर्चा संभाल रहे मनीष तिवारी ने बीजेपी के राज के दौरान हुए दूरसंचार घोटालों का बार बार उल्लेख किया और दावा किया कि मौजूदा २ जी घोटाले के बीज अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान मंत्री रहते हुए लाई गयी दूरसंचार पालिसी १९९९ में मौजूद थे. उन्होंने ने साफ़ कहा कि एन दी ए सरकार के दौरान भी दूरसंचार पालिसी का बार उल्लंघन हुआ . उन्होंने कहा कि बीजेपी को चाहिए कि अपने गिरेबान में झाँक कर देखे और उसके बाद कांग्रेस की आलोचना करे . जब उनको बताया गया कि जब ए राजा की अगुवाई में २ जी घोटाला हो रहा था उसी दौर में वित्त मंत्रालय के ने आपत्ति की थी .क्या कारण है कि उस waqt के वित्त मंत्री ने नौअक्र्शाही के आदेश को ओवर रूल l करके ए राजा को घोटाला करने दिया, तो कांग्रेस प्रवक्ता ने फिर वही संयुक्त संसदीय समिति के अंदर विचार होने की बात करके मामले को टालने की कोशिश की. जब पूछा गया कि तो क्या आप यह कहना चाहते हैं कि जब तक संयुक्त संसदीय समिति की जांच के नतीजे न आ जाएँ तब तक इस मामले में कोई खबर न लिखी जाए तो वे मामले को और भी बहुत लम्बे दायरे में घेरकर पेश करने की कोशिश करते नज़र आये .
नई दिल्ली,२३ सितम्बर.पी चिदंबरम के बचाव के मामले में कांग्रेस पूरी तरह से बैकफुट पर है .प्रणब मुखर्जी के उस नोट ने ज़रूरी तूफान मचा दिया है . बीजेपी ने पी चिदंबरम के २ जी मामले में कथित रूप से शामिल होने की बात को राजनीति और मीडिया के एजेंडे पर लाने में कोई कसर नहीं छोडी है . हर संभावित मंच पर आज बीजेपी ने पी चिदंबरम के माले को परवान चढाने की कोशिश की लेकिन कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी के पास मामले में तकनीकी तौर पर बचाव करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. कांग्रेस प्रवक्ता लगभग गिडगिडाते हुए बोले कि बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों ने कांग्रेस की मुसीबत में उसे परेशान करने का अभियान शुरू कर दिया है जो ठीक नहीं है .
बीजेपी ने आज पी चिदंबरम के मामले में पूरी तरह से हमलावर रुख अपनाते हुए कहा कि २ जी मामले में प्रधान मंत्री की हर बात को नहीं माना जा सकता क्योंकि उन्होंने पहले तो ए राजा को भी निर्दोष बताया था लकिन बाद में उनकी सरकार की एजेंसियों ने जांच में उन्हें घोटाले में लिप्त पाया और आजकल वे जेल में हैं .बीजेपी का दावा है कि २ जी घोटाला देश का सबसे बड़ा घोटाला है औत्र उसकी पारदर्शी जांच ज़रूरी है . बीजेपी के प्रवक्ता रवि शंकर प्रसाद ने आज पार्टी मुख्यालय की अपनी नियमित ब्रीफिंग में कहा कि पी चिदंबरम को क्या इस लिए बचाया जा रहा है कि कहीं २ जी घोटाले की जांच की लपटें प्रधान मंत्री कार्यालय तक न पंहुच जाएँ . इस ब्रीफिंग में बीजेपी प्रवक्ता ने सी बी आई की भूमिका को भी विवाद के दायरे में लेने की कोशिश की. बीजेपी ने प्रधान मंत्री से मांग की कि पी चिदंबरम को क्लीन चिट देने से बात ख़त्म नहीं हो जायेगी. उन्हें चाहिए वे चिदंबरम के खिलाफ कार्रवाई करे. मामले को कोर्ट में बता कर बचने की सरकार की कोशिश अपराध पर पर्दा डालने की कोशिश है और इसका हर स्तर पर विरोध किया जाएगा.
कांग्रेस प्रवक्ता के पास बीजेपी के आरोपों का कोई जवाब नहीं था . आज कांग्रेस के तरफ से मोर्चा संभाल रहे मनीष तिवारी ने बीजेपी के राज के दौरान हुए दूरसंचार घोटालों का बार बार उल्लेख किया और दावा किया कि मौजूदा २ जी घोटाले के बीज अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान मंत्री रहते हुए लाई गयी दूरसंचार पालिसी १९९९ में मौजूद थे. उन्होंने ने साफ़ कहा कि एन दी ए सरकार के दौरान भी दूरसंचार पालिसी का बार उल्लंघन हुआ . उन्होंने कहा कि बीजेपी को चाहिए कि अपने गिरेबान में झाँक कर देखे और उसके बाद कांग्रेस की आलोचना करे . जब उनको बताया गया कि जब ए राजा की अगुवाई में २ जी घोटाला हो रहा था उसी दौर में वित्त मंत्रालय के ने आपत्ति की थी .क्या कारण है कि उस waqt के वित्त मंत्री ने नौअक्र्शाही के आदेश को ओवर रूल l करके ए राजा को घोटाला करने दिया, तो कांग्रेस प्रवक्ता ने फिर वही संयुक्त संसदीय समिति के अंदर विचार होने की बात करके मामले को टालने की कोशिश की. जब पूछा गया कि तो क्या आप यह कहना चाहते हैं कि जब तक संयुक्त संसदीय समिति की जांच के नतीजे न आ जाएँ तब तक इस मामले में कोई खबर न लिखी जाए तो वे मामले को और भी बहुत लम्बे दायरे में घेरकर पेश करने की कोशिश करते नज़र आये .
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शेष नारायण सिंह
Thursday, September 22, 2011
आर एस एस ने आडवाणी को प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से अलग किया
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,२१ सितम्बर. लाल कृष्ण आडवाणी ने बीजेपी की तरफ से २०१४ के लोक सभा चुनाव के वक़्त प्रधान मंत्री पड़ की दावेदारी से किनारा कर लिया है .आज सुबह नागपुर की यात्रा पर तलब किये गए आडवाणी ने आर एस एस को भरोसा दिला दिया है कि अब वे देश के सर्वोच्च पद के लिए दावेदारी नहीं करेगें . उनके इस बयान के बाद नई दिल्ली में बीजेपी के अंदर का राजनीतिक संघर्ष तेज़ हो गया है . इस संघर्ष के तार अहमदाबाद से भी सीधे तौर पर जुड़ गए हैं.आज जब दिल्ली में पार्टी की नियमित ब्रीफिंग में पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर से पूछा गया कि क्या आडवाणी के नागपुर के बयान के पीछे आर एस एस का दबाव था क्योंकि दिल्ली में आठ सितम्बर को जब उन्होंने अपनी रथ यात्रा का ऐलान किया था तो उन्होंने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के सवाल को खुला छोड़ दिया था. आज नागपुर में उन्होंने साफ़ कहा कि उन्हें पार्टी, संघ और मीडिया से जितना प्यार मिला है वह प्रधान मंत्री पद से ज्यादा महत्वपूर्ण है.पार्टी प्रवक्ता ने अपना आग्रह नहीं छोड़ा और यही कहते रहे कि आडवाणी जी ने भ्रष्टाचार विरोधी यात्रा के ऐलान के समय जो कुछ दिल्ली में कहा था वही बात उन्होंने नागपुर में भी कही. लेकिन बीजेपी के अंदर की खबर रखने वाले बताते हैं कि अब बीजेपी की राजनीति में आडवाणी युग समाप्त हो गया है और आर एस एस के टाप नेताओं की मौजूदगी में आज यह बात नागपुर में बिलकुल पक्के तौर पर तय कर दी गयी है . इसीलिये आडवानी ने आज नागपुर में कहा कि मैं पार्टी के साथ बना हूँ औअर यह उनके लिय एबहुत खुशी की बात है . उन्होंने साफ़ कहा कि वे प्रधान मंत्री नहीं बनना चाहते.बीजेपी प्रवक्ता ने आज स्पष्ट किया कि जिस रथयात्रा की घोषणा आडवाणी जी ने ८ सितम्बर को की थी , वह अभी रद्द नहीं की गयी है . लेकिन अभी उसके बारे में विस्तार से कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.
आडवाणी के इस बयान के बाद बीजेपी की राष्ट्रीय राजनीति में एक बार फिर उठापटक का दौर शुरू हो जाने की आशंका है . बीजेपी वालों को अनुमान है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस सरकार पूरी तरह से घिर चुकी है इसलिए अगले चुनाव में उसका जीतना असंभव है . उस खाली जगह को भरने के लिए बीजेपी के नए टाप नेता कोशिश कर रहे हैं . आडवानी के मैदान छोड़ देने के बाद यह रसाकशी और तेज़ हो जायेगी इस सम्बन्ध में जब कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बीजेपी में प्रधानमंत्री पद के कम से कम पांच दावेदार हैं. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी की आन्तरिक राजनीतिक उथल पुथल के बारे में वे कुछ नहीं कहना चाहते लेकिन उन्होंने बीजेपी का मजाक उडाना जारी रखा . बहरहाल बीजेपी में लाल कृष्ण आडवानी के नागपुर में दिए गए बयान के बाद सत्ता की दावेदारी का संघर्ष तेज़ हो गया है .
नई दिल्ली,२१ सितम्बर. लाल कृष्ण आडवाणी ने बीजेपी की तरफ से २०१४ के लोक सभा चुनाव के वक़्त प्रधान मंत्री पड़ की दावेदारी से किनारा कर लिया है .आज सुबह नागपुर की यात्रा पर तलब किये गए आडवाणी ने आर एस एस को भरोसा दिला दिया है कि अब वे देश के सर्वोच्च पद के लिए दावेदारी नहीं करेगें . उनके इस बयान के बाद नई दिल्ली में बीजेपी के अंदर का राजनीतिक संघर्ष तेज़ हो गया है . इस संघर्ष के तार अहमदाबाद से भी सीधे तौर पर जुड़ गए हैं.आज जब दिल्ली में पार्टी की नियमित ब्रीफिंग में पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर से पूछा गया कि क्या आडवाणी के नागपुर के बयान के पीछे आर एस एस का दबाव था क्योंकि दिल्ली में आठ सितम्बर को जब उन्होंने अपनी रथ यात्रा का ऐलान किया था तो उन्होंने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के सवाल को खुला छोड़ दिया था. आज नागपुर में उन्होंने साफ़ कहा कि उन्हें पार्टी, संघ और मीडिया से जितना प्यार मिला है वह प्रधान मंत्री पद से ज्यादा महत्वपूर्ण है.पार्टी प्रवक्ता ने अपना आग्रह नहीं छोड़ा और यही कहते रहे कि आडवाणी जी ने भ्रष्टाचार विरोधी यात्रा के ऐलान के समय जो कुछ दिल्ली में कहा था वही बात उन्होंने नागपुर में भी कही. लेकिन बीजेपी के अंदर की खबर रखने वाले बताते हैं कि अब बीजेपी की राजनीति में आडवाणी युग समाप्त हो गया है और आर एस एस के टाप नेताओं की मौजूदगी में आज यह बात नागपुर में बिलकुल पक्के तौर पर तय कर दी गयी है . इसीलिये आडवानी ने आज नागपुर में कहा कि मैं पार्टी के साथ बना हूँ औअर यह उनके लिय एबहुत खुशी की बात है . उन्होंने साफ़ कहा कि वे प्रधान मंत्री नहीं बनना चाहते.बीजेपी प्रवक्ता ने आज स्पष्ट किया कि जिस रथयात्रा की घोषणा आडवाणी जी ने ८ सितम्बर को की थी , वह अभी रद्द नहीं की गयी है . लेकिन अभी उसके बारे में विस्तार से कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.
आडवाणी के इस बयान के बाद बीजेपी की राष्ट्रीय राजनीति में एक बार फिर उठापटक का दौर शुरू हो जाने की आशंका है . बीजेपी वालों को अनुमान है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस सरकार पूरी तरह से घिर चुकी है इसलिए अगले चुनाव में उसका जीतना असंभव है . उस खाली जगह को भरने के लिए बीजेपी के नए टाप नेता कोशिश कर रहे हैं . आडवानी के मैदान छोड़ देने के बाद यह रसाकशी और तेज़ हो जायेगी इस सम्बन्ध में जब कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बीजेपी में प्रधानमंत्री पद के कम से कम पांच दावेदार हैं. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी की आन्तरिक राजनीतिक उथल पुथल के बारे में वे कुछ नहीं कहना चाहते लेकिन उन्होंने बीजेपी का मजाक उडाना जारी रखा . बहरहाल बीजेपी में लाल कृष्ण आडवानी के नागपुर में दिए गए बयान के बाद सत्ता की दावेदारी का संघर्ष तेज़ हो गया है .
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शेष नारायण सिंह
योजना आयोग और कांग्रेस के बीच गरीबी रेखा पर मतभेद
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,२१ सितम्बर.बीजेपी ने आज सरकार के उस हलफनामे की सख्त निंदा की जिसमें कथित रूप से गरीबों की संख्या घटाने की साज़िश की गयी है . बीजेपी ने एक बयान जारी करके कहा कि यह उस गरीब व्यक्ति का अपमान है जो बढ़ती मंहगाई और भ्रष्टाचार का शिकार हो रहा है.गरीब को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने के बजाय सरकार ने तथ्य को नकारने और गरीब व्यक्तियों की संख्या छिपाने का रास्ता चुना यह गरीबी दूर करना नहीं बल्कि गरीब को गरीब न मानना है. बीजेपी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यू पी ए सरकार के इस गरीब विरोधी रवैये का सभी उपलब्ध मंचों पर विरोध करेगी. हालांकि कांग्रेस ने इस हलफनामे को अंतिम सत्य मानने से इनकार कर दिया और कहा कि योजना आयोग के पास इस मामले में सुझाव दिए जायेगें . कांग्रेस का दावा है कि यह सुझाव कोई भी दे सकता है . एक सीधे सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी भी योजना आयोग को सकारात्मक सुझाव देगी.लगता है कि अर्थशात्र के विद्वान् योजना आयोग के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ने कांग्रेस के पार्टी से गरीबी की रेखा की परिभाषा तय करने के पहले हरी झंडी नहीं ली थी.
योजना आयोग ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल करके कहा था कि देश के शहरी इलाकों में रह रहे लोग अगर ९६५ रूपये प्रति माह अपने परिवार के रख रखाव पर खर्च करते हैं तो वे गरीबी रेखा कि उपर मानेजायेगें जबकि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले पारिवारों के पास अगर ७८१ रूपये खर्च करने के लिए उपलब्ध है तो वे गरीब नहीं माने जायेगें. बीजेपी का कहना है कि यह सरकार की गैर ज़िम्मेदार कोशिश है . बीजेपी का दावा है कि यह दिमागी दिवालियापन है और इस प्रकार का हलफनामा गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम की विफलता का प्रतीक है .
खाद्य सुरक्षा का कानून बनाकर गरीब आदमी के बीच लोकप्रिय बनने की कोशिश कर रही कांग्रेस के लिए योजना आयोग़ का यह हलफ़नामा बहुत मुश्किलें पैदा कर रहा है . आज जब कांग्रेस प्रवक्ता से इस बारे में जब सवाल किया गया तो तो उन्होंने साफ़ कहा कि अभी इस हलफनामे में सुधार किया जायेगा . हालांकि बात को बहुत घुमावदार तरीके से पेश किया गया लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता की बात से साफ़ था कि योजना आयोग ने उसके लिए मुश्किल पेश कर दी है . उनका कहना है कि बहुत ही सोच विचार के बाद यह आंकड़े उपलब्ध हुए हैं और योजना आयोग के बहुत ही काबिल लोगों ने इस हलफ नामे पर काम किया है . इसलिए इस पर सोच विचार के बाद कोई फैसला लिया जायेगा. कांगेस के सूत्रों का दावा है कि यह हलफनामा पार्टी को मुश्किल में डालने वाला है और बिना राजनीतिक क्लियरेंस के इसे सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दिया गया है .
नई दिल्ली,२१ सितम्बर.बीजेपी ने आज सरकार के उस हलफनामे की सख्त निंदा की जिसमें कथित रूप से गरीबों की संख्या घटाने की साज़िश की गयी है . बीजेपी ने एक बयान जारी करके कहा कि यह उस गरीब व्यक्ति का अपमान है जो बढ़ती मंहगाई और भ्रष्टाचार का शिकार हो रहा है.गरीब को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने के बजाय सरकार ने तथ्य को नकारने और गरीब व्यक्तियों की संख्या छिपाने का रास्ता चुना यह गरीबी दूर करना नहीं बल्कि गरीब को गरीब न मानना है. बीजेपी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यू पी ए सरकार के इस गरीब विरोधी रवैये का सभी उपलब्ध मंचों पर विरोध करेगी. हालांकि कांग्रेस ने इस हलफनामे को अंतिम सत्य मानने से इनकार कर दिया और कहा कि योजना आयोग के पास इस मामले में सुझाव दिए जायेगें . कांग्रेस का दावा है कि यह सुझाव कोई भी दे सकता है . एक सीधे सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी भी योजना आयोग को सकारात्मक सुझाव देगी.लगता है कि अर्थशात्र के विद्वान् योजना आयोग के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ने कांग्रेस के पार्टी से गरीबी की रेखा की परिभाषा तय करने के पहले हरी झंडी नहीं ली थी.
योजना आयोग ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल करके कहा था कि देश के शहरी इलाकों में रह रहे लोग अगर ९६५ रूपये प्रति माह अपने परिवार के रख रखाव पर खर्च करते हैं तो वे गरीबी रेखा कि उपर मानेजायेगें जबकि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले पारिवारों के पास अगर ७८१ रूपये खर्च करने के लिए उपलब्ध है तो वे गरीब नहीं माने जायेगें. बीजेपी का कहना है कि यह सरकार की गैर ज़िम्मेदार कोशिश है . बीजेपी का दावा है कि यह दिमागी दिवालियापन है और इस प्रकार का हलफनामा गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम की विफलता का प्रतीक है .
खाद्य सुरक्षा का कानून बनाकर गरीब आदमी के बीच लोकप्रिय बनने की कोशिश कर रही कांग्रेस के लिए योजना आयोग़ का यह हलफ़नामा बहुत मुश्किलें पैदा कर रहा है . आज जब कांग्रेस प्रवक्ता से इस बारे में जब सवाल किया गया तो तो उन्होंने साफ़ कहा कि अभी इस हलफनामे में सुधार किया जायेगा . हालांकि बात को बहुत घुमावदार तरीके से पेश किया गया लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता की बात से साफ़ था कि योजना आयोग ने उसके लिए मुश्किल पेश कर दी है . उनका कहना है कि बहुत ही सोच विचार के बाद यह आंकड़े उपलब्ध हुए हैं और योजना आयोग के बहुत ही काबिल लोगों ने इस हलफ नामे पर काम किया है . इसलिए इस पर सोच विचार के बाद कोई फैसला लिया जायेगा. कांगेस के सूत्रों का दावा है कि यह हलफनामा पार्टी को मुश्किल में डालने वाला है और बिना राजनीतिक क्लियरेंस के इसे सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दिया गया है .
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शेष नारायण सिंह
गोपालगढ़ में मुसलमानों को टार्गेट करने के मामले में कांग्रेस को रंज है आराम के साथ
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली, २१ सितम्बर .बीजेपी ने राजस्थान सरकार के इस्तीफे की मांग की है . पार्टी का आरोप है कि राजस्थान के भरतपुर जिले के गोपालगढ़ गांव में 14 सितंबर को पुलिस ने एक समुदाय के लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग की और लोगों की जान गयी . कांग्रेस के राशिद अल्वी इस मामले की जांच के लिए गोपाल गढ़ गए थे और उन्होंने राज्य के गृह मंत्री को घटना के लिए ज़िम्मेदार ठहराया . बीजेपी का आरोप है कि इतना बड़ा हादसा होने के बाद राजस्थान की पूरी सरकार को इस्तीफ़ा दे देना चाहिये . जब बीजेपी प्रवक्ता को बताया गया कि आप लोग गुजरात में हज़ारों मुसलमानों की हत्या के बाद भी नरेंद्र मोदी को दोषी नहीं मानते हैं तो उन्होंने कहा कि गोपालगढ़ में सीधे तौर पर राज्य सरकार का हाथ है . मानवाधिकार संगठन ,पी यू सी एल का आरोप है कि इस मामले में पुलिस का गैर ज़िम्मेदार रवैया ही सबसे ज्यादा चिंता की बात है . अजीब बात है कि पुलिस ने दो लोगों के आपसी विवाद में भाग लेते हुए एक खास समुदाय को निशाना बनाया.
गोपालगढ़ की इस घटना में आठ लोग मारे गए और अधिकारिक रूप से 23 लोग घायल हुए। जिन आठ मृतकों की शिनाख्त हुई है, वे सभी अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं। 23 लोग घायल हुए, इसमें से 19 लोग अल्पसंख्यक समुदाय के हैं. यदि पुलिस ने सही कदम उठाते हुए गोलीबारी की है, तो यह एक पहेली है कि मरने वाले सभी एक ही समुदाय के कैसे हो सकते हैं. शुरुआती जांच में पता चला है कि पुलिस ने 219 राउंड गोलियां चलाईं. गोलीबारी से पहले सिर्फ आंसू गैस के गोले छोड़े जाने का उल्लेख है लेकिन लाठीचार्ज या रबर बुलेट का कोई जिक्र नहीं आया है।
पीयूसीएल के अनुसार अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर उन्हें जलाया भी गया। यह जांच करने की जरूरत है कि यह किसने किया। गोलीबारी के बाद मस्जिद परिसर पुलिस के नियंत्रण में था . पी यू सी एल का आरोप हैं कि इस घटना के पीछे स्थानीय पुलिस के अलावा आरएसएस, बजरंग दल और विहिप के कार्यकर्ता शामिल हो सकते हैं। आरोप यह लगाया कि ये लोग घटना से पहले थाने में थे, जहां दोनों समुदाय के बीच समझौते के लिए बैठक चल रही थी तथा इन्हीं लोगों ने दबाव बनाकर कलेक्टर से फायरिंग के आदेश लिखवाए। इसकी भी जांच करवाए जाने की आवश्यकता है. यह भी पता चला है कि गोपालगढ की मस्जिद की दीवारों पर गोलियों के निशान थे. खून के निशान भी मिले हैं .मारने के बाद लोगों को घसीटा भी गया .
नई दिल्ली में आज कांग्रेस के प्रवक्ता ने इसे बहुत ही दुखद और दुभाग्यपूर्ण बताया लेकिन वे इस से आगे जाने को तैयार नहीं थे. जब पूछा गया कि यह मामला तो गुजरात जैसा ही है तो उन्होंने एतराज़ किया और कहा कि गोपाल गढ़ के मामले में अभी कोई सबूत नहीं हैं . गुजरात के मामले में तो सबूत सुप्रीम कोर्ट तक पंहुच चुके हैं . बहरहाल कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद मुसलमानों को टार्गेट करके मारने की इस घटना से सभ्य समाज में बहुत नाराज़गी है .
नई दिल्ली, २१ सितम्बर .बीजेपी ने राजस्थान सरकार के इस्तीफे की मांग की है . पार्टी का आरोप है कि राजस्थान के भरतपुर जिले के गोपालगढ़ गांव में 14 सितंबर को पुलिस ने एक समुदाय के लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग की और लोगों की जान गयी . कांग्रेस के राशिद अल्वी इस मामले की जांच के लिए गोपाल गढ़ गए थे और उन्होंने राज्य के गृह मंत्री को घटना के लिए ज़िम्मेदार ठहराया . बीजेपी का आरोप है कि इतना बड़ा हादसा होने के बाद राजस्थान की पूरी सरकार को इस्तीफ़ा दे देना चाहिये . जब बीजेपी प्रवक्ता को बताया गया कि आप लोग गुजरात में हज़ारों मुसलमानों की हत्या के बाद भी नरेंद्र मोदी को दोषी नहीं मानते हैं तो उन्होंने कहा कि गोपालगढ़ में सीधे तौर पर राज्य सरकार का हाथ है . मानवाधिकार संगठन ,पी यू सी एल का आरोप है कि इस मामले में पुलिस का गैर ज़िम्मेदार रवैया ही सबसे ज्यादा चिंता की बात है . अजीब बात है कि पुलिस ने दो लोगों के आपसी विवाद में भाग लेते हुए एक खास समुदाय को निशाना बनाया.
गोपालगढ़ की इस घटना में आठ लोग मारे गए और अधिकारिक रूप से 23 लोग घायल हुए। जिन आठ मृतकों की शिनाख्त हुई है, वे सभी अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं। 23 लोग घायल हुए, इसमें से 19 लोग अल्पसंख्यक समुदाय के हैं. यदि पुलिस ने सही कदम उठाते हुए गोलीबारी की है, तो यह एक पहेली है कि मरने वाले सभी एक ही समुदाय के कैसे हो सकते हैं. शुरुआती जांच में पता चला है कि पुलिस ने 219 राउंड गोलियां चलाईं. गोलीबारी से पहले सिर्फ आंसू गैस के गोले छोड़े जाने का उल्लेख है लेकिन लाठीचार्ज या रबर बुलेट का कोई जिक्र नहीं आया है।
पीयूसीएल के अनुसार अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर उन्हें जलाया भी गया। यह जांच करने की जरूरत है कि यह किसने किया। गोलीबारी के बाद मस्जिद परिसर पुलिस के नियंत्रण में था . पी यू सी एल का आरोप हैं कि इस घटना के पीछे स्थानीय पुलिस के अलावा आरएसएस, बजरंग दल और विहिप के कार्यकर्ता शामिल हो सकते हैं। आरोप यह लगाया कि ये लोग घटना से पहले थाने में थे, जहां दोनों समुदाय के बीच समझौते के लिए बैठक चल रही थी तथा इन्हीं लोगों ने दबाव बनाकर कलेक्टर से फायरिंग के आदेश लिखवाए। इसकी भी जांच करवाए जाने की आवश्यकता है. यह भी पता चला है कि गोपालगढ की मस्जिद की दीवारों पर गोलियों के निशान थे. खून के निशान भी मिले हैं .मारने के बाद लोगों को घसीटा भी गया .
नई दिल्ली में आज कांग्रेस के प्रवक्ता ने इसे बहुत ही दुखद और दुभाग्यपूर्ण बताया लेकिन वे इस से आगे जाने को तैयार नहीं थे. जब पूछा गया कि यह मामला तो गुजरात जैसा ही है तो उन्होंने एतराज़ किया और कहा कि गोपाल गढ़ के मामले में अभी कोई सबूत नहीं हैं . गुजरात के मामले में तो सबूत सुप्रीम कोर्ट तक पंहुच चुके हैं . बहरहाल कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद मुसलमानों को टार्गेट करके मारने की इस घटना से सभ्य समाज में बहुत नाराज़गी है .
Wednesday, September 21, 2011
भारतीय ज्ञानपीठ ने श्रीलाल शुक्ल को सम्मानित करके अपनी इज्ज़त बढ़ाई
शेष नारायण सिंह
श्रीलाल शुक्ल और अमर कान्त को साहित्य का सबसे ज्यादा कीमत वाला पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, मिल गया है .लखनऊ के दैनिक अखबार , जनसंदेश टाइम्स ने आज इसे पहले पेज पर अपनी मुख्य हेडलाइन बनाकर छापा है . यह बहुत खुशी की बात है . श्री लाल शुक्ल के कालजयी ग्रन्थ ' राग दरबारी ' को देश का सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक पुरस्कार, " साहित्य अकादमी " तो १९६९ में ही मिल चुका था लेकिन सबसे ज्यादा पैसे वाला पुरस्कार मिलने में बहुत देर हुई .ज्ञान पीठ ने ' राग दरबारी ' के लेखक को यह पुरस्कार देकर उनका कोई सम्मान नहीं बढ़ाया है. हिन्दी साहित्य के जिस मुकाम पर श्रीलाल शुक्ल विराजते हैं , वहां किसी भी पुरस्कार की कोई औकात नहीं रह जाती लेकिन इस पुरस्कार की घोषणा करके भारतीय ज्ञानपीठ ने अपने सम्मान में वृद्धि ज़रूर की है . राजनीतिक और समकालीन घटनाओं पर केन्द्रित एक अखबार ने इस साहित्यिक घटना को मुख्य हेडलाइन बनाकर यह साबित कर दिया है कि पिछले ४० साल से जिस साहित्यकार की धमक लखनऊ की हर सांस में रही है वह किसी भी नेता से बड़ा है और जब कोई संगठन उसको सम्मानित करता है तो उसे लखनऊ की सबसे बड़ी खबर में शामिल होने का मौक़ा दिया जाना चाहिए. राग दरबारी का सम्मान करके ज्ञानपीठ ने अपने आपको सम्मान के लायक एक बार फिर घोषित कर दिया है .
१९७० में ताराशंकर बंद्योपाध्याय के उपन्यास ,' गणदेवता ' को पढ़ते हुए मुझे लगा था कि प्रेमचंद के बाद भी ऐसे लोग पैदा हुए हैं जो आपको अपनी कहानी के गाँव में बैठा देते हैं. ग्रामीण बंगाल की पृष्ठभूमि और जाति की संस्था और ज़मीन के रिश्तों पर हमला बोल रहे ' गणदेवता ' में लेखक की कबीरपंथी ईमानदारी से मैं बहुत प्रभावित हुआ था. मैंने कभी बंगाल का कोई गाँव नहीं देखा था लेकिन उस उपन्यास के पात्र मुझे अपने गाँव में ही मिल गए थे. ख़ास तौर पर छिरू पाल का चरित्र तो कुछ पन्नों के बाद बंगाल के किसी गांव से उठ कर सीधे मेरे अपने गाँव में आ गया था. लगता है कि वह मेरे गाँव के एक गंवई दबंग का चरित्र है . पूरे उपन्यास में छिरू पाल मुझे अपने गाव के ही लगते रहे. गाँव में ज़मीन की मिलकियत के बदल रहे समीकरण ने भी मुझे अपने गाँव में ही स्थापित कर दिया था. गणदेवता पढने वाले उस वक़्त मेरे कालेज में बहुत कम लोग थे उनसे बात नहीं हो सकती थी. ज्ञानपीठ सम्मान में उन दिनों भी शायद एक लाख रूपये मिलते थे जो सम्मानित लेखक के लिए बहुत बड़ी रक़म थी. उन्हीं दिनों श्रीलाल शुक्ल का ग्रन्थ " राग दरबारी " बहुत चर्चा में था. उसे भी उसी साल या कुछ पहले साहित्य अकादमी पुरास्कार मिला था.. गणदेवता के बाद मैंने ' राग दरबारी ' पढ़ा मुझे लगा कि इस उपन्यास को भी लखटकिया पुरस्कार मिलना चाहिए . आज ४० साल बाद जब ' राग दरबारी ' के लेखक को लखटकिया पुरस्कार मिला तो वह ८५ साल की उम्र पार कर चुके हैं. खुशी इस बात की है कि जिस अखबार में मैं भी लिखता हूँ उस अखबार ने समकालीन साहित्य के सबसे बड़े मनीषी को मिले हुए सम्मान को मुख्य खबर बनाया है .
छात्र जीवन के बाद १९७३ में डिग्री कालेज में लेक्चरर होने के बाद मैंने ' राग दरबारी ' दुबारा पढ़ा . उसके सारे चरित्र वही थे लेकिन उनका मतलब मेरे लिए नया हो चुका था. खन्ना मास्टर में अब अपना अक्स दिखने लगा था. पहली बार पढने पर सनीचर मेरे अपने गाँव के एक आदमी के रूप में नज़र आता था लेकिन कालेज में तो वह प्रिंसिपल की काया में प्रवेश कर गया था. १९७० में रंग नाथ एक बन्तू किस्म का इंसान था जो कि मेरे कालेज में पढाता था. यहाँ आकर रंगनाथ एकदम अलग तरह का बेहूदा नज़र आने लगा था. वैद जी के चरित्र में भी नई पहचान घुस गयी थी. . नई परिस्थिति में एकदम अलग किस्म का रामाधीन भीखमखेडवी पैदा हो चुका था. मुराद यह कि ' राग दरबारी 'के जो चरित्र मूल रूप से शिवपाल गंज के आस पास विराजते थे , वे मौक़ा मिलते ही किसी भी गांव के चरित्र बन सकते थे. यही नहीं वे शहरी चरित्र भी बन सकते थे. दिल्ली में १९७७ के दौरान मैंने ' राग दरबारी ' के पात्रों को फिर से नए परिवेश में देखा. यहाँ वैद जी तो जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर नामवर सिंह ही लगते थे लेकिन . उन दिनों कई सनीचर नज़र आने लगे थे. यहाँ के रंगनाथ का बांकपन बिलकुल अलग था. १९७८ में शायद राजिंदर नाथ का नाटक "जाति ही पूछो साधू की " श्रीराम सेंटर में खेला गया था. उस नाटक में आज के बुज़ुर्ग अभिनेता, एस एम ज़हीर ने लेक्चरर की नौकरी के लिए इंटरव्यू देने वाले पात्र की भूमिका अदा की थी. वह भी बिलकुल खन्ना मासटर का अवतार लग रहा था. राष्ट्रीय सहारा अखबार में नौकरी करते हुए मैंने और मेरे साथी संजय श्रीवास्तव ने उस अखबार के दफ्तर को ही शिवपालगंज नाम दे दिया था. वहां भी एक से एक बढ़ कर वैद जी, खन्ना मास्टर आदि पाए जाते थे. राग दरबारी के और भी बहुत सारे इस्तेमाल हैं . मैंने उसे तीन चार बार पढ़ रखा था लेकिन जब दिल्ली में अपनी पत्नी के साथ अपना घर बसाया तो मैंने उन्हें पूरा ' राग दरबारी ' करीब एक हफ्ते के अंदर बांचकर सुनाया था. मुझे मालूम है कि उसके बाद वे मुझे पहले से ज्यादा प्यार करने लगी थीं .
राग दरबारी को हालांकि उपन्यास कहा जाता है . लेकिन मैं उसे एक पूर्ण ग्रन्थ मानता हूँ .साहित्यकार और आलोचक क्या कहते हैं , मुझे नहीं मालूम लेकिन मैं उसे १९६० के बाद के बदल रहे भारत का लखनऊ के आस पास का समकालीन इतिहास ही मानता हूँ . उसकी खूबी यह है कि उसके पात्र हर गाँव और हर व्यक्ति में अलग अलग मायने के साथ हाज़िर होते हैं. भारतीय ज्ञानपीठ ने एक बार अपनी इज़्ज़त को फिर से रिक्लेम करने की कोशिश की . हालांकि बीच में तो बहुत सारे तिकड़म बाजों को सम्मानित करके वह भी भारत सरकार के पद्म पुरस्कारों की तरह पतन के रास्ते पर चल पड़ा था. लेकिन लगता है कि अब वह फिर से अपने खोये हुए गौरव की तलाश में है .
श्रीलाल शुक्ल और अमर कान्त को साहित्य का सबसे ज्यादा कीमत वाला पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, मिल गया है .लखनऊ के दैनिक अखबार , जनसंदेश टाइम्स ने आज इसे पहले पेज पर अपनी मुख्य हेडलाइन बनाकर छापा है . यह बहुत खुशी की बात है . श्री लाल शुक्ल के कालजयी ग्रन्थ ' राग दरबारी ' को देश का सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक पुरस्कार, " साहित्य अकादमी " तो १९६९ में ही मिल चुका था लेकिन सबसे ज्यादा पैसे वाला पुरस्कार मिलने में बहुत देर हुई .ज्ञान पीठ ने ' राग दरबारी ' के लेखक को यह पुरस्कार देकर उनका कोई सम्मान नहीं बढ़ाया है. हिन्दी साहित्य के जिस मुकाम पर श्रीलाल शुक्ल विराजते हैं , वहां किसी भी पुरस्कार की कोई औकात नहीं रह जाती लेकिन इस पुरस्कार की घोषणा करके भारतीय ज्ञानपीठ ने अपने सम्मान में वृद्धि ज़रूर की है . राजनीतिक और समकालीन घटनाओं पर केन्द्रित एक अखबार ने इस साहित्यिक घटना को मुख्य हेडलाइन बनाकर यह साबित कर दिया है कि पिछले ४० साल से जिस साहित्यकार की धमक लखनऊ की हर सांस में रही है वह किसी भी नेता से बड़ा है और जब कोई संगठन उसको सम्मानित करता है तो उसे लखनऊ की सबसे बड़ी खबर में शामिल होने का मौक़ा दिया जाना चाहिए. राग दरबारी का सम्मान करके ज्ञानपीठ ने अपने आपको सम्मान के लायक एक बार फिर घोषित कर दिया है .
१९७० में ताराशंकर बंद्योपाध्याय के उपन्यास ,' गणदेवता ' को पढ़ते हुए मुझे लगा था कि प्रेमचंद के बाद भी ऐसे लोग पैदा हुए हैं जो आपको अपनी कहानी के गाँव में बैठा देते हैं. ग्रामीण बंगाल की पृष्ठभूमि और जाति की संस्था और ज़मीन के रिश्तों पर हमला बोल रहे ' गणदेवता ' में लेखक की कबीरपंथी ईमानदारी से मैं बहुत प्रभावित हुआ था. मैंने कभी बंगाल का कोई गाँव नहीं देखा था लेकिन उस उपन्यास के पात्र मुझे अपने गाँव में ही मिल गए थे. ख़ास तौर पर छिरू पाल का चरित्र तो कुछ पन्नों के बाद बंगाल के किसी गांव से उठ कर सीधे मेरे अपने गाँव में आ गया था. लगता है कि वह मेरे गाँव के एक गंवई दबंग का चरित्र है . पूरे उपन्यास में छिरू पाल मुझे अपने गाव के ही लगते रहे. गाँव में ज़मीन की मिलकियत के बदल रहे समीकरण ने भी मुझे अपने गाँव में ही स्थापित कर दिया था. गणदेवता पढने वाले उस वक़्त मेरे कालेज में बहुत कम लोग थे उनसे बात नहीं हो सकती थी. ज्ञानपीठ सम्मान में उन दिनों भी शायद एक लाख रूपये मिलते थे जो सम्मानित लेखक के लिए बहुत बड़ी रक़म थी. उन्हीं दिनों श्रीलाल शुक्ल का ग्रन्थ " राग दरबारी " बहुत चर्चा में था. उसे भी उसी साल या कुछ पहले साहित्य अकादमी पुरास्कार मिला था.. गणदेवता के बाद मैंने ' राग दरबारी ' पढ़ा मुझे लगा कि इस उपन्यास को भी लखटकिया पुरस्कार मिलना चाहिए . आज ४० साल बाद जब ' राग दरबारी ' के लेखक को लखटकिया पुरस्कार मिला तो वह ८५ साल की उम्र पार कर चुके हैं. खुशी इस बात की है कि जिस अखबार में मैं भी लिखता हूँ उस अखबार ने समकालीन साहित्य के सबसे बड़े मनीषी को मिले हुए सम्मान को मुख्य खबर बनाया है .
छात्र जीवन के बाद १९७३ में डिग्री कालेज में लेक्चरर होने के बाद मैंने ' राग दरबारी ' दुबारा पढ़ा . उसके सारे चरित्र वही थे लेकिन उनका मतलब मेरे लिए नया हो चुका था. खन्ना मास्टर में अब अपना अक्स दिखने लगा था. पहली बार पढने पर सनीचर मेरे अपने गाँव के एक आदमी के रूप में नज़र आता था लेकिन कालेज में तो वह प्रिंसिपल की काया में प्रवेश कर गया था. १९७० में रंग नाथ एक बन्तू किस्म का इंसान था जो कि मेरे कालेज में पढाता था. यहाँ आकर रंगनाथ एकदम अलग तरह का बेहूदा नज़र आने लगा था. वैद जी के चरित्र में भी नई पहचान घुस गयी थी. . नई परिस्थिति में एकदम अलग किस्म का रामाधीन भीखमखेडवी पैदा हो चुका था. मुराद यह कि ' राग दरबारी 'के जो चरित्र मूल रूप से शिवपाल गंज के आस पास विराजते थे , वे मौक़ा मिलते ही किसी भी गांव के चरित्र बन सकते थे. यही नहीं वे शहरी चरित्र भी बन सकते थे. दिल्ली में १९७७ के दौरान मैंने ' राग दरबारी ' के पात्रों को फिर से नए परिवेश में देखा. यहाँ वैद जी तो जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर नामवर सिंह ही लगते थे लेकिन . उन दिनों कई सनीचर नज़र आने लगे थे. यहाँ के रंगनाथ का बांकपन बिलकुल अलग था. १९७८ में शायद राजिंदर नाथ का नाटक "जाति ही पूछो साधू की " श्रीराम सेंटर में खेला गया था. उस नाटक में आज के बुज़ुर्ग अभिनेता, एस एम ज़हीर ने लेक्चरर की नौकरी के लिए इंटरव्यू देने वाले पात्र की भूमिका अदा की थी. वह भी बिलकुल खन्ना मासटर का अवतार लग रहा था. राष्ट्रीय सहारा अखबार में नौकरी करते हुए मैंने और मेरे साथी संजय श्रीवास्तव ने उस अखबार के दफ्तर को ही शिवपालगंज नाम दे दिया था. वहां भी एक से एक बढ़ कर वैद जी, खन्ना मास्टर आदि पाए जाते थे. राग दरबारी के और भी बहुत सारे इस्तेमाल हैं . मैंने उसे तीन चार बार पढ़ रखा था लेकिन जब दिल्ली में अपनी पत्नी के साथ अपना घर बसाया तो मैंने उन्हें पूरा ' राग दरबारी ' करीब एक हफ्ते के अंदर बांचकर सुनाया था. मुझे मालूम है कि उसके बाद वे मुझे पहले से ज्यादा प्यार करने लगी थीं .
राग दरबारी को हालांकि उपन्यास कहा जाता है . लेकिन मैं उसे एक पूर्ण ग्रन्थ मानता हूँ .साहित्यकार और आलोचक क्या कहते हैं , मुझे नहीं मालूम लेकिन मैं उसे १९६० के बाद के बदल रहे भारत का लखनऊ के आस पास का समकालीन इतिहास ही मानता हूँ . उसकी खूबी यह है कि उसके पात्र हर गाँव और हर व्यक्ति में अलग अलग मायने के साथ हाज़िर होते हैं. भारतीय ज्ञानपीठ ने एक बार अपनी इज़्ज़त को फिर से रिक्लेम करने की कोशिश की . हालांकि बीच में तो बहुत सारे तिकड़म बाजों को सम्मानित करके वह भी भारत सरकार के पद्म पुरस्कारों की तरह पतन के रास्ते पर चल पड़ा था. लेकिन लगता है कि अब वह फिर से अपने खोये हुए गौरव की तलाश में है .
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Sunday, September 18, 2011
मोदी उन लोगों के जले पर नमक छिड़क रहे हैं जो मजबूरी में उपवास रखते हैं.
शेष नारायण सिंह
आज जब मीडिया के हर मंच पर गुजरात के मुख्य मंत्री ,नरेंद्र मोदी के उपवास की खबरें लगातार देखा तो अपने गाँव में बिताया गया अपना बचपन बहुत याद आया . बाइस्कोप की तरह तस्वीरें नज़र आती रहीं. एक जगह जहां बार बार मन अटक रहा था ,वह तस्वीर मेरे दरवाज़े के नीम के पेड के नीचे की गयी बातचीत का एक टुकड़ा था .उस वक़्त के वरिष्ठ नागरिक टिबिल साहेब ने कहा कि बच्चा, आज तो बंडेरी पर धुंआ दिखाने के लिए चूल्हे में लकड़ी जलानी पड़ेगी . राशन है नहीं सो खाना तो नहीं बन पायेगा , शाम को जब भैंस दूध देगी तो बच्चों को पिला दिया जाये़या .आज हम लोग उपवास करेगें . जिसको बच्चा कह कर संबोधित किया गया था वे मेरे स्वर्गीय पिता जी थे. मेरे अपने घर में भी खाने पीने की तकलीफ थी. मेरे पिता जी ने टिबिल साहेब की बात सुन कर सन्न खींच लिया. कुछ देर बाद मेरी बड़ी बहन एक गठरी जैसी कोई चीज़ लेकर टिबिल साहेब के घर जाती देखी गयी. यह साठ के दशक का मेरा गाँव है. आजादी मिले कोई १०-१२ साल हुए रहे होंगें. ग्रीन रिवोल्यूशन का कहीं आता पता नहीं था .खेती के तरीके बहुत पुराने थे. देहुला धान और जौ की खेती होती थी. पूस आते आते खाने का सामान घर में चुक जाता था. भड़भूजे के यहाँ से भुनवा कर लाया गया दाना भी स्नैक्स की तरह नहीं , लंच या डिनर की तरह खाया जाता था. मेरे गाँव में लोगों के घरों में अक्सर उपवास हो जाया करता था. इस उपवास में बूढ़े और जवान तो शामिल रहते ही थे , बच्चों को भी शामिल होना पड़ता था . बड़े होने पर मैंने अर्थशास्त्र की किताबों में पढ़ा कि भारत के बड़े भूभाग में लोग इसी तरह की ज़िन्दगी बसर करने के लिए मजबूर थे. गरीब लोगों के इस गाँव में किसान यह स्वीकार कर ही नहीं सकता था कि उसके यहाँ खाने के लिए कुछ नहीं है . उसका ज़मीर ज़िंदा था और वह अपनी गरीबी को छुपाकर रखना चाहता था . गरीब आदमी जब भूख से मरता है तो वह हार जाता है . हारा हुआ आदमी बहुत कमज़ोर होता है .
महात्मा गांधी भी उपवास रखते थे. उन्होंने उपवास कभी धमकाने के लिए नहीं रखा. अपने विरोधी पर दबाव डालने के लिए भी कभी नहीं रखा. महात्मा जी अगर आज जिंदा होते तो वे गुजरात के मामले में उपवास ज़रूर रखते लेकिन इसलिए नहीं कि जिन लोगों को २००२ में मारा गया था, उनके घर वाले और डर जाएँ. उनका उपवास इसलिए होता कि जिन लोगों ने गुजरात में इंसानियत का क़त्ले-आम किया था वे अपनी गलती मानें और दुबारा उसे दोहराने की बात न सोचें . आज की हालात बिलकुल अलग हैं .नरेंद्र मोदी के लोगों ने गुजरात में बहुत सारे घर ऐसे बना दिए थे जहां कोई भी कमाने वाला नहीं बचा. आज वे लोग मजबूरी में अक्सर उपवास करते हैं .आज का गुजरात का उपवासी यह साबित करना चाहता है कि उसने जो कुछ गुजरात में २००२ में करवाया वह बिलकुल सही था. अब उसकी कोशिश है कि बाकी देश में भी सत्ता हासिल करे . उसकी योजना है कि पूरे भारत के मुसलमानों को उसी तरह से ठीक कर दिया जाय जैसे २००२ में गुजरात में किया गया था. आज गुजरात का स्टार उपवासी यह साबित करना चाहता है कि वह बहुत ही विनम्र है . ठीक उसी तरह जैसे फिल्म "लगे रहो मुन्ना भाई" का मुरली प्रसाद शर्मा विनम्र हो गया था. लगता है कि नरेंद्र मोदी ने उसी विनम्रता को अपनाने की कोशिश की है जैसी संजय दत्त ने अपनाई थी .वैसे उपवास का स्वांग करके नरेंद्र मोदी उन लोगों का अपमान कर रहे हैं जो उपवास रखने के लिए मजबूर हैं .
आज जब मीडिया के हर मंच पर गुजरात के मुख्य मंत्री ,नरेंद्र मोदी के उपवास की खबरें लगातार देखा तो अपने गाँव में बिताया गया अपना बचपन बहुत याद आया . बाइस्कोप की तरह तस्वीरें नज़र आती रहीं. एक जगह जहां बार बार मन अटक रहा था ,वह तस्वीर मेरे दरवाज़े के नीम के पेड के नीचे की गयी बातचीत का एक टुकड़ा था .उस वक़्त के वरिष्ठ नागरिक टिबिल साहेब ने कहा कि बच्चा, आज तो बंडेरी पर धुंआ दिखाने के लिए चूल्हे में लकड़ी जलानी पड़ेगी . राशन है नहीं सो खाना तो नहीं बन पायेगा , शाम को जब भैंस दूध देगी तो बच्चों को पिला दिया जाये़या .आज हम लोग उपवास करेगें . जिसको बच्चा कह कर संबोधित किया गया था वे मेरे स्वर्गीय पिता जी थे. मेरे अपने घर में भी खाने पीने की तकलीफ थी. मेरे पिता जी ने टिबिल साहेब की बात सुन कर सन्न खींच लिया. कुछ देर बाद मेरी बड़ी बहन एक गठरी जैसी कोई चीज़ लेकर टिबिल साहेब के घर जाती देखी गयी. यह साठ के दशक का मेरा गाँव है. आजादी मिले कोई १०-१२ साल हुए रहे होंगें. ग्रीन रिवोल्यूशन का कहीं आता पता नहीं था .खेती के तरीके बहुत पुराने थे. देहुला धान और जौ की खेती होती थी. पूस आते आते खाने का सामान घर में चुक जाता था. भड़भूजे के यहाँ से भुनवा कर लाया गया दाना भी स्नैक्स की तरह नहीं , लंच या डिनर की तरह खाया जाता था. मेरे गाँव में लोगों के घरों में अक्सर उपवास हो जाया करता था. इस उपवास में बूढ़े और जवान तो शामिल रहते ही थे , बच्चों को भी शामिल होना पड़ता था . बड़े होने पर मैंने अर्थशास्त्र की किताबों में पढ़ा कि भारत के बड़े भूभाग में लोग इसी तरह की ज़िन्दगी बसर करने के लिए मजबूर थे. गरीब लोगों के इस गाँव में किसान यह स्वीकार कर ही नहीं सकता था कि उसके यहाँ खाने के लिए कुछ नहीं है . उसका ज़मीर ज़िंदा था और वह अपनी गरीबी को छुपाकर रखना चाहता था . गरीब आदमी जब भूख से मरता है तो वह हार जाता है . हारा हुआ आदमी बहुत कमज़ोर होता है .
महात्मा गांधी भी उपवास रखते थे. उन्होंने उपवास कभी धमकाने के लिए नहीं रखा. अपने विरोधी पर दबाव डालने के लिए भी कभी नहीं रखा. महात्मा जी अगर आज जिंदा होते तो वे गुजरात के मामले में उपवास ज़रूर रखते लेकिन इसलिए नहीं कि जिन लोगों को २००२ में मारा गया था, उनके घर वाले और डर जाएँ. उनका उपवास इसलिए होता कि जिन लोगों ने गुजरात में इंसानियत का क़त्ले-आम किया था वे अपनी गलती मानें और दुबारा उसे दोहराने की बात न सोचें . आज की हालात बिलकुल अलग हैं .नरेंद्र मोदी के लोगों ने गुजरात में बहुत सारे घर ऐसे बना दिए थे जहां कोई भी कमाने वाला नहीं बचा. आज वे लोग मजबूरी में अक्सर उपवास करते हैं .आज का गुजरात का उपवासी यह साबित करना चाहता है कि उसने जो कुछ गुजरात में २००२ में करवाया वह बिलकुल सही था. अब उसकी कोशिश है कि बाकी देश में भी सत्ता हासिल करे . उसकी योजना है कि पूरे भारत के मुसलमानों को उसी तरह से ठीक कर दिया जाय जैसे २००२ में गुजरात में किया गया था. आज गुजरात का स्टार उपवासी यह साबित करना चाहता है कि वह बहुत ही विनम्र है . ठीक उसी तरह जैसे फिल्म "लगे रहो मुन्ना भाई" का मुरली प्रसाद शर्मा विनम्र हो गया था. लगता है कि नरेंद्र मोदी ने उसी विनम्रता को अपनाने की कोशिश की है जैसी संजय दत्त ने अपनाई थी .वैसे उपवास का स्वांग करके नरेंद्र मोदी उन लोगों का अपमान कर रहे हैं जो उपवास रखने के लिए मजबूर हैं .
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महात्मा बनने की कोशिश के तार नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति के सपनों से जुड़े हैं
शेष नारायण सिंह
गुजरात के मुख्य मंत्री,नरेंद्र मोदी ने दुनिया भर के गुजरातियों को संबोधित एक पत्र में अपने को महात्मा साबित करने की कोशिश की है . उस चिट्ठी में उन्होंने २००२ के गुजरात के नरसंहार को एक साम्प्रदायिक दंगा बताया है और कहा है कि २००२ के बाद गुजरात के विरोधियों ने उनके खिलाफ प्रचार अभियान शुरू कर दिया था. उन्होंने गुजरातियों को सूचित किया है कि अब वे ' सद्भावना मिशन ' शुरू करने वाले हैं . गुजरात नरसंहार २००२ से नाराज़ लोगों ने इस पर कड़ा एतराज़ जताया है .उनका कहना है कि मोदी जैसे आदमी को ' सद्भावना मिशन ' पर जाने का कोई हक नहीं है. क्योंकि २००२ में गुजरात के नर संहार की निगरानी मोदी ने ही की थी. और हज़ारों मुसलमानों की हत्या करवाई थी. उनके नाम के साथ सद्भावना शब्द ठीक नहीं लगता . मोदी ने अब तक २००२ के सामूहिक हत्याकांड के लिए कभी दुःख नहीं प्रकट किया है . उस क़त्ले आम के बाद उन्होंने गौरव यात्रा निकाली थी और पूरे गुजरात के मुसलमानों की छाती पर मूंग दलने का काम किया था. उनसे २००२ के लिए शर्मिंदा होने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए . उनकी यह चिट्ठी भी उन लोगों को संबोधित की गयी है जो उनके २००२ के काम को बहादुरी का काम मानते हैं .उनका जो मौजूदा सद्भावना मिशन है उसका २००२ से कुछ भी लेना देना नहीं है . सुप्रीम कोर्ट से एक मामूली राहत मिलने के बाद बीजेपी में उनके साथियों ने हल्ला मचा दिया कि मोदी को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया है . सही बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल यह कहा है कि अभी मुक़दमा निचली अदालत में चलेगा . अगर ज़रूरी हुआ तो अपील के ज़रिये शिकायतकर्ता सुप्रीम कोर्ट में भी आ सकते हैं . इसमें बरी होने जैसी कोई बात नहीं थी लेकिन राजनीतिक कारणों से इस बात को तूल दिया जा रहा है . असली लड़ाई बीजेपी की आतंरिक राजनीति के हवाले से समझी जा सकती है . मामला यह है कि २०१४ के चुनाव में बीजेपी को अपने प्रधान मंत्री पद के उम्मीद वार को प्रोजेक्ट करना है . हालांकि उनके सत्ता में वापस आने की संभावना बिलकुल नहीं है.मोदी के सद्भावना मिशन या आडवाणी की रथ यात्रा को उसी राजनीतिक मुहिम के सन्दर्भ में ही समझना पडेगा . आम तौर पर माना जाता रहा है कि २००९ में किरकिरी होने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी २०१४ में प्रधान मंत्री पद वाली दावेदारी से अपने आपको अलग कर लेगें. लेकिन लोकसभा के मानसून सत्र के अंतिम दिन उन्होंने एक रथ यात्रा का ऐलान कर दिया . बाकी देश के राजनीति के जानकारों सहित उनकी पार्टी के नेता भी अवाक रह गए.जिस यात्रा की आडवाणी जी ने घोषणा की थी उसकी तारीख , रूट या विषय वस्तु अभी तक किसी को नहीं मालूम है , शायद खुद आडवाणी को भी नहीं . लेकिन यात्रा की घोषणा में दिखाई गयी जल्दबाजी से एक बात साफ़ हो गयी थी कि लाल कृष्ण आडवाणी किसी आसन्न खतरे को टालने की गरज से आनन फानन में यात्रा की घोषणा कर रहे हैं. उनकी घोषणा के बाद से ही बीजेपी के अंदर चल रही सुप्रीमेसी की लड़ाई खुल कर सामने आ गयी. सारी दुनिया जानती है कि अटल बिहारी वाजपेयी के बाद बीजेपी में आडवाणी सबसे मह्त्वपूर्ण नेता हैं . यह भी मालूम है कि अगर आडवाणी जी मैदान में हैं तो कोई दूसरा भाजपाई नेता उनको चुनौती नहीं दे सकता . एक कारण तो शिष्टाचार का है लेकिन उस से भी मज़बूत कारण पार्टी के अंदर राजनीतिक हैसियत का भी है . आडवाणी के रहते किसी को भी उनके ऊपर के मुकाम पर नहीं बैठाया जा सकता . हाँ उनकी मर्ज़ी से कोई भी किसी भी पद पर बैठाया जा सकता है . हमने बंगारू लक्षमण और वेंकैया नायडू को आडवाणी जी की कृपा से पार्टी के अध्यक्ष पद पर विराजते देखा है . और उन दोनों को पार्टी के अंदर से कोई चुनौती नहीं मिली थी. आडवाणी जी की मर्जी के खिलाफ डॉ मुरली मनोहर जोशी और राजनाथ सिंह को अध्यक्ष बनाया गया था . दुनिया जानती है कि आडवाणी गुट के दमदार नेताओं ने मीडिया में मज़बूत पकड़ का इस्तेमाल करके उन दोनों ही नेताओं का क्या हाल किया था . अपनी नई रथयात्रा का ऐलान कर के आडवाणी जी ने अपना नाम सर्वोच्च पद की दावेदारी की लिस्ट में डाल दिया है . ऐसा करके उन्होंने उन सभी नेताओं की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है जो अब लगभग साठ साल के हैं .उनके लिए प्रधानमंत्री पद पर विराजने का यही सही समय है.लेकिन अगर आडवाणी जी को किसी तरह से रेस से बाहर किया जा सके, तो मैदान फिर साफ़ हो जाएगा और बीजेपी की टाप लीडरशिप के लिए अपनी किस्मत आजमाने का मौक़ा मिल जाएगा. ऐसा लगता है कि इन लोगों ने ही नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में आने की प्रेरणा दी है . नरेंद्र मोदी के मैदान में कूद जाने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी के लिए मुश्किल पैदा हो सकती है . बीजेपी का जो हार्ड कोर वोट बैंक है वह आम तौर पर आक्रामक हिंदुत्व को बहुत ही सही मानता है . १९९० में सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा करके आडवाणी जी ने इस आक्रामक हिंदुत्व के पुजारी का दिल जीत लिया था . उस दौर में जो दंगे हुए थे उसमें बड़ी संख्या में मुसलमान मारे गए थे. इस देश में ऐसे लोगों की एक बहुत बड़ी संख्या है जो आर एस एस के भक्त हैं और उनको भरोसा है क अगर मुसलमानों को मार डाला आये या इस देश से भगा दिया जाए तो भारत बहुत महान देश बन जाएगा. २००२ तक इस वर्ग के हीरो लाल कृष्ण आडवाणी थे लेकिन २००२ के बाद आक्रामक हिंदुत्व की विचार धारा के इन भक्तों के नेता गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. ज़ाहिर है कि मोदी और आडवाणी की लड़ाई में मोदी ही जीतेगें. इसके कई कारण हैं . आक्रामक हिंदुत्व के अलावा जो दूसरा प्रमुख कारण है वह यह कि आडवाणी जी को लोकसभा चुनाव में गाँधीनगर सीट से नरेंद्र मोदी के सहयोग से ही जीत हासिल होती है . राजनीति के कुशल पारखी, लाल कृष्ण आडवाणी ऐसी कोई गलती कभी नहीं करेगें जिसके चलते उनको नरेंद्र मोदी को नाराज़ करना पड़े. ऐसा लगता है कि इस रणनीति की कारगर मारक क्षमता के मद्दे नज़र बीजेपी के नए आलाकमान ने मोदी को आगे कर दिया है और अब वे आडवाणी को रास्ते से हटाने में कामयाब हो जायेगें.
इस बड़े सफलता के बाद मोदी को रास्ते से हटाने की बात आयेगी..आडवाणी जी के अलावा इस वक़्त बीजेपी के जो नेता प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं उनमें सुषमा स्वराज ,अरुण जेटली , राजनाथ सिंह , वेंकैया नायडू, बंगारू लक्षमण आदि का नाम लिया जा सकता है . नेताओं की इस मज़बूत पंक्ति में सबकी ताक़त ऐसी है कि वे नरेंद्र मोदी के खिलाफ माहौल बना देगें . सबको मामूल है कि यूरोप और अमरीका के कई बड़े देशों में मोदी के घुसने की इज़ाज़त नहीं है . यह देश उनके वीजा की दरखास्त को खारिज कर देते हैं और वीजा नहीं देते .बीजेपी अपने एताक़त क एबल पर तो प्रधानमंत्री की गद्दी हासिल नहीं कर सकती. एन डी ए के एक बड़े घटक जे डी ( यू ) के बड़े नेता और बिहार के मुख्यमंत्री , नीतीश कुमार कभी भी नरेंद्र मोदी को नेता नहीं मानेगें. यहाँ तक कि उन्होंने अपने राज्य में मोदी के चुनाव प्रचार करने की बात का भी बहुत बुरा माना था . इसलिए नरेंद्र मोदी को रास्ते से हटाना बीजेपी आलाकमान के लिए बहुत आसान होगा . इस लेख का उद्देश्य बीजेपी की ओर से संभावित प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार की तलाश करना नहीं है .क्योंकि यह लगभग पक्का है कि २०१४ के चुनावों के बाद बीजेपी सत्ता से और दूर हो जायेगी लेकिन उनकी आतंरिक राजनीति में नरेंद्र मोदी और आडवाणी की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं एक मनोरंजक अवसर तो देती ही हैं .
गुजरात के मुख्य मंत्री,नरेंद्र मोदी ने दुनिया भर के गुजरातियों को संबोधित एक पत्र में अपने को महात्मा साबित करने की कोशिश की है . उस चिट्ठी में उन्होंने २००२ के गुजरात के नरसंहार को एक साम्प्रदायिक दंगा बताया है और कहा है कि २००२ के बाद गुजरात के विरोधियों ने उनके खिलाफ प्रचार अभियान शुरू कर दिया था. उन्होंने गुजरातियों को सूचित किया है कि अब वे ' सद्भावना मिशन ' शुरू करने वाले हैं . गुजरात नरसंहार २००२ से नाराज़ लोगों ने इस पर कड़ा एतराज़ जताया है .उनका कहना है कि मोदी जैसे आदमी को ' सद्भावना मिशन ' पर जाने का कोई हक नहीं है. क्योंकि २००२ में गुजरात के नर संहार की निगरानी मोदी ने ही की थी. और हज़ारों मुसलमानों की हत्या करवाई थी. उनके नाम के साथ सद्भावना शब्द ठीक नहीं लगता . मोदी ने अब तक २००२ के सामूहिक हत्याकांड के लिए कभी दुःख नहीं प्रकट किया है . उस क़त्ले आम के बाद उन्होंने गौरव यात्रा निकाली थी और पूरे गुजरात के मुसलमानों की छाती पर मूंग दलने का काम किया था. उनसे २००२ के लिए शर्मिंदा होने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए . उनकी यह चिट्ठी भी उन लोगों को संबोधित की गयी है जो उनके २००२ के काम को बहादुरी का काम मानते हैं .उनका जो मौजूदा सद्भावना मिशन है उसका २००२ से कुछ भी लेना देना नहीं है . सुप्रीम कोर्ट से एक मामूली राहत मिलने के बाद बीजेपी में उनके साथियों ने हल्ला मचा दिया कि मोदी को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया है . सही बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल यह कहा है कि अभी मुक़दमा निचली अदालत में चलेगा . अगर ज़रूरी हुआ तो अपील के ज़रिये शिकायतकर्ता सुप्रीम कोर्ट में भी आ सकते हैं . इसमें बरी होने जैसी कोई बात नहीं थी लेकिन राजनीतिक कारणों से इस बात को तूल दिया जा रहा है . असली लड़ाई बीजेपी की आतंरिक राजनीति के हवाले से समझी जा सकती है . मामला यह है कि २०१४ के चुनाव में बीजेपी को अपने प्रधान मंत्री पद के उम्मीद वार को प्रोजेक्ट करना है . हालांकि उनके सत्ता में वापस आने की संभावना बिलकुल नहीं है.मोदी के सद्भावना मिशन या आडवाणी की रथ यात्रा को उसी राजनीतिक मुहिम के सन्दर्भ में ही समझना पडेगा . आम तौर पर माना जाता रहा है कि २००९ में किरकिरी होने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी २०१४ में प्रधान मंत्री पद वाली दावेदारी से अपने आपको अलग कर लेगें. लेकिन लोकसभा के मानसून सत्र के अंतिम दिन उन्होंने एक रथ यात्रा का ऐलान कर दिया . बाकी देश के राजनीति के जानकारों सहित उनकी पार्टी के नेता भी अवाक रह गए.जिस यात्रा की आडवाणी जी ने घोषणा की थी उसकी तारीख , रूट या विषय वस्तु अभी तक किसी को नहीं मालूम है , शायद खुद आडवाणी को भी नहीं . लेकिन यात्रा की घोषणा में दिखाई गयी जल्दबाजी से एक बात साफ़ हो गयी थी कि लाल कृष्ण आडवाणी किसी आसन्न खतरे को टालने की गरज से आनन फानन में यात्रा की घोषणा कर रहे हैं. उनकी घोषणा के बाद से ही बीजेपी के अंदर चल रही सुप्रीमेसी की लड़ाई खुल कर सामने आ गयी. सारी दुनिया जानती है कि अटल बिहारी वाजपेयी के बाद बीजेपी में आडवाणी सबसे मह्त्वपूर्ण नेता हैं . यह भी मालूम है कि अगर आडवाणी जी मैदान में हैं तो कोई दूसरा भाजपाई नेता उनको चुनौती नहीं दे सकता . एक कारण तो शिष्टाचार का है लेकिन उस से भी मज़बूत कारण पार्टी के अंदर राजनीतिक हैसियत का भी है . आडवाणी के रहते किसी को भी उनके ऊपर के मुकाम पर नहीं बैठाया जा सकता . हाँ उनकी मर्ज़ी से कोई भी किसी भी पद पर बैठाया जा सकता है . हमने बंगारू लक्षमण और वेंकैया नायडू को आडवाणी जी की कृपा से पार्टी के अध्यक्ष पद पर विराजते देखा है . और उन दोनों को पार्टी के अंदर से कोई चुनौती नहीं मिली थी. आडवाणी जी की मर्जी के खिलाफ डॉ मुरली मनोहर जोशी और राजनाथ सिंह को अध्यक्ष बनाया गया था . दुनिया जानती है कि आडवाणी गुट के दमदार नेताओं ने मीडिया में मज़बूत पकड़ का इस्तेमाल करके उन दोनों ही नेताओं का क्या हाल किया था . अपनी नई रथयात्रा का ऐलान कर के आडवाणी जी ने अपना नाम सर्वोच्च पद की दावेदारी की लिस्ट में डाल दिया है . ऐसा करके उन्होंने उन सभी नेताओं की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है जो अब लगभग साठ साल के हैं .उनके लिए प्रधानमंत्री पद पर विराजने का यही सही समय है.लेकिन अगर आडवाणी जी को किसी तरह से रेस से बाहर किया जा सके, तो मैदान फिर साफ़ हो जाएगा और बीजेपी की टाप लीडरशिप के लिए अपनी किस्मत आजमाने का मौक़ा मिल जाएगा. ऐसा लगता है कि इन लोगों ने ही नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में आने की प्रेरणा दी है . नरेंद्र मोदी के मैदान में कूद जाने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी के लिए मुश्किल पैदा हो सकती है . बीजेपी का जो हार्ड कोर वोट बैंक है वह आम तौर पर आक्रामक हिंदुत्व को बहुत ही सही मानता है . १९९० में सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा करके आडवाणी जी ने इस आक्रामक हिंदुत्व के पुजारी का दिल जीत लिया था . उस दौर में जो दंगे हुए थे उसमें बड़ी संख्या में मुसलमान मारे गए थे. इस देश में ऐसे लोगों की एक बहुत बड़ी संख्या है जो आर एस एस के भक्त हैं और उनको भरोसा है क अगर मुसलमानों को मार डाला आये या इस देश से भगा दिया जाए तो भारत बहुत महान देश बन जाएगा. २००२ तक इस वर्ग के हीरो लाल कृष्ण आडवाणी थे लेकिन २००२ के बाद आक्रामक हिंदुत्व की विचार धारा के इन भक्तों के नेता गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. ज़ाहिर है कि मोदी और आडवाणी की लड़ाई में मोदी ही जीतेगें. इसके कई कारण हैं . आक्रामक हिंदुत्व के अलावा जो दूसरा प्रमुख कारण है वह यह कि आडवाणी जी को लोकसभा चुनाव में गाँधीनगर सीट से नरेंद्र मोदी के सहयोग से ही जीत हासिल होती है . राजनीति के कुशल पारखी, लाल कृष्ण आडवाणी ऐसी कोई गलती कभी नहीं करेगें जिसके चलते उनको नरेंद्र मोदी को नाराज़ करना पड़े. ऐसा लगता है कि इस रणनीति की कारगर मारक क्षमता के मद्दे नज़र बीजेपी के नए आलाकमान ने मोदी को आगे कर दिया है और अब वे आडवाणी को रास्ते से हटाने में कामयाब हो जायेगें.
इस बड़े सफलता के बाद मोदी को रास्ते से हटाने की बात आयेगी..आडवाणी जी के अलावा इस वक़्त बीजेपी के जो नेता प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं उनमें सुषमा स्वराज ,अरुण जेटली , राजनाथ सिंह , वेंकैया नायडू, बंगारू लक्षमण आदि का नाम लिया जा सकता है . नेताओं की इस मज़बूत पंक्ति में सबकी ताक़त ऐसी है कि वे नरेंद्र मोदी के खिलाफ माहौल बना देगें . सबको मामूल है कि यूरोप और अमरीका के कई बड़े देशों में मोदी के घुसने की इज़ाज़त नहीं है . यह देश उनके वीजा की दरखास्त को खारिज कर देते हैं और वीजा नहीं देते .बीजेपी अपने एताक़त क एबल पर तो प्रधानमंत्री की गद्दी हासिल नहीं कर सकती. एन डी ए के एक बड़े घटक जे डी ( यू ) के बड़े नेता और बिहार के मुख्यमंत्री , नीतीश कुमार कभी भी नरेंद्र मोदी को नेता नहीं मानेगें. यहाँ तक कि उन्होंने अपने राज्य में मोदी के चुनाव प्रचार करने की बात का भी बहुत बुरा माना था . इसलिए नरेंद्र मोदी को रास्ते से हटाना बीजेपी आलाकमान के लिए बहुत आसान होगा . इस लेख का उद्देश्य बीजेपी की ओर से संभावित प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार की तलाश करना नहीं है .क्योंकि यह लगभग पक्का है कि २०१४ के चुनावों के बाद बीजेपी सत्ता से और दूर हो जायेगी लेकिन उनकी आतंरिक राजनीति में नरेंद्र मोदी और आडवाणी की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं एक मनोरंजक अवसर तो देती ही हैं .
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शेष नारायण सिंह
महंगाई के मुद्दे पर सरकार पर चौतरफा हमला , भ्रष्टाचार और बढ़ती कीमतों की लपटों में झुलस रही है कांग्रेस
शेष नारायण सिंह
महंगाई के सवाल पर आज केंद्र सरकार बहुत बुरी तरह घिर गयी है . कांग्रेस के दफ्तर का माहौल देखने पर लगता है कि वहां किसी बड़े चुनाव में हार जाने के बाद वाली मुर्दनी छाई हुई है .सरकार में भी सन्नाटा है . केन्द्रीय वित्तमंत्री ने आज एक बयान दिया कि केंद्र सरकार ने नहीं ,पेट्रोल कंपनियों ने पेट्रोल की कीमतें बढ़ाई हैं . उनके इस बयान का सरकार के बाहर और अंदर बैठे लोग मजाक उड़ा रहे हैं . जानकार बताते हैं कि पिछले दो दशकों में केंद्र सरकार इतनी लाचार कभी नहीं देखी गयी थी. पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि,बैंक की ब्याज दरों में बढ़ोतरी और मुद्रास्फीति की छलांग लगाती दर के कारण मनमोहन सिंह की सरकार को समर्थन दे रही पार्टियों ने सरकार की लाचारी को निशाने में लिया और दिल्ली की राजनीतिक हवा में आज यह संकेत साफ़ नज़र आने लगे कि लोकसभा का अगला आम चुनाव २०१४ में बताने वाले राजनीतिक तूफ़ान की रफ्तार को पहचान नहीं पा रहे हैं . यू पी ए समर्थकों तक को दर लगन एलागा है कि कहेने सरकार की छुट्टी न हो जाए. बीजेपी ने आज दिल्ली के हर मंच पर सरकार को नाकारा और भ्रष्ट साबित करने का अभियान चला रखा है . जहां तक बीजेपी का सवाल है उसके किसी भी राजनीतिक रुख से केंद्र सरकार की स्थिरता और लोकसभा के चुनाव पर कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है . लेकिन यू पी ए में शामिल राजनीतिक पार्टियों के आज के रुख से बिलकुल साफ़ संकेत मिल रहा है कि डॉ मनमोहन सिंह की सरकार की उलटी गिनती शुरू हो गयी है . केंद्र सरकार में कांग्रेस सबसे बड़ा दल है लेकिन सरकार बनी रहने में अंदर से समर्थन दे रही तृणमूल कांग्रेस और द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम का योगदान सबसे ज्यादा है . सरकार में शामिल बाकी राजनीतिक पार्टियों की संख्या बहुत मामूली है . आज पहली बार डी एम के और तृणमूल कांग्रेस ने सरकार की महंगाई रोक सकने की नीति की सख्त आलोचना की . बाहर से समर्थन दे रही दो बड़ी पार्टियों,बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी , ने भी आज कांग्रेस की आम आदमी विरोधी नीतियों का ज़बरदस्त विरोध किया. बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस की आर्थिक नीतियों की जमकर आलोचना की और साफ़ कर दिया कि अगर सरकार पर बुरा वक़्त आता है तो यह पार्टियां कांग्रेस के संकटमोचक के रूप में नहीं खडी होंगीं. हालांकि अब तक ऐसे कई मौके आये हैं जब इन दोनों पार्टियों ने केंद्र सरकार को तृणमूल और डी एम के की मनमानी से बच निकलने में मदद की है लेकिन इस बार लगता है कि अब कोई भी पार्टी कांग्रेस का साथ देने को तैयार नहीं है ,कम से कम आज दिल्ली में राजनीतिक गलियारों से तो यह साफ़ नज़र आ रहा है. आज दिल्ली में चारों तरफ से मनमोहन सिंह की सरकार की निंदा की आवाजें उठ रही हैं .
यू पी ए सरकार की सबसे ज्यादा कड़ी आलोचना पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों के सवाल पर हो रही है .बीजेपी ने आरोप लगाया है कि यू पी ए के सात साल के शासनकाल में पेट्रोल की कीमतों में २५ रूपये की वृद्धि हुई है . बीजेपी के प्रवक्ता शाहनवाज़ हुसैन ने बताया कि जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने कांग्रेस की अगुवाई वाली मनमोहन सरकार को चार्ज दिया था तो पेट्रोल की कीमत ४० रूपये से भी कम थी जबकि अब अवह सत्तर पार कर गयी है . बीजेपी ने मांग की है कि सरकार को फ़ौरन पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतें वापस लेनी होंगीं .अगर ऐसा न हुआ तो पूरे देश में आन्दोलन शुरू कर दिया जाएगा. किसी भी विपक्षी पार्टी के लिए आम आदमी के खिलाफ खडी किसी भी सरकार को घेरने का यह बेहतरीन मौक़ा है और बीजेपी उसका इस्तेमाल कर रही है . सरकार की परेशानी तृणमूल कांग्रेस के रुख से है . उसने मांग कर डी है कि पेट्रोल के बढे हुए दाम फ़ौरन वापस लिए जाएं . तृणमूल कांग्रेस के नेता और रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने आज एक प्रेस कानफरेंस में कहा कि सरकार ने पेट्रोल की कीमतें बढाने के पहले उनकी पार्टी से सलाह नहीं किया था. तृणमूल कांग्रेस की नाराज़गी केंद्र सरकार के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर सकती है . मनमोहन सिंह की सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मोहन सिंह ने कहा कि पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि का कोई आर्थिक कारण नहीं है . यह शुद्ध रूप से भ्रष्टाचार के कारण हुआ है . उन्होंने आरोप लगाया भ्रष्टाचार और महंगाई दोनों का बहुत करीबी साथ है . केंद्र की सरकार भ्रष्ट है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है . ज़खीरेबाज़ और बड़े पूंजीपति सरकार को पाल रहे हैं और वे ही सरकार की लचर नीतियों का फायदा उठाकर हर चीज़ के दाम बढ़ा रहे हैं . और सरकार मुनाफाखोरों के साथ खडी है . केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों की कोई दिशा नहीं है . सब कुछ आकस्मिक तरीके से हो रहा है . इस लिए मंहगाई बढ़ रही है .
पेट्रोल और खाने की चीज़ों की बढ़ती कीमतों के बाद आज केंद्र सरकार के मातहत काम करने वाले रिज़र्व बैंक ने भी मध्य वर्ग को झकझोर दिया . आज ही ब्याज दर में वृद्धि की घोषणा कर दी गयी . अब मकान , कार ओर स्कूटर के लिए लिया गया क़र्ज़ और महंगा हो गया . यह खबर टेलिविज़न पर लगातार दिखाई जा रही है जिसके चलते लगता है कि केंद्र सरकार और उसके मध्यवर्गीय समर्थक और भी दबाव में आ जायेगें
महंगाई के सवाल पर आज केंद्र सरकार बहुत बुरी तरह घिर गयी है . कांग्रेस के दफ्तर का माहौल देखने पर लगता है कि वहां किसी बड़े चुनाव में हार जाने के बाद वाली मुर्दनी छाई हुई है .सरकार में भी सन्नाटा है . केन्द्रीय वित्तमंत्री ने आज एक बयान दिया कि केंद्र सरकार ने नहीं ,पेट्रोल कंपनियों ने पेट्रोल की कीमतें बढ़ाई हैं . उनके इस बयान का सरकार के बाहर और अंदर बैठे लोग मजाक उड़ा रहे हैं . जानकार बताते हैं कि पिछले दो दशकों में केंद्र सरकार इतनी लाचार कभी नहीं देखी गयी थी. पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि,बैंक की ब्याज दरों में बढ़ोतरी और मुद्रास्फीति की छलांग लगाती दर के कारण मनमोहन सिंह की सरकार को समर्थन दे रही पार्टियों ने सरकार की लाचारी को निशाने में लिया और दिल्ली की राजनीतिक हवा में आज यह संकेत साफ़ नज़र आने लगे कि लोकसभा का अगला आम चुनाव २०१४ में बताने वाले राजनीतिक तूफ़ान की रफ्तार को पहचान नहीं पा रहे हैं . यू पी ए समर्थकों तक को दर लगन एलागा है कि कहेने सरकार की छुट्टी न हो जाए. बीजेपी ने आज दिल्ली के हर मंच पर सरकार को नाकारा और भ्रष्ट साबित करने का अभियान चला रखा है . जहां तक बीजेपी का सवाल है उसके किसी भी राजनीतिक रुख से केंद्र सरकार की स्थिरता और लोकसभा के चुनाव पर कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है . लेकिन यू पी ए में शामिल राजनीतिक पार्टियों के आज के रुख से बिलकुल साफ़ संकेत मिल रहा है कि डॉ मनमोहन सिंह की सरकार की उलटी गिनती शुरू हो गयी है . केंद्र सरकार में कांग्रेस सबसे बड़ा दल है लेकिन सरकार बनी रहने में अंदर से समर्थन दे रही तृणमूल कांग्रेस और द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम का योगदान सबसे ज्यादा है . सरकार में शामिल बाकी राजनीतिक पार्टियों की संख्या बहुत मामूली है . आज पहली बार डी एम के और तृणमूल कांग्रेस ने सरकार की महंगाई रोक सकने की नीति की सख्त आलोचना की . बाहर से समर्थन दे रही दो बड़ी पार्टियों,बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी , ने भी आज कांग्रेस की आम आदमी विरोधी नीतियों का ज़बरदस्त विरोध किया. बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस की आर्थिक नीतियों की जमकर आलोचना की और साफ़ कर दिया कि अगर सरकार पर बुरा वक़्त आता है तो यह पार्टियां कांग्रेस के संकटमोचक के रूप में नहीं खडी होंगीं. हालांकि अब तक ऐसे कई मौके आये हैं जब इन दोनों पार्टियों ने केंद्र सरकार को तृणमूल और डी एम के की मनमानी से बच निकलने में मदद की है लेकिन इस बार लगता है कि अब कोई भी पार्टी कांग्रेस का साथ देने को तैयार नहीं है ,कम से कम आज दिल्ली में राजनीतिक गलियारों से तो यह साफ़ नज़र आ रहा है. आज दिल्ली में चारों तरफ से मनमोहन सिंह की सरकार की निंदा की आवाजें उठ रही हैं .
यू पी ए सरकार की सबसे ज्यादा कड़ी आलोचना पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों के सवाल पर हो रही है .बीजेपी ने आरोप लगाया है कि यू पी ए के सात साल के शासनकाल में पेट्रोल की कीमतों में २५ रूपये की वृद्धि हुई है . बीजेपी के प्रवक्ता शाहनवाज़ हुसैन ने बताया कि जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने कांग्रेस की अगुवाई वाली मनमोहन सरकार को चार्ज दिया था तो पेट्रोल की कीमत ४० रूपये से भी कम थी जबकि अब अवह सत्तर पार कर गयी है . बीजेपी ने मांग की है कि सरकार को फ़ौरन पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतें वापस लेनी होंगीं .अगर ऐसा न हुआ तो पूरे देश में आन्दोलन शुरू कर दिया जाएगा. किसी भी विपक्षी पार्टी के लिए आम आदमी के खिलाफ खडी किसी भी सरकार को घेरने का यह बेहतरीन मौक़ा है और बीजेपी उसका इस्तेमाल कर रही है . सरकार की परेशानी तृणमूल कांग्रेस के रुख से है . उसने मांग कर डी है कि पेट्रोल के बढे हुए दाम फ़ौरन वापस लिए जाएं . तृणमूल कांग्रेस के नेता और रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने आज एक प्रेस कानफरेंस में कहा कि सरकार ने पेट्रोल की कीमतें बढाने के पहले उनकी पार्टी से सलाह नहीं किया था. तृणमूल कांग्रेस की नाराज़गी केंद्र सरकार के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर सकती है . मनमोहन सिंह की सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मोहन सिंह ने कहा कि पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि का कोई आर्थिक कारण नहीं है . यह शुद्ध रूप से भ्रष्टाचार के कारण हुआ है . उन्होंने आरोप लगाया भ्रष्टाचार और महंगाई दोनों का बहुत करीबी साथ है . केंद्र की सरकार भ्रष्ट है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है . ज़खीरेबाज़ और बड़े पूंजीपति सरकार को पाल रहे हैं और वे ही सरकार की लचर नीतियों का फायदा उठाकर हर चीज़ के दाम बढ़ा रहे हैं . और सरकार मुनाफाखोरों के साथ खडी है . केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों की कोई दिशा नहीं है . सब कुछ आकस्मिक तरीके से हो रहा है . इस लिए मंहगाई बढ़ रही है .
पेट्रोल और खाने की चीज़ों की बढ़ती कीमतों के बाद आज केंद्र सरकार के मातहत काम करने वाले रिज़र्व बैंक ने भी मध्य वर्ग को झकझोर दिया . आज ही ब्याज दर में वृद्धि की घोषणा कर दी गयी . अब मकान , कार ओर स्कूटर के लिए लिया गया क़र्ज़ और महंगा हो गया . यह खबर टेलिविज़न पर लगातार दिखाई जा रही है जिसके चलते लगता है कि केंद्र सरकार और उसके मध्यवर्गीय समर्थक और भी दबाव में आ जायेगें
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शेष नारायण सिंह
Friday, September 16, 2011
साम्प्रदायिक हिंसा रोकने वाले बिल की सही आलोचना की ज़रुरत
शेष नारायण सिंह
केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय एकता परिषद् के सामने पेश किया साम्प्रदायिक हिंसा रोकने वाला बिल मुंह के बल गिर पड़ा . होना भी यही चाहिए था. सोनिया गांधी के प्रिय संगठन , नेशनल एडवाइज़री काउन्सिल नाम की शहरी मंडली ने एक मसौदा बनाया था जिसमें बहुत खामियां थीं .लेकिन सोनिया जी की इच्छा को कानून मानने वाले डॉ मनमोहन सिंह ने उसे बिल की शक्ल दिलवाई और राष्ट्रीय एकता परिषद् के सामने पेश कर दिया . बिल अपने मौजूदा स्वरुप में पास नहीं होगा यह तो अब पक्का हो चुका है . लेकिन जिन मुद्दों पर उसका विरोध हो रहा है वह भी बेमतलब है . जिन राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें हैं उनको इस बात पर एतराज़ है कि यह बिल अगर क़ानून बन गया तो राज्य में उनकी सरकार और उनकी पार्टी के खिलाफ काम करने वालों को धमकाने की उनकी ताक़त कम हो जायेगी.. अजीब बात है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी इस बेकार के बिल का इसलिए विरोध नहीं कर रही है कि इसके कानून बन जाने के बाद राज काज का पूरा व्याकरण बदल जाएगा जो कि राष्ट्र हित के खिलाफ भी जा सकता है . नेशनल एडवाइज़री काउन्सिल वालों का दावा है कि इस बिल के पास हो जाने के बाद धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के बारे में समाज और देश के रूप में हमारी प्रशानिक नज़र बदल जायेगी. यह बात कहने में ठीक लगती है लेकिन इसमें कमियाँ बहुत हैं .सबसे बड़ी कमी तो यही है कि यह कानून सरकारी तंत्र को बहुत ज्यादा ताक़त दे देगा . ज़रूरी नहीं कि उस ताक़त का सही इस्तेमाल ही हो . बिल की बुनियादी सोच में ही खोट है . इस बिल को बनाने वाले यह मानकर चलते हैं कि भविष्य में भी भारत में दंगे उतने ही खूंखार होंगें जितने कि अब तक होते रहे हैं . इस बिल की मंशा है कि प्लानिंग कमीशन की तर्ज़ पर एक अथारिटी बनायी जायेगी जिसका मुख्य कार्यकारी अधिकारी केंद्र सरकार के सचिव स्तर का एक अफसर होगा . उस अथारिटी में बहुत सारे सदस्य होंगें जिनको केंद्र सरकार के राज्य मंत्री का दर्ज़ा दिया जाएगा . इस अथारिटी का अध्यक्ष कैबिनेट रैंक का मंत्री होगा . इस का भावार्थ यह हुआ कि एक और सरकारी विभाग खड़ा कर दिया जाएगा जो परमानेंट होगा और जो चौबीसों घंटे दंगों आदि को संभालने के लिए काम करता रहेगा. इस सोच में बहुत भारी दोष है . सोनिया जी की मंडली के लोगों को लगता है कि इस देश में दंगा अब एक स्थायी चीज़ के रूप में बना रहेगा . कोई भी कानून बनाने के लिए यह बिलकुल गलत बुनियाद है .
इस बिल का घोषित उद्देश्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है .इस उद्देश्य में कहीं कोई बुराई नहीं है .ऐसा लगता है कि दिल्ली में बैठकर जिन लोगों ने इस बिल को बनाया है वे हर बात को साबित करने के लिए २००२ के गुजरात को उदाहरण के रूप में पेश करते हैं . गुजरात में २००२ में जो कुछ भी हुआ ,उसको कोई सही नहीं मानता .यहाँ तक कि जिन लोगों ने उस काम को किया था अब वे भी उसके पक्ष में नहीं बोलते .सारी दुनिया के सभ्य समाजों में उसकी निंदा की जा रही है .उसको आधार मानकर कोई भी कानून नहीं बनाया जा सकता. गुजरात में २००२ में जिन लोगों ने नर संहार किया था ,उनको मुकामी नौकरशाही का आशीर्वाद प्राप्त था . उसी नौकरशाही को निरंकुश ताक़त देने की बात करने वाले इस बिल से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी की बात सोचना ठीक नहीं है. इस बिल में प्रावधान है कि जिन अधिकारियों को इलाके में साम्प्रदायिक दंगा होगा उन्हें दण्डित किया जाएगा. जो भी भारत की नौकरशाही को समझता है उसे मालूम है कि अपनी नौकरी बचाने के लिए अपने देश का अफसर कुछ भी कर सकता है . इस प्रावधान को कानून में शामिल कर लेने से इस बात का पूरा ख़तरा बना रहेगा कि दंगा रोकने के लिए मिले हुए अधिकार का प्रयोग सम्बंधित सरकारी अफसर अपनी मनमानी करने के लिए भी करेगा. बिल में लिखा है कि अगर कहीं साम्प्रदायिक हिंसा होती है तो यह मान लिया जाएगा कि उस इलाके के अधिकारी ने कानून द्वारा दिया गए अपने विधि सम्मत अधिकार का प्रयोग नहीं किया है और उसे ड्यूटी को सही तरीके से न करने के लिए दोषी माना जाएगा . इस दोष के लिए उसे दंड मिलेगा . यह दंड बहुत ही कठोर होगा. सरसरी तौर पर देखने तो यह बात ठीक लगती है . आई ए एस और आई पी एस अफसरों की सेवा शर्तों में साफ़ लिखा है कि वे भारत में संविधान का राज कायम करने के लिए ही काम करेगें . लेकिन अक्सर देखा गया है कि वे ऐसा नहीं करते . लेकिन उनको बता दिया जाए कि अगर उन्होंने संविधान के पालन को मुकम्मल तौर पर सुनिश्चित नहीं किया तो उनकी नौकरी भी जा सकती है तो यह अफसर कुछ भी कर सकते हैं .बिल को बनाने वाले यह मानकर चल रहे हैं कि अफसर को व्यक्तिगत रूप से ज़िम्मेदार ठहरा देने पर वह कानून का राज कायम कर देगा.लेकिन सरकारी अफसरों के बारे में इस तरह का विचार रखना सही नहीं है . वह किसी भी नए कानून को शोषण या धन वसूली का भी जरिया भी बना सकता है .
बिल का जो मौजूदा स्वरुप है उसके अनुसार सांप्रदायिक सद्भाव और इंसाफ़ को सुनिश्चित करने के लिए एक नए नौकरशाही के ढाँचे को तैयार किया जाना है .साम्प्रदायिक सद्भाव और इंसाफ़ के लिए प्रस्तावित राष्ट्रीय अथारिटी और उसके मातहत संगठनों के नाम पर एक सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों की एक बहुत बड़ी फौज तैयार हो जायेगी. सरकारी तनखाहों और सरकारी कर्मचारियों की पेंशन की मार झेल रहे इस मुल्क पर इतना बड़ा आर्थिक बोझ लादना बिलकुल गलत होगा. खासकर जब इस तरह की सरकारी नौकरशाही की कोई ज़रुरत न हो . वास्तव में किसी नए सरकारी तंत्र की ज़रुरत नहीं है . ज़रुरत इस बात की है कि साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए ज़रूरी नियम कानून ऐसे बनाए जाएँ जिसको राज्य सरकारें मजबूती के साथ लागू कर सकें . इंसाफ़ की डिलीवरी के काम में पारदर्शिता के निजाम की आवश्यकता भी है . लेकिन उस मकसद को हासिल करते हुए यह भी देखना ज़रूरी है कि केंद्र -राज्य सम्बन्ध की जो संविधान की मौलिक व्यवस्था है वह भी खंड खंड न हो जाए.
दंगों के समाजशास्त्र का कोई भी जानकार बता देगा कि दंगे आर्थिक रूप से पिछड़े इलाकों में ज्यादा होते हैं . दिल्ली का १९८४ का सिख विरोधी क़त्ले-आम और २००२ का गुजरात का नरसंहार केवल दो केस हैं जहां साम्प्रदायिक हिंसा का शिकार संपन्न वर्ग भी हुये थे. इसलिए साम्प्रदायिक दंगों के बार बार होने की संभावना घट रही है क्योंकि देश के ज़्यादातर इलाकों में लोग शिक्षा और सम्पन्नता की ओर बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं ज़ाहिर है कि ऐसा होने पर स्थायी नौकरशाही के ढाँचे के जरूरत नहीं रह जायेगी. मनमोहन सरकार के साम्प्रदायिकता विरोधी बिल के वर्तमान स्वरुप का विरोध तो किया जाना चाहिए लेकिन उसमे जो असली खामियां हैं उनको आलोचना का विषय बनाया जाना चाहिए . बेमतलब की आलोचना से बचना चाहिए
केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय एकता परिषद् के सामने पेश किया साम्प्रदायिक हिंसा रोकने वाला बिल मुंह के बल गिर पड़ा . होना भी यही चाहिए था. सोनिया गांधी के प्रिय संगठन , नेशनल एडवाइज़री काउन्सिल नाम की शहरी मंडली ने एक मसौदा बनाया था जिसमें बहुत खामियां थीं .लेकिन सोनिया जी की इच्छा को कानून मानने वाले डॉ मनमोहन सिंह ने उसे बिल की शक्ल दिलवाई और राष्ट्रीय एकता परिषद् के सामने पेश कर दिया . बिल अपने मौजूदा स्वरुप में पास नहीं होगा यह तो अब पक्का हो चुका है . लेकिन जिन मुद्दों पर उसका विरोध हो रहा है वह भी बेमतलब है . जिन राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें हैं उनको इस बात पर एतराज़ है कि यह बिल अगर क़ानून बन गया तो राज्य में उनकी सरकार और उनकी पार्टी के खिलाफ काम करने वालों को धमकाने की उनकी ताक़त कम हो जायेगी.. अजीब बात है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी इस बेकार के बिल का इसलिए विरोध नहीं कर रही है कि इसके कानून बन जाने के बाद राज काज का पूरा व्याकरण बदल जाएगा जो कि राष्ट्र हित के खिलाफ भी जा सकता है . नेशनल एडवाइज़री काउन्सिल वालों का दावा है कि इस बिल के पास हो जाने के बाद धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के बारे में समाज और देश के रूप में हमारी प्रशानिक नज़र बदल जायेगी. यह बात कहने में ठीक लगती है लेकिन इसमें कमियाँ बहुत हैं .सबसे बड़ी कमी तो यही है कि यह कानून सरकारी तंत्र को बहुत ज्यादा ताक़त दे देगा . ज़रूरी नहीं कि उस ताक़त का सही इस्तेमाल ही हो . बिल की बुनियादी सोच में ही खोट है . इस बिल को बनाने वाले यह मानकर चलते हैं कि भविष्य में भी भारत में दंगे उतने ही खूंखार होंगें जितने कि अब तक होते रहे हैं . इस बिल की मंशा है कि प्लानिंग कमीशन की तर्ज़ पर एक अथारिटी बनायी जायेगी जिसका मुख्य कार्यकारी अधिकारी केंद्र सरकार के सचिव स्तर का एक अफसर होगा . उस अथारिटी में बहुत सारे सदस्य होंगें जिनको केंद्र सरकार के राज्य मंत्री का दर्ज़ा दिया जाएगा . इस अथारिटी का अध्यक्ष कैबिनेट रैंक का मंत्री होगा . इस का भावार्थ यह हुआ कि एक और सरकारी विभाग खड़ा कर दिया जाएगा जो परमानेंट होगा और जो चौबीसों घंटे दंगों आदि को संभालने के लिए काम करता रहेगा. इस सोच में बहुत भारी दोष है . सोनिया जी की मंडली के लोगों को लगता है कि इस देश में दंगा अब एक स्थायी चीज़ के रूप में बना रहेगा . कोई भी कानून बनाने के लिए यह बिलकुल गलत बुनियाद है .
इस बिल का घोषित उद्देश्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है .इस उद्देश्य में कहीं कोई बुराई नहीं है .ऐसा लगता है कि दिल्ली में बैठकर जिन लोगों ने इस बिल को बनाया है वे हर बात को साबित करने के लिए २००२ के गुजरात को उदाहरण के रूप में पेश करते हैं . गुजरात में २००२ में जो कुछ भी हुआ ,उसको कोई सही नहीं मानता .यहाँ तक कि जिन लोगों ने उस काम को किया था अब वे भी उसके पक्ष में नहीं बोलते .सारी दुनिया के सभ्य समाजों में उसकी निंदा की जा रही है .उसको आधार मानकर कोई भी कानून नहीं बनाया जा सकता. गुजरात में २००२ में जिन लोगों ने नर संहार किया था ,उनको मुकामी नौकरशाही का आशीर्वाद प्राप्त था . उसी नौकरशाही को निरंकुश ताक़त देने की बात करने वाले इस बिल से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी की बात सोचना ठीक नहीं है. इस बिल में प्रावधान है कि जिन अधिकारियों को इलाके में साम्प्रदायिक दंगा होगा उन्हें दण्डित किया जाएगा. जो भी भारत की नौकरशाही को समझता है उसे मालूम है कि अपनी नौकरी बचाने के लिए अपने देश का अफसर कुछ भी कर सकता है . इस प्रावधान को कानून में शामिल कर लेने से इस बात का पूरा ख़तरा बना रहेगा कि दंगा रोकने के लिए मिले हुए अधिकार का प्रयोग सम्बंधित सरकारी अफसर अपनी मनमानी करने के लिए भी करेगा. बिल में लिखा है कि अगर कहीं साम्प्रदायिक हिंसा होती है तो यह मान लिया जाएगा कि उस इलाके के अधिकारी ने कानून द्वारा दिया गए अपने विधि सम्मत अधिकार का प्रयोग नहीं किया है और उसे ड्यूटी को सही तरीके से न करने के लिए दोषी माना जाएगा . इस दोष के लिए उसे दंड मिलेगा . यह दंड बहुत ही कठोर होगा. सरसरी तौर पर देखने तो यह बात ठीक लगती है . आई ए एस और आई पी एस अफसरों की सेवा शर्तों में साफ़ लिखा है कि वे भारत में संविधान का राज कायम करने के लिए ही काम करेगें . लेकिन अक्सर देखा गया है कि वे ऐसा नहीं करते . लेकिन उनको बता दिया जाए कि अगर उन्होंने संविधान के पालन को मुकम्मल तौर पर सुनिश्चित नहीं किया तो उनकी नौकरी भी जा सकती है तो यह अफसर कुछ भी कर सकते हैं .बिल को बनाने वाले यह मानकर चल रहे हैं कि अफसर को व्यक्तिगत रूप से ज़िम्मेदार ठहरा देने पर वह कानून का राज कायम कर देगा.लेकिन सरकारी अफसरों के बारे में इस तरह का विचार रखना सही नहीं है . वह किसी भी नए कानून को शोषण या धन वसूली का भी जरिया भी बना सकता है .
बिल का जो मौजूदा स्वरुप है उसके अनुसार सांप्रदायिक सद्भाव और इंसाफ़ को सुनिश्चित करने के लिए एक नए नौकरशाही के ढाँचे को तैयार किया जाना है .साम्प्रदायिक सद्भाव और इंसाफ़ के लिए प्रस्तावित राष्ट्रीय अथारिटी और उसके मातहत संगठनों के नाम पर एक सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों की एक बहुत बड़ी फौज तैयार हो जायेगी. सरकारी तनखाहों और सरकारी कर्मचारियों की पेंशन की मार झेल रहे इस मुल्क पर इतना बड़ा आर्थिक बोझ लादना बिलकुल गलत होगा. खासकर जब इस तरह की सरकारी नौकरशाही की कोई ज़रुरत न हो . वास्तव में किसी नए सरकारी तंत्र की ज़रुरत नहीं है . ज़रुरत इस बात की है कि साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए ज़रूरी नियम कानून ऐसे बनाए जाएँ जिसको राज्य सरकारें मजबूती के साथ लागू कर सकें . इंसाफ़ की डिलीवरी के काम में पारदर्शिता के निजाम की आवश्यकता भी है . लेकिन उस मकसद को हासिल करते हुए यह भी देखना ज़रूरी है कि केंद्र -राज्य सम्बन्ध की जो संविधान की मौलिक व्यवस्था है वह भी खंड खंड न हो जाए.
दंगों के समाजशास्त्र का कोई भी जानकार बता देगा कि दंगे आर्थिक रूप से पिछड़े इलाकों में ज्यादा होते हैं . दिल्ली का १९८४ का सिख विरोधी क़त्ले-आम और २००२ का गुजरात का नरसंहार केवल दो केस हैं जहां साम्प्रदायिक हिंसा का शिकार संपन्न वर्ग भी हुये थे. इसलिए साम्प्रदायिक दंगों के बार बार होने की संभावना घट रही है क्योंकि देश के ज़्यादातर इलाकों में लोग शिक्षा और सम्पन्नता की ओर बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं ज़ाहिर है कि ऐसा होने पर स्थायी नौकरशाही के ढाँचे के जरूरत नहीं रह जायेगी. मनमोहन सरकार के साम्प्रदायिकता विरोधी बिल के वर्तमान स्वरुप का विरोध तो किया जाना चाहिए लेकिन उसमे जो असली खामियां हैं उनको आलोचना का विषय बनाया जाना चाहिए . बेमतलब की आलोचना से बचना चाहिए
केंद्रीय कार्यक्रमों के रास्ते अपनों को फिट करने की कांग्रेसी कोशिश
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली ,१५ सितम्बर . ग्राम विकास मंत्रालय के ज़रिये केंद्र सरकार हर गाँव में अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज कराने की रणनीति पर काम कर रही है . केंद्र सरकार की तरफ से चलाई जा रही योजनाओं के ज़रिये इस हस्तक्षेप की योजना बन रही है .केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की प्रमुख योजनाओं--प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना और मनरेगा की मौजूदगी देश के लगभग हर गाँव में है. इसके अलावा भी छः और योजनायें चल रही हैं लेकिन अभी वे अपेक्षाकृत कम चर्चा में है . देश के ६० नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टरों की नई दिल्ली में न आयोजित कार्यशाला में सरकार की मंशा सामने आई. कार्यशाला के बाद जो कागज़ तैयार किये गए हैं उनमें लिखा है कि नक्सल प्रभावित हर जिले में ५०० लोगों को कार्यकर्ता के रूप में भर्ती किया जाएगा जिनका काम प्रशासन और जनता के बीच कड़ी के रूप में काम करना होगा. केंद्र सरकार की ओर से चल रही गाँव के विकास योजनाओं पर इनकी नज़र रहेगी . इनको केंद्र सरकार की ओर से पैसा दिया जाएगा . इनकी न्यूनतम योग्यता के बारे में कुछ ख़ास नहीं बताया गया. है .यह काम अभी ६० नक्सल प्रभावित जिलों में किया जाएगा . बाद में इसको बाकी जिलों में भी लागू किया जा सकता है . इसके अलावा हर जिले में कलेक्टर की मदद के लिए केंद्र सरकार की ओर से २५-३० साल के ३ नौजवानों को फेलो के रूप में नियुक्त किया जाएगा . इनको २-३ साल तक के लिए कपार्ट के लिए निरधारित फंड से पैसा दिया जाएगा. सिविल सोसाइटी के लोगों को भी ग्राम विकास की योजनाओं को लागू करने के काम में शामिल करने की योजना पर भी काम कर रहा है . ग्रामीण विकास मंत्रालय की इस योजना को विपक्षी पार्टियां शक़ की निगाह से देखती हैं .भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अनजान ने कहा कि कांग्रेस पार्टी मौजूदा राजनीतिक हालत से घबडा गयी है और उसी घबडाहट में इस तरह के काम कर रही है . इस तरह के कदम से कोई सामाजिक परिवर्तन नहीं आयेगा और न ही कांग्रेस को कोई तात्कालिक लाभ होगा. एक संशयात्मा सरकारी अफसर ने कहा कि यह योजना कहने को तो बड़ी आदर्शवादी बतायी जा रही है लेकिन इसका असली मकसद हर जिले में ५०० कांग्रेसियों को काम पर लगाना है . कमज़ोर पड़ रही कांग्रेस अब सरकारी योजनाओं के कन्धों पर बैठ कर राजनीतिक सफलता हासिल करना चाहती है.
६० नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टरों की एक दिन की कार्यशाला के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जो निष्कर्ष निकाले हैं उनके बारे में एक पर्चा तैयार किया गया है . यह पर्चा सार्वजनिक रूप तो से जारी नहीं किया गया है लेकिन यह जानकार लोगों के ज़रिये मीडिया तक पंहुच गया है . इसमें ही कुछ लोगों को काम देकर उनको अपने साथ की लेने की बात की गयी है . इस पर्चे में और भे एबहुत सारी योजनाओं का ज़िक्र है .प्रधान मंत्री ग्राम सड़क परियोजना में सड़क बनाने का प्रावधान तो है लेकिन छोटी पुलिया बनाने की मंजूरी उसके तहत नहीं दी जाती . प्रस्ताव है कि साठ नक्सल प्रभावित जिलों में अब पुलिया के निर्माण को भी प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना में शामिल कर लिया जाए. इस काम को शुरू करने के लिए ५०० करोड़ रूपये की ज़रूरत होगी. बाद में अगले तीन साल के अंदर करीब ३५ हज़ार करोड़ रूपये लगेंगें . ग्रामीण विकास मंत्रालय इस दिशा में आगे क़दम बढ़ाएगा और विस्तृत प्रस्ताव प्रधान मंत्री के पास भेजेगा. . इन जिलों में अब तारकोल की जगह कांक्रीट की सड़कें बनायी जायेगीं . केंद्र सरकार का मुख्य हस्तक्षेप मनरेगा को दुरुस्त करने की दिशा में होगा . नक्सल प्रभावित ६० जिलों में हर ग्राम पंचायत में एक पंचायत विकास अधिकारी तैनात किया जायेगा . इसके अलावा एक जूनियर इंजीनियर भी भर्ती किया जायेगा. . यह स्टाफ बाहर से नहीं लाया जाएगा. यह सब मुकामी लोग होंगें और इनका वेतन भी केंद्र सरकार देगी.बैंकों और डाकखानों में खाली पड़ी जगहों को भी मुकामी लोगों से भरा जाएगा. मनरेगा के अन्तार्गत अब खेल के मैदान भी बनाए जा सकेगें . अभी तक इसकी मनाही थी . अभी तो यह मंजूरी केवल साठ जिलों के लिए है लेकिन बाद में इसे पूरे देश में भी लागू किया जा सकता है . अभी तक खेल के मैदान मनरेगा की योजना में शामिल नहीं थे इनकी मनाही थी . नक्सल प्रभावित ६० ज़िलों में अगले पांच वर्षों के अंदर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका कार्यक्रम के तहत तीन लाख युवकों को नौकरी दी जायेगी. . ज़ाहिर है जयराम रमेश की अगुवायी में ग्रामीण विकास मंत्रालय सत्ताधारी पार्टी का एक दयालु चेहरा पेश करने की कोशिश करेगा.
नई दिल्ली ,१५ सितम्बर . ग्राम विकास मंत्रालय के ज़रिये केंद्र सरकार हर गाँव में अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज कराने की रणनीति पर काम कर रही है . केंद्र सरकार की तरफ से चलाई जा रही योजनाओं के ज़रिये इस हस्तक्षेप की योजना बन रही है .केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की प्रमुख योजनाओं--प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना और मनरेगा की मौजूदगी देश के लगभग हर गाँव में है. इसके अलावा भी छः और योजनायें चल रही हैं लेकिन अभी वे अपेक्षाकृत कम चर्चा में है . देश के ६० नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टरों की नई दिल्ली में न आयोजित कार्यशाला में सरकार की मंशा सामने आई. कार्यशाला के बाद जो कागज़ तैयार किये गए हैं उनमें लिखा है कि नक्सल प्रभावित हर जिले में ५०० लोगों को कार्यकर्ता के रूप में भर्ती किया जाएगा जिनका काम प्रशासन और जनता के बीच कड़ी के रूप में काम करना होगा. केंद्र सरकार की ओर से चल रही गाँव के विकास योजनाओं पर इनकी नज़र रहेगी . इनको केंद्र सरकार की ओर से पैसा दिया जाएगा . इनकी न्यूनतम योग्यता के बारे में कुछ ख़ास नहीं बताया गया. है .यह काम अभी ६० नक्सल प्रभावित जिलों में किया जाएगा . बाद में इसको बाकी जिलों में भी लागू किया जा सकता है . इसके अलावा हर जिले में कलेक्टर की मदद के लिए केंद्र सरकार की ओर से २५-३० साल के ३ नौजवानों को फेलो के रूप में नियुक्त किया जाएगा . इनको २-३ साल तक के लिए कपार्ट के लिए निरधारित फंड से पैसा दिया जाएगा. सिविल सोसाइटी के लोगों को भी ग्राम विकास की योजनाओं को लागू करने के काम में शामिल करने की योजना पर भी काम कर रहा है . ग्रामीण विकास मंत्रालय की इस योजना को विपक्षी पार्टियां शक़ की निगाह से देखती हैं .भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अनजान ने कहा कि कांग्रेस पार्टी मौजूदा राजनीतिक हालत से घबडा गयी है और उसी घबडाहट में इस तरह के काम कर रही है . इस तरह के कदम से कोई सामाजिक परिवर्तन नहीं आयेगा और न ही कांग्रेस को कोई तात्कालिक लाभ होगा. एक संशयात्मा सरकारी अफसर ने कहा कि यह योजना कहने को तो बड़ी आदर्शवादी बतायी जा रही है लेकिन इसका असली मकसद हर जिले में ५०० कांग्रेसियों को काम पर लगाना है . कमज़ोर पड़ रही कांग्रेस अब सरकारी योजनाओं के कन्धों पर बैठ कर राजनीतिक सफलता हासिल करना चाहती है.
६० नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टरों की एक दिन की कार्यशाला के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जो निष्कर्ष निकाले हैं उनके बारे में एक पर्चा तैयार किया गया है . यह पर्चा सार्वजनिक रूप तो से जारी नहीं किया गया है लेकिन यह जानकार लोगों के ज़रिये मीडिया तक पंहुच गया है . इसमें ही कुछ लोगों को काम देकर उनको अपने साथ की लेने की बात की गयी है . इस पर्चे में और भे एबहुत सारी योजनाओं का ज़िक्र है .प्रधान मंत्री ग्राम सड़क परियोजना में सड़क बनाने का प्रावधान तो है लेकिन छोटी पुलिया बनाने की मंजूरी उसके तहत नहीं दी जाती . प्रस्ताव है कि साठ नक्सल प्रभावित जिलों में अब पुलिया के निर्माण को भी प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना में शामिल कर लिया जाए. इस काम को शुरू करने के लिए ५०० करोड़ रूपये की ज़रूरत होगी. बाद में अगले तीन साल के अंदर करीब ३५ हज़ार करोड़ रूपये लगेंगें . ग्रामीण विकास मंत्रालय इस दिशा में आगे क़दम बढ़ाएगा और विस्तृत प्रस्ताव प्रधान मंत्री के पास भेजेगा. . इन जिलों में अब तारकोल की जगह कांक्रीट की सड़कें बनायी जायेगीं . केंद्र सरकार का मुख्य हस्तक्षेप मनरेगा को दुरुस्त करने की दिशा में होगा . नक्सल प्रभावित ६० जिलों में हर ग्राम पंचायत में एक पंचायत विकास अधिकारी तैनात किया जायेगा . इसके अलावा एक जूनियर इंजीनियर भी भर्ती किया जायेगा. . यह स्टाफ बाहर से नहीं लाया जाएगा. यह सब मुकामी लोग होंगें और इनका वेतन भी केंद्र सरकार देगी.बैंकों और डाकखानों में खाली पड़ी जगहों को भी मुकामी लोगों से भरा जाएगा. मनरेगा के अन्तार्गत अब खेल के मैदान भी बनाए जा सकेगें . अभी तक इसकी मनाही थी . अभी तो यह मंजूरी केवल साठ जिलों के लिए है लेकिन बाद में इसे पूरे देश में भी लागू किया जा सकता है . अभी तक खेल के मैदान मनरेगा की योजना में शामिल नहीं थे इनकी मनाही थी . नक्सल प्रभावित ६० ज़िलों में अगले पांच वर्षों के अंदर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका कार्यक्रम के तहत तीन लाख युवकों को नौकरी दी जायेगी. . ज़ाहिर है जयराम रमेश की अगुवायी में ग्रामीण विकास मंत्रालय सत्ताधारी पार्टी का एक दयालु चेहरा पेश करने की कोशिश करेगा.
Wednesday, September 14, 2011
प्रधान मंत्री ने कहा कि नक्सलवाद से प्रभावित जिलों में काम करने वालों को सुरक्षा की गारंटी देनी होगी
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली ,१३ सितंबर. नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टरों की बैठक में प्रधान मंत्री ने जोर देकर कहा कि मुश्किल इलाकोंमें काम करने वालों को हर हाल में सुरक्षा दी जानी चाहिए . उन इलाकों में रहने वालों को नाक्साली हिंसा से बचाने के लिए हर कारगर उपाय किया जाना चाहिए. इसके पहले इसी वर्कशाप में गृह मंत्री ने नक्सल प्रभावित इलाकों में कानून व्यवस्था को पूरी तरह से राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी बताया और कहा कि केंद्र सरकार की भूमिका केवल राज्य सरकार की कोशिश में सहयोग करने तक ही सीमित है . लेकिन प्रधान मंत्री की बात उनसे अलग थी. लगता है कि प्रधान मंत्री ने गृह मंत्री की बात को सुधारने की कोशिश की . बहर हाल केंद्र सरकार के सर्वोच्च स्तर पर नक्सली हिंसा को हल करने के तरीकों में मतभेद सामने आ गए. प्रधानमंत्री ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि महात्मा गांधी ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना ( मनरेगा ) की मजदूरी लाभार्थी को सही तरीके से मिल सके. इसके लिए नक्सल प्रभावित इलाकों में बैंको की शाखाओं की कमी को आड़े नहीं आने दिया जायेगा . उन्होंने सुझाव दिया कि बैंकों की शाखाओं को पुलिस तानों में खोला जा सकता है . नीचे की मंजिल पर थाना रहे और पहली मंजिल पर बैंक की ब्रांच खोल दी जाए. ऐसा करने से बैंकों की सुरक्षा के लिए अलग से व्यवस्था नहीं करनी पड़ेगी. लेकिन केवल सुरक्षा बलों के सहारे ही देश के सबसे पिछड़े इलाकों का विकास करने की कोशिश को प्रधान मंत्री ने सहे एनाहेने ठहर्या. उन्होंने कहा कि इन इलाकों में रहने वाले लोग तथाकथित विकास की प्रक्रिया से बिलकुल अलग थलग पड़ गए हैं . उनको लगता है कि विकास का जो भी काम हो रहा है उसमें उनका कोई योगदान नहीं है. प्रधान मंत्री ने जोर देकर कहा कि जब तक नक्सल प्रभावित इलाकों के लोगों को विकास के काम में भागीदार बनाने की ज़रुरत है .
प्रधान मंत्री ने कहा कि जब तक प्रशासन ज़मीनी सच्चाई से मुक़ाबिल नहीं होगा तब तक विकास की गाडी बेढंगी ही रहेगी. उन्होंने कहा कि पंचायती राज संस्थाओं के प्रभावी हस्तक्षेप के ज़रिये विकास के काम में लोगों की भागीदारी का एक मेकनिज्म तैयार किया जा सकता है . इसी सम्मलेन में सड़क और परिवहन मंत्री डॉ सी पी जोशी ने कहा कि आदिवासी इलाके के लोगों में सरकार के प्रति भरोसा नईं है . उसको ठीक किये बिना कोई भी काम नहीं हो सकेगा.जब तक लोग यह नहीं महसूस करेगें कि वे इलाके में हो रहे सारे काम में हिस्सेदार के रूप में शामिल हो रहे हैं तब तक उनका विश्वास नहीं हासिल किया जा सकता .. प्रधान मंत्री ने भी इस बात को सही बताया और कलेक्टरों से कहा कि आप का काम लोगों हर नए विकास कार्य में शामिल होने के लिए राजी करना है लेकिन जब तक आप सच्चे मन से कोई काम नहीं करेगें आपकी विश्वसनीयता कभी नहीं बनेगी.
दिनमें वर्कशाप में कुछ कलेक्टरों ने अपने जिले की बात भी रखी . उत्तर प्रदेश का केवल एक जिला, सोनभद्र नक्सल प्रभावित इलाका है . वहां के कलेक्टर विजय विश्वास पन्त ने भी अपने ज़िले की समस्याओं का ज़िक्र किया . बैठक में ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश दिन भर जमे रहे . उन्होंने ऐसे कुछ नियमों को बदल देने की दिशा में पहल की जिनकी वजह मनरेगा और प्रधान मंत्री ग्राम सड़क परियोजना के काम में बाधा आती है . प्रधान मंत्री ग्राम सड़क परियोजना में छोटे पुलों को भी शामिल करने के सुझाव को उन्होंने लगभग मंज़ूर कर लिया. और सुझाव दिया कि प्रेफैब पुलों क इस्तेमाल किया जाना चाहिए . मुकामी दादा टाइप ठेकेदारों से बचने के लिए ई टेंडरिंग की व्यवस्था में कुछ ढीले देने के सुझाव को भी उन्होंने विचार करने के लिए स्वीकार किया . ग्रामेने विकास मंत्री ने घोषित किया कि जंगल में पैदा होने वाली १२ जिन्सें अब केंद्र सरकार की सरकारी खरीद योजना में शामिल कर ली जायेगीं . जिसका लाभ आदिवासी इलाकों में रहने वाले लोगों को होगा
नई दिल्ली ,१३ सितंबर. नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टरों की बैठक में प्रधान मंत्री ने जोर देकर कहा कि मुश्किल इलाकोंमें काम करने वालों को हर हाल में सुरक्षा दी जानी चाहिए . उन इलाकों में रहने वालों को नाक्साली हिंसा से बचाने के लिए हर कारगर उपाय किया जाना चाहिए. इसके पहले इसी वर्कशाप में गृह मंत्री ने नक्सल प्रभावित इलाकों में कानून व्यवस्था को पूरी तरह से राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी बताया और कहा कि केंद्र सरकार की भूमिका केवल राज्य सरकार की कोशिश में सहयोग करने तक ही सीमित है . लेकिन प्रधान मंत्री की बात उनसे अलग थी. लगता है कि प्रधान मंत्री ने गृह मंत्री की बात को सुधारने की कोशिश की . बहर हाल केंद्र सरकार के सर्वोच्च स्तर पर नक्सली हिंसा को हल करने के तरीकों में मतभेद सामने आ गए. प्रधानमंत्री ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि महात्मा गांधी ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना ( मनरेगा ) की मजदूरी लाभार्थी को सही तरीके से मिल सके. इसके लिए नक्सल प्रभावित इलाकों में बैंको की शाखाओं की कमी को आड़े नहीं आने दिया जायेगा . उन्होंने सुझाव दिया कि बैंकों की शाखाओं को पुलिस तानों में खोला जा सकता है . नीचे की मंजिल पर थाना रहे और पहली मंजिल पर बैंक की ब्रांच खोल दी जाए. ऐसा करने से बैंकों की सुरक्षा के लिए अलग से व्यवस्था नहीं करनी पड़ेगी. लेकिन केवल सुरक्षा बलों के सहारे ही देश के सबसे पिछड़े इलाकों का विकास करने की कोशिश को प्रधान मंत्री ने सहे एनाहेने ठहर्या. उन्होंने कहा कि इन इलाकों में रहने वाले लोग तथाकथित विकास की प्रक्रिया से बिलकुल अलग थलग पड़ गए हैं . उनको लगता है कि विकास का जो भी काम हो रहा है उसमें उनका कोई योगदान नहीं है. प्रधान मंत्री ने जोर देकर कहा कि जब तक नक्सल प्रभावित इलाकों के लोगों को विकास के काम में भागीदार बनाने की ज़रुरत है .
प्रधान मंत्री ने कहा कि जब तक प्रशासन ज़मीनी सच्चाई से मुक़ाबिल नहीं होगा तब तक विकास की गाडी बेढंगी ही रहेगी. उन्होंने कहा कि पंचायती राज संस्थाओं के प्रभावी हस्तक्षेप के ज़रिये विकास के काम में लोगों की भागीदारी का एक मेकनिज्म तैयार किया जा सकता है . इसी सम्मलेन में सड़क और परिवहन मंत्री डॉ सी पी जोशी ने कहा कि आदिवासी इलाके के लोगों में सरकार के प्रति भरोसा नईं है . उसको ठीक किये बिना कोई भी काम नहीं हो सकेगा.जब तक लोग यह नहीं महसूस करेगें कि वे इलाके में हो रहे सारे काम में हिस्सेदार के रूप में शामिल हो रहे हैं तब तक उनका विश्वास नहीं हासिल किया जा सकता .. प्रधान मंत्री ने भी इस बात को सही बताया और कलेक्टरों से कहा कि आप का काम लोगों हर नए विकास कार्य में शामिल होने के लिए राजी करना है लेकिन जब तक आप सच्चे मन से कोई काम नहीं करेगें आपकी विश्वसनीयता कभी नहीं बनेगी.
दिनमें वर्कशाप में कुछ कलेक्टरों ने अपने जिले की बात भी रखी . उत्तर प्रदेश का केवल एक जिला, सोनभद्र नक्सल प्रभावित इलाका है . वहां के कलेक्टर विजय विश्वास पन्त ने भी अपने ज़िले की समस्याओं का ज़िक्र किया . बैठक में ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश दिन भर जमे रहे . उन्होंने ऐसे कुछ नियमों को बदल देने की दिशा में पहल की जिनकी वजह मनरेगा और प्रधान मंत्री ग्राम सड़क परियोजना के काम में बाधा आती है . प्रधान मंत्री ग्राम सड़क परियोजना में छोटे पुलों को भी शामिल करने के सुझाव को उन्होंने लगभग मंज़ूर कर लिया. और सुझाव दिया कि प्रेफैब पुलों क इस्तेमाल किया जाना चाहिए . मुकामी दादा टाइप ठेकेदारों से बचने के लिए ई टेंडरिंग की व्यवस्था में कुछ ढीले देने के सुझाव को भी उन्होंने विचार करने के लिए स्वीकार किया . ग्रामेने विकास मंत्री ने घोषित किया कि जंगल में पैदा होने वाली १२ जिन्सें अब केंद्र सरकार की सरकारी खरीद योजना में शामिल कर ली जायेगीं . जिसका लाभ आदिवासी इलाकों में रहने वाले लोगों को होगा
चिदंबरम बोले --नक्सलवादी हिंसा से लड़ने का काम राज्य सरकारों का है .
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,१३ सितम्बर. गृह मंत्री पी चिदंबरम का दावा है कि देश की शान्ति और कानून व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा ख़तरा नक्सलवाद से है . कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत में चल रहे आतंकवादी गतिविधियों में जितने लोग मारे जाते हैं , नक्सलवादी आतंकी उस से दस गुना ज्यादा लोगों की जान ले लेते हैं . नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टरों की एक सभा में गृह मंत्री ने कहा कि आतंकवाद के अन्य कारनामों के अंजाम देने वालों का सीमित लक्ष्य है . वे सरकार से कुछ सुविधाएं चाहते हैं . शासन की मौजूदा व्यवस्था में अपनी भागीदारी चाहते हैं लेकिन नक्सल आन्दोलन में लगे हुए लोग पूरी सरकार को ही हटा कर अपनी तानाशाही कायम करना चाहते हैं . उनके पास गुरिल्ला फौज है और वे एक विचार धारा को लागू करने के लिए आतंक का रास्ता अपना रहे हैं. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इस समस्या से जूझने में राज्य सरकारों की मदद कर सकती है लेकिन असली प्रयास तो राज्य सरकार की तरफ से ही किया जाना चाहिए . ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने गृह मंत्री से अनुरोध किया था कि नक्सल प्रभावित इलाकों में चाल रहे विकास कार्यों , खासकर प्रधान मंत्री ग्राम सड़क परियोजना को सुचारू रूप से चलाने के लिए सी आर पी एफ की और अधिक सक्रिय भागी दारी को सुनिश्चित करें. गृह मंत्री ने कहा कि यह काम इतना आसान नहीं है .सी आर पी एफ को संतरी ड्यूटी के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता , वह एक फाइटिंग फ़ोर्स है . लेकिन गृहमंत्री ने बताया कि नक्सल प्रभावित इलाकों और प्रधान मंत्री ग्राम सड़क परियोजना में सी आर पी एफ की प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सी आर पी एफ में एक ऐसी शाखा बनाई जा रही है जिसका मुख्य काम इंजीनियरिंग से सम्बंधित होगा.और उसका इस्तेमाल ग्राम सड़क परियोजना में किया जा सकता है लेकिन इस शाक्षा को काम लायक बनाने में कम स कम दो साल लगेया.
नक्सलवादी हिंसा को रोकने में सबसे बड़ी अड़चन यह है कि उन लोगों से बात ही नहीं की जा सकती. वे संविधान को नहीं मानते . लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार को जनविरोधी मानते हैं . इसलिए नक्सल हिंसा को काबू में करने के लिए वे तरीके कारगर नहीं होंगें जो आम तौर पर कानून व्यवस्था की समस्या को हल करने के लिए अपनाए जाते हैं .लेकिन सरकार को शान्ति तो कायम करनी ही है इसलिए ज़रूरी है कि नक्सलवादी हिंसा को रोकने के लिए उन इलाकों के लोगों को विकास प्रक्रिया में शामिल किया जाए जहां पर नक्सल वादी आतंकियों का प्रभाव है .
गृह मंत्री आज नई दिल्ली में आयोजित नक्सल आतंकवाद से प्रभावित ६० जिलों के कलेक्टरों की एक वर्कशाप में बोल रहे थे. उन्होंने आंकड़े देकर बताया कि इस साल के आठ महीनों में कश्मीर में २७ सिविलियन और पूर्वोत्तर भारत में ४६ सिविलियन मारे गए हैं जबकि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में १९७ सिविलियन मारे गए हैं.इसी तरह पूर्वोत्तर भारत में २७ सुरक्षा कर्मी मारे गए जबकि नक्सलियों ने १०९ सुरक्षा कर्मियों की ह्त्या की . लेकिन गृहमंत्री ने स्पष्ट कहा कि हर तरह की हिंसा का मुकाबला करना राज्य सरकारों का ज़िम्मा है . उन्होंने कलेक्टरों से कहा कि आप लोग अपनी सरकारों से उतनी बात नहीं करते जितनी कि केंद्र सरकार से उम्मीद करते हैं. राज्य में शान्ति और कानून व्यवस्था के काममें गृह मंत्रालय केवल मदद कर सकता है . लेकिन असली काम तो राज्य सरकारों को ही करना चाहिए
नई दिल्ली,१३ सितम्बर. गृह मंत्री पी चिदंबरम का दावा है कि देश की शान्ति और कानून व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा ख़तरा नक्सलवाद से है . कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत में चल रहे आतंकवादी गतिविधियों में जितने लोग मारे जाते हैं , नक्सलवादी आतंकी उस से दस गुना ज्यादा लोगों की जान ले लेते हैं . नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टरों की एक सभा में गृह मंत्री ने कहा कि आतंकवाद के अन्य कारनामों के अंजाम देने वालों का सीमित लक्ष्य है . वे सरकार से कुछ सुविधाएं चाहते हैं . शासन की मौजूदा व्यवस्था में अपनी भागीदारी चाहते हैं लेकिन नक्सल आन्दोलन में लगे हुए लोग पूरी सरकार को ही हटा कर अपनी तानाशाही कायम करना चाहते हैं . उनके पास गुरिल्ला फौज है और वे एक विचार धारा को लागू करने के लिए आतंक का रास्ता अपना रहे हैं. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इस समस्या से जूझने में राज्य सरकारों की मदद कर सकती है लेकिन असली प्रयास तो राज्य सरकार की तरफ से ही किया जाना चाहिए . ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने गृह मंत्री से अनुरोध किया था कि नक्सल प्रभावित इलाकों में चाल रहे विकास कार्यों , खासकर प्रधान मंत्री ग्राम सड़क परियोजना को सुचारू रूप से चलाने के लिए सी आर पी एफ की और अधिक सक्रिय भागी दारी को सुनिश्चित करें. गृह मंत्री ने कहा कि यह काम इतना आसान नहीं है .सी आर पी एफ को संतरी ड्यूटी के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता , वह एक फाइटिंग फ़ोर्स है . लेकिन गृहमंत्री ने बताया कि नक्सल प्रभावित इलाकों और प्रधान मंत्री ग्राम सड़क परियोजना में सी आर पी एफ की प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सी आर पी एफ में एक ऐसी शाखा बनाई जा रही है जिसका मुख्य काम इंजीनियरिंग से सम्बंधित होगा.और उसका इस्तेमाल ग्राम सड़क परियोजना में किया जा सकता है लेकिन इस शाक्षा को काम लायक बनाने में कम स कम दो साल लगेया.
नक्सलवादी हिंसा को रोकने में सबसे बड़ी अड़चन यह है कि उन लोगों से बात ही नहीं की जा सकती. वे संविधान को नहीं मानते . लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार को जनविरोधी मानते हैं . इसलिए नक्सल हिंसा को काबू में करने के लिए वे तरीके कारगर नहीं होंगें जो आम तौर पर कानून व्यवस्था की समस्या को हल करने के लिए अपनाए जाते हैं .लेकिन सरकार को शान्ति तो कायम करनी ही है इसलिए ज़रूरी है कि नक्सलवादी हिंसा को रोकने के लिए उन इलाकों के लोगों को विकास प्रक्रिया में शामिल किया जाए जहां पर नक्सल वादी आतंकियों का प्रभाव है .
गृह मंत्री आज नई दिल्ली में आयोजित नक्सल आतंकवाद से प्रभावित ६० जिलों के कलेक्टरों की एक वर्कशाप में बोल रहे थे. उन्होंने आंकड़े देकर बताया कि इस साल के आठ महीनों में कश्मीर में २७ सिविलियन और पूर्वोत्तर भारत में ४६ सिविलियन मारे गए हैं जबकि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में १९७ सिविलियन मारे गए हैं.इसी तरह पूर्वोत्तर भारत में २७ सुरक्षा कर्मी मारे गए जबकि नक्सलियों ने १०९ सुरक्षा कर्मियों की ह्त्या की . लेकिन गृहमंत्री ने स्पष्ट कहा कि हर तरह की हिंसा का मुकाबला करना राज्य सरकारों का ज़िम्मा है . उन्होंने कलेक्टरों से कहा कि आप लोग अपनी सरकारों से उतनी बात नहीं करते जितनी कि केंद्र सरकार से उम्मीद करते हैं. राज्य में शान्ति और कानून व्यवस्था के काममें गृह मंत्रालय केवल मदद कर सकता है . लेकिन असली काम तो राज्य सरकारों को ही करना चाहिए
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शेष नारायण सिंह
Tuesday, September 13, 2011
अब गाँव से दूर रहने वालों के लिए अलग होगा सीलिंग एक्ट
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,१२ सितम्बर .केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री, जयराम रमेश एक नया धमाका कर रहे हैं . इस नए काम की धमक दूर तलक महसूस की जायेगी . पर्यावरण मंत्रालय में उन्होंने कुछ बहुत बड़ी कंपनियों को इतना टाईट कर दिया था कि सरकार के लिए उन्हें पर्यावरण मंत्री बनाए रखना असंभव हो गया. अपने नए मंत्रालय में भी वे कुछ बड़ा करने की योजना बना चुके हैं. जयराम रमेश ने एक योजना बनायी है जिसके बाद भूमि सुधार कानूनों में भारी फेरबदल कर दिया जाएगा. केंद्र सरकार की योजना है कि राज्यों के भूमि हदबंदी कानून को बदल दिया जाए. हालांकि भूमि सुधार राज्य का विषय है लेकिन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के माडल भूमि हदबंदी कानून लाने की योजना बना रहा है जिसके अनुसार अपने गाँव से दूर शहरों में रहने वाले लोगों के लिए अलग भूमि हदबंदी कानून बनाया जाएगा . सरकार का प्रस्ताव है कि गैर हाज़िर भूस्वामी को गाँव में रहने वाले भूस्वामी से आधी ज़मीन रखने का अधिकार होगा . यानी अगर यह कानून उत्तर प्रदेश में लागू हो गया तो गाँव से बाहर शहरों में रहने वाले खातेदारों को सवा तीन एकड़ सिंचित भूमि ही रखने का अधिकार रह जाएगा. असिंचित के केस में भी यही फार्मूला लागू होगा .
जयराम रमेश का प्रस्ताव है कि गैर हाज़िर खातेदारों की सूची अब बहुत ही आसानी ने बन जायेगी .केंद्र सरकार की यू आई डी स्कीम वाले कार्ड के बन जाने के बाद देश के हर नागरिक का केवल एक परिचय पत्र रहेगा. वही कार्ड हर सरकारी स्कीम के लिए लागू होगा .जो लोग गाँव से दूर शहरों में रहते हैं ,उनको अपनी नौकरी के स्थान का ही कार्ड बनवाना पड़ेगा . इस तरह अभी तक दो या तीन जगह की मतदाता सूचियों में नाम लिखा कर काम चलाने वालों को एक जगह चुनना पड़ेगा जहां से वे कार्ड बनवाएं . ऐसी हालत में शहर में रह कर काम करने वालों के लिए गाँव का कार्ड नहीं बन पायेगा.
इस योजना की पूरी तैयारी हो चुकी है .ग्रामीण विकास मंत्रालय ने प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में २००८ में ही भूमि सुधारों की राष्ट्रीय परिषद् ( एन सी एल आर ) का गठन कर दिया था जो सक्रिय नहीं थी. अब वह सक्रिय कर दी गयी है . भूमि सुधारों की राष्ट्रीय परिषद् की पहली बैठक अक्टूबर में बुलाई जा रही है .इस परिषद् का उद्देश्य भूमि सुधार के बारे में दिशा निर्देश और नीतियाँ तय करना बताया गया है . भूमि सुधार के अधूरे काम को पूरा करने के लिए इस परिषद् के अंदर ही एक कमेटी बनायी गयी है जिसके अध्यक्ष ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश हैं.सरकार की कोशिश है कि भूमि के न्यायपूर्ण वितरण के लिए एक माडल भूमि सुधार कानून की आवश्यकता है . हालांकि राज्यों के सामने कोई बाध्यता नहीं होगी लेकिन केंद्र सरकार को उम्मीद है कि इंसाफ़ का निजाम स्थापित करने के एजेंडे के साथ राज्यों में सरकार बनाने वाली पार्टिया इस माडल भूमि हदबंदी कानून को लागू करेगीं.
नई दिल्ली,१२ सितम्बर .केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री, जयराम रमेश एक नया धमाका कर रहे हैं . इस नए काम की धमक दूर तलक महसूस की जायेगी . पर्यावरण मंत्रालय में उन्होंने कुछ बहुत बड़ी कंपनियों को इतना टाईट कर दिया था कि सरकार के लिए उन्हें पर्यावरण मंत्री बनाए रखना असंभव हो गया. अपने नए मंत्रालय में भी वे कुछ बड़ा करने की योजना बना चुके हैं. जयराम रमेश ने एक योजना बनायी है जिसके बाद भूमि सुधार कानूनों में भारी फेरबदल कर दिया जाएगा. केंद्र सरकार की योजना है कि राज्यों के भूमि हदबंदी कानून को बदल दिया जाए. हालांकि भूमि सुधार राज्य का विषय है लेकिन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के माडल भूमि हदबंदी कानून लाने की योजना बना रहा है जिसके अनुसार अपने गाँव से दूर शहरों में रहने वाले लोगों के लिए अलग भूमि हदबंदी कानून बनाया जाएगा . सरकार का प्रस्ताव है कि गैर हाज़िर भूस्वामी को गाँव में रहने वाले भूस्वामी से आधी ज़मीन रखने का अधिकार होगा . यानी अगर यह कानून उत्तर प्रदेश में लागू हो गया तो गाँव से बाहर शहरों में रहने वाले खातेदारों को सवा तीन एकड़ सिंचित भूमि ही रखने का अधिकार रह जाएगा. असिंचित के केस में भी यही फार्मूला लागू होगा .
जयराम रमेश का प्रस्ताव है कि गैर हाज़िर खातेदारों की सूची अब बहुत ही आसानी ने बन जायेगी .केंद्र सरकार की यू आई डी स्कीम वाले कार्ड के बन जाने के बाद देश के हर नागरिक का केवल एक परिचय पत्र रहेगा. वही कार्ड हर सरकारी स्कीम के लिए लागू होगा .जो लोग गाँव से दूर शहरों में रहते हैं ,उनको अपनी नौकरी के स्थान का ही कार्ड बनवाना पड़ेगा . इस तरह अभी तक दो या तीन जगह की मतदाता सूचियों में नाम लिखा कर काम चलाने वालों को एक जगह चुनना पड़ेगा जहां से वे कार्ड बनवाएं . ऐसी हालत में शहर में रह कर काम करने वालों के लिए गाँव का कार्ड नहीं बन पायेगा.
इस योजना की पूरी तैयारी हो चुकी है .ग्रामीण विकास मंत्रालय ने प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में २००८ में ही भूमि सुधारों की राष्ट्रीय परिषद् ( एन सी एल आर ) का गठन कर दिया था जो सक्रिय नहीं थी. अब वह सक्रिय कर दी गयी है . भूमि सुधारों की राष्ट्रीय परिषद् की पहली बैठक अक्टूबर में बुलाई जा रही है .इस परिषद् का उद्देश्य भूमि सुधार के बारे में दिशा निर्देश और नीतियाँ तय करना बताया गया है . भूमि सुधार के अधूरे काम को पूरा करने के लिए इस परिषद् के अंदर ही एक कमेटी बनायी गयी है जिसके अध्यक्ष ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश हैं.सरकार की कोशिश है कि भूमि के न्यायपूर्ण वितरण के लिए एक माडल भूमि सुधार कानून की आवश्यकता है . हालांकि राज्यों के सामने कोई बाध्यता नहीं होगी लेकिन केंद्र सरकार को उम्मीद है कि इंसाफ़ का निजाम स्थापित करने के एजेंडे के साथ राज्यों में सरकार बनाने वाली पार्टिया इस माडल भूमि हदबंदी कानून को लागू करेगीं.
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शेष नारायण सिंह
नक्सल इलाकों में सी आर पी एफ के इंजीनियर सड़क बनायेगें
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली ,१२ सितम्बर. देश के ६० नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टरों को १३ सितम्बर को नई दिल्ली में तलब किया गया है . उनको दिन भर चलने वाले एक वर्कशाप में ग्रामीण विकास की स्कीमों को प्रभावी तरीके से लागू करने के बारे में माकूल रणनीतियों की जानकारी दी जायेगी. इमकान है कि ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों में हो रही भारी लूट को रोकने की गरज से बुलाई गयी इस बैठक में कुछ नई योजनाओं पर भी चर्चा की जायेगी . सरकार की तरफ से संकेत दिया गया है कि सत्ता के सर्वोच्च स्तर पर बैठे लोगों को मालूम है कि इन ६० जिलों में सबसे ज्यादा लूट प्रधानमंत्री ग्राम सड़क परियोजना के लिए दिए गए फंड में हो रही है . सरकार का प्रस्ताव है कि इस योजना में बनने वाली सडकों को अब कच्ची सड़क के रूप में विकसित करने पर रोक लगा दी जाए. सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने संकेत दिया है कि नक्सल प्रभावित इन जिलों में सड़क बनने का काम सी आर पी एफ की इंजीनियरिंग शाखा को सौंप दिया जाए और उनको हिदायत दी जाए कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क परियोजना की स्कीमो के अंतर्गत बनने वाली सड़कें अब कांक्रीट की बनायी जाएँ जिस से वे स्थायी रह सकें और उनको बारिश में कोई नुकसान न हो . अभी तक तो इस योजना की लगभग पूरी रक़म गाँव के नेता और अधिकारी हड़प कर लेते हैं . नक्सल इलाकों में यह रक़म नक्सली मुकामी ग्राम प्रधानों और अधिकारियों से छीन कर ले जाते हैं जिसका इस्तेमाल सरकार और जनता के खिलाफ ही किया जाता है .
६० जिलों के जिलाधिकारियों को बुलाकर उन के साथ अब तक हुए काम की समीक्षा तो की ही जायेगी . उनके सामने आ रही दिक्क़तों भी केंद्र और राज्य सरकारों के बड़े अधिकारियों और मंत्रियों की मौजूदगी में समझने की कोशिश की जायेगी . हर कलेक्टर को ८ मिनट का समय दिया जाये़या जिसमे वह अपनी समस्या को बताएगा. इस योजना में उत्तर प्रदेश का केवल सोनभद्र जिला शामिल है . जबकि आन्ध्र प्रदेश के २ जिले, बिहार के ७ , छत्तीस गढ़ के १० ,झारखण्ड के १४ , मध्य प्रदेश के ८, महाराष्ट्र के २ ,ओडिशा के १५ जिले और पश्चिम बंगाल का एक जिला है. इन ६० जिलों में ४२ जिले आदिवासी बहुल हैं.. विज्ञान भवन में आयोजित इस वर्कशाप में प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह मुख्य अतिथि होंगें जबकि गृहमंत्री पी चिदंबरम और ग्रामीण विकास मंत्री ,जयराम रमेश सक्रिय भागीदारी करेगें . इन विभागों के छोटे मंत्री भी कार्यक्रम में मौजूद रहेगें. इसके अलावा नौकरशाही भी बड़ी संख्या में हाज़िर रहेगी
नई दिल्ली ,१२ सितम्बर. देश के ६० नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टरों को १३ सितम्बर को नई दिल्ली में तलब किया गया है . उनको दिन भर चलने वाले एक वर्कशाप में ग्रामीण विकास की स्कीमों को प्रभावी तरीके से लागू करने के बारे में माकूल रणनीतियों की जानकारी दी जायेगी. इमकान है कि ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों में हो रही भारी लूट को रोकने की गरज से बुलाई गयी इस बैठक में कुछ नई योजनाओं पर भी चर्चा की जायेगी . सरकार की तरफ से संकेत दिया गया है कि सत्ता के सर्वोच्च स्तर पर बैठे लोगों को मालूम है कि इन ६० जिलों में सबसे ज्यादा लूट प्रधानमंत्री ग्राम सड़क परियोजना के लिए दिए गए फंड में हो रही है . सरकार का प्रस्ताव है कि इस योजना में बनने वाली सडकों को अब कच्ची सड़क के रूप में विकसित करने पर रोक लगा दी जाए. सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने संकेत दिया है कि नक्सल प्रभावित इन जिलों में सड़क बनने का काम सी आर पी एफ की इंजीनियरिंग शाखा को सौंप दिया जाए और उनको हिदायत दी जाए कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क परियोजना की स्कीमो के अंतर्गत बनने वाली सड़कें अब कांक्रीट की बनायी जाएँ जिस से वे स्थायी रह सकें और उनको बारिश में कोई नुकसान न हो . अभी तक तो इस योजना की लगभग पूरी रक़म गाँव के नेता और अधिकारी हड़प कर लेते हैं . नक्सल इलाकों में यह रक़म नक्सली मुकामी ग्राम प्रधानों और अधिकारियों से छीन कर ले जाते हैं जिसका इस्तेमाल सरकार और जनता के खिलाफ ही किया जाता है .
६० जिलों के जिलाधिकारियों को बुलाकर उन के साथ अब तक हुए काम की समीक्षा तो की ही जायेगी . उनके सामने आ रही दिक्क़तों भी केंद्र और राज्य सरकारों के बड़े अधिकारियों और मंत्रियों की मौजूदगी में समझने की कोशिश की जायेगी . हर कलेक्टर को ८ मिनट का समय दिया जाये़या जिसमे वह अपनी समस्या को बताएगा. इस योजना में उत्तर प्रदेश का केवल सोनभद्र जिला शामिल है . जबकि आन्ध्र प्रदेश के २ जिले, बिहार के ७ , छत्तीस गढ़ के १० ,झारखण्ड के १४ , मध्य प्रदेश के ८, महाराष्ट्र के २ ,ओडिशा के १५ जिले और पश्चिम बंगाल का एक जिला है. इन ६० जिलों में ४२ जिले आदिवासी बहुल हैं.. विज्ञान भवन में आयोजित इस वर्कशाप में प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह मुख्य अतिथि होंगें जबकि गृहमंत्री पी चिदंबरम और ग्रामीण विकास मंत्री ,जयराम रमेश सक्रिय भागीदारी करेगें . इन विभागों के छोटे मंत्री भी कार्यक्रम में मौजूद रहेगें. इसके अलावा नौकरशाही भी बड़ी संख्या में हाज़िर रहेगी
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Saturday, September 10, 2011
आडवाणी की नई रथयात्रा के निशाने पर अन्ना हजारे भी हैं और गडकरी भी
शेष नारायण सिंह
बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद के पूर्व प्रत्याशी लाल कृष्ण आडवाणी ने एक और रथयात्रा निकालने का ऐलान कर दिया है .इसके पहले आडवाणी जी राम जन्मभूमि रथ यात्रा, जनादेश यात्रा, स्वर्ण जयंती रथ यात्रा, भारत उदय यात्रा और भारत सुरक्षा यात्रा निकाल चुके हैं. आजकल खाली हैं क्योंकि लोकसभा में सारा फोकस विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज पर रहता है . हद तो तब हो गयी जब अध्यक्ष मीरा कुमार ने उन्हें ८ सितमबर को भाषण देने से रोक दिया . जब आडवाणी जी नहीं माने तो अध्यक्ष ने आदेश दिया कि इनका बोला हुआ कुछ भी रिकार्ड नहीं किया जाएगा. उनके सामने लगा हुआ माइक भी लोकसभा के कर्मचारियों ने बंद करवा दिया . आडवाणी जी की वरिष्ठता का कोई भी नेता अभी तक के इतिहास में इस तरह के आचरण का दोषी नहीं पाया गया है . उनकी पार्टी के लोगों ने अध्यक्ष के आदेश का बुरा माना और संसद से बाहर निकल कर सड़क पर आ गए. वहीं संसद के परिसर में स्थापित की गयी महात्मा गाँधी की प्रतिमा के सामने खड़े होकरनारे लगाने लगे. लेकिन आडवाणी जी के ४० साल के संसदीय जीवन के इतिहास में एक अप्रिय प्रकरण तो बाकायदा जुड़ चुका था. . यह बात बीजेपी वालों को खल गयी . दोपहर बाद बीजेपी ने पलट वार किया और आडवाणी जी की प्रेस कानफरेंस बुला दी जहां आडवाणी जी ने ऐलान किया कि वे अब रथयात्रा निकालेगें .श्री आडवाणी जब भी रथयात्रा की घोषणा करते हैं ,आमतौर पर सरकारें दहल जाती हैं उनकी बहुचर्चित राम जन्म भूमि रथ यात्रा को बीते बीस साल हो गए है लेकिन उस यात्रा के रूट पर उसके बाद हुए दंगे आज भी लोगों को डरा देते हैं . देश हिल उठता . हालांकि उसके बाद भी आडवानी जी ने कई यात्राएं कीं लेकिन उन यात्राओं का वह प्रोफाइल नहीं बन सकता जो सोमनाथ से अयोध्या वाया मुंबई और कर्नाटक वाली यात्रा का बना था .राम जन्मभूमि रथ यात्रा के बाद आडवाणी जी ने जनादेश यात्रा, स्वर्ण जयंती रथ यात्रा, भारत उदय यात्रा और भारत सुरक्षा यात्रा नाम की रथ यात्राएं कीं लेकिन वे यात्राएं कोई राजनीतिक असर डालने में नाकामयाब रहीं
लाल कृष्ण आडवाणी की इस यात्रा ने बहुत सारे राजनीतिक सवालों को सामने ला दिया . संसद भवन के एक कमरे में जब श्री आडवाणी अपनी रथ यात्रा की घोषणा की घोषणा कर रहे थे तो उनकी पार्टी के अध्यक्ष वहां मौजूद नहीं थे. आडवाणी जी ने बार बार इस बात का उल्लेख किया कि उन्होंने अपनी पार्टी के अध्यक्ष जी से पूछ कर ही इस यात्रा की घोषणा की है . उनकी बार बार की यह उक्ति पत्रकारों के दिमाग में तरह तरह के सवाल पैदा कर रही थी.उनके साथ मौजूद नेताओं पर नज़र डालें तो तस्वीर बहुत कुछ साफ़ हो जाती है . आडवाणी जी के दोनों तरफ सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, अनंत कुमार नज़र आ रहे थे . पार्टी के कुछ छोटे नेता भी थे . लेकिन आडवानी विरोधी गुटों का कोई भी नेता वहां नहीं था. राजनाथ सिंह नहीं थे , मुरली मनोहर जोशी नहीं थे या आडवाणी विरोधी किसी गुट का कोई नेता वहां नहीं था. ज़ाहिर है कि इस यात्रा से वे खतरे नहीं हैं जो उनकी १९९१ वाली यात्रा से थे .उस यात्रा में तो पूरी बीजेपी और पूरा आर एस एस साथ था .इसलिए संभावना है कि उनकी बाद वाली यात्राओं की तरह ही यह यात्रा भी रस्म अदायगी ही साबित होगी . लेकिन उनकी इस यात्रा से बीजेपी के अंदर चल रहे घमासान का अंदाज़ लग जाता है . आर एस एस ने इस बार साफ़ कर दिया है कि वह २०१४ के लोकसभा चुनावों के पहले किसी भी व्यक्ति को प्रधान मंत्री पद का दावेदार नहीं बनाएगा. नागपुर के फरमाबरदार बीजेपी अध्यक्ष ने भी बार बार कहा है कि इस बार उनकी पार्टी किसी को भी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनायेगी. इस फैसले का मतलब यह तो है कि अभी पार्टी और आर एस एस के आलाकमान ने यह तय नहीं किया है कि अगर २०१४ में सरकार बनाने का मौक़ा मिला तो सोचा जाएगा कि किसे प्रधानमंत्री बनाया जाय . यह तो सीधा अर्थ है . इस के अलावा भी इस घोषणा के कई अर्थ हैं . उन बहुत सारे अर्थों में एक यह भी है कि आर एस एस और बीजेपी लाल कृष्ण आडवाणी को १०१४ में प्रधानमंत्री पद के लिए विचार नहीं करेगें . यह बात खलने वाली है . सही बात यह है कि यह बात लोकसभा में आडवानी को बोलने देने वाले अपमान से जादा तकलीफ देह है . लेकिन आडवाणी भी हार मानने वाले नहीं हैं . उन्होंने एक कदम आगे बढ़ कर अपने आप को बीजेपी सबे महत्वपूर्ण चेहरा सिद्ध करने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया . प्रेस वार्ता में श्री आडवाणी ने बताया कि अभी कोई कोई तैयारी नहीं हुई है . यानी अभी यात्रा का नाम नहीं तय किया गया है .अभी उसका रूट नहीं तय किया गया है , अभी उसकी कोई शुरुआती रूपरेखा भी नहीं बनायी गयी है. बस केवल ऐलान किया जा रहा है . लगता है कि इस विषय पर किसी और यात्रा की घोषणा कहीं और से होने वाली थी . अपनी तरफ से यात्रा की घोषणा करके लाल कृष्ण आडवाणी ने अन्य किसी की पहल की संभावना को रोक दिया है .
दिलचस्प बात यह है कि आडवाणी ने यह यात्रा भ्रष्टाचार के खिलाफ निकालने की घोषणा की है लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या यह यात्रा रेड्डी बंधुओं के प्रभाव क्षेत्र बेल्लारी और नरेंद्र मोदी शासित गुजरात के अहमदाबाद से भी निकलेंगी तो आडवाणी जी ने कहा कि इस पर फैसला अभी नहीं किया गया है. इस बात को वे केवल सुझाव के रूप में लेने को तैयार थे. इसका भावार्थ यह हुआ कि वे राष्ट्रीय नेतृत्व में चल रहे घमासान के नतीजे को तो अपने पक्ष में कर लेना चाहते हैं लेकिन नरेंद्र मोदी, और बेल्लारी वाले रेड्डी बंधुओं को नाराज़ करने की अभी उनकी हिम्मत नहीं पड़ रही है . इस यात्रा से भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुए अन्ना हजारे के आयोजनों के स्वाभाविक नेता बनने की जो इच्छा आडवाणी जी मन में जागी है , वे उसे तुरंत भुना लेना चाहते हैं . ऐसा करने के कई फायदे हैं .. अन्ना हजारे ने जो माहौल बनाया है और भ्रष्टाचार विर्रोधियों की जो बड़ी जमात देश में खडी हो गयी है अब आडवाणी उसके स्वाभाविक नेता बन जायेगें . दूसरी बात बीजेपी में वे नितिन गडकरी को हमेशा के लिए हाशिये के सिपाही के रूप में फिक्स करने में सफल हो जायेगें . इस तरह से वह परम्परा भी बनी रहेगी कि आडवाणी जी की मर्जी के खिलाफ कोई भी बीजेपी नेता पार्टी का अध्यक्ष बन कर अपना अधिकार नहीं स्थापित कर सकता . राजनाथ सिंह .और मुरली मनोहर जोशी जैसे लोगों को आडवाणी जी ने नहीं जमने दिया था . नितिन गडकरी तो इन लोगों की तुलना में मामूली नेता है .
बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद के पूर्व प्रत्याशी लाल कृष्ण आडवाणी ने एक और रथयात्रा निकालने का ऐलान कर दिया है .इसके पहले आडवाणी जी राम जन्मभूमि रथ यात्रा, जनादेश यात्रा, स्वर्ण जयंती रथ यात्रा, भारत उदय यात्रा और भारत सुरक्षा यात्रा निकाल चुके हैं. आजकल खाली हैं क्योंकि लोकसभा में सारा फोकस विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज पर रहता है . हद तो तब हो गयी जब अध्यक्ष मीरा कुमार ने उन्हें ८ सितमबर को भाषण देने से रोक दिया . जब आडवाणी जी नहीं माने तो अध्यक्ष ने आदेश दिया कि इनका बोला हुआ कुछ भी रिकार्ड नहीं किया जाएगा. उनके सामने लगा हुआ माइक भी लोकसभा के कर्मचारियों ने बंद करवा दिया . आडवाणी जी की वरिष्ठता का कोई भी नेता अभी तक के इतिहास में इस तरह के आचरण का दोषी नहीं पाया गया है . उनकी पार्टी के लोगों ने अध्यक्ष के आदेश का बुरा माना और संसद से बाहर निकल कर सड़क पर आ गए. वहीं संसद के परिसर में स्थापित की गयी महात्मा गाँधी की प्रतिमा के सामने खड़े होकरनारे लगाने लगे. लेकिन आडवाणी जी के ४० साल के संसदीय जीवन के इतिहास में एक अप्रिय प्रकरण तो बाकायदा जुड़ चुका था. . यह बात बीजेपी वालों को खल गयी . दोपहर बाद बीजेपी ने पलट वार किया और आडवाणी जी की प्रेस कानफरेंस बुला दी जहां आडवाणी जी ने ऐलान किया कि वे अब रथयात्रा निकालेगें .श्री आडवाणी जब भी रथयात्रा की घोषणा करते हैं ,आमतौर पर सरकारें दहल जाती हैं उनकी बहुचर्चित राम जन्म भूमि रथ यात्रा को बीते बीस साल हो गए है लेकिन उस यात्रा के रूट पर उसके बाद हुए दंगे आज भी लोगों को डरा देते हैं . देश हिल उठता . हालांकि उसके बाद भी आडवानी जी ने कई यात्राएं कीं लेकिन उन यात्राओं का वह प्रोफाइल नहीं बन सकता जो सोमनाथ से अयोध्या वाया मुंबई और कर्नाटक वाली यात्रा का बना था .राम जन्मभूमि रथ यात्रा के बाद आडवाणी जी ने जनादेश यात्रा, स्वर्ण जयंती रथ यात्रा, भारत उदय यात्रा और भारत सुरक्षा यात्रा नाम की रथ यात्राएं कीं लेकिन वे यात्राएं कोई राजनीतिक असर डालने में नाकामयाब रहीं
लाल कृष्ण आडवाणी की इस यात्रा ने बहुत सारे राजनीतिक सवालों को सामने ला दिया . संसद भवन के एक कमरे में जब श्री आडवाणी अपनी रथ यात्रा की घोषणा की घोषणा कर रहे थे तो उनकी पार्टी के अध्यक्ष वहां मौजूद नहीं थे. आडवाणी जी ने बार बार इस बात का उल्लेख किया कि उन्होंने अपनी पार्टी के अध्यक्ष जी से पूछ कर ही इस यात्रा की घोषणा की है . उनकी बार बार की यह उक्ति पत्रकारों के दिमाग में तरह तरह के सवाल पैदा कर रही थी.उनके साथ मौजूद नेताओं पर नज़र डालें तो तस्वीर बहुत कुछ साफ़ हो जाती है . आडवाणी जी के दोनों तरफ सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, अनंत कुमार नज़र आ रहे थे . पार्टी के कुछ छोटे नेता भी थे . लेकिन आडवानी विरोधी गुटों का कोई भी नेता वहां नहीं था. राजनाथ सिंह नहीं थे , मुरली मनोहर जोशी नहीं थे या आडवाणी विरोधी किसी गुट का कोई नेता वहां नहीं था. ज़ाहिर है कि इस यात्रा से वे खतरे नहीं हैं जो उनकी १९९१ वाली यात्रा से थे .उस यात्रा में तो पूरी बीजेपी और पूरा आर एस एस साथ था .इसलिए संभावना है कि उनकी बाद वाली यात्राओं की तरह ही यह यात्रा भी रस्म अदायगी ही साबित होगी . लेकिन उनकी इस यात्रा से बीजेपी के अंदर चल रहे घमासान का अंदाज़ लग जाता है . आर एस एस ने इस बार साफ़ कर दिया है कि वह २०१४ के लोकसभा चुनावों के पहले किसी भी व्यक्ति को प्रधान मंत्री पद का दावेदार नहीं बनाएगा. नागपुर के फरमाबरदार बीजेपी अध्यक्ष ने भी बार बार कहा है कि इस बार उनकी पार्टी किसी को भी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनायेगी. इस फैसले का मतलब यह तो है कि अभी पार्टी और आर एस एस के आलाकमान ने यह तय नहीं किया है कि अगर २०१४ में सरकार बनाने का मौक़ा मिला तो सोचा जाएगा कि किसे प्रधानमंत्री बनाया जाय . यह तो सीधा अर्थ है . इस के अलावा भी इस घोषणा के कई अर्थ हैं . उन बहुत सारे अर्थों में एक यह भी है कि आर एस एस और बीजेपी लाल कृष्ण आडवाणी को १०१४ में प्रधानमंत्री पद के लिए विचार नहीं करेगें . यह बात खलने वाली है . सही बात यह है कि यह बात लोकसभा में आडवानी को बोलने देने वाले अपमान से जादा तकलीफ देह है . लेकिन आडवाणी भी हार मानने वाले नहीं हैं . उन्होंने एक कदम आगे बढ़ कर अपने आप को बीजेपी सबे महत्वपूर्ण चेहरा सिद्ध करने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया . प्रेस वार्ता में श्री आडवाणी ने बताया कि अभी कोई कोई तैयारी नहीं हुई है . यानी अभी यात्रा का नाम नहीं तय किया गया है .अभी उसका रूट नहीं तय किया गया है , अभी उसकी कोई शुरुआती रूपरेखा भी नहीं बनायी गयी है. बस केवल ऐलान किया जा रहा है . लगता है कि इस विषय पर किसी और यात्रा की घोषणा कहीं और से होने वाली थी . अपनी तरफ से यात्रा की घोषणा करके लाल कृष्ण आडवाणी ने अन्य किसी की पहल की संभावना को रोक दिया है .
दिलचस्प बात यह है कि आडवाणी ने यह यात्रा भ्रष्टाचार के खिलाफ निकालने की घोषणा की है लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या यह यात्रा रेड्डी बंधुओं के प्रभाव क्षेत्र बेल्लारी और नरेंद्र मोदी शासित गुजरात के अहमदाबाद से भी निकलेंगी तो आडवाणी जी ने कहा कि इस पर फैसला अभी नहीं किया गया है. इस बात को वे केवल सुझाव के रूप में लेने को तैयार थे. इसका भावार्थ यह हुआ कि वे राष्ट्रीय नेतृत्व में चल रहे घमासान के नतीजे को तो अपने पक्ष में कर लेना चाहते हैं लेकिन नरेंद्र मोदी, और बेल्लारी वाले रेड्डी बंधुओं को नाराज़ करने की अभी उनकी हिम्मत नहीं पड़ रही है . इस यात्रा से भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुए अन्ना हजारे के आयोजनों के स्वाभाविक नेता बनने की जो इच्छा आडवाणी जी मन में जागी है , वे उसे तुरंत भुना लेना चाहते हैं . ऐसा करने के कई फायदे हैं .. अन्ना हजारे ने जो माहौल बनाया है और भ्रष्टाचार विर्रोधियों की जो बड़ी जमात देश में खडी हो गयी है अब आडवाणी उसके स्वाभाविक नेता बन जायेगें . दूसरी बात बीजेपी में वे नितिन गडकरी को हमेशा के लिए हाशिये के सिपाही के रूप में फिक्स करने में सफल हो जायेगें . इस तरह से वह परम्परा भी बनी रहेगी कि आडवाणी जी की मर्जी के खिलाफ कोई भी बीजेपी नेता पार्टी का अध्यक्ष बन कर अपना अधिकार नहीं स्थापित कर सकता . राजनाथ सिंह .और मुरली मनोहर जोशी जैसे लोगों को आडवाणी जी ने नहीं जमने दिया था . नितिन गडकरी तो इन लोगों की तुलना में मामूली नेता है .
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शेष नारायण सिंह
Friday, September 9, 2011
बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने फिर किया रथयात्रा का ऐलान .
शेष नारायण सिंह
२००८ में लोक सभा में वोट के बदले नोट काण्ड में पकडे गए बीजेपी के सांसदों फग्गन सिंह कुलस्ते और महावीर सिंह भगोरा को जेल भेजे जाने से नाराज़ बीजेपी ने रथ यात्रा का ऐलान कर दिया है . आज संसद भवन में आयोजित के पत्रकार वार्ता में बीजेपी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा कि उनको फग्गन सिंह कुलस्ते, महावीर सिंह भगोरा और अशोक अर्गल के पैसे लेकर वोट देने की घटना की पूरी जानकारी थी . उन्होंने सरकार को आगाह किया कि उनकी पार्टी के सांसद वास्तव में भ्रष्टाचार की पोल खोलने का काम कर रहे थे . उन्हें अभियुक्त बनाना सरासर गलत है . श्री आडवाणी ने कहा कि अगर उनकी पार्टी के सांसदों को जेल भेजा गया है तो सरकार को चाहिए कि उन्हें भी जेल भेजे दे क्योंकि उन्हें पूरे काण्ड की जानकारी थी . इस मामले की जांच से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि श्री आडवाणी को भी उनके इस इक़बालिया बयान के लिए उसी धारा में बुक किया जा सकता है जिसमें उनके साथी जेल भेजे गए हैं . लेकिन आडवानी की गिरफ्तारी की किसी संभावना से अधिकारी इनकार कर रहे हिं क्योंकि उनका दावा है लाल कृष्ण आडवाणी उस काम में शामिल नहीं थे . पुलिस के पास ऐसे कोई सबूत नहीं है न. हालांकि उनके ख़ास सहायक सुधीन्द्र कुलकर्णी को उसी मामले में चार्ज शीट किया जा चुका है . वे दरअसल अपनी पार्टी के सदस्यों को नैतिक समर्थन देने के उद्देश्य से अपने शामिल होने की बात कर रहे हैं .
आडवाणी की प्रस्तावित रथ यात्रा से केंद्र सरकार के आला अधिकारियों में चिंता नज़र आई . श्री आडवाणी ने बताया कि उनके नई रथ यात्रा भी उनकी पुरानी सोमनाथ से अयोध्या वाली यात्रा जैसी ही होगी.लेकिन इस बार मुद्दा भ्रष्टाचार, स्वच्छ राजनीति और जनतांत्रिक संस्थाओं की सुरक्षा होगा .उन्होंने कहा कि यात्रा के एजेंडे में विदेशों में जमा ब्लैकमनी को वापस लाने की बात भी करेगें . अपनी प्रेस वार्ता में श्री आडवाणी ने एक से अधिक बार कहा उनकी पार्टी के अध्यक्ष से इस सम्बन्ध में बात हो चुकी है . यह यात्रा नवम्बर के पहले ही की जा सकती है क्योंकि लोक सभा के शीतकालीन सत्र के पहले वे यह काम निपटा लेना चाहते हैं . जब उनसे पूछा गया कि क्या वे अपनी पार्टी के भ्रष्टाचार के केन्द्रों बेल्लारी और अहमदाबाद भी जायेगें तो उन्होंने सकुचा कर कहा कि इस बात को वे सुझाव की तरह मान रहे हैं और इस पर विचार किया जाएगा. जानकार बताते हैं कि इस यात्रा में शायद वह बीजेपी के भ्रष्टाचार के कारनामों को बचाना चाहें क्योंकि वे बेल्लारी और अहमदाबाद के बारे में दुविधा की बात करके कई तरह की शंकाओं को जन्म दे रहे हैं.
लाल कृष्ण आडवाणी की भ्रष्टाचार विरोधी यात्रा देश की राजनीति में हलचल लाने के लिए काफी इमानी जा रही है . अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन की वजह से देश में आजकल भ्रष्टाचार के खिलाफ ज़बरदस्त माहौल है . ज़ाहिर है भ्रष्टाचार से ऊब चुकी जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी भी मुहिम को समर्थन दे सकती है .लेकिन कांग्रेसी सूत्र बताते हैं कि आडवाणी की यह यात्रा अन्ना हजारे के आन्दोलन को अपना लेने की है लेकिन अन्ना हजारे कभी भी अपने आन्दोलन को बीजेपी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को हासिल करने के लिए कुरबान नहीं करेगें . हालांकि बी जे पी वालों का भी मानना है कि इस यात्रा से लाल कृष्ण आडवाणी अपनी पार्टी में एक बार फिर सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित हो जायेगें अगर ऐसा हुआ तो नितिन गडकरी को निश्चित रूप से राजनीतिक नुकसान होगा क्योंकि जब तक श्री आडवाणी की रथ यात्रा चलेगी ,तब तक बीजेपी की मीडिया प्रबंधन की सारी मशीनरी उसी में लगी रहेगी. और गडकरी अखबारों की सुर्ख़ियों से उस दौर में हटने के लिए मजबूर हो जायेगे,.
Thursday, September 8, 2011
इस बार दिल्ली पुलिस को बलि का बकरा बनाने की कोशिश
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली ,७ सितम्बर .दिल्ली हाई कोर्ट के गेट नंबर ५ पर हुए धमाके ने राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं .धमाके के कारणों और अन्य बातों की जानकारे धीरे धीरे आये गी लेकिन एक बात लगभग पक्की है कि हाई कोर्ट पर हुआ धमाका सरकारी अलगरजी के कारण हुआ है .दिल्ली की सुरक्षा से सम्बंधित जिन लोगों से भी बात हुई ,सब का कहना है कि यह पूरी तरह से सरकारी असफलता का नमूना है .दिल्ली पुलिस को बलि का बकरा बनाने की तैयारी उसी वक़्त शुरू हो गयी जब गृहमंत्री ने लोकसभा में बयान दे दिया कि दिल्ली पुलिस को जुलाई में संभावित धमाके के बारे में बता दिया गया था . उसके बाद कई हलकों से यह खबर प्लांट करने की कोशिश की जा रही है कि हाई कोर्ट की पार्किंग में साढ़े तीन महीने हुए पहले धमाके के बाद दिल्ली पुलिस को सी सी टीवी और कैमरे लगाने को कहा गया था लेकिन उसने कोई परवाह नहीं की. दिल्ली पुलिस के एक ज़िम्मेदार सूत्र का दावा है कि दोनों ही बातें गलत हैं. लेकिन देश के गृहमंत्री के बयान को उनके अधीन काम करने वाला कोई भी अधिकारी ऐलानियाँ गलत नहीं बता सकता .ऐसा करने पर उसकी नौकरी जायेगी . लेकिन सच्चाई को बताने के लिए दिल्ली पुलिस के कुछ अधिकारियों ने नया तरीका निकाला है. सरकार ने दिल्ली पुलिस को जांच के दायरे से बाहर कर दिया है और एन आई ए को जांच का ज़िम्मा दे दिया है .
पुलिस सूत्रों का कहना है कि गृह मंत्री पी चिदंबरम का लोकसभा में दिया गया बयान बिलकुल सही नहीं है . गृह मंत्री ने दिल्ली पुलिस को दी गयी जिस चेतावनी की बात लोकसभा में की वह केंद्रीय खुफिया विभाग, आई बी से हर महीने आने वाली एक रूटीन चेतावनी मात्र है . जिसमें कहा गया था कि दिल्ली पुलिस को बहुत चौकन्ना रहना पड़ेगा क्योंकि सितम्बर में महत्वपूर्ण ठिकानों पर आतंकी हमले हो सकते हैं . अधिकारियों का कहना है कि इस तरह की चेतावनी अमरीका पर हुए ११ सितम्बर २००१ के हमलों के बाद हर साल आती है . आई बी ने हाई कोर्ट पर हमले के बारे में कोई विशेष आशंका नहीं जताई थी. सी सी टी वी और कैमरों की बात पर दिल्ली पुलिस का कहना है कि हाई कोर्ट के रजिस्टार जनरल ने पी डब्ल्यू डी विभाग को मई के विस्फोट के तुरंत बाद ही दिल्ली पुलिस के सुझाव पर सी सी टी वी कैमरे लगाने के लिए कह दिया था. जब कि पी डब्ल्यू डी वालों का कहना है कि हाई कोर्ट में सी सी टी वी कैमरे लगाने के लिए टेंडर के ज़रिये प्रक्रिया शुरू कर दी गयी थी. और एक हफ्ते के अंदर कैमरे लग जायेगें.उनके अनुसार वे नियमानुसार ही काम कर सकते हैं . उनके पास कोई भी सामान बाज़ार से जाकर खरीद कर लाने के पावर नहीं है . हाँ अगर सरकार किसी काम को अर्जेंट समझती है तो वह वह विशेष पावर दे सकती है . मिसाल के तौर पर कामनवेल्थ गेम्स में सभी सरकारी विभागों एक पास अर्जेंट आधार पर खरीद करने के पावर थे . अधिकारियों को शक़ है कि गृहमंत्री का बयान आई बी वालों ने तैयार करके उन्हें दे दिया था . वह बयान आई बी एके किसी अफसर का बयान लग रहा था , देश के गृहमंत्री का तो बिलकुल नहीं .
गृहमंत्री ने कुछ देर बाद जो बयान दिए वे मामले की गंभीरता के अनुरूप थे. उन्होंने कहा कि जांच का काम अब दिल्ली पुलिस के पास नहीं है , अब आतंकवादी मामलो की जांच के लिए बनाए गए ख़ास संगठन एन आई ए को जांच का ज़िम्मा दे दिया गया है . लगभग तुरंत ही एन आई ए के निदेशक, एस सी सिन्हा ने बताया कि उन्होंने जांच के लिए विशेष टीम बना दी है जिसका कमांड डी आई जी रैंक का एक आई पी एस अफसर करेगा. इस काम में सब की मदद ली जायेगी.
उधर दिल्ली पुलिस के मौजूदा कमिश्नर की नेतृत्व क्षमता पर तरह तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं दिल्ली में फैले अपराधतंत्र का वे कुछ भी नहीं बिगाड़ पा रहे हैं. अन्ना हजारे और राम देव के मामले में भी उनकी लीडरशिप को बहुत ही लचर पाया गया था . वैसे भी दिल्ली में आजकल की पुलिस व्यवस्था बहुत ही कमज़ोर है , अपराधी बेलगाम हैं . चारों तरफ से सवालों में घिर चुकी दिल्ली पुलिस के अफसरों के आफ द रिकार्ड बयान केंद्र सरकार को बहुत ही मुश्किल में डाल सकते हैं .इस बीच हरकत-उल-जिहाद नाम के एक संगठन ने धमाके की ज़िम्मेदारी ली है लेकिन उसकी मेल जो अखबारों के दफ्तरों में आई है वह उसकी विश्वसनीयता पर शंका पैदा करती है . एक तो इस नाम का कोई आतंकवादी संगठन अब तक नोटिस में पूरी दुनिया में कहीं नहीं आया. वैसे इसका नाम हरकत-उल-जिहादे इस्लामी से मिलता जुलता है लेकिन ई मेल भेजने वाले का बिलकुल अलग है . साइबर पुलिस उसके सर्वर की जांच कर रही है .अफसरों को शक़ है कि कहीं यह ई मेल जांच से ध्यान हटाने के लिए तो नहीं भेज दिया गया . बहरहाल एन आई के निदेशक ने कहा है कि इस ई मेल को बहुत ही गम्भीरता से लिया जा रहा है . जांच करते वक़्त आतंक के हर पहलू पर गौर किया जा रहा है .
Monday, September 5, 2011
मेरे बच्चे मुझसे अच्छे हैं
शेष नारायण सिंह
मुझे जीवन में करीब पांच साल शिक्षक के रूप में काम करने का मौक़ा मिला. पहली बार १९७३ में जब मैं एक डिग्री कालेज में इतिहास मास्टर था . दो साल बाद निराश होकर वहां से भाग खड़ा हुआ . वहां बी ए के बच्चों को इतिहास पढ़ाया था मैंने . वे बच्चे मेरी ही उम्र के थे. कुछ उम्र के लिहाज़ से मेरे सीनियर भी रहे होंगें . लेकिन आज तक हर साल ५ सितम्बर के दिन वे बच्चे मुझे याद करते हैं . कुछ तो टेलीफोन भी कर देते हैं . दुबारा २००५ में फिर एक बार शिक्षक बना . इस बार पत्रकारिता पढाता था. तीन बैच के बच्चे मेरे विद्यार्थी हुए . यह दौर मेरे लिए बहुत उपयोगी था. पत्रकारिता का जो सैद्धांतिक पक्ष है उसके बारे में बहुत जानकारी मुझको मिली. अपनें विद्यार्थियों के साथ साथ मैं भी नई बातें सीखता रहा . तीन साल बाद नौकरी से अलग हो गया . शायद वहां मेरा काम पूरा हो चुका था . लेकिन इन वर्षों में मैंने जिन बच्चों को पढ़ाया उन पर मुझे गर्व है . समय की परेशानियों के चलते उन बच्चों को वैसी नौकरी नहीं मिली जैसी मिलनी चाहिए थी . लेकिन मुझे मालूम है कि वे अपने दौर के बेतरीन पत्रकार हैं .अगर उन्हें मौक़ा मिला तो वे अपने संगठन को बुलंदियों पर ले जायेगें. मेरी इच्छा है कि कुछ संगठन आगे आयें और उन बच्चों को मौक़ा दें , जो लोग मुझे अच्छा पत्रकार मानते हैं मैं उनसे अपील करता हूँ कि वे मेरे बच्चों पर नज़र डालें . वे सब मुझसे बेहतर पत्रकार हैं . आज बहुत से बच्चों नें मुझे याद किया है . मैं भी उन सबसे कहना चाहता हूँ मुझेभी तुम्हारी बहुत याद आती है मेरे बच्चो. देर हो रही है लेकिन तुम सब पत्रकारिता की बुलंदियों तक जाओगे. ठोकर खाकर कभी नहीं परेशान होना . मैं जानता हूँ कि तुम लोग हर हाल में बहुत ऊंचाई तक जाओगे.
अब पता चला कि मुंबई के राजपूत लीक से हटकर क्यों हैं
शेष नारायण सिंह
मुंबई में इस बार मुझे एक बहुत ही अजीब बात समझ में आई. आमतौर पर अपनी बिरादरी की पक्षधरता से मैं बचता रहा हूँ. उत्तर प्रदेश में ज़मींदारी उन्मूलन के आस पास जन्मे राजपूत बच्चों ने अपने घरों के आस पास ऐसा कुछ नहीं देखा है जिस पर बहुत गर्व किया जा सके. अपने इतिहास में ही गौरव तलाश रही इस पीढी के लिए यह अजूबा ही रहा हाई कि राजपूतों पर शोषक होने का आरोप लगता रहा है . हालांकि शोषण राजपूत तालुकेदारों और राजओंने किया होगा लेकिन शोषक का तमगा सब पर थोप दिया जाता रहा है .. आम राजपूत तो अन्य जातियों के लोगों की तरह गरीब ही है . मैंने अपने बचपन में देखा है कि मेरे अपने गांव में राजपूत बच्चे भूख से तडपते थे.मेरे अपने घर में भी मेरे बचपन में भोजन की बहुत किल्लत रहती थी. इसलिए राजपूतों को एक वर्ग के रूप में शोषक मानना मेरी समझ में कभी नहीं आया. लेकिन सोशलिस्टिक पैटर्न आफ सोसाइटी और बाद में वामपंथी सोच के कारण कभी इस मुद्दे पर गौर नहीं किया . संकोच लगता था . मेरे बचपन में मेरे गाँव में राजपूतों के करीब १६ परिवार रहते थे .अब वही लोग अलग विलग होकर करीब ४० परिवारों में बँट गए हैं . मेरे परिवार के अलावा कोई भी ज़मींदार नहीं था . सब के पास बहुत मामूली ज़मीन थी. कई लोगों एक हिस्से में तो एक एकड़ से भी कम ज़मीन थी. तालाब और कुओं से सिचाई होती थी और किसी भी किसान के घर साल भर का खाना नहीं पूरा पड़ता था . पूस और माघ के महीने आम तौर पर भूख से तड़पने के महीने माने जाते थे. जिसके घर पूरा भी पड़ता था उसके यहाँ चने के साग और भात को मुख्य भोजन के रूप में स्वीकार कर लिया गया था. मेरे गांवमें कुछ लोग सरकारी नौकरी भी करते थे हालांकि अपने अपने महकमों में सबसे छोटे पद पर ही थे. रेलवे में एक स्टेशन मास्टर ,तहसील में एक लेखपाल और ग्राम सेवक और एक गाँव पंचायत के सेक्रेटरी . तीन चार परिवारों के लोग फौज में सिपाही थे . सरकार में बहुत मामूली नौकरी करने वाले इन लोगों के घर से भूखे सो जाने की बातें नहीं सुनी जाती थीं . बाकी लोग जो खेती पर ही निर्भर थे उनकी हालत खस्ता रहती थी . लेकिन जब हम बड़े हुए और डॉ लोहिया की समाजवादी सोच से प्रभावित हुए तो मेरी समझ में आया कि राजपूत तो शोषक होते हैं ,लेकिन जब मैं अपने गाँव के राजपूतों को देखता था तो मुझे लगता था कि मेरे गाँव के लोग भी तो राजपूत हैं लेकिन शोषक होना तो दूर की बात ,वे तो शोषण के शिकार थे. बाद में समझ में आया कि चुनावी राजनीति में कांग्रेस के एकाधिकार को खत्म करने के उद्देश्य से राजनीतिक बिरादरी ने कुछ ऐसी जातियां मार्क कर दी थीं जिनके खिलाफ पिछड़ी और दलित जातियों को संगठित किया जा सके. हालांकि उस काममें वे सफल नहीं हुए .सवर्ण जातियों को गरिया कर पिछड़ी जातियों के वोट तो हाथ आ गए लेकिन बाद में मायावती और कांशी राम के नेतृत्व में उन्हीं पिछड़ी जातियों के खिलाफ दलित जातियों ने मोर्चा खोला और आज उत्तर प्रदेश में सबसे ऊंची ब्राहमण जाति के लोग मायावती के साथ हैं जबकि राजपूत वोट बैंक के रूप में विकसित हो चुका है और उसे अपनी तरफ खींचने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां कोशिश कर रही हैं .आज राजपूतों के एक बहुत बड़े वर्ग के लोग गरीबी की रेखा के बहुत नीचे रह रहे हैं . हालांकि यह भी सच है कि इसी बिरादरी से आने वाले बहुत सारे लोगों ने उत्तर प्रदेश में राजनीति का सहारा लेकर अच्छी खासी ताक़त अर्जित कर ली है . लेकिन वे माइनारिटी में हैं .उत्तर प्रदेश के अवध इलाके में स्थित अपने गांव के हवाले से हमेशा बात को समझने की कोशिश करने वाले मुझ जैसे इंसान के लिए यह बात हमेशा पहेली बनी रही कि सबसे गरीब लोगों की जमात में खड़ा हुआ मेरे गाँव का राजपूत शोषक क्यों करार दिया जाता रहा है . मेरे गाँव के राजपूत परिवारों में कई ऐसे थे जो पड़ोस के गाँव के कुछ दलित परिवारों से पूस माघ में खाने का अनाज भी उधार लाते थे . लेकिन शोषक वही माने जाते थे.
बाद में समझ में आया कि मेरे गाँव के राजपूतों के पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण शिक्षा की उपेक्षा रही है . जिन घरों के लोग पढ़ लिख गए वे आराम से रहने लगे थे . वरना पिछड़ेपन का आलम तो यह है कि इस साल राज्य सरकार ने जब सफाईकर्मी भर्ती करने का फैसला किया तो मेरे गाँव के कुछ राजपूत लड़कों ने दरखास्त दिया था. जब गाँव से बाहर निकल कर देखा तो एक और बात नज़र आई कि हमारे इलाके में जिन परिवारों के लोग मुंबई में रहते थे उनके यहाँ सम्पन्नता थी. मेरे गाँव के भी एकाध लोग मुंबई में कमाने गए थे .वे भी काम तो मजूरी का ही करते थे लेकिन मनी आर्डर के सहारे घर के लोग दो जून की रोटी खाते थे . मेरे ननिहाल में लगभग सभी संपन्न राजपूतों के परिवार मुंबई की ही कमाई से आराम का जीवन बिताते थे.ननिहाल जौनपुर जिले में है. २००४ में जब मुझे मुंबई जाकर नौकारी करने का प्रस्ताव आया तो जौनपुर में पैदा हुई मेरी माँ ने खुशी जताई और कहा कि भइया चले जाओ , बम्बई लक्ष्मी का नइहर है . बात समझ में नहीं आई . जब मुंबई में आकर एक अधेड़ पत्रकार के रूप में अपने आपको संगठित करने की कोशिश शुरू की तो देखा कि यहाँ बहुत सारे सम्पन्न राजपूत रहते हैं . देश के सभी अरबपति ठाकुरों की लिस्ट बनायी जाय तो पता लगेगा कि सबसे ज्यादा संख्या मुंबई में ही है . दिलचस्प बात यह है कि इनमें ज्यादातर लोगों के गाँव तत्कालीन बनारस और गोरखपुर कमिश्नरियों में ही हैं .कभी इस मसले पर गौर नहीं किया था. इस बार की मुंबई यात्रा के दौरान कांदिवली के ठाकुर विलेज में एक कालेज के समारोह में जाने का मौक़ा मिला . वहां राष्ट्रीय राजपूत संघ के तत्वावधान में उन बच्चों के सामान में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिनको २०११ की परीक्षाओं में बहुत अच्छे नंबर मिले थे. बहुत बड़ी संख्या में ७० प्रतिशत से ज्यादा नंबर पाने वाले बच्चों की लाइन लगी हुई थी और राजपूत समाज के ही सफल,संपन्न और वारिष्ठ लोगों के हाथों बच्चों को सम्मानित किया जा रहा था. वहां जो भाषण दिए गए उसे सुनकर समझ में आया कि मामला क्या है . उस सभा में मुंबई में राजपूतों के सबसे आदरणीय और संपन्न लोग मौजूद थे.उस कार्यक्रम में जो भाषण दिए गए उनसे मेरी समझ में आया कि माजरा क्या है . मुम्बई में आने वाले शुरुआती राजपूतों ने देखा कि मुंबई में काम करने के अवसर खूब हैं . उन्होंने बिना किसी संकोच के हर वह काम शुरू कर दिया जिसमें मेहनत की अधिकतम कीमत मिल सकती थी. और मेहनत की इज्ज़त थी .शुरुआत में तबेले का काम करने वाले यह लोग अपने समाज के अगुवा साबित हुए. उन दिनों माहिम तक सिमटी मुंबई के लोगों को दूध पंहुचाने कम इन लोगों ने हाथ में ले लिया . जो भी गाँव जवार से आया सबको इसी काम में लगाते गए. आज उन्हीं शुरुआती उद्यमियों के वंशज मुंबई की सम्पन्नता में महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है . साठ और सत्तर के दशक में जो लोग मुंबई किसी मामूली नौकरी की तलाश में आये ,उन्होंने भी सही वक़्त पर अवसर को पकड़ा और अपनी दिशा में बुलंदियों की तरफ आगे चल पड़े,. आज शिक्षा का ज़माना है . प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने बारम्बार कहा है कि भारत को शिक्षा के एक केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा. मुंबई के राजपूत नेताओं ने इस बयान के आतंरिक तत्व को पहचान लिया और आज उत्तर प्रदेश से आने वाले राजपूतों ने शिक्षा के काम में अपनी उद्यमिता को केन्द्रित कर रखा है .उत्तरी मुंबई में कांदिवली के ठाकुर ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशनस की गिनती भारत के शीर्ष समूहों में होती है . इसके अलावा भी बहुत सारे ऐसे राजपूत नेताओं को मैं जानता हूँ जिन्होंने शिक्षा को अपने उद्योग के केंद्र में रखने का फैसला कर लिया है . लगता है कि अब यह लोग शिक्षा के माध्यम से उद्यम के क्षेत्र में भी सफलता हासिल करेगें और आने वाली पीढ़ियों को भी आगे ले जायेगें .बहरहाल मेरे लिए यह यात्रा बहुत शिक्षाप्रद रही क्योंकि भारतीय सामाजिक जीवन के एक अहम पहलू पर बिना किसी अपराधबोध के दौर से गुजरे हुए मैंने एक सच्चाई लिख मारी .
Saturday, September 3, 2011
अन्ना की टीम के किसी बन्दे को भ्रष्ट कहने वाले अच्छे लोग नहीं हैं .
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,२ सितम्बर.अन्ना हजारे की टीम के ख़ास सदस्यों को घेरने की केंद्र सरकार की नीति को आज अरविंद केजरीवाल ने आड़े हाथों लिया .उन्होंने कहा कि अन्ना हजारे के आन्दोलन की धार को कमज़ोर करने के लिए कांग्रेस पार्टी के हुकुम के बाद उनके पुराने विभाग़ ने सक्रियता दिखाई है . उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार अन्ना हजारे की कोर टीम को दौंदियाने की कोशिश कर रही है . उनका दावा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मैदान ले चुकी इस देश की जनता सरकार की इस कोस्शिश को कभी भी बर्दाश्त नहीं करेगी. अरविंद केजरीवाल आज प्रेस से मुखातिब थे . उनके साथ उनके ख़ास साथी प्रशांत भूषण और किरण बेदी भी मौजूद थे. उधर सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि उनकी टीम के दिल्ली के सदस्यों के दागदार साबित होने के बाद अन्ना हजारे इन लोगों को अपने साथ नहीं रखेगें. सरकार को भरोसा है कि अन्ना की छवि बिलकुल साफ़ है और वे जब भी उनके साथी दागदार पाए जाते हैं , वे उन्हें अपनी टीम से ड्राप कर देते हैं . ऐसा वे महाराष्ट्र में चलाए गए अपने हर आन्दोलन के बाद कर चुके हैं .
केंद्र सरकार ने अरविंद केजरीवाल को घेरने की कवायद शुरू कर दी है . जब वे इनकम टैक्स विभाग में अफसर थे ,उस समय की कुछ गड़बड़ियों को कल सरकार की तरफ से मीडिया के फोकस में लाया गया था. केजरीवाल ने आज केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाया और कहा कि जिस नोटिस को आज हर अखबार ने प्रमुखता से छापा है वह सरकार की उस योजना का नमूना है जिसके तहत वह अन्ना हजारे की टीम के ख़ास लोगों शक़ के दायरे में लेने की कोशिश कर रही है . उन्होंने कहा कि उनके ऊपर जो ९ लाख रूपये की गड़बड़ी का आरोप लगाया गया है वह बेबुनियाद है . अरविंद केजरीवाल की बात पर कोई भी सरकारी अधिकारी बयान देने को तैयार नहीं है लेकिन खुसुर पुसुर अभियान पूरी तरह से चल रहा है . इसके पहले प्रशांत भूषण के पिता शान्ति भूषण की सी डी के मामले को भी प्रेस को लीक कर दिया गया था . उस सी डी को अमर सिंह ने प्रशांत भूषण और शान्ति भूषण को भ्रष्ट साबित करने के लिए अदालत में पेश किया था . दिल्ली पुलिस अन्ना हजारे के अनशन के ख़त्म होने के बाद उस सी डी के बारे में दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल कर दिया .. यानी पुलिस मानती है कि उस मामले को साबित करने के बारे वह गंभीर नहीं है लेकिन उस सी डी के असली होने की बात को पब्लिक कर दी गयी . सच्चाई यह है कि सी डी को जिसने सुना है उसके मन में शान्ति भूषण और प्रशांत भूषण के बारे में शक़ होना स्वाभाविक है क्योंकि मुलायम सिंह यादव से जो बातचीत उसमें सुनायी पड़ रही है वह पूरी तरह से स्पष्ट है और शान्ति भूषण प्रशांत की उस क्षमता का ज़िक्र कर रहे हैं जिसके अनुसार वे जजों को मैनेज कर सकते हैं . . इस सी डी का मकसद भी अन्ना की टीम के दो ताक़तवर लोगों को धूमिल करने की कोशिश ही नज़र आती है . आज दिल्ली विकास प्राधिकरण के एक अधिकारी से बात करने पर पता लगा कि सरकार अन्ना की टीम की एक अन्य सदस्य किरण बेदी की एन जी ओ जुडी कुछ बातों को पब्लिक डोमेन में डालने की बात कर रही है . डी डी ए में चर्चा है कि किरण बेदी ने अपने एन जी ओ के लिए कुछ मकान अनाधिकृत तरीके से लेने की कोशिश की थी. इसका मतलब यह हुआ कि किरण बेदी को भी शक़ के दायरे में लाने की कोशिश शुरू हो गयी है . किरण बेदी की ख्याति बहुत ही ईमानदार अफसर की रही है लेकिन सरकार उनको भी घेरने की कोशिश कर रही है .
जब सरकार की हताशा के ज़िक्र सत्तापक्ष के एक बड़े नेता से किया गया तो उनका कहना था कि इन आरोपों के बाद अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण की छवि निश्चित रूप से धूमिल होगी और जो लोग अन्ना हजारे को जानते हैं उनका दावा है कि अपने साथ किसी भी दागदार आदमी को कभी न रखने वाले अन्ना हजारे अपनी टीम में फेरबदल भी कर सकते हैं .
अन्ना हजारे को सबसे बड़ा ब्रैंड बनाने वाले पत्रकार थे या कोई और ?
शेष नारायण सिंह
अपना अनशन समाप्त करने के बाद गुडगाँव के एक अस्पताल में २-३ दिन तक स्वास्थ्य लाभ करके अन्ना हजारे वापस अपने गाँव चले गए. यह खबर आज देश के हिन्दी के सबसे बड़े अखबार में पहले पेज पर छपी है .खबर गुडगाँव के संवाददाता की है और ,एक कालम की यह खबर करीब १०० शब्दों में निपटा दी गयी है . देश के सबसे बड़े अंग्रेज़ी अखबार में भी यह खबर पहले पेज पर संक्षिप्त छापी गयी है .यानी अब प्रिंट मीडिया को अन्ना हजारे और उनकी राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी नहीं बची है . लेकिन टेलिविज़न मीडिया ने कल शाम को जब अन्ना हजारे अस्पताल से निकले तो उस विदाई को मीडिया इवेंट बनाने की पूरी कोशिश की . कुछ चैनलों पर अन्ना हजारे की अस्पताल से विदाई की खबरों को देखने का मौका मुझे भी मिला. हेडलाइन थी कि अन्ना हजारे को अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी है . एक कार में ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठ कर अन्ना हजारे को जाते हुए दिखाया गया था. वही सफ़ेद गांधी टोपी, वही सफ़ेद कुरता और वही सौम्य मुस्कान . . करीब ३ सेकण्ड का यह शाट बार बार दिखाया गया . साथ में न्यूज़ रीडर की आवाज़ भी कानों में पंहुच रही थी कि अन्ना हजारे को अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी है . उसी शाट को करीब २५ मिनट तक लगातार दिखाया गया और एक ही वाक्य को न्यूज़रीडर तरह तरह से बोलता रहा. कभी कहता कि अन्ना हजारे को असपताल से छुट्टी दे दी गयी है . और वे कहीं जा रहे हैं . . फिर कहता कि हम आपको इस बारे में पल पल की जानकारी दे रहे हैं . अब हम गुडगाँव से चलते हैं जहां हमारे संवाद दाता मिस्टर अमुक लाइव जुड़ रहे हैं . और अब वे पल पल की जानकारी देंगें . लाइव संवाददाता भी वही वाक्य कुछ फेर बदल करके सुनाते और कहते कि अभी पता नहीं है कि अन्ना को कहाँ ले जाया जा रहा है . यह भी नहीं पता कि उनके साथ कौन कौन हैं . यह भी नहीं पता कि वे कहाँ जा रहे हैं . यानी करीब ७ वाक्य ऐसे होते थे कि लाइव संवाद दाता को पता ही नहीं कि खबर क्या है लेकिन टेलिविज़न पर हैं तो कुछ न कुछ तो बोलते ही रहना है लिहाजा कुछ ऐसे वाक्य बोलते रहे जिन वाक्यों को न्यूज़ रीडर और लाइव संवाददाता ने मिलकर २५ मिनटों में सैकड़ों बार बोला होगा. बार बार लगता था कि बीच में यह न्यूज़ रीडर थोडा समय निकाल कर उन खबरों के बारे में भी बता देगा जिससे देश को पता चलता कि उत्तर भारत के बहुत सारे इलाकों में भारी बाढ़ आई हुई है . कुछ इलाकों में लोग पेड़ों पर रह रहे हैं , कुछ इलाकों में लोग बाढ़ की वजह से पूरी तरह से अलग थलग पड़ गए हैं और भूख से तड़प रहे हैं . लेकिन ऐसा कहीं होता नहीं दिखा . शाम को भी कुछ चैनलों को देखने का मौक़ा मिला . वहां भी कुछ ऐसी बहसें चल रही थीं जिनको देख कर लगता ही नहीं था कि असली भारत किन मुसीबतों से जूझ रहा है. राजीव गांधी के हत्यारों की फांसी और अफज़ल गुरु की फांसी की राजनीतिक विवेचना भी कुछ चैनलों पर नज़र आई. लेकिन इन खबरों को आज अखबारों ने वह इज्ज़त नहीं दी है जो रुतबा इन का कल के टी वी चैनलों पर देखने को मिला .
ज़ाहिर है कि भारतीय मीडिया की प्राथमिकताएं खबर की औकात से नहीं किसी अन्य कारण से तय होती हैं . कुछ कठोर आलोचक टी वी न्यूज़ की प्राथमिकता को तय करने का पैमाना टी आर पी को बता कर टी वी चैनलों को बहुत ही स्वार्थी संगठन के रूप में पेश करने की कोशिश करते हैं . उस तर्क से तो टी वी चैनल इंसान की कमजोरी का बौद्धिक शोषण करने वाले संगठन के रूप में मान लिए जायेगें . आम तौर पर इंसान की यह कमजोरी होती है कि वह अपने बारे में खबर देख कर बहुत खुश होता है .हालांकि कई ज्ञानी टी वी संपादक इस बात को सेमिनारों आदि में इस बात को खुद स्वीकार करते पाए जाते हैं लेकिन उन्हें शायद मालूम ही नहीं है कि वे क्या स्वीकार कर रहे हैं . टी आर पी के दबाव में खबरों को प्रस्तुत करने की बात को कुछ हद तक तो स्वीकार किया जा सकता है लेकिन यह पूरी तरह से सच नहीं है .भारत में टेलिविज़न की बहुत सारी खबरों ने इतिहास रचा है . उन सबको यहाँ दुहराना समीचीन नहीं होगा लेकिन समकालीन भारत के राजनीतिक इतिहास में कुछ ऐसी खबरें ज़रूर हैं जिनके कारण बहुत बड़े बड़े घोटाले पब्लिक डोमेन में आये. कामनवेल्थ खेलों के घोटाले, २ जी स्पेट्रम के घोटाले आदि ऐसे उदाहरण हैं जिनको फोकस में लाने में टेलिविज़न चैनलों का भारी योगदान है . बंगारू लक्ष्मण नाम के नेता को नोटों के बण्डल संभालते दिखाकर टेलिविज़न ने भ्रष्टाचार की रिपोर्टिंग में एक संगमील स्थापित किया था . लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है इस तरह की खबरें उँगलियों पर गिनी जा सकती हैं . कामनवेल्थ खेल और २ जी वाला घोटाला तो देश के राजनीतिक विकास में भारी योगदान कर रहा है . कांग्रेस को एक भ्रष्ट पार्टी के रूप में चिन्हित करने में इन खबरों का बहुत बड़ा योगदान है . लेकिन जब टेलिविज़न एक व्यक्ति के अनशन को राष्ट्रीय एजेंडा पर लाने की कोशिश करता है तो बात अजीब लगती है . टेलिविज़न की कृपा से ही ब्रैंड अन्ना अगस्त के दूसरे पखवाड़े के समय काल में १० दिनों का विज्ञापन की दुनिया का सबसे बड़ा भारतीय ब्रैंड बन सका . विज्ञापन की दुनिया से जुड़े लोगों का कहना है किसी एक आदमी को १५ दिन के अंदर देश का टाप ब्रैंड बनाना कोई मामूली सफलता नहीं है . उसके लिए बहुत बड़े पैमाने पर प्लानिंग की ज़रूरत होती है . देश के आम आदमी को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि किसी को ब्रैंड बनाने के लिए कितनी प्लानिंग की गयी और कितनी नहीं की गयी. लेकिन उसे इस बात से ज़रूर मतलब है कि वह टेलिविज़न पर ऐसी ख़बरों को देखे जिस से उसकी जानकारी बढे. यहाँ कम्युनिकेशन थियरी के महान विद्वानों मार्शल मैक्लुहान और रेमंड विलियम्स के विचारों का हवाला देकर कोई प्वाइंट स्कोर करने की मंशा नहीं है लेकिन आम आदमी की उस जिज्ञासा को ज़रूर रेखांकित किया जाना चाहिए कि वह उन खबरों को ही देखे जो उसकी जानकारी में वृद्धि करें. अगर जानकारी में वृद्धि करने के बाद कोई खबर बार बार श्रोता के सर पर हथौड़े की तरह काम कर रही है तो उसे विज्ञापन कहा जायेगा. यहाँ इस बहस में भी जाने की ज़रुरत नहीं है कि पंद्रह दिनों तक टेलिविज़न पर अन्ना हजारे की जो ब्रैंड बिल्डिंग की गयी उसका उद्देश्य क्या था और उस उद्देश्य को हासिल करने के लिए टेलिविज़न टाइम कौन मुहैया करवा रहा था लेकिन यह बात सच है कि समाचार की जितनी भी परिभाषाएं अब तक जानकारी में आई हैं उनके अनुसार १५ दिन तक टेलिविज़न पर चला अन्ना हजारे का अभियान किसी भी सूरत में खबर की श्रेणी में नहीं आता . हाँ अगर यह मान लिया जाय कि वह ब्रैंड बिल्डिंग का एक आयोजन था तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी. आज के अखबारों में छपी अन्ना हजारे से सम्बंधित ख़बरों को जो मामूली ट्रीटमेंट हुआ है उसे देख कर समझ में आ जाता है कि पत्रकार बिरादरी तो अन्ना हजारे वाली ख़बरों को सही समझ रही थी लेकिन जो नज़र आ रहा था वह पत्रकारों के कारण नहीं नज़र आ रहा था. बार बार सवाल उठता है कि कहीं वह ब्रैंड मैनेजरों का काम तो नहीं था.
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Friday, September 2, 2011
ताकि सड़क पर कोई मासूम घायल न हो
शेष नारायण सिंह
नोयडा,१ सितम्बर . शहर में बढ़ रहे वाहनों और बेलगाम ड्राइवरों से घबडा कर शहर में सडक दुर्घटना रोकने का एक नागरिक प्रयास चल रहा है .' राही ' नाम की एक स्वयंसेवी संस्था ने सड़क दुर्घटना रोकने को संस्थागत रूप देने की दिशा में एक अहम क़दम उठाया है . संगठन की कोशिश है कि आने वाले कुछ महीनों में नोयडा में एक ऐसे संस्थान की स्थापना की जाए जहां सड़क दुर्घटना को रोकने के तरीकों पर तरह तरह के आयोजन किये जायेगें. फिलहाल अभी शहर में छठवीं, सातवीं और आठवीं के बच्चों को सड़क दुर्घटना रोकने और उस से बचने के लिए जनजागरण की योजना को बहुत ही मामूली स्तर पर चलाया जा रहा है .
' राही ' की निगरानी में रोड एक्सीडेंट प्रिवेंशन इंस्टीटयूट शुरू करने की योजना क अंतिम रूप दिया जा चुका है , जहां सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने की कोशिश को बहुत ही गंभीर सामाजिक और मेडिकल समस्या के रूप में उठाया जाएगा . शहर के तीन डाक्टरों , श्रीमती ( डॉ) गुंजन धारी ,डॉ वी पी सिंह और डॉ इब्राहीम ने मिलकर शुरुआती योजना २००४ में बनायी थी . आर्थिक उदारीकरण के बाद शहर में वाहनों की संख्या में हो रही बेलगाम वृद्धि और उसकी वजह से हो रही दुर्घटनाओं से यह लोग विचलित थे . वाहनों की संख्या या ड्राइवरों के आचरण पर काबू पाना तो बहुत ही कठिन काम है . इन लोगों ने सोचा कि सड़क को दुर्घटनामुक्त करने की कोशिश की जाए. उसी संकल्प के नतीजे के रूप में इस संगठन ने जन्म लिया .सड़क दुर्घटना के शिकार होने वालों में सबसे ज्यादा संख्या में बच्चों की होती है . इस लिए अभी कम उम्र के बच्चों को की टार्गेट किया गया है . दिल्ली और आस पास के शहरों में बहुत तेज़ कार चलाने वालों में बहुत बड़ी तादाद १८ से २५ साल के नौजवानों की होती है . ' राही ' की कोशिश है कि जब १० से १४ साल के बच्चे कार चलाने की उम्र में पंहुचें तो वे सड़क हादसों की भयावहता से पूरी तरह से परिचित हों. मकसद साफ़ है . वे चाहते हैं कि सड़क पर बच्चे न तो मरें, न ही अपाहिज हों और न ही घायल हों . अगर दुर्घटना हो ही गयी तो हादसे के शिकार लोगों की समुचित चिकत्सा हो सके .
सड़क पर बच्चों की सुरक्षा के बारे में उनके माता पिता को भी जागृत किया जायेगा. इस काम में लीफलेट, पोस्टर आदि के ज़रिये जनजागरण की योजना पर काम हो रहा है. अभी इन डाक्टरों ने किसी से कुछ भी आर्थिक सहायता नहीं ली है . अपने १०० मित्रों और रिश्तेदारों की एक लिस्ट बना रखी है जिनसे हर महीने ११०० रूपये लिया जाता है . उसी धनराशि से शुरुआती काम चल रहा है . एक बातचीत में राही की संस्थापक ,डॉ गुंजन ने बताया कि काम फैला तो समाज के अन्य वर्गों को इस प्रयास में शामिल किया जायेगा.इनकी कोशिश है कि साल के अंत तक इस अभियान के बारे में पूरी तरह से जागरूकता का प्रचार कर दिया जाए. इस काम के लिए इच्छुक नागरिकों की एक फ़ोर्स तैयार करने की भी योजना है . . हर इलाके में ' राही ' के प्रयास से मंडलियाँ बनायी जा रही है जो अपने स्तर पर सड़क से हादसे को दूर रखने के लिए प्रयास कर रही हैं . संगठन की कोशिश है कि आने वाले वर्षों में उन संगठनों का एक सम्मलेन बुलाया जाय जो सड़क दुर्घटना के खतरों को कम करने के लिए प्रयास कर रहे हैं .
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