Tuesday, September 10, 2013

लिबरल पार्टी की नेता ने नार्वे में दक्षिणपंथी सरकार का रास्ता साफ़ किया


 

शेष नारायण सिंह


ओस्लो,३ सितम्बर .नार्वे की संसद के लिए नया चुनाव ९ सितम्बर को हो जाएगा. इस चुनाव के बाद बनने वाली सरकार के बारे में रोज ही नए नए राजनीतिक गठबंधन सामने आ रहे  हैं . आज खबर है कि वेंस्तरे पार्टी ( लिबरल पार्टी ) की नेता त्रीन स्की ग्रैंड ने साफ़ संकेत दे दिया है कि वे सरकार बनाने के लिए कंज़रवेटिव पार्टी ( होयरे ) के साथ भी जा सकती हैं . नार्वे में माना जाता  कि वेंस्तरे वाले क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी ( के आर एफ ) का साथ कभी नहीं छोड़ते लेकिन ग्रैंड ने एक चुनावी सभा में  कहा कि अगर के आर एफ को सीटें नहीं मिलतीं तो उनका राजनीतिक प्रभाव नार्वे के हित में प्रयोग नहीं हो पायेगा. और नार्वे के हित की रक्षा के लिए वे कंज़रवेटिव सरकार को समर्थन दे सकती हैं .
 नार्वे में संसद के चुनाव में आनुपातिक प्रतिनिधित्व का नियम लागू है .जो पार्टी आवश्यक संख्या में वोट हासिल कर लेती है उसका प्रतिनिधि आनुपातिक रूप से संसद में चुन लिया जाता है .इसके लिए पहले से ही एक  लिस्ट जारी कर दी जाती है जो चुनाव आयोग की मंजूरी से प्रचार के दौरान सर्कुलेशन में रहती है . लिबरल पार्टी  के बारे में माना जा रहा था कि वह लेबर पार्टी की अगुवाई वाली  प्रधानमंत्री येंस स्तोल्तेंबर्ग की सरकार को बनाने में मदद करेगीं . इसी जानकारी के मद्दे नज़र यह कहा जा रहा था  कि इस बार फिर लेबर पार्टी की वापसी हो रही थी. पिछले दिनों हुए चुनावपूर्व सर्वे में भी लेबर और उनकी सहयोगी सोशलिस्ट लेफ्ट की बढ़त थी .हालांकि बहुत मामूली थी लेकिन यह माना जा रहा था कि कंज़रवेटिव पार्टी के साथ आने के लिए क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी कभी तैयार नहीं होगी इसलिए उनको वेंस्तरे का समर्थन नहीं मिलेगा . लेकिन अब तस्वीर बदल गयी है . वेंस्तरे की नेता ग्रैंड ने ऐलान कर दिया है कि वे समाजवादियों को सत्ता से बाहर रखने के लिए कंज़रवेटिव पार्टी और प्रोग्रेस पार्टी के साथ गठ्बंधन  बना सकती हैं . नार्वे की राजनीति के जानकार बताते हैं कि अगर वेंस्तरे के वोट भी कंज़रवेटिव ( होयरे) और प्रोग्रेस ( एफ आर पी ) पार्टियों के साथ मिल गए तो यह गठबंधन लेबर और उसकी साथी पार्टियों  को बहुत पीछे छोड़ देगा .और नार्वे में एक दक्षिणपंथी सरकार कायम हो जायेगी .वेंस्तरे नार्वेजी भाषा का शब्द है और इसका अर्थ होता है ,वामपंथी लेकिन पार्टी की नेता के सरकार में शामिल होने की महत्वाकांक्षा के मद्दे नज़र अब सबकी समझ में आने लगा  है कि नार्वे में अगली सरकार दक्षिणपंथी सरकार होगी जो प्रवासियों ,खासकर इस्लाम को मानने  वालों के खिलाफ सख्ती का रुख अपनायेगी . एफ आर पी का  कहना है  कि जो लोग नार्वे के नागरिक हो गए हैं  वे तो ठीक हैं लेकिन आगे से अश्वेत प्रवासियों को नार्वे की नागरिकता नहीं दी जायेगी.प्रोग्रेस पार्टी का गुस्सा खास तौर से इस्लामी देशों से आने वाले प्रवासियों को लेकर है .
पिछले दिनों वेंस्तरे की नेता ,ग्रैंड ने घोषणा की थी कि उनकी पार्टी कंज़रवेटिव पार्टी के साथ सरकार में किसी भी सूरत में नहीं शामिल होगी . के आर एफ ( क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी ) से अलग होकर तो वे किसी भा हाल में नहीं जायेगें . उन्होंने बार बार कहा है कि उनकी पार्टियां किसी भी ऐसी सरकार में  नहीं शामिल होंगीं जिसका हिस्सा एफ आर पी यानी प्रोग्रेस पार्टी वाले बन रहे  होंगें . उनका विरोध एफ आर पी से विदेशियों के  नार्वे आकर बसने को लेकर है . हालांकि वे भी खुली छूट देने के पक्ष में नहीं है लेकिन  मुस्लिम प्रवासियों का जो विरोध एफ आर पी  ( प्रोग्रेस पार्टी ) कर रही है उसका समर्थन नहीं किया जा सकता .
अगर ऐसा हुआ तो अपने पूरे राजनीतिक जीवन में ग्रैंड पहली बार ऐसे लोगों से हाथ मिला रही होंगीं जिनका उन्होने जीवन भर विरोध किया  है .ऐसा करने के चक्कर में वे अपनी हमेशा की राजनीतिक दोस्त पार्टी , क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक को अलग थलग छोड़ देंगीं . हालांकि उनके पास  केवल पांच प्रतिशत वोट आने की संभावना है लेकिन नार्वे की राजनीति ऐसी है जिसमें छोटी पार्टियों को महत्वपूर्ण सरकारी पद मिल जाते हैं .पिछले आठ वर्षों में इसी कारण से लाब्र पार्टी की सहयोगी छोटी पार्टियां, सोशलिस्ट लेफ्ट और सेंटर पार्टी को सरकारी पदों का लाभ मिलता रहा है है .

ऐसा लगता है कि इस बार वेंस्तरे पार्टी भी सरकार में शामिल होने के मौके को छोड़ना नहीं चाहती . जहां तक कंज़रवेटिव नेता अर्ना सोलबर्ग की बात है उन्होंने बहुत ही साफ़ कह दिया है कि वे चाहती हैं कि सभी गैर सोशालिस्ट पार्टियां मिलकर राज करें लेकिन आखरे एफैसल अचुनाव के बाद ही होगा क्योंकि प्रधानमंत्री येंस स्तोतेल्बर्ग की तरह वे अपने भावी गठबंधन को स्पष्ट रूप से बता  नहीं रही  हैं . ज़ाहिर  है कि अर्ना सोलबर्ग की हर बात को बहुत ही गंभीरता से लिया जा रहा है क्योंकि अगर कंज़रवेटिव पार्टी की सरकार बनती है तो वे ही प्रधानमंत्री बनेगीं .

महान कलाकार मुंक के शहर में उनकी कला का मेला


शेष नारायण सिंह
ओस्लो, १ सितम्बर. नार्वे में अपने महान नायकों की बहुत इज्ज़त की जाती है . यहाँ साहित्यकार हेनरिक इब्सेन के नाम पर शहर का सबसे प्रमुख इलाका  है और महान पेंटर एडवर्ड मुंक के १५० साल पूरा होने पर उनकी याद में बहुत ही बेहतरीन प्रदर्शनी लगी हुई है जिसमें मुंक का काम प्रदर्शित किया गया है जो पूरे शहर में फैला हुआ  है .यह मुंक म्यूज़ियम में है नार्वेजी भाषा में म्यूज़ियम को मुसीत कहते हैं .मेट्रो ट्रेन के प्रमुख स्टेशन तोइयन के पास यह प्रदर्शनी है और स्टेशन पर जहां स्टेशन के नाम का निशान है उसके साथ ही यह भी सूचना है कि  यह मुंक मुसीत भी साथ ही है.  साथ साथ में कैफे हैं जहां दर्शकों के अलावा कुछ नामी कलाकार भी कभी कभी मिल जाते हैं . इसके ओस्लो विश्विद्यालय के हाल में मुंक ने जो म्यूराल पेंट किया था वह भी खूब शान से दिखाया जा रहा है . समकालीन कला के राष्ट्रीय म्यूज़ियम में भी मुंक का काम बहुत ही प्रमुखता से दिखाया गया है .. दरअसल करीब एक हज़ार रूपये का  जो टिकट मुंक मुसीत के अंदर जाने के लिए के लिए लिया जाता है वही टिकट राष्ट्रीय म्यूज़ियम के लिए भी चल जाता है .नार्वे में अपने महान लोगों की कितनी इज्ज़त की जाती है इस बात का दाज़ इसी से लगाया  जा सकता है कि ओस्लो हवाई अड्डे पर उतरते ही उनके काम के रिप्रिंट नज़र आने लगते हैं .पूरे रास्ते यही लगता है कि आप मुंक की सरज़मीं पर आ गए हैं .
उनके १५० साल पूरा होने पर मुंक की याद में जो  प्रदर्शनी लगी हुई है ,उसमें उनके काम को एक जगह पर जितनी बड़ी संख्या में लगाया गया है इसके पहले कभी भी इतना बड़ा रेट्रोस्पेकटिव एक जगह पर नहीं लगा .मुंक ने जीवन भर काम किया उनके काम की सभी शैलियों को इस प्रदर्शनी में देखा जा सकता है . इस प्रदर्शनी का मकसद साफ़ तौर पर लगता है कि कि यूरोप में ललित कला की दुनिया में  एडवर्ड मुंक का वह स्थान मुकम्मल तौर पर  सुनिश्चित किया जा सके  जिसके कि वे वास्ताव में हक़दार हैं .मुंक ने १८८० के दशक में कला की दुनिया में प्रवेश किया था और करीब साठ साल तक काम करते रहे .ओस्लो पर नाजी कब्ज़े एक दौरान उनकी मृत्यु हुई.  मुंक १५० प्रदर्शनी में उनकी २५० से ज्यादा पेंटिंग लगी हुई हैं .उनकी सबसे चर्चित कलाकृतियाँ भी इस प्रदर्शनी में हैं . इस प्रदर्शनी में वे काम भी शामिल किये गए हैं जो न तो मुंक म्यूज़ियम की संपत्ति हैं और  न ही नार्वे में हैं . दुनिया भर से इन कला कृतियों को लाया गया है . १८९२ से १९०३ तक का काम नैशनल गैलरी में है जबकि मुंक मुसीत में १९०४ से १९४४ तक का काम है .
 कला के जानकारों की बात अलग है वरना कला के बारे में मामूली रूचि रखने वालों के लिए मुंक का नाम लेते ही उनकी अति प्रसिद्ध कृति चीख (स्क्रीम ) का नाम दिमाग में आ जाता है. उनकी यह कला समकालीन इतिहास में बहुत चर्चित भी है इसको कला के जानकारों के बाहर दुनिया में वही हैसियत हासिल है जो पिकासो की गुएर्निका को दी जाती है .,लेकिन मुंक की १५० साल वाली प्रदर्शनी देखने के बाद ही एक साधारण आदमी को अंदाज़ लगता है कि मुंक की कला की दुनिया कितनी विस्तृत है . मुंक ने अपनी स्क्रीम के कई संस्करण बनाए ,पहला तो शायद १८९३ में बनाया था और आखिरी १९१० में.  जिन लोगों क नहीं मालूम  है उनके लिए यह जानना ज़रूरी है कि उनकी स्क्रीम को पिछले साल न्यूयार्क में कला की एक नीलामी में १२ करोड डालर में बेचा गया था . आज के हिसाब से अगर देखा जाये तो उसकी कीमत करीब ७०० करोड  रूपये की होगी. स्क्रीम के बारे में कला की दुनिया में तरह तरह की व्याख्याएं हैं . पता नहीं क्यों कुछ हलकों में माना जाता  है कि यह एक पागल की चीख का विजुअल रिकार्ड है जबकि मुंक ने खुद ही अपनी डायरी में लिखा है कि जब वे एक दिन ओस्लो में किसी पहाड़ी के ऊपर से गुजर रहे थे तो उनको लगा था कि प्रकृति पता नहीं क्यों चीख रही है और उसी अनुभव को मुंक ने एक पेंटिंग की शक्ल दे दिया था.
मुंक ने अपनी ज़िंदगी में बहुत तकलीफ देखा था . उन्होंने लिखा है कि बीमारी,पागलपन और मौत को मैंने बहुत करीब से देखा है .जब वे पांच साल के थे तो माँ मर गयी , जब १४ साल के हुए तो उस बहन का देहांत हो गया जो इनकी देखभाल कर रही थी,उनके पिता जी की भी कुछ वर्षों बाद मृत्यु हो गयी . वैसे भी उनके ऊपर  इतने बड़े परिवार का पालन कारने का जिम्मा था कि वे मुंक का कोई ध्यान नहीं रख पा रहे थे .मुंक खुद बार बार अस्पताल जाते रहे और कई बार नशे की आदत के शिकार हुए . कहते हैं कि  उनकी प्रेमिका ने भी उन्हें बहुत निराश किया था . और उनकी पेंटिंग ‘ वेम्पायर ‘ उसी मनोदशा में पेंट की गयी थी . उनके काम के दायरे में उनका अपना जीवन बार बार आता  है .उनका मुसीबत से भरा बचपन, समाज से उनकी परेशानी  और निजी संबंधों में निराशा , सब उनके काम में  दिखता है . उनका अपना दर्द और उससे पैदा हो रहे बिम्ब सारे जहां का दर्द बनकर मुंक के  काम में नज़र आते रहते हैं .उनकी पेंटिंग “ डेथ इन अ सिक रूम “ उनकी बहन की  मौत के बाद हुए दर्द की जो अमिट छाप  मुंक के दिमाग में रिकार्ड हो गयी थी ,उसी का प्रतिनिधि काम है .  किस ( चुम्बन ) न्यूड मडोना, और वेम्पायर, सभी कृतियाँ ,महिलाओं के साथ मुंक के अनुभवों के प्रतिनधि हैं . लेकिन यह निजी होते हुए भी ऐसी बन गयी हैं कि सभी के दर्द को अनुभव कराने की क्षमता रखते  हैं .
मुंक ने लिखा है कि मेरी सारी कला  दर्द का एक इतिहास है , अगर दर्द न होता अतो शायद मेरा काम कुछ अलग तरह का रहा होता . अपने समकालीन इब्सेन की वे बाहुत इज्ज़त करते थे और उनकी पेंटिंग ‘ ग्रैंड कैफे में इब्सेन” को भी बहुत हे एम्ह्त्वपूर्ण माना जाता अहै . अपनी यूनिवर्सिटी में जो  उनका काम है उसमें भी इब्सेन हैं , उसमें नीत्शे भी हैं , वहाँ उनका सेल्फ़ पोर्ट्रेट भी है  क्योंकि बताते हैं कि जब १९४४ में न्यूमोनिया से उनकी मौत हुई तो उनकी जो मनोदशा थी वह ‘ बिटवीन द क्लाक एंड द बेड ‘ में नज़र आता है .