Wednesday, March 10, 2010

मौजूदा बिल महिलाओं के एक बड़े वर्ग को मुख्यधारा से अलग करने का निमित्त

शेष नारायण सिंह

बी जे पी के खेल में सभी फंस गए. महिला आरक्षण की बहस को शुरू ही उलटे तरीके से किया गया. महिला आरक्षण बिल को समझने के लिए मैं अपने गाँव जाना चाहूंगा.. मेरे गाँव में दलित भी हैं, पिछड़े और सवर्ण भी. बगल के गाँव में मुसलमान हैं .बचपन से लेकर अब तक मैंने हर तरह की सामाजिक सोच देखी है . जब मैंने समझना शुरू किया,मेरे गाँव में सब गरीब थे . आज भी कोई बहुत धनी नहीं हैं . मेरे पिता खुद एक ठाकुर ज़मींदार थे लेकिन १९५२ के बाद वे भी बहुत गरीब हो गए थे लेकिन गाँव के सवर्ण अपने को दलितों, मुसलमानों और अन्य पिछड़ी जातियों से ऊंचा मानते थे . दलितों और मुसलमानों के प्रति उन दिनों जो सोच थी, आज तक वही है ,. मेरे गाँव में मेरी उम्र के कुछ लोगों ने मुझे मेरे पिता जी से पिटवाने की कोशिश की थी जब मैंने ९० के दशक की शुरुआत में डॉ अंबेडकर के निर्वाण के दिन जाति के विनाश पर बाबा साहेब के तर्क का समर्थन करने वाला लेख लिख दिया था. .यह वही लोग हैं जो गाँव के दलितों के बच्चों को स्कूल जाने से रोकते थे . मेरे गाँव में मेरे पिता जी से दो एक साल उम्र में छोटे,दलित जाति के रामदास जी थे . मुझसे उन्होंने पूछा कि क्या हमारे बच्चों की भी तरक्की हो सकती है . मैंने कहा कि अगर आप अपने बच्चों को पढ़ा दें तो कोई नहीं रोक सकता . यह बात उन्होंने कुछ लोगों को बता दी. तब से ही मेरे खिलाफ मेरे गाँव में माहौल है .. दलितों के कुछ बच्चे पढ़ लिख गए. कुछ डाक खाने में चिट्ठीरसा हो गए, कुछ और छोटी मोटी सरकारी नौकरियों में चले गए. जबकि ठाकुरों के दसवीं फेल बच्चे खाली घूम रहे हैं . सवर्ण मानसिकता के लोग गाँव के ठाकुरों के पिछड़ेपन के लिए दलितों की शिक्षा को ज़िम्मेदार बताते हैं .. मेरे गाँव को देख कर लगता है की गरीबी अपने आप में एक जाति है. जिस बिल को राज्यसभा में पास करवाया गया है वह निश्चित रूप से एक इलीट कोशिश है . जिसका मकसद गरीब से गरीब लोगों को देश के फैसलों से बाहर रखना है .ज़ाहिर है इस तरह की स्थिति से बी जे पी जैसी पार्टियों का ही फायदा होगा क्योंकि उनके साथ न तो मुसलमान हैं और न ही दबे कुचले लोग .संसद और विधान सभाओं मेंअगर इनकी संख्या कम कर दी जाए तो बी जे पी अपना वह एजेंडा लागू करने में सफल रहेगी जिसमें मुसलमान, दलित और पिछड़ों को १९४७ के पहले की स्थिति में रखने की योजना है . कांग्रेस भी कहे कुछ भी, करती वही है जो सामंती, संपन्न , पूंजीवादी सोच की मांग होती है . इन लोगों को नहीं मालूम की दिल्ली शहर के अन्दर ही मुसलमानों और दलितों की बच्चियों को शिक्षा के अवसर नहीं उपलब्ध हैं . . इन लोगों को यह भी नहीं मालूम नहीं कि असली गावों में रहने वाले लोगों को जब तक शिक्षा के सही अवसर नहीं दिए जाते तब तक उन दबे कुचले परिवारों की महिलाओं से संभ्रांत परिवारों की महिलाओं के मुकाबले खड़े होकर जीतने की उम्मीद करना एक सपना है . इस लिए मुस्लिम, दलित और पिछड़ी जातियों और गरीब सवर्णों के परिवारों की महिलाओं को राजनीति की मुख्यधारा से अलग करने वाले बिल का समर्थन उसी हालत में किया जाना चाहिए जब वह आधी आबादी के पूरे हिस्से के हित में हो. मौजूदा बिल महिलाओं के एक बड़े वर्ग को मुख्य धारा से अलग करने का निमित्त है और इसे इसके इस स्वरुप में समर्थन देना ठीक नहीं है .