Tuesday, September 18, 2012

दिल्ली के छात्रों ने साम्प्रदायिक ताक़तों को ठुकराया


शेष नारायण सिंह 

नई दिल्ली। 16 सितंबर .दिल्ली के दो केंद्रीय विश्वविद्यालयों के छात्रसंघ चुनावों से जो संकेत आ रहे हैं उन्हें नज़र अंदाज़ कर पाना लगभग असंभव है .दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में  हुए छात्र संघ चुनावों के नतीजों से साफ़ है कि दोनों ही विश्वविद्यालयों के छात्रों ने साम्प्रदायिक ताक़तों को नकार दिया है . दिल्ली में छात्र संघों के चुनाव कोई साधारण चुनाव नहीं होते . पूरे शहर में बाकायदा प्रचार होता है और इन विश्वविद्यालयों में पूरे देश से छात्र आते हैं . 
यहाँ यह महत्वपूर्ण नहीं है कि चुनाव में जीत किसकी हुई है . दिल्ली विश्वविद्यालय में कांग्रेस का छात्र संगठन एन एस यू आई बीजेपी के छात्र संगठन के मुक़ाबिल था  तो छात्रों ने उसे जिता दिया जबकि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में वामपंथी छात्र संगठन मज़बूत था तो उन्हें जिता दिया.गौर तलब यह है कि दिल्ली विश्वविद्यालय तो ए बी वी पी का गढ़ माना जाता है जबकि  जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी एकाधिक बार ए बी वी पी काफी मजबूती के साथ चुनाव लड़ चुकी है .और अध्यक्ष की सीट पर भी क़ब्ज़ा कर चुकी है . 
अक्सर ऐसा होता रहा है कि दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनावों  को बीजेपी अपनी पार्टी के बढ़ते क़दम के रूप में पेश करती रही है . आज बातचीत में एक बड़े कांग्रेसी नेता ने बताया कि अगर दिल्ली विश्वविद्यालय यूनियन के चुनाव में बीजेपी समर्थित विश्‍वविद्यालय जीत गए होते तो बीजेपी एक प्रवक्ता गण प्रधान मंत्री सहित पूरी सरकार का इस्तीफ़ा और ज्यादा जोर से मांग रहे होते . लेकिन अब सारे लोग सन्न हैं . चुनाव हारने के  बाद बीजेपी समर्थित छात्रों ने जो हंगामा किया उस पर भी बीजेपी के किसी बड़े नेता की  कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है .दूसरी तरफ छात्रसंघ के चुनाव में अपने छात्र संगठन के उम्मीदवारों की भारी जीत से कांग्रेस के नेता  बहुत उत्साहित हैं .वैसे तो छात्रसंघ चुनावों और उनके नतीजों की राष्ट्रीय राजनीति में खास अहमियत नहीं होती लेकिन भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे-केजरीवाल और बाबा रामदेव के आंदोलनों का केंद्र दिल्ली ही थी. कोयला खंडों के आवंटन पर संसद को जाम करने, डीज़ल की मूल्यवृद्धि और खुदरा क्षेत्र में  विदेशी निवेश के विरोध में भी हमलावर रही  बीजेपी कैम्प में चिंता की  लकीरें  साफ़ नज़र आ रही हैं .. 
भाजपा सर्मथित, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने इस चुनाव में भ्रष्टाचार को मुख्य मुद्दा बनाया था. लेकिन उसके उम्मीदवार हार गए. कांग्रेस के छात्र नेताओं की इस जीत को कांग्रेस के नेता भावी राजनीति का संकेत बता रहे हैं. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार यह बताता है कि मध्यमवर्ग के लोग और खासतौर से युवा किस दिशा में सोच रहे हैं. दिल्ली विश्‍वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरु विश्‍वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव विशुद्ध रूप से राजनीतिक आधार पर लडे. जाते हैं.
बीजेपी के नेता अरुण जेटली, विजय गोयल,  और विजेंद्र गुप्ता  और कांग्रेस के  कपिल सिब्ब्ल, अजय माकन, अलका लांबा आदि दिल्ली विश्वविद्यालय के एचात्र राजनीति से आये हैं जबकि प्रकाश करात , सीताराम येचुरी, और डी पी त्रिपाठी 
 जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं .ज़ाहिर है  कि यह चुनाव कुछ न कुछ बड़े संकेत तो दे  ई रहा है . दिल्ली में मौजूद के एपार्टियों के नेताओं ने इन चुनावों को देश में साम्प्रदायिक शक्तियों के  खिलाफ बन रहे माहौल का संकेत बताया.

हंगामा कर रहे विपक्ष ने संसदीय समितियां भी नहीं बनाने दीं

शेष नारायण सिंह 

नई दिल्ली,१७ सितम्बर . संसद में मानसून सत्र के हंगामे  के कारण लोक सभा और राज्य सभा में  कोई बहस नहीं हो सकी है लेकिन वे काम भी नहीं  हुए जिनपर कोई विवाद नहीं था. पता चला है कि मंत्रालयों से सम्बंधित संसद की कमेटियों का गठन भी नहीं हो सका है .संसद में काम बहुत होता है और ज़ाहिर है कि सारा काम सदनों में बहस के ज़रिये ही नहीं निपटाया जा सकता .संसद के पास इस कार्य को नि‍पटाने के लि‍ए सीमित समय होता है। इसलिए संसद उन सभी विधायी तथा अन्‍य मामलों पर, जो उसके समक्ष आते हैं, गहराई के साथ विचार नहीं कर सकती। अत: संसद का बहुत सा काम सभा की समितियों द्वारा निपटाया जाता है, जिन्‍हें संसदीय समितियां कहते हैं। संसदीय समिति से तात्‍पर्य उस समिति से है, जो सभा द्वारा नियुक्‍त या निर्वाचित की जाती है अथवा अध्‍यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित की जाती है और अध्‍यक्ष के निदेशानुसार कार्य करती है तथा अपना प्रतिवेदन सभा को या अध्‍यक्ष को प्रस्‍तुत करती है और समिति का सचिवालय लोक सभा सचिवालय द्वारा उपलब्‍घ कराया जाता है।    अपनी प्रकृति के अनुसार संसदीय समितियां दो प्रकार की होती हैं: स्‍थायी समितियां और तदर्थ समितियां। स्‍थायी समितियां स्‍थायी एवं नियमित समितियां हैं जिनका गठन समय-समय पर संसद के अधिनियम के उपबंधों अथवा लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन नियम के अनुसरण में किया जाता है। 

 मंत्रालयों की सलाहकार समितियों का कार्य काल  २१ अगस्त को पूरा हो गया है . हालांकि पीठासीन अधिकारी ही समितियों  का गठन करती हैं लेकिन सभी पार्टियों को अपने सदस्यों का नाम भेजना ज़रूरी होता है . इस बार कोयले की हलचल में सबंधित  कमेटियों का गठन इसलिए नहीं हो सका क्योंकि राजनीतिक पार्टियों ने नाम ही नहीं भेजा. परम्परा यह है कि मानसून सत्र के दौरान ही नई कमेटियों का गठन हो जाता है  लेकिन अभी तक इन कमेटियों का गठन नहीं हो सका है . कमेटियों का कार्यकाल २१ अगस्त को पूरा हो चुका है . आम तौर पर १ सितम्बर तक कमेटियों का गठन हो जाता है लेकिन इस  बार अभी तक यह काम नहीं हो सका है.