Friday, April 16, 2010

भिवंडी के पावरलूम कारखानों में बीमार हैं हज़ारों बुनकर

शेष नारायण सिंह

भिवंडी ,१६ अप्रैल /उत्तर प्रदेश से रोजी रोटी की तलाश में आये हुए मुंबई के पास के औद्योगिक नगर ,भिवंडी पंहुचे कपड़ा मजदूर आजकल बहुत बीमार हो रहे हैं. मार्च से जून तक के महीनों में यहाँ पावर लूम सेक्टर में काम करने वाले मजदूरों पर हर साल की तरह इस साल भी बीमारियों ने धावा बोल दिया है और हर गली से बीमार लोगों की आवाजें सुन ने को मिल जाती हैं .यह बीमारी इस लिए आती है कि शादी व्याह के चक्कर में बड़ी संख्या में मजदूर गाँव चले जाते हैं और मालिक उनकी जगह पर नए लोगों को भर्ती नहीं करते ,बल्कि डबल ड्यूटी का लालच देकर मजदूरों से २०-२० घंटे काम करवाते हैं . जिस से मजदूरी तो ज्यादा मिल जाती है लेकिन मजदूर का स्वास्थ्य बिलकुल बरबाद हो जाता है . भिवंडी में मजदूरों के कल्याण के लिए काम करने वाली संस्था जन कल्याण समिति ने मांग की है कि मजदूरों की गरीबी का शोषण करने के उद्देश्य से डबल ड्यूटी का लालच देने वाले मिल मालिकों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए क्योंकि वे मानवाधिकारों का हनन कर रहे होते हैं ..

भिवंडी में उत्तर प्रदेश और बिहार से बड़ी संख्या में बुनकर, पावरलूम सेक्टर में काम करने आते हैं . उनमें से ज़्यादातर मुसलमान ही होते हैं . अपने गाँव की गरीबी और रोजगार के अवसर की कमी से परेशान यह लोग भाग कर भिवंडी आते हैं . भिवंडी से हर साल लाखों मजदूर शादी व्याह के सीज़न में अपने गाँव वापस चले जाते हैं और मिल मालिकों के सामने मजदूरों की कमी मे का संकट पैदा हो जाता है . इसके बाद मालिक लोग उन मजदूरों को डबल ड्यूटी और प्रति मीटर अधिक मजदूरी का लालच देकर उन से ही काम करवाते हैं .. आम तौर पर एक मजदूर ४ लूम चलाता है लेकिन आजकल उन्हने ६ से १२ लूम तक पर काम करने का मौक़ा मिलता है . ज़ाहिर है इस से मजदूरी ज्यादा मिल जाती है . डबल ड्यूटी में काम २० घंटे का हो जाता है . खाने पीने का कोई इंतज़ाम नहीं होता . शहर में मौजूद ढाबों पर खाना काने और दिन भर में बीसों चाय पीने से मजदूरों का शरीर इतना कमज़ोर हो जाता है कि मामूली बीमारी से भी लड़ पाने की उनकी क्षमता ख़त्म हो जाती है. इस साल अब तक कई लोग कमजोरी की वजह से अपनी जान गंवा चुके हैं.अब पुलिस ने उन मजदूरों को पकड़ना शुरू कर दिया है जो डबल ड्यूटी कर रहे हैं . लेकिन मिल मालिकों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है . पिछले साल भी यही हुआ था .लेकिन मालिकों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई थी . इन कारखानों में काम करने लायक हालात तो कतई नहीं हैं. मालिक लोग मजदूरों के पीने के लिए पानी तक का इंतज़ाम नहीं करते . प्यास लगने पर यह मजदूर आस पास के सस्ते ढाबों या होटलों में जाकर पानी पीते हैं .