Sunday, November 6, 2011

उसने गंगा के बहने पर भी सवाल उठाया था

शेष नारायण सिंह

ब्रह्मपुत्र के गायक भूपेन हजारिका नहीं रहे. अब दिल धूम धूम भी नहीं करेगा और गंगा के बहने पर जनवादी सवाल भी नहीं पूछे जायेगें . भूपेन ड़ा महान गायक तो थे ही, वे एक जनपक्ष धर कवि भी थे, संगीत के रचयिता थे और एक बहुत ही मज़बूत और बुलंद आवाज़ के मालिक थे.उनके जाने के बाद असम, कलकाता और ढाका में तो मातम है ही, बाकी दुनिया में भूपेन के चाहने वालों के चहेरों पर मायूसी की खबरें आ रही हैं .

भूपेन ने बहुत ही उच्च कोटि की शिक्षा पायी थी. शुरुआती पढाई गुवाहाटी में करने के बाद वे बी एच यू चले आये थे जहां से उन्होंने बी ए और एम ए पास किया . १९४६ में एम ए करने के बाद वे अमरीका के विख्यात कोलंबिया विश्वविद्यालय चले गए थे, जहां उन्होंने मास कम्युनिकेशन में पी एच डी किया .भूपेन हजारिका ने उस के बाद भी पढाई की .उन्होंने पी एच डी के बाद , शिकागो विश्वविद्यालय से सिनेमा के शिक्षा में इस्तेमाल पर पोस्ट डाक्टोरल अध्ययन किया . बताया जाता है कि मास कम्युनिकेशन में पी एच डी करने वाले भूपेन पहले एशियन थे..

अमरीका में भूपेन हजारिका की मुलाकात , पॉल राबसन से हुई थी . पॉल राबसन की हैसियत दुनिया के क्रांतिकारी गायकों में सबसे ऊंची है . यह अमरीका में वह दौर था जब काले लोगों को अमरीकी लोकतंत्र में वोट देने तक के अधिकार नहीं थे. उस दौर में पॉल का " ओल्ड मैन रिवर " मानवीय अधिकारों के संघर्ष का प्रतीक गीत बन चुका था. हर जुलूस में लाठी गोली खाने वाले दलित और अश्वेत अधिकारों के दीवाने उस गीत को ज़रूर गाते थे. उसी गीत की प्रेरणा से भूपेन ने " गंगा बहती हो क्यों " लिखा था और अधिकारों की लड़ाई के लिए जहां भी संघर्ष हुआ वहां गंगा वाला भूपेन का गीत ज़रूर सुना गया .१९३० से भूपेन ने गाना शुरू किया और पूरी सदी वे आम आदमी के गीत गाते रहे.बहुत सारी असमिया फिल्मों के लिए उन्होंने संगीत और गीत लिखा और गाया . अपनी जीवन भर की दोस्त कल्पना लाजमी के साथ मिलकर उन्होंने हिन्दी फिल्मों ,रुदाली, एक पल ,दरमियान आदि का संगीत लिखा. एम एफ हुसैन की फिल्म गजगामिनी का संगीत भी भूपेन दा का ही था. भूपेन बाएं बाजू के महान बुद्धिजीवी थे .बलराज साहनी और अनिल चौधरी के दोस्त थे. उनको मिले हुए सम्मानों को गिनाने का कोई मतलब नहीं है . उनको हर वह सम्मान मिल था जो किसी भी संगीतकार को मिलना चाहिए . सरकारी पदों से बचने के चक्कर में रहने वाले भूपेन दा ने २००३ में प्रसार भारती बोर्ड का सदस्य होना स्वीकार कर लिया था. हमें उनकी याद हमेशा रहेगी

अन्ना हजारे के आन्दोलन की किश्ती झूठ के भंवर में है

शेष नारायण सिंह

नई दिल्ली, ५ नवम्बर.अन्ना हजारे उलझ गए हैं . अपने ब्लॉगर राजू परुलेकर से पल्ला झाड़ने के चक्कर में विरोधाभासी बयान दे रहे हैं . कल जब उनसे महारष्ट्र सदन की प्रेस कानफरेंस में पूछा गया कि आप अपनी टीम के कुछ लोगों को निकालना चाहते थे अब क्यों मना कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि उनका ब्लॉग लिखने वाले राजू परुलेकर ने बिना उनकी मंजूरी के यह बात ब्लॉग पर लिख दी थी. उन्होंने कहा कि यह गलत बात है . लेकिन आज जब उनकी हैण्ड राइटिंग में वह सारी बाद पब्लिक डोमेन में आ गयी तो अन्ना हजारे कानूनी दांव पेंच की बात करते नज़र आये. उन्होंने आज मीडिया को बताया कि अगर कोई भी चीज़ उनकी हैण्ड राइटिंग में है लेकिन उस पर उनकी दस्तखत नहीं है, तो उसे सच न माना जाये.उधर राजू परुलेकर भी अन्ना की हर चाल का जवाब दे रहे हैं . उन्होंने अन्ना हजारे की वह चिट्ठी ब्लॉग पर डाल दी जिसमें उन्होंने लिखा था कि अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, मनीष सिसोदिया और प्रशांत भूषण को निकाल दिया जाएगा. इस चिट्ठी पर अन्ना हजारे के दस्तखत भी हैं . पुणे की फ्लाईट पकड़ने दिल्ली दिल्ली हवाई अड्डे पर पंहुचे अन्ना हजारे से जब पूछा गया कि अब तो उनके दस्तखत वाली चिट्ठी भी सामने आ गयी है ,तो उनके पास कोई जवाब नहीं था .उन्होंने कहा कि अब वे पुणे जाकर ब्लॉग ही बंद कर देगें.

२३ अक्टूबर २०११ के अन्ना हजारे के ब्लॉग पर उनके विचार प्रकाशित होने के बाद सारा विवाद शुरू हुआ था. अन्ना खुद तो लिखते नहीं, वे राजू परुलेकर नाम के एक पत्रकार को अपनी बात बता देते थे और राजू अन्ना की तरफ से बातों को ब्लॉग पर लिख देते थे. लेकिन मौन व्रत के दौरान अन्ना ने दूसरा तरीका निकाला. उन्होंने कागज़ पर मराठी में लिख कर देना शुरू किया.२३ अक्टूबर वाला ब्लॉग उसी मौनव्रत वाले टाइम का है. उसमें अन्ना ने कहा था कि वे अपनी कोर टीम में कुछ बदलाव करना चाहते हैं . बात मीडिया में चल पड़ी लेकिन दिल्ली में ४ नवम्बर की प्रेस कानफरेंस में उन्होंने कह दिया कि राजू परुलेकर ने यह बात अपने मन से बनाकर लिख दी थी. मैंने कुछ नहीं कहा था. राजू परुलेकर मुंबई के एक सम्माननीय पत्रकार हैं . उनके ऊपर जब अन्ना हजारे ने विश्ववासघात का आरोप लगा दिया तो उन्हें गुस्सा आया और उन्होंने अन्ना हजारे के हाथ से लिखा हुआ वह मज़मून सार्वजनिक कर दिया जिसमें अन्ना से साफ़ लिखा है कि अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, प्रशांत भूषण और मनीष सिसोदिया को वे हटाने के बारे में सोच रहे हैं .अब अन्ना घिर चुके थे. इसी के बाद अन्ना हजारे ने कहा कि यह उनका फैसला नहीं था. उन्होंने केवल सोचा भर था. बात को मजबूती देने के उद्देश्य से अन्ना हजारे ने कहा कि जब तक किसी भी मज़मून पर उनके दस्तखत नहीं होगें, वे उसको सही नहीं मानेगें. लेकिन अन्ना हजारे के इस बयान के कुछ देर बाद ही राजू ने कुछ टी वी वालों को उस मज़मून पर अन्ना हजारे के दस्तखत भी दिखा दिए . ज़ाहिर है कि अन्ना हजारे गलतबयानी के जाल में बुरी तरह से फंस गए हैं .

अपने ऊपर आरोप लगने के बाद राजू परुलेकर ने बहुत सारी ऐसी चीज़ीं पब्लिक करना शुरू कर दिया है जिसके अन्ना हजारे की सत्य के प्रति निष्ठा सवालों के घेरे में आ जायेगी . राजू परुलेकर ने बताया है कि जब अन्ना ने गुस्से में आकर मौन व्रत के दौरान लिखना शुरू किया तो अन्ना के करीबी सुरेशभाऊ पठारे ने उनको रोकने की कोशिश की लेकिन अन्ना नहीं रुके. उन्हें उस वक़्त रोकना संभव नहीं था . लेकिन बाद में सुरेश भाऊ ने राजू को सलाह दी कि इस ब्लॉग को अभी रोक लिया जाए . केवल उसका संकेत ही दे दिया जाए. परुलेकर ने वही किया लेकिन जब कल दिल्ली में अन्ना हजारे ने उनके ऊपर गंभीर आरोप लगा दिया तो राजू परुलेकर ने अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए अन्ना का वह पत्र सार्वजनिक कर दिया जिसको सुरेश भाऊ की सलाह पर उन्होंने पूरी तरह से नहीं छापा था .राजू परुलेकर ने अपने बयान में कहा है कि उस वक़्त डाक्टर धर्माधिकारी भी मौजूद थे और उन्होंने कहा कि कोशिश की जानी चाहिए कि अन्ना प्रसन्न चित्त रहें और उनका ब्लड प्रेशर न बढ़ने पाए .