Sunday, August 8, 2010

९ अगस्त सन बयालीस को जिन्ना और सावरकर गाँधी के खिलाफ थे

शेष नारायण सिंह

ठीक ६८ साल पहले महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों के कह दिया था कि बहुत हुआ अब आप लोगों की किसी बात का विश्वास नहीं है . आप लोग अपना झोला झंडी उठाइये और भारत का पिंड छोडिये. पूरे देश में आजादी का बिगुल बज गया था. एक ख़ास वर्ग के लोगों के बीच आज जिन नेताओं का नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है उनमें से बहुत सारे लोग उन दिनों अंग्रेजों के झंडाबरदार थे लेकिन महात्मा गाँधी की समझ में बात आ गयी थी कि अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए अब किसी मुरव्वत की गुंजाइश नहीं थी, उन्हें भगाने के लिए साफ़ साफ़ कहना पड़ेगा. और उन्होंने ८ अगस्त १९४२ के दिन बम्बई में हुई कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में फैसल ले लिया. उसी रात कांग्रेस कमेटी के सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए. भारत छोडो आन्दोलन की याद में उन महान नेताओं को याद कर लेना ज़रूरी है जो आज़ादी के इस महायज्ञ में महात्मा जी के साथ खड़े थे. अंग्रेजों ने आज़ादी के लिए कर रही पार्टी के सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था. . आज ६८ साल बाद की बात अलग है लेकिन १९४२ में अंग्रेजों ने हर उस आदमी को सबक सिखाने का फैसला कर लिया था जो भारत की आज़ादी के पक्ष में था. ब्रिटेन की वार कैबिनेट ने जून में ही वायसरॉय को अधिकार दे दिया था कि वह जैसा भी चाहे , कांग्रेसी नेताओं के साथ वैसा व्यवहार कर सकते हैं .. वायसरॉय इस चक्कर में था कि वह भारत छोडो आन्दोलन के प्रस्ताव के पास होते ही महात्मा जी और पूरी कांग्रेस कार्यसमिति को गिरफ्तार कर ले. लेकिन तय यह हुआ कि जब आल इण्डिया कांग्रेस कमेटी इस प्रातव को मंजूरी दे तब सभी नेताओं को पकड़ा जाए . उनकी मूल योजना थी कि गाँधी जी को देश से बाहर ले जाकर को अदन में नज़रबंद किया जाए और बाकी नेताओं को न्यासालैंड में रखा जाए . लेकिन बाद में मन बदल दिया गया और महात्मा गाँधी को पुणे के आगा खां पैलेस में और कांग्रेस के बाकी नेताओं को अहमदनगर जेल में रखा गया. ९ अगस्त की सुबह पांच बजे सभी नेताओं को सोते से जगाकर पकड़ लिया गया. एक विशेष ट्रेन से सबको पूना ले जाया गया ,जहां महात्मा जी और उनके साथियों को उतार दिया गया. बाकी नेता अहमदनगर जेल ले जाए गए. सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद, पट्टाभि सीतारामैय्या और हरेकृष्ण महताब को अलग कमरे मिले थे. जवाहरलाल नेहरू के कमरे में डॉ सैयाद महमूद थे. शंकर राव देव और प्रफुल्ल चन्द्र घोष एक कमरे में थे. आचार्य कृपलानी , गोविन्द बल्लभ पन्त, आचार्य नरेंद्र देव और आसफ अली को एक साथ रखा गया था. डॉ राजेन्द्र प्रसाद बीमार थे इसलिए आ नहीं सके थे . उन्हें गिरफ्तार करके बिहार में ही रखा गया था. भूलाभाई देसाई और चितरंजन दस को गिरफ्तार नहीं किया गया था क्योंकि इन लोगों ने अपने आपको भारत छोडो आन्दोलन से अलग कर लिया था. तो यह है फेहरिस्त उन महानायकों की जिन्होंने हमें आज़ादी दिलवाई. और अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया.

यह सब हुआ इसलिए कि कांग्रेस ने १४ जुलाई १९४२ के दिन एक प्रस्ताव पास किया था कि अगर अँगरेज़ भारत नहीं छोड़ते तो पूरे देश में आन्दोलन चलेगा . कांग्रेस के इस प्रस्ताव से अंग्रेजों के वफादार लोगों के बीच हडकंप मच गया. मुहम्मद अली जिन्ना ने बयान दिया कि आन्दोलन शुरू करने का कांग्रेस का ताज़ा फैसला सही नहीं है . यह मुसलमानों के हितों की अनदेखी करता है . हिन्दू महासभा के नेता, वी डी सावरकर ने अपने समर्थकों से कहा कि कांग्रेस के आन्दोलन का विरोध करें. उधर अँगरेज़ सरकार ने भी पूरी तैयारी कर ली थी . ८ अगस्त को सभी सरकारी विभागों के नाम आदेश जारी कर दिया कि कांग्रेस का आन्दोलन गैरकानूनी है . सरकारी विभागों को चाहिए कि आन्दोलन को हर हाल में कुचल दें. आल इण्डिया कांगेस कमेटी की बैठक ७ अगस्त को मुंबई में हुई जहां तय किया गया कि अहिंसक तरीके से पूरे देश में आन्दोलन चलाया जाएगा. आन्दोलन के नेतृत्व का ज़िम्मा गाँधी जी को सौंपा गया. लेकिन यह भी अनुमान था कि गाँधी जी तो गिरफ्तार हो जायेगें ,. ऐसी सूरत में यह तय किया गया कि हो सकता है कि सभी नेता गिरफ्तार हो जाएँ तो हर व्यक्ति जो इस आन्दोलन के साथ है , वह अहिंसक तरीके से अपना काम करता रहेगा. महत्मा गाँधी ने अपील की कि हिन्दू और मुसलमान के बीच जो नफरत पैदा करने की कोशिश की गयी है उसे भूल जाओ और सभी लोग भारतीय बन कर संघर्ष करो. हमारा झगडा अँगरेज़ जनता से नहीं है . हम तो अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद का विरोध कर रहे हैं.. सत्याग्रह में किसी तरह की धोखेबाजी या असत्य के लिए कोई जगह नहीं है. उन्होंने सब को बताया कि आज से अपने आप को आज़ाद समझो. आबादी के एक हिस्से को अँगरेज़ भरमाने में सफल हो गए थे लेकिन गाँधी की आंधी के सामने कोई नहीं टिक सका और देश आज़ाद हो गया