Saturday, December 10, 2011

संसद की स्थायी समिति ने लोकपाल बिल की सिफारिशें संसद के हवाले किया

शेष नारायण सिंह

नई दिल्ली ,९ दिसंबर. कार्मिक लोक शिकायत,कानून और न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने आज संसद के दोनों सदनों में लोक पाल विधेयक २०११ के सम्बन्ध में अपनी सिफारिशें पेश कर दीं. यह स्थायी समिति राज्यसभा के प्रशासनिंक कंट्रोल में है इसलिए इसके अध्यक्ष भी राज्यसभा के सदस्य अभिषेक मनु सिंघवी हैं. अगस्त में अन्ना हजारे के अनशन से पैदा हुए राजनीतिक हालात के बाद लोकसभा में हुई बहस और लोकसभा की मंशा वाले प्रस्ताव के पारित होने के बाद लोकपाल बिल का ड्राफ्ट संसद की स्थायी समिति के पास विचार के लिए भेजा गया था . संसद की स्थायी समिति एक ताक़तवर समिति होती है . उसके पास सरकार के पास से आये बिल को पूरी तरह से खारिज करने समेत उसे पूरी तरह से संशोधित करने का अधिकार तक होता है . कई बार ऐसा भी हुआ है कि स्थाई समिति ने सरकार की तरफ से पेश किये गए कानूनों के कुछ मसौदों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है .लोकपाल और राज्यों में नियुक्त होने वाले लोकायुक्तों को संवैधानिक दर्ज़ा दिया गया है जिससे उनेक काम काज में सरकारी या किसी अन्य किस्म का दबाव न पड़ सके.
लोकपाल बिल लोक सभा में ४ अगस्त २०११ को पेश किया गया था और इसे संसद की स्थायी समिति को ८ अगस्त को भेजा गया था . इस बिल का उद्देश्य एक ऐसा कानून बनाना है जो सरकार में विभिन्न पदों पर बैठे लोगों के भ्रष्टाचार के बारे में जांच करेगा. इस कमेटी के सामने विचार के लिए दस हज़ार सुझाव आये . अन्ना हजारे की टीम ने भी समिति के सामने कई बार हाज़िर होकर अपनी बात रखी २३ सितम्बर २०११ के दिन पहली बैठक हुई और अंतिम बैठक ७ दिसंबर को हुई. इस बीच कमेटी के सामने कई न्यायविद, भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश , गैरसरकारी संगठनों के प्रतिनधि , टीम अन्ना के प्रतिनिधि , अन्ना हजारे खुद ,धार्मिक संगठन ,सी बी आई, सी वी सी आदि बहुत सारे लोग पेश हुए.
रिपोर्ट संसद में पेश होने के बाद समिति के अध्यक्ष , अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्राकारों से बात की और बताया कि सरकार के बहुत सारे सुझाव खारिज कर दिए गए हैं . जो ड्राफ्ट कमेटी के पास आया था उसको पूरी तरह से स्वीकार करने का कोई कारण नहीं था. करीब ढाई महीने की बैठकों के बाद जो सिफारिशें सरकार को दी गयी हैं उनमें टीम अन्ना समेत बहुत सारे लोगों के सुझाव हैं . किसी भी संगठन की बात को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया है.
अगर स्थायी समिति की सिफारिशों को मान लिया गया तो देश में भ्रष्टाचार की जांच की प्रक्रिया में बुनियादी बदलाव आ जायेगें . मसलन सी बी आई को अब केवल जांच करने का अधिकार रहेगा. मुक़दमा चलाने का अधिकार प्रस्तावित लोक पाल विधेयक के अभियोजन विभाग को सौंप दिया जाएगा .. सिफारिशों में प्रावधान है कि लोकपाक के अधीन एक अभियोजन विभाग बनाया जाए. और इस तरह से देश में पिछले साठ वर्षों से चल रही उस मांग को पूरा किया जा सकेगा जिसके तहत एक अभियोजन सर्विस शुरू करने की मांग होती रही है . अन्ना हजारे वालों को स्थायी समिति से निराशा इसलिए हुई है क्योंकि वे चाहते थे कि लोकपाल के अधीन ही देश के सभी सरकारी कर्मचारी आ जाएँ .लेकिन स्थाई समिति ने सुझाव दिया है कि प्रथम और द्वितीय श्रेणी के सभी अधिकारी लोकपाल के दायरे में आ जाएँ जबकि तीसरी श्रेणी के कर्मचारी मुख्य सतर्कता आयोग के जांच के दायरे में डाल दिए जाएँ . आने वाले समय में चतुर्थ श्रेणी का कोई कर्मचारी नहीं रह जाएगा क्योंकि ताज़ा वेतन आयोग की सिफारिशों में प्रावधान है कि चौथी श्रेणी को तीसरी श्रेणी में ही मिला दिया जाएगा.
अन्ना हजारे की टीम वालों को प्रधान मंत्री को लोकपाल के दायरे में न लाने पर भी परेशानी होगी क्योंकि समिति ने प्रधान मंत्री को लोक पाल में लाने के मामले को पूरी संसद के विवेक पर छोड़ दिया है . सी बी आई के कलेवर में भी पूरा बदलाव कर दिया गया है . सी बी आई अब प्रिलिमिनरी जाँच नहीं करेगी . वह कम लोकपाल का होगा . जिन मामलों में लोकपाल को लगेगा कि गंभीर जांच की ज़रुरत है, उन्हें सी बी आई के हवाले किया जाएगा. जांच के दौरान न तो लोकपाल और न ही सरकार सी बी आई के काम में दखल दे सकेंगें. जांच पूरी होने पर लोकपाल के अभियोजन विभाग का ज़िम्मा होगा कि वह विशेष अदालत में मुक़दमा चलाये और दोषी व्यक्ति को सज़ा दिलवाए. .समिति की सबसे अहम सिफारिश यह है कि अब किसी भी कर्मचारी के भ्रष्टाचार या किसी अन्य आपराधिक जांच करने के लिए जांच एजेंसी को किसी से परमिशन नहीं लेना पडेगा. अब तक होता यह था कि सम्बंधित उच्च अधिकारी मिलीभगत करके जांच की अनुमति ही नहीं देते थे . नतीजा यह होता था कि भ्रष्टाचारी कर्मचारी खुले आम घूमता रहता था.
. संसद सदस्यों के बारे में कमेटी ने साफ़ कहा है कि संविधान के अनुच्छेद १०५ में दिए गए अधिकार उनको मिलते रहेगें . संसद के अंदर के किसी भी काम पर उन्हें पहले की तरह के अधिकार हैं . लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनको अपराध करने के छूट है. संसद के ऐसे सदस्यों को दंड देने का अधिकार है जो संसद की मर्यादा को लांघते हैं .सरकारी कंपनियों , एन जी ओ और मीडिया को भी लोकपाल के दायरे में लिया गया है . जो बात अन्ना हजारे की टीम को बहुत बुरी लगेगी , वह यह है कि दस लाख से ज्यादा धन दान में लेने वाले एन जी ओ को भी लोक पाल के घेरे में ले लिया गया है . अन्ना हजारे की टीम कई सदस्यों के पास जो कई एन जी ओ हैं वे सभी लोकपाल के दायरे में अपने आप आ जायेगे,. विदेशों से धन लेने वालों को भी लोकपाल की जांच सीमा में डाल दिया गया है . अन्ना की टीम के सभी सदस्य और उनेक एन जी ओ इस प्रावधान के लपेटे इमं आ जायेगें .
गलत शिकायत करने वालों को अब तक पांच साल की सजा और कई लाख रूपये के दंड का प्रावधान था. अब कानून में ज़रूरी सुधार करके आर्थिक जुर्माना २५ हज़ार कर दिया जाएगा जबकि जेल की सजा घटा कर छः महीने कर दी जायेगी. लोकपाल की नियुक्ति के लिए भी बहुत ऊंचे आदर्श रखे गए हैं . प्रधान मंत्री, लोक सभा के अध्यक्ष , लोक सभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश के अलावा एक बहुत ही सम्मानित व्यक्ति को चयन समिति में रखा जाएगा. इस सम्मानित व्यक्ति का चुनाव सी ए जी, सी वी सी और संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष करेगें . इस चयन समिति के विचार के लिए जो नाम भेजे जायेगें उनके लिए कम से कम सात सदस्यों की एक खोजबीन समिति बनायी जायेगी. इस खोजबीन समिति में कम से कम ५० प्रतिशत ऐसे लोग होंगें जो अनुसूचित जाति , महिला ,अल्पसंख्यक और ओ बी सी समुदाय से होंगें .सरकारी बिल में लिखा गया था कि भारत के वर्तमान या पूर्व मुख्य न्यायाधीश को या सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान या अवकाश प्राप्त न्यायाधीश को ही लोक पाल बनाया जाए .स्थायी समिति ने इस बात को खारिज कर दिया है . चयन समिति के सामने अब ऐसा कोई न बंधन नहीं होगा . किसी को भी लोकपाल बनाया जा सकता है.
लोक पाल के दायरे में न्याय पालिका को शामिल नहीं किया गया है . लेकिन उनके लिए एक विस्तृत न्यायिक मानक और जवाब देही विधेयक के सिफारिश की गयी है जिसका काम यह होगा कि जजों की शुरुआती भर्ती के स्टेज से सक्रिय रहकर न्याय व्यवस्था को भ्रष्टाचार की सीमा से बाहर रखने का काम करे.

लोक पाल के साथ ही नागरिक चार्टर और शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना करने वाले कानून को भी बनाने की सिफारिश इस समिति ने किया है. जिसका उद्देश्य उन सरकारी अफसरों पर लगाम कसना है जो अपना काम नियम के अनुसार और सही वक़्त पर नहीं करते.

महंगाई के मुद्दे पर सरकार को नहीं घेर सकी भाजपा

शेष नारायण सिंह

नई दिल्ली ,८ दिसंबर. महंगाई के मामले पर सरकार को घेरने में नाकाम रही भाजपा ने सरकार को कटघरे में खड़ा करने के लिए आज फिर वही २ जी वाला रास्ता चुना. लोक सभा में आज भाजपा महंगाई के मुद्दे पर नियम १९३ के तहत बहस के लिए राजी हो गयी जिसका मतलब कि केंद्र सरकार को संसद में महंगाई के मुद्दे पर वोट का सामना नहीं करना पड़ा . अगर बहस नियम १८४ के तहत होती तो सरकार मुश्किल में पड़ सकती थी. भाजपा को आज राजनीतिक संजीवनी सुब्रमण्यम स्वामी के एक मुदमे से मिली आज नई दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी की एक अर्जी मंजूर कर ली गयी .अब वे गवाहों से जिरह कर सकेगें . अब इस बात की संभावना बढ़ गयी है कि सुब्रमण्यम स्वामी कोर्ट में गृहमंत्री,पी चिदम्बरम से पूछताछ कर सकेगें हालांकि इसमें अभी बहुत सारी अडचने हैं लेकिन आज के नई दिल्ली की अदालत के आदेश के बाद रास्ता थोडा आसान हो गया है . स्वामी का आरोप है कि २ जी के घोटाले में ए राजा और पी चिदंबरम बराबर के गुनहगार हैं . इस आदेश के आते ही सुब्रमण्यम स्वामी की पुरानी पार्टी जनसंघ के साथी जो आजकल भाजपा में हैं ,सरकार पर टूट पड़े और गृहमंत्री के इस्तीफे की मांग को फिर से उठाना शुरू कर दिया . हालांकि सरकार ने भाजपा की मंशा को कमज़ोर करने की गरज से साफ़ कहा कि पी चिदंबरम के इस्तीफे का सवाल ही नहीं पैदा होता .

कांग्रेस और केंद्र सरकार ने भाजपा की ओर से आ रही पी चिंदबरम के इस्तीफे की मांग को राजनीतिक अवसरवादिता बताया है . कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि नई दिल्ली कोर्ट का आज का आदेश न्यायिक प्रक्रिया में एक कड़ी मात्र है . यह कोई फैसला नहीं है . इस आदेश से यह कहीं से साबित नहीं होता कि पी चिंदबरम का आपाध साबित हो गया है .उन्होंने विपक्ष के अभियान को ज़बरदस्ती के एराजनीति बताया और कहा कि यह लोग किसी न किसी बहाने से संसद के काम में बाधा डालने के अलावा कुछ नहीं कर रहे हैं . संसदीय कार्य मंत्री राजीव शुक्ल ने कहा कि भाजपा के पास कोई रचनात्मक मुद्दा नहीं है इसलिए वे सरकार को मीडिया के ज़रिये घेरने की कोशिश कर रहे हैं .
कोर्ट में जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने चिदंबरम के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की अर्जी लगाई थी और आरोप लगाया था कि 2008 में जब चिदंबरम वित्त मंत्री थे तो उन्हें 2जी आवंटन में ए राजा के साथ मिलकर हेराफेरी की थी . हालांकि आज सुब्रमण्यम स्वामी बहुत दुखी थे क्योंकि आज ही खबर आई है कि अब उनको हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाने लायक नहीं माना जा रहा है लेकिन उनके मुक़दमे से उनकी पुरानी पार्टी वालों को सरकार पर मीडिया आक्रमण करने का एक और मौक़ा मिल गया है . भाजपा के प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने किसी टी वी चैनल पर कहा कि अब अगर थोड़ी सी शर्म चिंदबरम में बाकी है तो उन्हें तुरंत कुर्सी छोड़ देना चाहिए।
पटियाला हाउस कोर्ट ने सुब्रमण्यम स्वामी को सीबीआई के एक बड़े अधिकारी समेत वित्त मंत्रालय के अधिकारी एस एस खुल्लर से भी बातचीत की अनुमति दी है. लेकिन इसके पहले उन्हें 17 दिसंबर को गवाह के तौर पेश होकर गवाही देनी पड़ेगी. अगर कोर्ट स्वामी की गवाही से संतुष्ट होगा तभी चिंदबरम से पूछताछ संभव हो पायेगी. इसका मतलब यह हुआ कि अभी पी चिदंबरम से जिरह की संभावना में कई दिक्क़तें हैं लेकिन भाजपा वाले इस मुद्दे को राजनीतिक बनाने के चक्कर में इसे ले उड़े हैं .अभी २ जी मामले की जांच कर रही सीबीआई चिंदबरम को दोषी नहीं मानती .सीबीआई का दावा है कि वह मामले को लेकर चार्जशीट दाखिल कर चुकी है इसलिए चिदंबरम के खिलाफ जांच नहीं की जा सकती. ज़ाहिर है पी चिंदबरम का केस शुद्ध रूप से राजनीतिक मामला है और भाजपा के एपूरी कोशिश है इस के सहारे केंद्र सरकार को भ्रष्ट साबित करने के उसके प्रोजेक्ट को ताक़त मिले

ज़रदारी से नाराज़ पाकिस्तानी फौज ने की इमरान खां की ताजपोशी की तैयारी

शेष नारायण सिंह

पाकिस्तान एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता के घेरे में है . बिना पहले से तय किसी कार्यक्रम के राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी दुबई चले गए हैं . उनके बेटे ,बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने प्रधान मंत्री युसूफ रजा गीलानी से मुलाक़ात की है . बिलावल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष भी हैं . सरकारी तौर पर बताया गया है कि ज़रदारी मेडिकल जांच के सिलसिले में दुबई गए हैं लेकिन पाकिस्तान में पहले भी बड़े बड़े फैसले पब्लिक डोमेन में अफवाहों के रास्ते ही आये हैं . पाकिस्तानी सियासत के जानकार बताते है क कुछ बड़ा मामला हो चुका है .पाकिस्तानी फौज ने ज़रदारी को सत्ता से अलग करने की अपनी योजना को अंजाम तक पंहुचा दिया है और अब उसकी औपचारिकता पूरी की जा रही हो .वैसे भी पाकिस्तान में किसी भी सिविलियन सरकार ने कभी भी अपना वक़्त पूरा नहीं किया है ,हो सकता है कि ज़रदारी का भी वही हाल हो .

अंग्रेज़ी सत्ता के ख़त्म होने के बाद जब भारत को आज़ादी मिली तो जुगाड़ करके मुहम्मद अली जिन्नाह ने भारत के कई टुकड़े करवा कर पाकिस्तान नाम का देश बनवा दिया था. पाकिस्तान को एक राष्ट्र के रूप में हासिल करने के लिए पाकिस्तान के संस्थापाक मुहम्मद अली जिन्नाह ने एक दिन की भी जेलयात्रा नहीं की,कोई संघर्ष नहीं किया . बस लिखापढी करके पाकिस्तान ले लिया था . नतीजा यह हुआ कि जब उनके शागिर्द लियाक़त अली प्रधानमंत्री बने तो पाकिस्तान में बहुत से ऐसे लोग थे जो यह मानते थे कि लियाक़त अली को प्रधानमंत्री बनवाकर जिन्नाह ने गलती की है , लियाक़त अली से भी बहुत ज्यादा काबिल लोग पाकिस्तान में मौजूद थे. बाद में उन्हीं बहुत काबिल लोगों ने लियाक़त अली को क़त्ल करवा दिया था. बाद में जनरल अयूब ने सिविलियन सत्ता को धता बताकर फौज की हुकूमत कायम कर दी थी. यही सिलसिला पिछले साठ साल से चल रहा है. हर बार फौज सिविलियन हुकूमत को हटाने के लिए नई नई तरकीबें अपनाती है . कभी भुट्टो को गिरफ्तार करती है तो कभी नवाज़ शरीफ को देश से निकाल देती है .हो सकता है कि इस बार इलाज के लिए दुबई भेजकर राष्ट्रपति की छुट्टी करने की योजना बनायी गयी हो और उसी को अंजाम तक पंहुचाया जा रहा हो. जो भी ,इतना पक्का है कि बार बार फौजी हुकूमत कायम होने की वजह से बाकी दुनिया में पाकिस्तानी राष्ट्र की विश्वसनीयता बहुत ही कम हो गयी है . अब तक पाकिस्तान को अमरीका का पिछलग्गू देश माना जाता था , अब उसे चीन का मुहताज माना जाता है . जो भी हो अपनी स्थापना के साथ से ही राजनीतिक अस्थिरता का शिकार बने एक राष्ट्र की जितनी दुर्दशा होती है , पाकिस्तान की उतनी ही दुर्दशा हो रही है .

हर बार की तरह ,इस बार भी पाकिस्तान के मौजूदा संकट का कारण अमरीका है . अफगानिस्तान में तैनात नैटो के नाम से काम करने वाली अमरीकी फौज़ ने पाकिस्तान की सीमा में तैनात उसके २४ फौजियों मार डाला . इसके बाद पूरे देश में राजनीतिक तूफ़ान आ गया . पाकिस्तानी हुकूमत पर दबाव पड़ने लगा कि वह अमरीका से सख्ती से पेश आये . लेकिन अमरीकी मदद से अपने देश का आर्थिक इंतज़ाम कर रहे पाकिस्तान की यह हैसियत नहीं है कि वह अमरीका से सख्ती का रुख अपनाए .अमरीका के राष्ट्रपति ने भी पाकिस्तान की सिविलियन सरकार को जीत का दावा करने का कोई मौक़ा नहीं दिया . अगर अमरीका माफी मांग लेता तो ज़रदारी समेत बाकी पाकिस्तान परस्त हुक्मरानों को मुह छुपाने का मौका मिल जाता लेकिन अमरीका ने वह मौक़ा भी नहीं दिया . नतीजा सामने है . जानकार बताते हैं कि अमरीका खुद चाहता है कि अब ज़रदारी की छुट्टी कर दी जाए. वैसे भी अमरीका हमेशा से ही पाकिस्तानी फौज के तानाशाहों को अपने लिए मुफीद मानता रहा है . जो भी फौजी जनरल पाकिस्तान का शासक बना है ,वह पक्के तौर पर अमरीका का फरमाबरदार रहा है . जनरल अयूब ने पाकिस्तानी फौज़ को शुरुआती दिनों में अमरीकी साज़ सामान से पाट दिया था. १९६५ में भारत पर जब उन्होंने हमला किया था तो उन्हें मुगालता था कि सुपीरियर अमरीकी असलहों के बल पर वे भारत को हरा देगें लेकिन ऐसा न हुआ . अमरीकी पैटन टैंकों को भारतीय सेना ने दौड़ा दौड़ा कर मारा था और सैकड़ों की तादाद में उन टैंकों को ट्राफी के तौर पर भारत लाये थे . आज भारत की बहुत सारी सैनिक छावनियों में पाकिस्तानी सेना से छीने हुए अमरीका के पैटन टैंक बतौर ट्राफी देखने को मिलते रहते हैं. दूसरे फौजी जनरल याहया खां भी बहुत बड़े अमरीका परस्त थे. उनकी हुकूमत के दौरान ही पूर्वी पाकिस्तान को बंगला देश बना दिया गया था. तीसरे फौजी शासक , जनरल जिया उल हक थे . १९७१ की लड़ाई का दर्द उनको हमेशा सालता रहता था ,इसलिए उन्होंने हमेशा ही भारत को तबाह करने की योजना पर ही काम किया . भारत का सबसे बड़ा दुश्मन हाफ़िज़ सईद जनरल जिया उल हक का चेला है . भारत को तबाह करने में जनरल जिया को अमरीका से भी मदद मिली . पंजाब में आतंकवाद और कश्मीर में आतंकवाद जनरल जिया की कृपा से ही शुरू हुआ. परवेज़ मुशर्रफ भी खासे अमरीका परस्त राष्ट्रपति थे. अमरीका को खुश रखने के लिए उन्होंने पाकिस्तान को अमरीकी फौजों के हवाले कर दिया और अफगानिस्तान के तालिबान शासकों को नष्ट करने के लिए अफगानिस्तान पर होने वाले अमरीकी हमलों के लिए बेस उपलब्ध कराया . अब तक पाकिस्तानी फौज अमरीका की बहुत ही प्रिय फौज रही है लेकिन इस बार मामला गड़बड़ा रहा है . पाकिस्तानी फौज ने ओसामा बिन लादेन को अपनी हिफाज़त में रख छोड़ा था लेकिन अमरीकी खुफिया विभाग ने उसे मार डाला और अब पाकिस्तानी सैनिकों को मार कर अमरीकियों ने पाकिस्तानी फौज के लिए बहुत मुश्किल पैदा कर दिया है . अब किस मुंह से पाकिस्तानी फौज के वर्तमान मुखिया अमरीका परस्त बने रह सकते हैं . लेकिन हालात बहुत तेज़ी से बदल रहे हैं . ताज़ा राजनीतिक हालात ऐसे बन रहे हैं जिसके बाद पाकिस्तानी फौज के सामने अमरीका से मदद लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा .

पाकिस्तान में इस बात की बहुत ज़ोरों से चर्चा है कि पाकिस्तान क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और तहरीके इंसाफ़ पार्टी के प्रमुख इमरान खां को पाकिस्तानी फौज इस बार सत्ता सौंपना चाहती है . उसको भरोसा है कि राजनीति के कच्चे खिलाड़ी और अति महत्वाकांक्षी इमरान खां को सामने करके फौज अपनी मनमानी कर सकेगी. इस काम को वह अमरीका की मदद के बिना पूरा नहीं कर सकती. अमरीका को भी इसमें कोई दिक्क़त नहीं है क्योंकि इमरान खां खुद पश्चिमी सभ्यता के रंग में ढले हैं , वे अमरीका की किसी भी बात को मना नहीं कर पायेगें और पाकिस्तानी फौज भी दक्षिण एशिया के इलाके में अमरीकी हितों की झंडाबरदार बनी रहेगी. अमरीका भी पाकिस्तानी फौज को बहुत दबाना नहीं चाहता . उसे डर है कि कहीं जनरल कयानी चीन के शरण में न चले जाएँ . अगर ऐसा हुआ तो दक्षिण एशिया में अमरीकी दबदबे को भारी नुकसान पंहुचेगा. इसलिए लगता है कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी की बीमारी इमरान खां की ताजपोशी के रास्ते में पड़ने वाले हर रोड़े को साफ़ करने की अमरीका की कोशिश का हिस्सा है . ऐसा करके अमरीका पाकिस्तानी फौज को भी खुश रख सकेगा और दुनिया के सामने एक ऐसे इंसान को अमरीका का सिविलियन शासक बना कर पेश कर सकेगा जो पहले से ही एक अंतरराष्ट्रीय व्यक्तित्व का मालिक है .
पाकिस्तानी राजनीति के जानकारों की इस व्याख्या को अगर सच मान लिया जाए तो आसिफ अली ज़रदारी की बीमारी का राजनीतिक मतलब साफ़ हो जाता है . ऐसा लगता है कि ज़रदारी, पाकिस्तानी फौज और अमरीकी विदेश विभाग के बीच इस तरह का समझौता हो गया है . इसीलिये ज़रदारी की बीमारी को अफवाहों की ज़द से बाहर निकालने की गरज से सरकारी प्रवक्ता फरातुल्लाह बाबर से ही कहलवाया गया कि राष्ट्रपति ज़रदारी केवल रूटीन चेक अप के लिए दुबई गए हैं. उन्होंने कहा कि उनको पहले से ही दिल की कोई मामूली बीमारी थी ,जिसकी जांच का समय आ गया था और वे उसी सिलसिले में विदेश गए हैं . अभी यह पता नहीं है कि वे स्वदेश कब तक लौटेगें . उनकी गैर मौजूदगी में प्रधान मंत्री युसूफ रज़ा गीलानी की राय से सेनेट के अध्यक्ष को कार्यवाहक राष्ट्रपति भी बना दिया गया है .
इसके पहले पाकिस्तानी फौज से डरे हुए आसिफ अली ज़रदारी ने अमरीका से अपील की थी कि पाकिस्तानी फौज की उस कोशिश को नाकाम कर दिया जाए जिसके तहत वह उनको बेदखल करना चाह रही थी . लेकिन लगता है कि अब अमरीका भी ज़रदारी से ऊब गया है . शायद इसीलिये उसने इस काम में ज़रदारी की मदद कर रहे अमरीका में पाकिस्तानी राजदूत , हुसैन हक्कानी की कोशिश को बेनकाब कर दिया था और उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा था. जो भी हो ,साफ़ लग रहा है कि पाकिस्तान में सत्ता बदलने वाली है . और अमरीका किसी भी कीमत पर पाकिस्तान की फौज़ की मर्जी के खिलाफ जाने को तैयार नहीं है . इसलिए समझौते के तौर पर इमरान खां की ताजपोशी की तैयारी की जा रही है