Monday, January 31, 2011

मिस्र में अब ताज उछाले जायेगें ,तख़्त गिराए जायेगें .

शेष नारायण सिंह

मिस्र के राष्ट्रपति ,होस्नी मुबारक की विदाई का वक़्त करीब आ पंहुचा है . लगता है अब वहां ज़ुल्मो-सितम के कोहे गिरां रूई की तरह उड़ जायेगें . विपक्ष की आवाज़ बन चुके , संयुक्त राष्ट्र के पूर्व उच्च अधिकारी मुहम्मद अल बरदेई ने साफ़ कह दिया है कि होस्नी मुबारक को फ़ौरन गद्दी छोडनी होगी और चुनाव के पहले एक राष्ट्रीय सरकार की स्थापना भी करनी होगी. पिछले तीस साल से अमरीका की कृपा से इस अरब देश में राज कर रहे मुबारक को मुगालता हो गया था कि वह हमेशा के लिए हुकूमत में आ चुके हैं . लेकिन अब अमरीका को भी अंदाज़ लग गया है कि कि होस्नी मुबारक को मिस्र की जनता अब बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है . तहरीर चौक पर जुट रहे लोगों को अब किसी का डर नहीं है . राष्ट्रपति मुबारक, फौज के सहारे राज करते आ रहे हैं लेकिन लगता है कि अब फौज भी उनके साथ नहीं है . तहरीर चौक में कई बार ऐसा देखा गया कि अवाम फौजी अफसरों को हाथों हाथ ले रही है .यह इस बात का संकेत है कि अब फौज समेत पूरा देश बदलाव चाहता है .इस बीच अमरीका हीला हवाली का अपना राग अलाप रहा है .अमरीकी विदेश मंत्री , हिलेरी क्लिंटन ने कहा है कि सत्ता परिवर्तन तो होना चाहिए लेकिन मौजूदा सत्ता को उखाड़ फेंकना ठीक नहीं है . अमरीका के इस रुख से चारों तरफ बहुत सख्त नाराज़गी है . मिस्र में तो लोग नाराज़ हैं ही , अमरीकी जनमत भी ओबामा सरकार से निराश हो रहा है . अमरीका के चोटी के विद्वानों ने राष्ट्रपति ओबामा को एक पत्र लिखकर मांग की है कि मिस्र में लोकशाही की स्थापना में मदद करें, उसमें अडंगा न लगाएं . इन विद्वानों में अमरीकी विश्वविद्यालयों में काम कर रहे राजनीतिशास्त्र और इतिहास के वे प्रोफ़ेसर हैं जिन्होंने अरब देशों की राजनीति का गंभीर अध्ययन किया है . इन लोगों ने राष्ट्रपति ओबामा से अपील की है मिस्र में चल रहे लोकतांत्रिक आन्दोलन ने उन्हें एक अवसर दिया है जिसका उन्हें तुरंत इस्तेमाल करना चाहिए . उन विद्वानों ने कहा है कि अमरीकी नागरिक के रूप में वे उम्मीद करते हैं कि उनका राष्ट्रपति लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए आगे आयेगा. पिछले तीस वर्षों से अमरीकी सरकार ने मिस्र में अरबों डालर कर खर्च करके वह व्यवस्था लागू करने की कोशिश की जिसे अब वहां की जनता ख़त्म करना चाहती है . मिस्र के लाखों नागरिक सडकों पर हैं और मांग कार रहे हैं कि राष्ट्रपति मुबारक फ़ौरन इस्तीफ़ा दें और एक ऐसी सरकार बने जो उनके और उनके पारिवार के प्रभाव से मुक्त हो . अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा था कि मिस्र की जनता की महत्वाकांक्षाओं को ध्यान में रख कर राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक सुधार किये जाने चाहिए . राष्ट्रपति ओबामा से मांग की गयी है कि वे अपनी सरकार को हिदायत दें कि वह इस बात का ऐलान करे कि इस तरह के सुधार होस्नी मुबारक के बूते की बात नहीं हैं.अमरीकी जनमत को प्रभावित कर सकने वाले इन लोगों ने कहा है कि मिस्र के मौजूदा संकट से अमरीका को भी सबक लेने की ज़रुरत है . अमरीकी सरकार को चाहिए कि वह मिस्र की जनता का साथ आशा और लोकशाही के मूल्यों के आधार पर दे . जैसा कि आम तौर पर होता है वहां अब भौगोलिक रणनीति को आधार बनाकर काम करने की ज़रूरत नहीं है.ओबामा को उन्हीं की बात याद दिलाई गयी है जब उन्होंने पिछले शुक्रवार को कहा था कि विचारों को दबा देने से उन्हें ख़त्म नहीं किया जा सकता. ओबामा से अपील की गयी है कि मिस्र में उन नीतियों को अब त्याग दें जिनकी वजह से यह हाल हुआ है . और एक नयी राह पर चलें . अमरीकी विदेश नीति में बहुत कमियाँ हैं . मिस्र ने एक अवसर दिया है कि उन कमियों को दूर किया जाए,

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित ,मुहम्मद अल बरदेई की मिस्र में बहुत इज्ज़त है . उन्होंने जनता से कहा है कि आप ही इस क्रान्ति के मालिक हैं आप ही इस क्रान्ति का भविष्य हैं . हमारी मांग है कि मौजूदा हुकूमत फ़ौरन ख़त्म हो और एक नयी सरकार कायम की जाए जहां मिस्र का हर नागरिक सम्मान और स्वतंत्रता के साथ जीवन बिता सके. लेकिन मुहम्मद अल बरदेई के आ जाने के बाद मिस्र के ही कुछ हलकों में परेशानी नज़र आने लगी है . इस तरह के लोगों का कहना है कि वे मिस्र के बारे में कुछ नहीं जानते क्योंकि वे बहुत दिनों से संयुक्त राष्ट्र की अपनी नौकरी के चक्कर में विदेशों में ही रह रहे हैं . अन्य किसी राजनीतिक संगठन के न होने के कारण शायद मुस्लिम ब्रदरहुड नाम का एक संगठन आन्दोलन का नेतृत्व करता नज़र आ रहा था .इस संगठन की कोशिश है कि मिस्र में इस्लामी राज्य स्थापित किया जाए. लेकिन अब लगता है कि उनकी भी कुछ ख़ास नहीं चलने वाली है क्योंकि मिस्र में अपेक्षाकृत लोकतांत्रिक मूल्यों को ज्यादा महत्व दिया जाता रहा है . यह मुबारक भी उन्हीं लोकतांत्रिक मूल्यों के नाम पर ही सत्ता में आये थे लेकिन धीरे धीरे तानाशाही प्रवृत्तियों के शिकार हो गए. इसके लिए अमरीकी नीतियाँ ही ज्यादा ज़िम्मेदार हैं क्योंकि देखा गया है कि अमरीका को अगर उस इलाके की चौकी दारी करने वाला कोई तानाशाह मिल जाए तो उसे इस बात की कोई परवाह नहीं रहती कि उस देश में लोकतंत्र की स्थापना की कोशिश की जाये. पाकिस्तान में पिछले तीस वर्षों में अमरीका ने दो तानाशाहों को समर्थन दिया है . इसी तरह से बाकी देशों का भी हाल है . बहर हाल अब लगता है कि अमरीका के लिए भी मिस्र में होस्नी मुबारक की बेकार हो चुकी सरकार को संभाल पाना संभव नहीं होगा . इस बात के संकेत साफ़ नज़र आने लगे हैं कि अब अमरीका मुबारक को डंप करके किसी नए इंतज़ाम को अपनाने के चक्कर में है . दुनिया को मालूम है कि मिस्र की सरकार अमरीका की कठपुतली सरकार है .इसलिए वहां किसी भी बद्लाव की उम्मीद अमरीका के सक्रिय हस्तक्षेप के बिना नहीं की जानी चाहिए