आज जगजीवन राम की जयंती है
शेष नारायण सिंह
जगजीवन राम इस देश के राष्ट्रीय हीरो हैं . अपनी अंतिम सांस तक उन्होंने भारत को हमेशा सबसे ऊपर रखा . सामाजिक न्याय की उनकी सोच बहुत ही व्यावहारिक थी. महात्मा गाँधी की सामाजिक बराबरी की दार्शनिक सोच को उन्होंने अमली जामा पहनाया. १९३० के दशक में वे बाकायदा राजनीति में आये . यह एक महान राजनीतिक जीवन की शुरुआत थी बाद के वर्षों में महात्मा गाँधी के साथ हमेशा खड़े रहने वाले जगजीवन राम ने राष्ट्रीय आन्दोलन का हमेशा नेतृत्व किया . आज़ादी के बाद जब पहली सरकार बनी तो वे उसमें कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल हुए और जब तानाशाही का विरोध करने का अवसर आया तो लोकशाही की स्थापना की लड़ाई में शामिल हो गए. सब जानते हैं कि ६ फरवरी १९७७ के दिन केंद्रीय मंत्रिमंडल से दिया गया उनका इस्तीफ़ा ही वह ताक़त थी जिसने इमरजेंसी के राज को ख़त्म किया. उसके बाद उन्हें इस देश ने प्रधानमंत्री नहीं बनाया क्योंकि वे दलित थे . हालांकि उनको ही प्रधान मंत्री होना चाहिए था . केंद्र में वे जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गाँधी के मंत्रिमंडलों में रहे . कृषि और खाद्य मंत्री के रूप में उन्होंने देश की खाद्य समस्या का ऐसा हल निकाला कि आज तक अनाज के लिए हमें किसी मुल्क के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ा . बंगलादेश की स्थापना के समय वे रक्षा मंत्री थे . सेना को जो नेतृत्व उन्होंने दिया वह अपने आप में एक मिसाल है . उन दिनों एक बहुत ही गैर ज़िम्मेदार आदमी अमरीका का राष्ट्रपति था , उसने भारत को धमकाने के लिए हिंद महासागर में अमरीकी सेना का परमाणु हथियारों से लैस विमानवाहक पोत , 'इंटरप्राइज़' भेज दिया था. बाबू जगजीवन राम ने ऐलान कर दिया कि अगर ' इंटरप्राइज़' बंगाल की खाड़ी में ज़रा सा भी आगे बढा तो भारत के जांबाज़ सैनिक उसे वहीं डूबा देंगें.
बाबू जगजीवन राम के योग्य नेतृत्व का ही कमाल है कि बंगला देश को स्वतंत्र करवाने की लड़ाई को बहुत ही योजनाबंद्ध तरीके से पूरा कर लिया गया . कृषि मंत्री के रूप में उन्होंने हरित क्रान्ति की उपलब्धियों को देश की आर्थिक तरक्की के मिशन से जोड़ा . देश में मौजूद कृषि शोध संस्थानों की स्थापना में उनका बड़ा योगदान है . रेल मंत्री के रूप में बाबू जगजीवन राम ने बुनियादी ढांचागत सुविधाओं में क्रांतिकारी योगदान किया . एक राष्ट्र निर्माता के रूप में उन्हें हमेशा याद किया जाएगा . आज अपने देश में जितने भी कानून मजदूरों के हित के लिए बनाए गए हैं उन सबको बाबू जगजीवन राम ने तब बनाया था जब वे नेहरू की कैबिनेट में मंत्री थे.लेकिन यह देश जगजीवन राम के प्रति वह सम्मान कभी नहीं व्यक्त कर पाया जिस पर उनका अधिकार है . उनके राजनीतिक जीवन में ऐसे बहुत सारे दृष्टांत हैं जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि उन्होंने हमेशा ही राष्ट्र प्रेम और सामाजिक समरसता को मह्त्व दिया . सामाजिक न्याय की अपनी लड़ाई में उन्होंने सारे समाज को साथ रखने की कोशिश की और महात्मा गाँधी और जवाहर लाल नेहरू के विश्वास पात्र बने. सारी दुनिया जानती है कि १९६९ में कांग्रेस में बँटवारे के बाद जगजीवन राम कांग्रेस के सबसे बड़े नेता थे और उम्मीद की जा रही थी कांग्रेस में उन्हें ही वैकल्पिक नेता के रूप में स्वीकार किया जाएगा. . १९६९ के बाद में बाबूजे एने ही इंदिरा गांधी की डूबती नैया को पार लगाया था . कांग्रेस की १९७१ की जीत में भी बाबू जगजीवन राम के कुशल नेतृत्व का भारी योगदान था . हरित क्रान्ति के ज़रिये उन्होंने देश के ग्रामीण इलाकों में सम्पन्नता को न्योता दिया था और जब कांग्रेस के उस वक़्त के बड़े नेता इंदिरा गाँधी को सबक सिखाने के चक्कर में थे . बाबू जी के नेतृत्व का जलवा था कि पूरे देश का कांग्रेस कार्यकर्ता उनकी पार्टी के साथ लगा रहा . लेकिन जब १९७२ के बाद बंगलादेश की स्थापना हो गयी तो इंदिरा गाँधी ने समझा कि सब उनकी ही कृपा से हुआ था , सब उबका ही प्रताप था. इसी सोच के तहत उन्होंने अपने छोटे बेटे को अपने विकल्प के रूप मों पेश करने की योजना पर काम कारण शुरू कर दिया . उसके बाद तो कांग्रेस में मनमानी का युग शुरू हो गया. इंदिरा गाँधी के छोटे बेटे के संगी साथी देश की राजनीतिक व्यवस्था पर हावी हो गए.कांग्रेस में उन लोगों की जय जय कार होने लगी जो किसी रूप में इंदिरा गाँधी छोटे बेटे तक पंहुच बना सकते थे. नतीजा यह हुआ कि अपनी सत्ता बचाए रखने के लिए इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई. राज नारायण की चुनाव याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद इंदिरा गांधी के लिए प्रधान मंत्री पद पर बने रहना असंभव हो गया था . अगर उस वक़्त उन्होंने कांग्रेस के सबसे बड़े नेता, बाबू जगजीवन राम को प्रधान मंत्री बना दिया होता तो कांग्रेस एक लोकतांत्रिक संगठन के रूप में बच जाती और देश को इमरजेंसी और संजय गाँधी का आतंक न झेलना पड़ता . लेकिन इन्दिरा गाँधी को अपने बेटे संजय के राजनीतिक भविष्य के सिवा कुछ भी नहीं दिखता था . नतीजा सब को मालूम है . कांग्रेस एक लोकतांत्रिक पार्टी के रूप में वहीं खतम हो गयी.
इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गाँधी की स्थापित सत्ता के विरोधी जयप्रकाश नारायण ने कई बार कहा था कि जगजीवन राम जैसे बड़े नेताओं को इंदिरा गाँधी और संजय गांधी के विरोध में खड़े हो जाना चाहिए . वह अवसर फरवरी १९७७ में आया जब जगजीवन राम ने अपने कुछ सताहियों के साथ मिलकर कांग्रेस फार डेमोक्रेसी बना ली.एक बार कांग्रेस फिर टूट गयी और देश में लोकतंत्र की स्थापना हुई. सब को मालूम था अकी १९७७ की जीत कभी न मिलती अगर बाबू जगजीवन राम का साथ न होता . लेकिन जब प्रधान मंत्री चुनने की बात आई तो पुरातन पंथी ताक़तों ने मोरारजी देसाई को सत्ता सौंप दी. अपनी जिद और अजीबोगरीब आदतों की वजह से विख्यात मोरारजी देसाई ने देश को कोई प्रभावी नेतृत्व नहीं दिया और एक बहुत बड़ा राजनीतिक प्रयोग ज़मींदोज़ हो गया . जनता पार्टी को एक बार मौक़ा मिला था कि उस वक़्त के सबसे बड़े राजनीतिक नेता को प्रधान मंत्री बनाते लेकिन जनता पार्टी नामक भानुमती के कुनबे में ऐसे लोग शामिल थे जो किसी भी हालत में आम राय से फैसले ले ही नहीं सकते थे. उनकी आपसी लड़ाई को ख़त्म करने के लिए जनता ने दोबारा इंदिरा गाँधी की वापसी का हुक्म सुना दिया.
१९७७ में जगजीवन राम को उनके हक से दूर रखने के बहुत दूरगामी नतीजे हुए. सैकड़ों वर्षों से दोयम दर्जे की ज़िंदगी जी रहे दलित समाज ने आज़ादी के बाद पहली बार समझा कि कांग्रेस या अन्य कोई भी राजनीतिक जमात उनको केवल इस्तेमाल काना चाहती है. कोई भे एराजनीतिक पार्टी दलितों को उनका हक देने के लिए तैयार नहीं है . न्याय प्रिय लोगों का एक बहुत बड़ा समुदाय आज कांग्रेस से दूर जा चुका है और उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में कनाग्रेस को कोई पूछने वाला नहीं है . १९७७ के बाद से ही दलितों ने कांग्रेस से किनारा करना शुरू कर दिया और जब कांशीराम ने ऐलानियाँ दलितों की पार्टी बनायी तो दलित समुदाय के लोगों ने उसी पार्टी को अपना लिया. सच्च्ची बात यह है कि जगजीवन राम ने कभी भी दलितों की राजनीति नहीं की लेकिन कांग्रेस और उसके बाद के नेतृत्व ने उन्हें हमेशा दलित ही माना .उनकी राजनीति के केंद्र में हमेशा से ही भारत रहा है और उसी भारत के न्याय प्रिय लोग आज भी बाबू जगजीवन राम को आदर्श मानते हैं .
Thursday, April 5, 2012
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