Monday, February 21, 2011

दादासाहेब फाल्के के उद्यम का दस्तावेज़ है मराठी फिल्म हरिशचंद्राची फैक्टरी

शेष नारायण सिंह

टेलिविज़न पर मराठी फिल्म "हरिशचंद्राची फैक्टरी " देखने का मौक़ा मिला. एक बहुत ही अज़ीज़ दोस्त ने कहा कि मराठी भाषा न जानने की वजह से फिल्म को देखने में कोई दिक्क़त नहीं आयेगी . इस फिल्म के बारे में इतना पता था कि आस्कर पुरस्कारों के लिए गयी थी लेकिन पुरस्कार मिला नहीं . फिल्म देख कर समझ में आया कि आस्कर पुरस्कार देने वाले गलती कैसे करते हैं .यह फिल्म भारतीय सिनेमा के आदिपुरुष दादा साहेब फाल्के की पहली फिल्म हरिश्चंद्र तारामती के निर्माण के बारे में है . दादासाहेब फाल्के ने इस देश में सिनेमा की बुनियाद डालने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था . उनके उद्यम को विषय बनाकर बनायी गयी यह फिल्म बेहतरीन है और पहली बार फिल्म निर्देशन का काम कर रहे परेश मोकाशी की लीक से हट कर चलने की हिम्मत भी लाजवाब है . फिल्म एक वृत्तचित्र है लेकिन डाकुमेंटरी की तरह बनायी गयी है. दादासाहेब फाल्के के दृढ़निश्चय को फिल्म की भाषा में पेश करने की कोशिश में फिल्मकार ने एक ऐसी फिल्म बनाने में सफलता हासिल कर ली है जो गैर मराठी भाषी को भी मन्त्रमुग्ध करने की क्षमता रखती है .. दादासाहेब फाल्के की शुरुआती ज़िंदगी और खतरों से खेलने की क्षमता को बहुत ही अच्छी तरह से प्रस्तुत किया गया है . मुंबई में प्रिंटिंग प्रेस की नौकरी छोड़कर जब फाल्के ने जादू दिखाने का काम शुरू किया तो जिस ऊहापोह से गुज़रे वह बहुत ही अच्छी तरह से फिल्म के व्याकरण में क़ैद कर लिया गया है. जादू दिखाने के काम के दौरान उन्होंने चलती फिरती तस्वीरें देखीं. अभिभूत हो गए. तब तक फिल्मों के बारे में कुछ नहीं जानते थे लेकिन पढ़ लिख कर पता लगाया कि लन्दन में उस तरह की फ़िल्में बनती थीं . खर्च पानी का इंतज़ाम करके लन्दन गए और वहां देखा कि छोटी छोटी फिल्म बनती थीं , कलाकार कुछ बोलते नहीं थे लेकिन मनोरंजन ख़ासा होता था .लन्दन में ही उन्होंने हज़रत ईसा मसीह के जीवन पर बनी एक फिल्म देखी जिसमें एक कहानी थी . बस उन्होंने फैसला कर लिया कि लौट कर महापुरुषों के जीवन पर आधारित फ़िल्में बनायेगें . लन्दन से स्वदेश लौटने के पहले कैमरा खरीदने का आर्डर दे दिया और यहाँ आकर अयोध्या के राजा हरिश्चंद्र के जीवन पर फिल्म बनाने का मन बनाया . दादा साहेब फाल्के की भूमिका इस फिल्म में नंदू माधव ने निभाई है जब कि फाल्के की पत्नी सरस्वती की भूमिका मराठी थियेटर की सफल अभिनेत्री, विभावरी देशपांडे ने की है . दोनों ही कलाकारों का अभिनय बेहतरीन है .

'हरिशचंद्राची फैक्टरी' फिल्म की कहानी १९११ में शुरू होती है जब फाल्के ने कुछ नया कर गुजरने का मन बनाया . १९१३ में हरिश्चंद्र तारामती प्रदर्शित होने और उसके बाद के फाल्के के हौसले को जिस तरह से फिल्माया गया है वह लाजवाब है . फिल्म में ह्यूमर है लेकिन फिल्म बहुत ही गंभीर है . ह्यूमर की शास्त्रीय परिभाषा में बताया गया था कि अपने आप पर हंसने की क्षमता ही ह्यूमर होता है . ज़ाहिर है अपने आप पर हंस पाना कमज़ोर इंसान का गुण नहीं होता , उसके लिए अन्दर की बहुत मजबूती चाहिए. पूरी फिल्म में ऐसी बहुत सारी सिचुएशंस हैं जब मुख्य कलाकार नंदू माधव दादासाहेब की ज़िंदगी के बहुत मुश्किल लम्हों को ह्यूमर में बदल देते हैं . इससे फाल्के के चरित्र की ऐतिहासिक मजबूती और नंदू माधव की अभिनय क्षमता दोनों का डंका बज जाता है . जब अपने घर को छोड़कर फिल्म बनाने की अपनी योजना को कार्यरूप देने के लिए फाल्के अपने बच्चों और पत्नी के साथ चल पड़ते हैं तो उनकी मंजिल दादर है . उन्हें पता चला था कि दादर में फिल्म का काम करने के लिए सस्ते दामों पर ज्यादा जगह मिल आयेगी. दादर उन दिनों शहर से बहुत दूर था . उनकी पड़ोसी एक महिला अपने पति से पूछती है कि सुना है कि दादर में तो जंगल हैं . जवाब में बहुत सारी सूचना एक वाक्य में भर दी गयी है . बुढऊ कहते हैं कि फाल्के जैसे जंगली के लिए वह सही जगह है . अभिनेताओं के लिए दिया गया विज्ञापन और उसके जवाब में आने वाले लोगों का जो हिस्सा है वह भी फाल्के की उस योग्यता की सनद है कि वे विपरीत हालात में किस तरह से लक्ष्य को नहीं भूलते. तारामती के रोल के लिए महिला कलाकार की उनकी तलाश के जो शाट हैं वह बहुत ही अच्छी तरह से प्रस्तुत किये गए हैं . किसी महिला को सिनेमा में काम करने के लिए तैयार कर पाना उन दिनों असंभव था . लेकिन फाल्के ने आसानी से हार नहीं मानी . तवायफों के कोठों पर भी गए लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी.आखिर में लड़कों को ही स्त्रियों के रोल में इस्तेमाल किया. जिस लड़के को तारामती को रोल दिया ,उसका मूंछ सहित तारामती का रोल करने का आग्रह और उसको उसके बाप की मौजूदगी में मूंछ साफ़ कराने के लिए राजी कर पाना बहुत ही कठिन काम था लेकिन उसे फाल्के ने हासिल किया और नंदू माधव ने उस सीन में जान डाल दी. उसके पहले अपनी पत्नी को तारामती की भूमिका देने की जो कोशिश है वह विभावरी देशपांडे और नंदू माधव को वहां स्थापित कर देती है जहां अभिनय की काबिलियत के लिहाज़ से हिन्दी फिल्मों का कोई भी मौजूदा स्टार नहीं पंहुच पाया है .

फाल्के की फिल्म लन्दन में दिखाई गयी और वहां के फिल्म उद्योग के नेताओं ने उन्हें आमंत्रित किया कि लन्दन में ही रहकर फिल्म बनाइये लेकिन उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि अगर वे ज्यादा पैसे के लालच में लन्दन में फिल्म बनायेगें तो भारत में फिल्म उद्योग की स्थापना ही नहीं हो पायेगी . बाद में जब नंदू माधव और विभावरी देशपांडे मुंबई की सडकों पर चार आने में फाल्के नाम के खिलौने बिकते देखते हैं तो उनकी समझ में आ जाता है कि भारतीय सिनेमा के आदिपुरुष ने अपना काम कर दिखाया है . फिल्म में कोई भी नाच गाना नहीं है लेकिन आनंद मोदक का संगीत बहुत ही अच्छा है . पूरी फिल्म में लगता है कि आप १९१० के मुंबई में ही घूम रहे हैं . उसके लिए कला निदेशक नितिन चंद्रकांत देसाई और संगीतकार आनंद मोदक की तारीफ़ की जानी चाहिए .सिनेमा के इतिहास पर एक ऐतिहासिक फिल्म बहुत ही अच्छी बन गयी है . इस तरह की फ़िल्में बनाने का सौदा बहुत ही रिस्की होता है . श्याम बंगाल जैसा फिल्मकार भूमिका बनाकर इस सच्चाई को रेखांकित कर चुका है लेकिन फिर भी आशा की जानी चाहिए कि हिन्दी में भी इस तरह की फ़िल्में बनाने की दुबारा कोशिश की जायेगी .

बौखलाए सीएम निशंक ने पत्रकार उमेश कुमार के घर धावा बोलने के आदेश दिए

Sunday, 20 February 2011 21:36 B4M भड़ास4मीडिया - हलचल


: उत्तराखंड पुलिस ने उमेश कुमार के नोएडा स्थित घर को घेरा : गिरफ्तारी कर अपमानित करते हुए उत्तराखंड ले जाने पर तुली : एनएनआई और भड़ास4मीडिया पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के महाघोटाले के बारे में खबर छपने के कुछ ही देर बाद निशंक का माथा घूम गया और उन्होंने उमेश कुमार के खिलाफ बर्बर कार्रवाई शुरू करा दी है. अभी तक पत्रकार उमेश कुमार के घर और मकान को निशाना बनाए मुख्यमंत्री निशंक ने अब सीधे उमेश और उनके परिजनों को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने का इरादा कर लिया है.

इसी इरादे के तहत निशंक ने उत्तराखंड की पुलिस फोर्स को उमेश और उनके बच्चे व पत्नी को गिरफ्तार करने के लिए आदेशित कर दिया है. ऐसी अपुष्ट जानकारी सूत्रों के हवाले से मिली है. उमेश ने उत्तराखंड राज्य में अपने उपर उत्पीड़न होते देख खुद को और अपने परिजनों को नोएडा बुला लिया था लेकिन निशंक सरकार की पुलिस उमेश का लोकेशन ट्रेस करते हुए नोएडा तक पहुंच गई है. ताजी सूचना के अनुसार उमेश कुमार, उनकी पत्नी और इकलौता बच्चा नोएडा के जिस फ्लैट में आज रहने के लिए आए, उसी फ्लैट को उत्तराखंड पुलिस ने घेर लिया है. यह घेराबंदी पिछले कई घंटों से चल रही है. पुलिस हर हाल में उमेश और उनके परिजनों को अपमानित करते हुए देहरादून ले जाने पर तुली हुई है जबकि उमेश और उनके परिजन गिरफ्तारी के पीछे वजह जानने की बात कह रहे हैं.

सूत्रों के मुताबिक पुलिस का कहना है कि जो समाचार एजेंसी उमेश कुमार चलाते हैं, एनएनआई नाम से, उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज है और कई अन्य मुकदमे उमेश की तरफ से लिखाए गए हैं, उसी के तहत उत्तराखंड पुलिस उनकी गिरफ्तारी करना चाहती है. फिलहाल पूरी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है. पुलिस उमेश कुमार को गिरफ्तार करने का प्रयास कर रही है. नोएडा और दिल्ली के पत्रकार उत्तराखंड पुलिस द्वारा उमेश के घर को घेरे जाने की सूचना मिलते ही उमेश कुमार की घर की तरफ पहुंच रहे हैं. कुछ न्यूज चैनलों की ओवी वैन भी उमेश की घर की ओर पहुंच रही है. कई पत्रकार संगठनों और पत्रकारों ने निशंक सरकार की दमनकारी नीति की निंदा की है. साथ ही यह भी कहा है कि अगर कोई पत्रकार घोटाले का पर्दाफाश करता है तो उसका सत्ता द्वारा दमन करना न सिर्फ निंदनीय है बल्कि उस मामले में घोर अपराध है जब सत्ता के शीर्ष पर एक पत्रकार से नेता बना शख्स बैठा हो.

इस घटनाक्रम पर भड़ास4मीडिया के संपादक यशवंत सिंह ने कहा है कि अगर उत्तराखंड की निशंक सरकार किसी पत्रकार द्वारा घोटाले को उजागर करने पर उसे चुप कराने पर तुली हुई है तो इस देश के आनलाइन माध्यम से जुड़े सारे लोग, खासकर मीडियाकर्मी फेसबुक, ब्लाग सहित सभी प्लेटफार्मों पर निशंक सरकार की निंदा करेंगे और जरूरत पड़ी तो दिल्ली और देहरादून में काला दिवस मनाएंगे और गिरफ्तारी भी देंगे. यशवंत ने स्थिति की पूरी जानकारी मिलने के बाद अपनी रणनीति का खुलासा करने की बात कही है.

अगर आप लोग इस खबर को पढ़ रहें हों तो आप सभी से अनुरोध है कि निशंक सरकार के इस काले कारनामें की निंदा करें और देहरादून से लेकर दिल्ली, रायपुर, पटना, भोपाल आदि सभी छोटे बड़े शहरों में यथासंभव जो भी कर सकते हों, आनलाइन माध्यम के जरिए या आफलाइन माध्यम से, अपनी बात कहें और अपने अपने हिसाब से विरोध प्रदर्शित करें. कई प्रेस क्लब और प्रेस संगठन भी इस घटना की निंदा करने की तैयारी कर रहे हैं. पूरी दुनिया में भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे अभियान को अब भारत में भी आगे बढ़ाने की जरूरत है और जिस तरह उमेश कुमार ने पहल की है, उस पहल को आगे बढ़ाने का कार्य हम सभी लोगों को करना चाहिेए.

Comments (7)
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written by dobhal, February 21, 2011
अच्छा तो ये वही राजेंद्र जोशी कमेंट कर रहा है उमेश के खिलाफ जो कई वर्षों से उन्हीं उमेश की न्यूज एजेंसी में उनके तलवे चाट कर काम कर रहा था.... तब उमेश से पगार पाते हुए उमेश की जय जयकार करता था और आजकल निशंक से वित्तपोषित होकर उमेश के खिलाफ राग अलाप रहा है. जिस आदमी ने खुद नेताओं के तलवे चाटकर अपनी जीविका चलाई हो वो क्या दूसरों के बारे में बात करेगा. उमेश अगर इतने धन संपत्ति का मालिक है तो भी वो अपने धन संपत्ति की परवाह न कर पत्रकारिता की अलख जगाए है और एक भ्रष्टाचारी सत्ताधारी के खिलाफ कलम की ताकत दिखा रहा है. राजेंद्र जोशी, वो तुमसे तो लाख गुना अच्छा है जो कलम को गिरवी रखे हुए है. तुम जैसे दलालों के कारण ही आज उत्तराखंड में मीडिया की ये हालत है कि कोई सत्ता के खिलाफ लिखने बोलने का साहस नहीं करता. उमेश के निजी जीवन के बारे में मैं नहीं जानता लेकिन वो जिस तरह का साहसिक काम कर रहे हैं, उससे उनके प्रति समर्थन का भाव ही पैदा होगा, विरोध कतई नहीं. हां, इसी बहाने तुम जैसे भाटों चारणों के चेहरे पर लगे मुखौटे जरूर हट रहे हैं. तुम्हें शर्म आनी चाहिए राजेंद्र जोशी और तुम्हें खुद को पत्रकार कहने से पहले सौ बार सोचना चाहिए. अगर तुम्हारे में हिम्मत होगी और तुम असली पत्रकार होगे तो उमेश द्वारा खुलासा किए गए निशंक के महाघोटाले के तथ्यों पर बात करोगे, न कि उमेश के निजी जीवन व आचरण पर. एक बार फिर मैं तुम जैसे उत्तराखंडी दलाल पत्रकारों को महा चारण और महा भाट की उपाधि देता हूं. तुम्हें कीड़े पड़ेंगे कथित पत्रकार राजेंद्र जोशी, देख लेना.

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written by संजीव शर्मा, February 21, 2011
ये क्या मूर्खता कर रहे हो निशंक भाई..? भ्रष्टाचारी नेताओं को इतनी अकड़ में नहीं रहना चाहिए. अब अपने भाई मधु कोड़ा को ही देख लो. तुमसे तो कहां आगे थे खाने-पकाने में, लेकिन क्या मजाल जो किसी पत्रकार का बाल भी बांका किया हो.. आज भी कोड़ा भाई के इर्द-गिर्द उनके चहेते पत्रकार मधुमक्खियों की तरह मंडराते रहते हैं.. निशंक भाई, कल को तुम्हारा भी बुरा वक्त आएगा, तब यही लोग काम आएंगे. अभी तो तुम हॉट सीट पर हो... सँबल कर बैठो वर्ना जल गए तो फोड़ा हो जाएगा.

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written by अभिषेक, February 21, 2011
ये तो बहुत ही शर्मनाक हरकत है निशंक की. शायद निशंक यह भूल गए हैं कि वो कुर्सी पर हमेशा चिपके नहीं रहेंगे. जब उतर जाएंगे तो उनकी यही करतूतें उन्हें सांप बन कर डंसने को दौड़ेंगी.. तब कहां-कहां भागते फिरेंगे..?

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written by ??? ????? ??????, February 20, 2011
written by मदन कुमार तिवारी , February 20, 2011

उतराखंड पुलिस को बिना यूपी पुलिस को साथ लिये उमेश के घर को घेरने या गिरफ़्तार करने का अधिकार नही है । अविलंब उस थाना क्षेत्र का फ़ोन न० तथा उमेश का पता बतायें । मैं गया में हूं । परन्तु अभी बात करुंगा । उतराखंड के डीजीपी का भी फ़ोन न० बतायें या जिस जिले से पुलिस आई है , उस जिले के एस पी का न० बतायें । मैने अभी-अभी डीजीपी के इमेल किया है । '> jspndy@yahoo.co.in यह इमेल है डीजीपी का । मैने जो इमेल किया वह निचे दे रहा हूं ।
Mr. DGP , right now it has come to my knowledge that the utrakhand police is harassing one Journalist Mr. Umesh kumar and even trying to enter into his Noida house without adopting legal provision to inform local police . procedure to arrest outside of state has been well defined in Cr.p.c . person must be informed reason and should be allowed to make consultation with his lawyer. I hope you will stop such illegal act of your police with immediate effect . It appears that Mr. Umesh kumar has written few articles against CM Nishank that is why he has been made target . we are living in a civilised society having legal provision to safe guard the life and property of citizen. Any act against the provision as enshrined in our constitution is offence . Stop the illegal act of your concerned police officials .

madan kumar tiwary
advocate



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written by naren, February 20, 2011
निशंक दरअसल राजनीति के लिए नही स्त्रैण लहजे में कविताऐं पढ़ने और उत्तराखंड को लूटने के लिए मुख्यमंत्री बने है। हैरत की बात ये है कि केन्द्र को मँहगाई और घोटालों के लिए घेरने वाली बीजेपी को ये दिखाई ही नही देता। उत्तराखंड में पत्रकारिता का क्या हाल कर रखा है निशंक ने, ये तो आप रीजनल चैनल और अखवारों में देखते ही होगें। रही बात शर्माजी की तो अगर सही घोटाले का खुलासा किया है तो पुलिस तो क्या कोई भी हाथ नही डाल सकता। बशर्ते मानसिकता सही रही हो। पत्रकार होने के नाते अच्छी खबरों के बाद ऐसी कार्रवाई झेलनी पड़ती है, मुकाबला कीजिए हम सब आपके साथ है।

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written by Rajender Joshi, February 20, 2011
आदरणीय यशवन्त जी
आपके द्वारा पत्रकारों को अपनी बात कहने का एक माध्यम उपलब्ध कराया गया है वह सराहनीय है लेकिन कुछ माफिया जो जमीनों का धन्धा करते हैं इसका बड़ा मासूमी से उपयोग कर रहे हैं। उमेश कुमार शर्मा जिनकी बड़ी दर्दनाक कहानी आपने पोस्ट की है उसका सत्य भी जानने का प्रयास करें। कितने गरीब लोगों की जमीनें इस मासूम व्यक्ति ने हड़प ली और अपना महलनुमा आवास मन्दाकिनी विहार में खड़ा कर दिया है। कृपया देहरादून आकर उसकी भी जानकारी लें और इस व्यक्ति के विषय में सुनिश्चित करें कि यह पत्रकार है अथवा पत्रकार की खाले में छुपा हुआ भेड़िया है, जो पैसा और औरत का उपयोग कर आज देहरादून में अकूत सम्पति का मालिक है। इसकी सहस्रधारा रोड, राजपुर रोड तथा डी०एल० रोड पर सम्पति है दर्जनों महंगी कारों का मालिक है। शायद देहरादून के वास्तविक पत्रकारों के पास अपना मकान या वाहन तक ना हो। यह सत्ता का दलाल नेताओं के तलवे चाटने वाला जब तक पैसा कमाता तब तक उसका रहता है जब पैसा नही मिलता तो उसका विरोधी बन जाता है। पहले खण्डूरी का दुश्मन अब निशंक का दुश्मन, आखिर क्या कारण है? और भी पत्रकार हैं। इसकी संस्था एन०एन०आई० में काम कर चुके अरुण शर्मा, प्रवीन भारद्वाज आदि ऎसे कई पत्रकार हैं जो इसकी असलियत जानते हैं। यहां कई लोगों के मकानों पर इसने कब्जे कर रखे हैं उनमें से एक श्री सन्त सूद के मकान में यह २००३ में ७ माह का किराया तय कर घुसा था और आज तक कब्जा किये बैठा है। माननीय यश्वन्त जी एक शातिर टोपीबाज जो आपके पोर्टल के माध्यम से आपको भी ईस्तेमाल कर रहा है और आप इससे बच कर रहियेगा।

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written by मदन कुमार तिवारी , February 20, 2011
उतराखंड पुलिस को बिना यूपी पुलिस को साथ लिये निशंक के घर को घेरने या गिरफ़्तार करने का अधिकार नही है । अविलंब उस थाना क्षेत्र का फ़ोन न० तथा निशंक का पता बतायें । मैं गया में हूं । परन्तु अभी बात करुंगा । उतराखंड के डीजीपी का भी फ़ोन न० बतायें या जिस जिले से पुलिस आई है , उस जिले के एस पी का न० बतायें ।

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