शेष नारायण सिंह
कोई भारतीय नागरिक नाम के टिप्पणीकार आज कल मुझ पर बहुत ही कृपालु हैं. प्रश्न कर रहे हैं कि गुलाम नबी फाई की गिरफ्तारी के खिलाफ लिखी गयी पोस्ट क्यों हटा दी? मुझे याद नहीं है कि मैंने कभी भी गुलाम नबी फाई की गिरफ्तारी के बाद कुछ लिखा हो. उसकी कारस्तानियों के बारे में मैंने कुछ लिखा था और यह बताया था कि वह आई सी आई का आदमी है . यह पोस्ट मेरे ब्लॉग पर है .उसके दो तीन दिन बाद उसकी गिरफ्तारी की खबर आई थी. इन भारतीय नागरिक जी की मनोदशा का रहस्य समझ में नहीं आ रहा है.ईश्वर से प्रार्थना की जानी चाहिए कि वह इन श्रीमान जी को उनकी समस्या से जूझने की ताक़त दे.
Monday, August 1, 2011
पाकिस्तानी परमाणु ज़खीरों पर अंतरराष्ट्रीय निगरानी ज़रूरी
शेष नारायण सिंह
अमरीका में संसद की मदद के लिए एक थिंक टैंक है जिसका काम दुनिया भर के मामलों से अमरीकी संसद के सदस्यों को आगाह रखना है . समय समय पर यह संगठन अपनी रिपोर्ट देता रहता है जिसका इस्तेमाल अमरीकी सरकार की नीति निर्धारण में अहम भूमिका निभाता है . कंग्रेशनल रिसर्च सर्विस नाम के इस थिंक टैंक की ताज़ा रिपोर्ट अमरीकी विदेश नीति के नियामकों के लिए भारी उलझन का विषय बना हुआ है . भारत में भी विदेश और रक्षा मंत्रालयों के आला अधिकारी चिंतित हैं . इतनी खतरनाक खबर से भरी हुई इस रिपोर्ट के आने के बाद चिंता होना स्वाभाविक है. रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान में इस बात पर चर्चा चल रही है कि वह उन हालात की फिर से समीक्षा करेगा जिनमें वह अपने परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है . आशंका यह है कि वह मामूली झगड़े की हालात में भी परमाणु बम चला चला सकता है . अगर ऐसा हुआ तो यह मानवता के लिए बहुत बड़ा ख़तरा होगा . रिपोर्ट में साफ़ लिखा है कि पाकिस्तान कम क्षमता वाले अपने परमाणु हथियारों को भारत की पारंपरिक युद्ध क्षमता को नाकाम करने के लिए इस्तेमाल कर सकता है . यह बहुत बड़ा ख़तरा है क्योंकि अमरीकी अनुमान के अनुसार पाकिस्तान के पास के पास ९० और ११० के बीच परमाणु हथियार हैं जबकि भारत के पास परमाणु हथियारों की संख्या ६० और १०० के बीच हो सकती है.बताया गया है कि पाकिस्तान अपने हाथियारों की क्षमता में सुधार भी कर रहा है और उनकी संख्या भी बढ़ा रहा है . यह भी आशंका है कि पाकिस्तान के पास अमरीकी अनुमान से ज्यादा परमाणु हथियार हों .पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के बारे में कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह बाकी दुनिया की नज़र से दूर, चोरी छुपे चलाया जाता है.
जिन देशों के पास भी परमाणु हथियार हैं उन्होंने यह ऐलान कर रखा है कि वे किन हालात में अपने हथियार इस्तेमाल कर सकते हैं . आम तौर पर सभी परमाणु देशों ने यह घोषणा कर रखी है कि जब कभी ऐसी हालत पैदा होगी कि उनके देश के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो जाएगा तभी उनके परमाणु हथियारों का इस्तेमाल होगा . लेकिन पाकिस्तान ने ऐसी कोई लक्ष्मण रेखा नहीं बनायी है . उसके बारे में आम तौर पर माना जाता है कि उसका परमाणु कार्यक्रम भारत को केंद्र में रख कर चलाया जा रहा है . रक्षा मामलों के जानकार मानते हैं कि पाकिस्तान ने ऐसा इसलिए कर रखा है जिस से भारत और दुनिया के बाकी देश गाफिल बने रहे और पाकिस्तान अपने न्यूक्लियर ब्लैकमेल के खेल में कामयाब होता रहे. कोई नहीं जानता कि पाकिस्तान परमाणु असलहों का ज़खीरा कब इस्तेमाल होगा . कोई कहता है कि जब पाकिस्तानी राष्ट्र के अस्तित्व पर सवाल खड़े हो जायेगें तब इस्तेमाल किया जाएगा. यह एक पेचीदा बात है . पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कई बार यह कहा है कि पाकिस्तान के सामने अस्तित्व का संकट है . क्या यह माना जाए कि पाकिस्तानी अपने उन बयानों के ज़रिये परमाणु हथियारों की धमकी दे रहे थे . सवाल उठता है कि पाकिस्तान के सामने अस्तित्व के जो भी खतरे पैदा हुए हैं वे उसके अंदर के आतंकवाद से हैं . क्या पाकिस्तानी प्रधान मंत्री अपने ही लोगों के खिलाफ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर लेना चाहते हैं . ज़ाहिर है कि ऐसा करना संभव नहीं है .पाकिस्तानी सत्ता में ऐसे भी बहुत लोग है जो संकेत देते रहते हैं कि अगर भारत ने पाकिस्तान पर ज़बरदस्त हमला कर दिया तो पाकिस्तान परमाणु ज़खीरा खोल देगा. दुनिया के सभ्य समाजों में पाकिस्तानी फौज के इस संभावित दुस्साहस को खतरे की घंटी माना जा रहा है . पाकिस्तान में इस तरह की मानसिकता वाले लोगों पर काबू करने की ज़रुरत है . यह पाकिस्तान के दुर्भाग्य की बात है कि वहां इस तरह की मानसिकता वालों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ी है .लेकिन इस मानसिकता वालों की वजह से परमाणु तबाही का ख़तरा भी बढ़ गया है . भारत समेत दुनिय भर के लोगों को कोशिश करनी चाहिए कि पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी मानसिकता के लोग काबू में लाये जाएँ. हालांकि यह काम बहुत आसान नहीं होगा क्योंकि भारत के खिलाफ आतंक को हथियार बनाने की पाकिस्तानी नीति के बाद वहां का सत्ता के बहुत सारे केन्द्रों पर उन लोगों का क़ब्ज़ा है जो भारत को कभी भी ख़त्म करने के चक्कर में रहते हैं . पाकिस्तानी फौज के मौजूदा प्रमुख भी उसी वर्ग में आते हैं . जब १९७१ में भारत की सैनिक क्षमता के सामने पाकिस्तानी फौज ने घुटने टेके थे ,उसी साल जनरल अशफाक परवेज़ कयानी ने लेफ्टीनेंट के रूप में नौकरी शुरू की थी. उन्होंने बार बार यह स्वीकार किया है कि वे १९७१ का बदला लेना चाहते हैं लेकिन उनकी इस जिद का नतीजा दुनिया के लिए जो भी हो, उनके अपने देश को भी तबाह कर सकता है . क्योंकि अगर उन्होंने परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की गलती कर दी तो अगले कुछ घंटों में भारत उनकी सारी सैनिक क्षमता को तबाह कर सकता है . अगर ऐसा हुआ तो वह विश्व शान्ति के लिए बहुत ही खतरनाक संकेत होगा .
पाकिस्तानी परमाणु हथियारों की सुरक्षा हमेशा से ही सवालों के घेरे में रही है . जिस तरह से पाकिस्तानी फौज ने आई एस आई के नेतृव में आतंक का तामझाम खड़ा किया है उस से तो लगता है कि एक दिन पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों के सरगना उसके परमाणु ज़खीरे की चौकीदारी करने लगेगें. अगर ऐसा न हुआ तो वहां के सामान में जिस तरह से अपनी कौम को सबसे ताक़तवर बताने और भारतीयों को बहुत कमज़ोर बताने का माहौल है ,उसके चलते कोई भी फौजी जनरल बेवकूफी कर सकता है .इस तरह की गलती १९६५ में जनरल अयूब कर चुके हैं . उन्होंने भारतीयों को कमज़ोर समझकर हमला कर दिया था और जब अमरीका से मिले भारी असलहे की मालिक पाकिस्तानी सेना बुरी तरह से हार गयी तब अयूब की समझ में आया कि वे कितनी बड़ी गलती कर बैठे थे . बाद में लाल बहादुर शास्त्री से हाथ पाँव जोड़कर उन्हें कुछ ज़मीन वापस मिली .पाकिस्तान को महान मानने वालों की आज भी वहां कमी नहीं है .ज़ाहिर है जनरल अयूब वाला दुस्साहस कोई भी पाकिस्तानी जनरल कर सकता है .अमरीकी संसद में जमा किया गया कांग्रेशनल रिसर्च सर्विस का दस्तावेज़ ऐसे लोगों लो लगाम लगाने के काम में इस्तेमाल किया जाना चाहिये और पाकिस्तानी परमाणु ज़खीरों पर अंतर राष्ट्रीय निगरानी रखने का माकूल बंदोबस्त किया जाना चाहिए
अमरीका में संसद की मदद के लिए एक थिंक टैंक है जिसका काम दुनिया भर के मामलों से अमरीकी संसद के सदस्यों को आगाह रखना है . समय समय पर यह संगठन अपनी रिपोर्ट देता रहता है जिसका इस्तेमाल अमरीकी सरकार की नीति निर्धारण में अहम भूमिका निभाता है . कंग्रेशनल रिसर्च सर्विस नाम के इस थिंक टैंक की ताज़ा रिपोर्ट अमरीकी विदेश नीति के नियामकों के लिए भारी उलझन का विषय बना हुआ है . भारत में भी विदेश और रक्षा मंत्रालयों के आला अधिकारी चिंतित हैं . इतनी खतरनाक खबर से भरी हुई इस रिपोर्ट के आने के बाद चिंता होना स्वाभाविक है. रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान में इस बात पर चर्चा चल रही है कि वह उन हालात की फिर से समीक्षा करेगा जिनमें वह अपने परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है . आशंका यह है कि वह मामूली झगड़े की हालात में भी परमाणु बम चला चला सकता है . अगर ऐसा हुआ तो यह मानवता के लिए बहुत बड़ा ख़तरा होगा . रिपोर्ट में साफ़ लिखा है कि पाकिस्तान कम क्षमता वाले अपने परमाणु हथियारों को भारत की पारंपरिक युद्ध क्षमता को नाकाम करने के लिए इस्तेमाल कर सकता है . यह बहुत बड़ा ख़तरा है क्योंकि अमरीकी अनुमान के अनुसार पाकिस्तान के पास के पास ९० और ११० के बीच परमाणु हथियार हैं जबकि भारत के पास परमाणु हथियारों की संख्या ६० और १०० के बीच हो सकती है.बताया गया है कि पाकिस्तान अपने हाथियारों की क्षमता में सुधार भी कर रहा है और उनकी संख्या भी बढ़ा रहा है . यह भी आशंका है कि पाकिस्तान के पास अमरीकी अनुमान से ज्यादा परमाणु हथियार हों .पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के बारे में कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह बाकी दुनिया की नज़र से दूर, चोरी छुपे चलाया जाता है.
जिन देशों के पास भी परमाणु हथियार हैं उन्होंने यह ऐलान कर रखा है कि वे किन हालात में अपने हथियार इस्तेमाल कर सकते हैं . आम तौर पर सभी परमाणु देशों ने यह घोषणा कर रखी है कि जब कभी ऐसी हालत पैदा होगी कि उनके देश के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो जाएगा तभी उनके परमाणु हथियारों का इस्तेमाल होगा . लेकिन पाकिस्तान ने ऐसी कोई लक्ष्मण रेखा नहीं बनायी है . उसके बारे में आम तौर पर माना जाता है कि उसका परमाणु कार्यक्रम भारत को केंद्र में रख कर चलाया जा रहा है . रक्षा मामलों के जानकार मानते हैं कि पाकिस्तान ने ऐसा इसलिए कर रखा है जिस से भारत और दुनिया के बाकी देश गाफिल बने रहे और पाकिस्तान अपने न्यूक्लियर ब्लैकमेल के खेल में कामयाब होता रहे. कोई नहीं जानता कि पाकिस्तान परमाणु असलहों का ज़खीरा कब इस्तेमाल होगा . कोई कहता है कि जब पाकिस्तानी राष्ट्र के अस्तित्व पर सवाल खड़े हो जायेगें तब इस्तेमाल किया जाएगा. यह एक पेचीदा बात है . पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कई बार यह कहा है कि पाकिस्तान के सामने अस्तित्व का संकट है . क्या यह माना जाए कि पाकिस्तानी अपने उन बयानों के ज़रिये परमाणु हथियारों की धमकी दे रहे थे . सवाल उठता है कि पाकिस्तान के सामने अस्तित्व के जो भी खतरे पैदा हुए हैं वे उसके अंदर के आतंकवाद से हैं . क्या पाकिस्तानी प्रधान मंत्री अपने ही लोगों के खिलाफ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर लेना चाहते हैं . ज़ाहिर है कि ऐसा करना संभव नहीं है .पाकिस्तानी सत्ता में ऐसे भी बहुत लोग है जो संकेत देते रहते हैं कि अगर भारत ने पाकिस्तान पर ज़बरदस्त हमला कर दिया तो पाकिस्तान परमाणु ज़खीरा खोल देगा. दुनिया के सभ्य समाजों में पाकिस्तानी फौज के इस संभावित दुस्साहस को खतरे की घंटी माना जा रहा है . पाकिस्तान में इस तरह की मानसिकता वाले लोगों पर काबू करने की ज़रुरत है . यह पाकिस्तान के दुर्भाग्य की बात है कि वहां इस तरह की मानसिकता वालों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ी है .लेकिन इस मानसिकता वालों की वजह से परमाणु तबाही का ख़तरा भी बढ़ गया है . भारत समेत दुनिय भर के लोगों को कोशिश करनी चाहिए कि पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी मानसिकता के लोग काबू में लाये जाएँ. हालांकि यह काम बहुत आसान नहीं होगा क्योंकि भारत के खिलाफ आतंक को हथियार बनाने की पाकिस्तानी नीति के बाद वहां का सत्ता के बहुत सारे केन्द्रों पर उन लोगों का क़ब्ज़ा है जो भारत को कभी भी ख़त्म करने के चक्कर में रहते हैं . पाकिस्तानी फौज के मौजूदा प्रमुख भी उसी वर्ग में आते हैं . जब १९७१ में भारत की सैनिक क्षमता के सामने पाकिस्तानी फौज ने घुटने टेके थे ,उसी साल जनरल अशफाक परवेज़ कयानी ने लेफ्टीनेंट के रूप में नौकरी शुरू की थी. उन्होंने बार बार यह स्वीकार किया है कि वे १९७१ का बदला लेना चाहते हैं लेकिन उनकी इस जिद का नतीजा दुनिया के लिए जो भी हो, उनके अपने देश को भी तबाह कर सकता है . क्योंकि अगर उन्होंने परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की गलती कर दी तो अगले कुछ घंटों में भारत उनकी सारी सैनिक क्षमता को तबाह कर सकता है . अगर ऐसा हुआ तो वह विश्व शान्ति के लिए बहुत ही खतरनाक संकेत होगा .
पाकिस्तानी परमाणु हथियारों की सुरक्षा हमेशा से ही सवालों के घेरे में रही है . जिस तरह से पाकिस्तानी फौज ने आई एस आई के नेतृव में आतंक का तामझाम खड़ा किया है उस से तो लगता है कि एक दिन पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों के सरगना उसके परमाणु ज़खीरे की चौकीदारी करने लगेगें. अगर ऐसा न हुआ तो वहां के सामान में जिस तरह से अपनी कौम को सबसे ताक़तवर बताने और भारतीयों को बहुत कमज़ोर बताने का माहौल है ,उसके चलते कोई भी फौजी जनरल बेवकूफी कर सकता है .इस तरह की गलती १९६५ में जनरल अयूब कर चुके हैं . उन्होंने भारतीयों को कमज़ोर समझकर हमला कर दिया था और जब अमरीका से मिले भारी असलहे की मालिक पाकिस्तानी सेना बुरी तरह से हार गयी तब अयूब की समझ में आया कि वे कितनी बड़ी गलती कर बैठे थे . बाद में लाल बहादुर शास्त्री से हाथ पाँव जोड़कर उन्हें कुछ ज़मीन वापस मिली .पाकिस्तान को महान मानने वालों की आज भी वहां कमी नहीं है .ज़ाहिर है जनरल अयूब वाला दुस्साहस कोई भी पाकिस्तानी जनरल कर सकता है .अमरीकी संसद में जमा किया गया कांग्रेशनल रिसर्च सर्विस का दस्तावेज़ ऐसे लोगों लो लगाम लगाने के काम में इस्तेमाल किया जाना चाहिये और पाकिस्तानी परमाणु ज़खीरों पर अंतर राष्ट्रीय निगरानी रखने का माकूल बंदोबस्त किया जाना चाहिए
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