शेष नारायण सिंह
आज जब मीडिया के हर मंच पर गुजरात के मुख्य मंत्री ,नरेंद्र मोदी के उपवास की खबरें लगातार देखा तो अपने गाँव में बिताया गया अपना बचपन बहुत याद आया . बाइस्कोप की तरह तस्वीरें नज़र आती रहीं. एक जगह जहां बार बार मन अटक रहा था ,वह तस्वीर मेरे दरवाज़े के नीम के पेड के नीचे की गयी बातचीत का एक टुकड़ा था .उस वक़्त के वरिष्ठ नागरिक टिबिल साहेब ने कहा कि बच्चा, आज तो बंडेरी पर धुंआ दिखाने के लिए चूल्हे में लकड़ी जलानी पड़ेगी . राशन है नहीं सो खाना तो नहीं बन पायेगा , शाम को जब भैंस दूध देगी तो बच्चों को पिला दिया जाये़या .आज हम लोग उपवास करेगें . जिसको बच्चा कह कर संबोधित किया गया था वे मेरे स्वर्गीय पिता जी थे. मेरे अपने घर में भी खाने पीने की तकलीफ थी. मेरे पिता जी ने टिबिल साहेब की बात सुन कर सन्न खींच लिया. कुछ देर बाद मेरी बड़ी बहन एक गठरी जैसी कोई चीज़ लेकर टिबिल साहेब के घर जाती देखी गयी. यह साठ के दशक का मेरा गाँव है. आजादी मिले कोई १०-१२ साल हुए रहे होंगें. ग्रीन रिवोल्यूशन का कहीं आता पता नहीं था .खेती के तरीके बहुत पुराने थे. देहुला धान और जौ की खेती होती थी. पूस आते आते खाने का सामान घर में चुक जाता था. भड़भूजे के यहाँ से भुनवा कर लाया गया दाना भी स्नैक्स की तरह नहीं , लंच या डिनर की तरह खाया जाता था. मेरे गाँव में लोगों के घरों में अक्सर उपवास हो जाया करता था. इस उपवास में बूढ़े और जवान तो शामिल रहते ही थे , बच्चों को भी शामिल होना पड़ता था . बड़े होने पर मैंने अर्थशास्त्र की किताबों में पढ़ा कि भारत के बड़े भूभाग में लोग इसी तरह की ज़िन्दगी बसर करने के लिए मजबूर थे. गरीब लोगों के इस गाँव में किसान यह स्वीकार कर ही नहीं सकता था कि उसके यहाँ खाने के लिए कुछ नहीं है . उसका ज़मीर ज़िंदा था और वह अपनी गरीबी को छुपाकर रखना चाहता था . गरीब आदमी जब भूख से मरता है तो वह हार जाता है . हारा हुआ आदमी बहुत कमज़ोर होता है .
महात्मा गांधी भी उपवास रखते थे. उन्होंने उपवास कभी धमकाने के लिए नहीं रखा. अपने विरोधी पर दबाव डालने के लिए भी कभी नहीं रखा. महात्मा जी अगर आज जिंदा होते तो वे गुजरात के मामले में उपवास ज़रूर रखते लेकिन इसलिए नहीं कि जिन लोगों को २००२ में मारा गया था, उनके घर वाले और डर जाएँ. उनका उपवास इसलिए होता कि जिन लोगों ने गुजरात में इंसानियत का क़त्ले-आम किया था वे अपनी गलती मानें और दुबारा उसे दोहराने की बात न सोचें . आज की हालात बिलकुल अलग हैं .नरेंद्र मोदी के लोगों ने गुजरात में बहुत सारे घर ऐसे बना दिए थे जहां कोई भी कमाने वाला नहीं बचा. आज वे लोग मजबूरी में अक्सर उपवास करते हैं .आज का गुजरात का उपवासी यह साबित करना चाहता है कि उसने जो कुछ गुजरात में २००२ में करवाया वह बिलकुल सही था. अब उसकी कोशिश है कि बाकी देश में भी सत्ता हासिल करे . उसकी योजना है कि पूरे भारत के मुसलमानों को उसी तरह से ठीक कर दिया जाय जैसे २००२ में गुजरात में किया गया था. आज गुजरात का स्टार उपवासी यह साबित करना चाहता है कि वह बहुत ही विनम्र है . ठीक उसी तरह जैसे फिल्म "लगे रहो मुन्ना भाई" का मुरली प्रसाद शर्मा विनम्र हो गया था. लगता है कि नरेंद्र मोदी ने उसी विनम्रता को अपनाने की कोशिश की है जैसी संजय दत्त ने अपनाई थी .वैसे उपवास का स्वांग करके नरेंद्र मोदी उन लोगों का अपमान कर रहे हैं जो उपवास रखने के लिए मजबूर हैं .
Sunday, September 18, 2011
महात्मा बनने की कोशिश के तार नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति के सपनों से जुड़े हैं
शेष नारायण सिंह
गुजरात के मुख्य मंत्री,नरेंद्र मोदी ने दुनिया भर के गुजरातियों को संबोधित एक पत्र में अपने को महात्मा साबित करने की कोशिश की है . उस चिट्ठी में उन्होंने २००२ के गुजरात के नरसंहार को एक साम्प्रदायिक दंगा बताया है और कहा है कि २००२ के बाद गुजरात के विरोधियों ने उनके खिलाफ प्रचार अभियान शुरू कर दिया था. उन्होंने गुजरातियों को सूचित किया है कि अब वे ' सद्भावना मिशन ' शुरू करने वाले हैं . गुजरात नरसंहार २००२ से नाराज़ लोगों ने इस पर कड़ा एतराज़ जताया है .उनका कहना है कि मोदी जैसे आदमी को ' सद्भावना मिशन ' पर जाने का कोई हक नहीं है. क्योंकि २००२ में गुजरात के नर संहार की निगरानी मोदी ने ही की थी. और हज़ारों मुसलमानों की हत्या करवाई थी. उनके नाम के साथ सद्भावना शब्द ठीक नहीं लगता . मोदी ने अब तक २००२ के सामूहिक हत्याकांड के लिए कभी दुःख नहीं प्रकट किया है . उस क़त्ले आम के बाद उन्होंने गौरव यात्रा निकाली थी और पूरे गुजरात के मुसलमानों की छाती पर मूंग दलने का काम किया था. उनसे २००२ के लिए शर्मिंदा होने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए . उनकी यह चिट्ठी भी उन लोगों को संबोधित की गयी है जो उनके २००२ के काम को बहादुरी का काम मानते हैं .उनका जो मौजूदा सद्भावना मिशन है उसका २००२ से कुछ भी लेना देना नहीं है . सुप्रीम कोर्ट से एक मामूली राहत मिलने के बाद बीजेपी में उनके साथियों ने हल्ला मचा दिया कि मोदी को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया है . सही बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल यह कहा है कि अभी मुक़दमा निचली अदालत में चलेगा . अगर ज़रूरी हुआ तो अपील के ज़रिये शिकायतकर्ता सुप्रीम कोर्ट में भी आ सकते हैं . इसमें बरी होने जैसी कोई बात नहीं थी लेकिन राजनीतिक कारणों से इस बात को तूल दिया जा रहा है . असली लड़ाई बीजेपी की आतंरिक राजनीति के हवाले से समझी जा सकती है . मामला यह है कि २०१४ के चुनाव में बीजेपी को अपने प्रधान मंत्री पद के उम्मीद वार को प्रोजेक्ट करना है . हालांकि उनके सत्ता में वापस आने की संभावना बिलकुल नहीं है.मोदी के सद्भावना मिशन या आडवाणी की रथ यात्रा को उसी राजनीतिक मुहिम के सन्दर्भ में ही समझना पडेगा . आम तौर पर माना जाता रहा है कि २००९ में किरकिरी होने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी २०१४ में प्रधान मंत्री पद वाली दावेदारी से अपने आपको अलग कर लेगें. लेकिन लोकसभा के मानसून सत्र के अंतिम दिन उन्होंने एक रथ यात्रा का ऐलान कर दिया . बाकी देश के राजनीति के जानकारों सहित उनकी पार्टी के नेता भी अवाक रह गए.जिस यात्रा की आडवाणी जी ने घोषणा की थी उसकी तारीख , रूट या विषय वस्तु अभी तक किसी को नहीं मालूम है , शायद खुद आडवाणी को भी नहीं . लेकिन यात्रा की घोषणा में दिखाई गयी जल्दबाजी से एक बात साफ़ हो गयी थी कि लाल कृष्ण आडवाणी किसी आसन्न खतरे को टालने की गरज से आनन फानन में यात्रा की घोषणा कर रहे हैं. उनकी घोषणा के बाद से ही बीजेपी के अंदर चल रही सुप्रीमेसी की लड़ाई खुल कर सामने आ गयी. सारी दुनिया जानती है कि अटल बिहारी वाजपेयी के बाद बीजेपी में आडवाणी सबसे मह्त्वपूर्ण नेता हैं . यह भी मालूम है कि अगर आडवाणी जी मैदान में हैं तो कोई दूसरा भाजपाई नेता उनको चुनौती नहीं दे सकता . एक कारण तो शिष्टाचार का है लेकिन उस से भी मज़बूत कारण पार्टी के अंदर राजनीतिक हैसियत का भी है . आडवाणी के रहते किसी को भी उनके ऊपर के मुकाम पर नहीं बैठाया जा सकता . हाँ उनकी मर्ज़ी से कोई भी किसी भी पद पर बैठाया जा सकता है . हमने बंगारू लक्षमण और वेंकैया नायडू को आडवाणी जी की कृपा से पार्टी के अध्यक्ष पद पर विराजते देखा है . और उन दोनों को पार्टी के अंदर से कोई चुनौती नहीं मिली थी. आडवाणी जी की मर्जी के खिलाफ डॉ मुरली मनोहर जोशी और राजनाथ सिंह को अध्यक्ष बनाया गया था . दुनिया जानती है कि आडवाणी गुट के दमदार नेताओं ने मीडिया में मज़बूत पकड़ का इस्तेमाल करके उन दोनों ही नेताओं का क्या हाल किया था . अपनी नई रथयात्रा का ऐलान कर के आडवाणी जी ने अपना नाम सर्वोच्च पद की दावेदारी की लिस्ट में डाल दिया है . ऐसा करके उन्होंने उन सभी नेताओं की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है जो अब लगभग साठ साल के हैं .उनके लिए प्रधानमंत्री पद पर विराजने का यही सही समय है.लेकिन अगर आडवाणी जी को किसी तरह से रेस से बाहर किया जा सके, तो मैदान फिर साफ़ हो जाएगा और बीजेपी की टाप लीडरशिप के लिए अपनी किस्मत आजमाने का मौक़ा मिल जाएगा. ऐसा लगता है कि इन लोगों ने ही नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में आने की प्रेरणा दी है . नरेंद्र मोदी के मैदान में कूद जाने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी के लिए मुश्किल पैदा हो सकती है . बीजेपी का जो हार्ड कोर वोट बैंक है वह आम तौर पर आक्रामक हिंदुत्व को बहुत ही सही मानता है . १९९० में सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा करके आडवाणी जी ने इस आक्रामक हिंदुत्व के पुजारी का दिल जीत लिया था . उस दौर में जो दंगे हुए थे उसमें बड़ी संख्या में मुसलमान मारे गए थे. इस देश में ऐसे लोगों की एक बहुत बड़ी संख्या है जो आर एस एस के भक्त हैं और उनको भरोसा है क अगर मुसलमानों को मार डाला आये या इस देश से भगा दिया जाए तो भारत बहुत महान देश बन जाएगा. २००२ तक इस वर्ग के हीरो लाल कृष्ण आडवाणी थे लेकिन २००२ के बाद आक्रामक हिंदुत्व की विचार धारा के इन भक्तों के नेता गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. ज़ाहिर है कि मोदी और आडवाणी की लड़ाई में मोदी ही जीतेगें. इसके कई कारण हैं . आक्रामक हिंदुत्व के अलावा जो दूसरा प्रमुख कारण है वह यह कि आडवाणी जी को लोकसभा चुनाव में गाँधीनगर सीट से नरेंद्र मोदी के सहयोग से ही जीत हासिल होती है . राजनीति के कुशल पारखी, लाल कृष्ण आडवाणी ऐसी कोई गलती कभी नहीं करेगें जिसके चलते उनको नरेंद्र मोदी को नाराज़ करना पड़े. ऐसा लगता है कि इस रणनीति की कारगर मारक क्षमता के मद्दे नज़र बीजेपी के नए आलाकमान ने मोदी को आगे कर दिया है और अब वे आडवाणी को रास्ते से हटाने में कामयाब हो जायेगें.
इस बड़े सफलता के बाद मोदी को रास्ते से हटाने की बात आयेगी..आडवाणी जी के अलावा इस वक़्त बीजेपी के जो नेता प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं उनमें सुषमा स्वराज ,अरुण जेटली , राजनाथ सिंह , वेंकैया नायडू, बंगारू लक्षमण आदि का नाम लिया जा सकता है . नेताओं की इस मज़बूत पंक्ति में सबकी ताक़त ऐसी है कि वे नरेंद्र मोदी के खिलाफ माहौल बना देगें . सबको मामूल है कि यूरोप और अमरीका के कई बड़े देशों में मोदी के घुसने की इज़ाज़त नहीं है . यह देश उनके वीजा की दरखास्त को खारिज कर देते हैं और वीजा नहीं देते .बीजेपी अपने एताक़त क एबल पर तो प्रधानमंत्री की गद्दी हासिल नहीं कर सकती. एन डी ए के एक बड़े घटक जे डी ( यू ) के बड़े नेता और बिहार के मुख्यमंत्री , नीतीश कुमार कभी भी नरेंद्र मोदी को नेता नहीं मानेगें. यहाँ तक कि उन्होंने अपने राज्य में मोदी के चुनाव प्रचार करने की बात का भी बहुत बुरा माना था . इसलिए नरेंद्र मोदी को रास्ते से हटाना बीजेपी आलाकमान के लिए बहुत आसान होगा . इस लेख का उद्देश्य बीजेपी की ओर से संभावित प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार की तलाश करना नहीं है .क्योंकि यह लगभग पक्का है कि २०१४ के चुनावों के बाद बीजेपी सत्ता से और दूर हो जायेगी लेकिन उनकी आतंरिक राजनीति में नरेंद्र मोदी और आडवाणी की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं एक मनोरंजक अवसर तो देती ही हैं .
गुजरात के मुख्य मंत्री,नरेंद्र मोदी ने दुनिया भर के गुजरातियों को संबोधित एक पत्र में अपने को महात्मा साबित करने की कोशिश की है . उस चिट्ठी में उन्होंने २००२ के गुजरात के नरसंहार को एक साम्प्रदायिक दंगा बताया है और कहा है कि २००२ के बाद गुजरात के विरोधियों ने उनके खिलाफ प्रचार अभियान शुरू कर दिया था. उन्होंने गुजरातियों को सूचित किया है कि अब वे ' सद्भावना मिशन ' शुरू करने वाले हैं . गुजरात नरसंहार २००२ से नाराज़ लोगों ने इस पर कड़ा एतराज़ जताया है .उनका कहना है कि मोदी जैसे आदमी को ' सद्भावना मिशन ' पर जाने का कोई हक नहीं है. क्योंकि २००२ में गुजरात के नर संहार की निगरानी मोदी ने ही की थी. और हज़ारों मुसलमानों की हत्या करवाई थी. उनके नाम के साथ सद्भावना शब्द ठीक नहीं लगता . मोदी ने अब तक २००२ के सामूहिक हत्याकांड के लिए कभी दुःख नहीं प्रकट किया है . उस क़त्ले आम के बाद उन्होंने गौरव यात्रा निकाली थी और पूरे गुजरात के मुसलमानों की छाती पर मूंग दलने का काम किया था. उनसे २००२ के लिए शर्मिंदा होने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए . उनकी यह चिट्ठी भी उन लोगों को संबोधित की गयी है जो उनके २००२ के काम को बहादुरी का काम मानते हैं .उनका जो मौजूदा सद्भावना मिशन है उसका २००२ से कुछ भी लेना देना नहीं है . सुप्रीम कोर्ट से एक मामूली राहत मिलने के बाद बीजेपी में उनके साथियों ने हल्ला मचा दिया कि मोदी को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया है . सही बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल यह कहा है कि अभी मुक़दमा निचली अदालत में चलेगा . अगर ज़रूरी हुआ तो अपील के ज़रिये शिकायतकर्ता सुप्रीम कोर्ट में भी आ सकते हैं . इसमें बरी होने जैसी कोई बात नहीं थी लेकिन राजनीतिक कारणों से इस बात को तूल दिया जा रहा है . असली लड़ाई बीजेपी की आतंरिक राजनीति के हवाले से समझी जा सकती है . मामला यह है कि २०१४ के चुनाव में बीजेपी को अपने प्रधान मंत्री पद के उम्मीद वार को प्रोजेक्ट करना है . हालांकि उनके सत्ता में वापस आने की संभावना बिलकुल नहीं है.मोदी के सद्भावना मिशन या आडवाणी की रथ यात्रा को उसी राजनीतिक मुहिम के सन्दर्भ में ही समझना पडेगा . आम तौर पर माना जाता रहा है कि २००९ में किरकिरी होने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी २०१४ में प्रधान मंत्री पद वाली दावेदारी से अपने आपको अलग कर लेगें. लेकिन लोकसभा के मानसून सत्र के अंतिम दिन उन्होंने एक रथ यात्रा का ऐलान कर दिया . बाकी देश के राजनीति के जानकारों सहित उनकी पार्टी के नेता भी अवाक रह गए.जिस यात्रा की आडवाणी जी ने घोषणा की थी उसकी तारीख , रूट या विषय वस्तु अभी तक किसी को नहीं मालूम है , शायद खुद आडवाणी को भी नहीं . लेकिन यात्रा की घोषणा में दिखाई गयी जल्दबाजी से एक बात साफ़ हो गयी थी कि लाल कृष्ण आडवाणी किसी आसन्न खतरे को टालने की गरज से आनन फानन में यात्रा की घोषणा कर रहे हैं. उनकी घोषणा के बाद से ही बीजेपी के अंदर चल रही सुप्रीमेसी की लड़ाई खुल कर सामने आ गयी. सारी दुनिया जानती है कि अटल बिहारी वाजपेयी के बाद बीजेपी में आडवाणी सबसे मह्त्वपूर्ण नेता हैं . यह भी मालूम है कि अगर आडवाणी जी मैदान में हैं तो कोई दूसरा भाजपाई नेता उनको चुनौती नहीं दे सकता . एक कारण तो शिष्टाचार का है लेकिन उस से भी मज़बूत कारण पार्टी के अंदर राजनीतिक हैसियत का भी है . आडवाणी के रहते किसी को भी उनके ऊपर के मुकाम पर नहीं बैठाया जा सकता . हाँ उनकी मर्ज़ी से कोई भी किसी भी पद पर बैठाया जा सकता है . हमने बंगारू लक्षमण और वेंकैया नायडू को आडवाणी जी की कृपा से पार्टी के अध्यक्ष पद पर विराजते देखा है . और उन दोनों को पार्टी के अंदर से कोई चुनौती नहीं मिली थी. आडवाणी जी की मर्जी के खिलाफ डॉ मुरली मनोहर जोशी और राजनाथ सिंह को अध्यक्ष बनाया गया था . दुनिया जानती है कि आडवाणी गुट के दमदार नेताओं ने मीडिया में मज़बूत पकड़ का इस्तेमाल करके उन दोनों ही नेताओं का क्या हाल किया था . अपनी नई रथयात्रा का ऐलान कर के आडवाणी जी ने अपना नाम सर्वोच्च पद की दावेदारी की लिस्ट में डाल दिया है . ऐसा करके उन्होंने उन सभी नेताओं की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है जो अब लगभग साठ साल के हैं .उनके लिए प्रधानमंत्री पद पर विराजने का यही सही समय है.लेकिन अगर आडवाणी जी को किसी तरह से रेस से बाहर किया जा सके, तो मैदान फिर साफ़ हो जाएगा और बीजेपी की टाप लीडरशिप के लिए अपनी किस्मत आजमाने का मौक़ा मिल जाएगा. ऐसा लगता है कि इन लोगों ने ही नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में आने की प्रेरणा दी है . नरेंद्र मोदी के मैदान में कूद जाने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी के लिए मुश्किल पैदा हो सकती है . बीजेपी का जो हार्ड कोर वोट बैंक है वह आम तौर पर आक्रामक हिंदुत्व को बहुत ही सही मानता है . १९९० में सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा करके आडवाणी जी ने इस आक्रामक हिंदुत्व के पुजारी का दिल जीत लिया था . उस दौर में जो दंगे हुए थे उसमें बड़ी संख्या में मुसलमान मारे गए थे. इस देश में ऐसे लोगों की एक बहुत बड़ी संख्या है जो आर एस एस के भक्त हैं और उनको भरोसा है क अगर मुसलमानों को मार डाला आये या इस देश से भगा दिया जाए तो भारत बहुत महान देश बन जाएगा. २००२ तक इस वर्ग के हीरो लाल कृष्ण आडवाणी थे लेकिन २००२ के बाद आक्रामक हिंदुत्व की विचार धारा के इन भक्तों के नेता गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. ज़ाहिर है कि मोदी और आडवाणी की लड़ाई में मोदी ही जीतेगें. इसके कई कारण हैं . आक्रामक हिंदुत्व के अलावा जो दूसरा प्रमुख कारण है वह यह कि आडवाणी जी को लोकसभा चुनाव में गाँधीनगर सीट से नरेंद्र मोदी के सहयोग से ही जीत हासिल होती है . राजनीति के कुशल पारखी, लाल कृष्ण आडवाणी ऐसी कोई गलती कभी नहीं करेगें जिसके चलते उनको नरेंद्र मोदी को नाराज़ करना पड़े. ऐसा लगता है कि इस रणनीति की कारगर मारक क्षमता के मद्दे नज़र बीजेपी के नए आलाकमान ने मोदी को आगे कर दिया है और अब वे आडवाणी को रास्ते से हटाने में कामयाब हो जायेगें.
इस बड़े सफलता के बाद मोदी को रास्ते से हटाने की बात आयेगी..आडवाणी जी के अलावा इस वक़्त बीजेपी के जो नेता प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं उनमें सुषमा स्वराज ,अरुण जेटली , राजनाथ सिंह , वेंकैया नायडू, बंगारू लक्षमण आदि का नाम लिया जा सकता है . नेताओं की इस मज़बूत पंक्ति में सबकी ताक़त ऐसी है कि वे नरेंद्र मोदी के खिलाफ माहौल बना देगें . सबको मामूल है कि यूरोप और अमरीका के कई बड़े देशों में मोदी के घुसने की इज़ाज़त नहीं है . यह देश उनके वीजा की दरखास्त को खारिज कर देते हैं और वीजा नहीं देते .बीजेपी अपने एताक़त क एबल पर तो प्रधानमंत्री की गद्दी हासिल नहीं कर सकती. एन डी ए के एक बड़े घटक जे डी ( यू ) के बड़े नेता और बिहार के मुख्यमंत्री , नीतीश कुमार कभी भी नरेंद्र मोदी को नेता नहीं मानेगें. यहाँ तक कि उन्होंने अपने राज्य में मोदी के चुनाव प्रचार करने की बात का भी बहुत बुरा माना था . इसलिए नरेंद्र मोदी को रास्ते से हटाना बीजेपी आलाकमान के लिए बहुत आसान होगा . इस लेख का उद्देश्य बीजेपी की ओर से संभावित प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार की तलाश करना नहीं है .क्योंकि यह लगभग पक्का है कि २०१४ के चुनावों के बाद बीजेपी सत्ता से और दूर हो जायेगी लेकिन उनकी आतंरिक राजनीति में नरेंद्र मोदी और आडवाणी की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं एक मनोरंजक अवसर तो देती ही हैं .
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शेष नारायण सिंह
महंगाई के मुद्दे पर सरकार पर चौतरफा हमला , भ्रष्टाचार और बढ़ती कीमतों की लपटों में झुलस रही है कांग्रेस
शेष नारायण सिंह
महंगाई के सवाल पर आज केंद्र सरकार बहुत बुरी तरह घिर गयी है . कांग्रेस के दफ्तर का माहौल देखने पर लगता है कि वहां किसी बड़े चुनाव में हार जाने के बाद वाली मुर्दनी छाई हुई है .सरकार में भी सन्नाटा है . केन्द्रीय वित्तमंत्री ने आज एक बयान दिया कि केंद्र सरकार ने नहीं ,पेट्रोल कंपनियों ने पेट्रोल की कीमतें बढ़ाई हैं . उनके इस बयान का सरकार के बाहर और अंदर बैठे लोग मजाक उड़ा रहे हैं . जानकार बताते हैं कि पिछले दो दशकों में केंद्र सरकार इतनी लाचार कभी नहीं देखी गयी थी. पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि,बैंक की ब्याज दरों में बढ़ोतरी और मुद्रास्फीति की छलांग लगाती दर के कारण मनमोहन सिंह की सरकार को समर्थन दे रही पार्टियों ने सरकार की लाचारी को निशाने में लिया और दिल्ली की राजनीतिक हवा में आज यह संकेत साफ़ नज़र आने लगे कि लोकसभा का अगला आम चुनाव २०१४ में बताने वाले राजनीतिक तूफ़ान की रफ्तार को पहचान नहीं पा रहे हैं . यू पी ए समर्थकों तक को दर लगन एलागा है कि कहेने सरकार की छुट्टी न हो जाए. बीजेपी ने आज दिल्ली के हर मंच पर सरकार को नाकारा और भ्रष्ट साबित करने का अभियान चला रखा है . जहां तक बीजेपी का सवाल है उसके किसी भी राजनीतिक रुख से केंद्र सरकार की स्थिरता और लोकसभा के चुनाव पर कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है . लेकिन यू पी ए में शामिल राजनीतिक पार्टियों के आज के रुख से बिलकुल साफ़ संकेत मिल रहा है कि डॉ मनमोहन सिंह की सरकार की उलटी गिनती शुरू हो गयी है . केंद्र सरकार में कांग्रेस सबसे बड़ा दल है लेकिन सरकार बनी रहने में अंदर से समर्थन दे रही तृणमूल कांग्रेस और द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम का योगदान सबसे ज्यादा है . सरकार में शामिल बाकी राजनीतिक पार्टियों की संख्या बहुत मामूली है . आज पहली बार डी एम के और तृणमूल कांग्रेस ने सरकार की महंगाई रोक सकने की नीति की सख्त आलोचना की . बाहर से समर्थन दे रही दो बड़ी पार्टियों,बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी , ने भी आज कांग्रेस की आम आदमी विरोधी नीतियों का ज़बरदस्त विरोध किया. बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस की आर्थिक नीतियों की जमकर आलोचना की और साफ़ कर दिया कि अगर सरकार पर बुरा वक़्त आता है तो यह पार्टियां कांग्रेस के संकटमोचक के रूप में नहीं खडी होंगीं. हालांकि अब तक ऐसे कई मौके आये हैं जब इन दोनों पार्टियों ने केंद्र सरकार को तृणमूल और डी एम के की मनमानी से बच निकलने में मदद की है लेकिन इस बार लगता है कि अब कोई भी पार्टी कांग्रेस का साथ देने को तैयार नहीं है ,कम से कम आज दिल्ली में राजनीतिक गलियारों से तो यह साफ़ नज़र आ रहा है. आज दिल्ली में चारों तरफ से मनमोहन सिंह की सरकार की निंदा की आवाजें उठ रही हैं .
यू पी ए सरकार की सबसे ज्यादा कड़ी आलोचना पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों के सवाल पर हो रही है .बीजेपी ने आरोप लगाया है कि यू पी ए के सात साल के शासनकाल में पेट्रोल की कीमतों में २५ रूपये की वृद्धि हुई है . बीजेपी के प्रवक्ता शाहनवाज़ हुसैन ने बताया कि जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने कांग्रेस की अगुवाई वाली मनमोहन सरकार को चार्ज दिया था तो पेट्रोल की कीमत ४० रूपये से भी कम थी जबकि अब अवह सत्तर पार कर गयी है . बीजेपी ने मांग की है कि सरकार को फ़ौरन पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतें वापस लेनी होंगीं .अगर ऐसा न हुआ तो पूरे देश में आन्दोलन शुरू कर दिया जाएगा. किसी भी विपक्षी पार्टी के लिए आम आदमी के खिलाफ खडी किसी भी सरकार को घेरने का यह बेहतरीन मौक़ा है और बीजेपी उसका इस्तेमाल कर रही है . सरकार की परेशानी तृणमूल कांग्रेस के रुख से है . उसने मांग कर डी है कि पेट्रोल के बढे हुए दाम फ़ौरन वापस लिए जाएं . तृणमूल कांग्रेस के नेता और रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने आज एक प्रेस कानफरेंस में कहा कि सरकार ने पेट्रोल की कीमतें बढाने के पहले उनकी पार्टी से सलाह नहीं किया था. तृणमूल कांग्रेस की नाराज़गी केंद्र सरकार के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर सकती है . मनमोहन सिंह की सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मोहन सिंह ने कहा कि पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि का कोई आर्थिक कारण नहीं है . यह शुद्ध रूप से भ्रष्टाचार के कारण हुआ है . उन्होंने आरोप लगाया भ्रष्टाचार और महंगाई दोनों का बहुत करीबी साथ है . केंद्र की सरकार भ्रष्ट है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है . ज़खीरेबाज़ और बड़े पूंजीपति सरकार को पाल रहे हैं और वे ही सरकार की लचर नीतियों का फायदा उठाकर हर चीज़ के दाम बढ़ा रहे हैं . और सरकार मुनाफाखोरों के साथ खडी है . केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों की कोई दिशा नहीं है . सब कुछ आकस्मिक तरीके से हो रहा है . इस लिए मंहगाई बढ़ रही है .
पेट्रोल और खाने की चीज़ों की बढ़ती कीमतों के बाद आज केंद्र सरकार के मातहत काम करने वाले रिज़र्व बैंक ने भी मध्य वर्ग को झकझोर दिया . आज ही ब्याज दर में वृद्धि की घोषणा कर दी गयी . अब मकान , कार ओर स्कूटर के लिए लिया गया क़र्ज़ और महंगा हो गया . यह खबर टेलिविज़न पर लगातार दिखाई जा रही है जिसके चलते लगता है कि केंद्र सरकार और उसके मध्यवर्गीय समर्थक और भी दबाव में आ जायेगें
महंगाई के सवाल पर आज केंद्र सरकार बहुत बुरी तरह घिर गयी है . कांग्रेस के दफ्तर का माहौल देखने पर लगता है कि वहां किसी बड़े चुनाव में हार जाने के बाद वाली मुर्दनी छाई हुई है .सरकार में भी सन्नाटा है . केन्द्रीय वित्तमंत्री ने आज एक बयान दिया कि केंद्र सरकार ने नहीं ,पेट्रोल कंपनियों ने पेट्रोल की कीमतें बढ़ाई हैं . उनके इस बयान का सरकार के बाहर और अंदर बैठे लोग मजाक उड़ा रहे हैं . जानकार बताते हैं कि पिछले दो दशकों में केंद्र सरकार इतनी लाचार कभी नहीं देखी गयी थी. पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि,बैंक की ब्याज दरों में बढ़ोतरी और मुद्रास्फीति की छलांग लगाती दर के कारण मनमोहन सिंह की सरकार को समर्थन दे रही पार्टियों ने सरकार की लाचारी को निशाने में लिया और दिल्ली की राजनीतिक हवा में आज यह संकेत साफ़ नज़र आने लगे कि लोकसभा का अगला आम चुनाव २०१४ में बताने वाले राजनीतिक तूफ़ान की रफ्तार को पहचान नहीं पा रहे हैं . यू पी ए समर्थकों तक को दर लगन एलागा है कि कहेने सरकार की छुट्टी न हो जाए. बीजेपी ने आज दिल्ली के हर मंच पर सरकार को नाकारा और भ्रष्ट साबित करने का अभियान चला रखा है . जहां तक बीजेपी का सवाल है उसके किसी भी राजनीतिक रुख से केंद्र सरकार की स्थिरता और लोकसभा के चुनाव पर कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है . लेकिन यू पी ए में शामिल राजनीतिक पार्टियों के आज के रुख से बिलकुल साफ़ संकेत मिल रहा है कि डॉ मनमोहन सिंह की सरकार की उलटी गिनती शुरू हो गयी है . केंद्र सरकार में कांग्रेस सबसे बड़ा दल है लेकिन सरकार बनी रहने में अंदर से समर्थन दे रही तृणमूल कांग्रेस और द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम का योगदान सबसे ज्यादा है . सरकार में शामिल बाकी राजनीतिक पार्टियों की संख्या बहुत मामूली है . आज पहली बार डी एम के और तृणमूल कांग्रेस ने सरकार की महंगाई रोक सकने की नीति की सख्त आलोचना की . बाहर से समर्थन दे रही दो बड़ी पार्टियों,बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी , ने भी आज कांग्रेस की आम आदमी विरोधी नीतियों का ज़बरदस्त विरोध किया. बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस की आर्थिक नीतियों की जमकर आलोचना की और साफ़ कर दिया कि अगर सरकार पर बुरा वक़्त आता है तो यह पार्टियां कांग्रेस के संकटमोचक के रूप में नहीं खडी होंगीं. हालांकि अब तक ऐसे कई मौके आये हैं जब इन दोनों पार्टियों ने केंद्र सरकार को तृणमूल और डी एम के की मनमानी से बच निकलने में मदद की है लेकिन इस बार लगता है कि अब कोई भी पार्टी कांग्रेस का साथ देने को तैयार नहीं है ,कम से कम आज दिल्ली में राजनीतिक गलियारों से तो यह साफ़ नज़र आ रहा है. आज दिल्ली में चारों तरफ से मनमोहन सिंह की सरकार की निंदा की आवाजें उठ रही हैं .
यू पी ए सरकार की सबसे ज्यादा कड़ी आलोचना पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों के सवाल पर हो रही है .बीजेपी ने आरोप लगाया है कि यू पी ए के सात साल के शासनकाल में पेट्रोल की कीमतों में २५ रूपये की वृद्धि हुई है . बीजेपी के प्रवक्ता शाहनवाज़ हुसैन ने बताया कि जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने कांग्रेस की अगुवाई वाली मनमोहन सरकार को चार्ज दिया था तो पेट्रोल की कीमत ४० रूपये से भी कम थी जबकि अब अवह सत्तर पार कर गयी है . बीजेपी ने मांग की है कि सरकार को फ़ौरन पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतें वापस लेनी होंगीं .अगर ऐसा न हुआ तो पूरे देश में आन्दोलन शुरू कर दिया जाएगा. किसी भी विपक्षी पार्टी के लिए आम आदमी के खिलाफ खडी किसी भी सरकार को घेरने का यह बेहतरीन मौक़ा है और बीजेपी उसका इस्तेमाल कर रही है . सरकार की परेशानी तृणमूल कांग्रेस के रुख से है . उसने मांग कर डी है कि पेट्रोल के बढे हुए दाम फ़ौरन वापस लिए जाएं . तृणमूल कांग्रेस के नेता और रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने आज एक प्रेस कानफरेंस में कहा कि सरकार ने पेट्रोल की कीमतें बढाने के पहले उनकी पार्टी से सलाह नहीं किया था. तृणमूल कांग्रेस की नाराज़गी केंद्र सरकार के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर सकती है . मनमोहन सिंह की सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मोहन सिंह ने कहा कि पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि का कोई आर्थिक कारण नहीं है . यह शुद्ध रूप से भ्रष्टाचार के कारण हुआ है . उन्होंने आरोप लगाया भ्रष्टाचार और महंगाई दोनों का बहुत करीबी साथ है . केंद्र की सरकार भ्रष्ट है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है . ज़खीरेबाज़ और बड़े पूंजीपति सरकार को पाल रहे हैं और वे ही सरकार की लचर नीतियों का फायदा उठाकर हर चीज़ के दाम बढ़ा रहे हैं . और सरकार मुनाफाखोरों के साथ खडी है . केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों की कोई दिशा नहीं है . सब कुछ आकस्मिक तरीके से हो रहा है . इस लिए मंहगाई बढ़ रही है .
पेट्रोल और खाने की चीज़ों की बढ़ती कीमतों के बाद आज केंद्र सरकार के मातहत काम करने वाले रिज़र्व बैंक ने भी मध्य वर्ग को झकझोर दिया . आज ही ब्याज दर में वृद्धि की घोषणा कर दी गयी . अब मकान , कार ओर स्कूटर के लिए लिया गया क़र्ज़ और महंगा हो गया . यह खबर टेलिविज़न पर लगातार दिखाई जा रही है जिसके चलते लगता है कि केंद्र सरकार और उसके मध्यवर्गीय समर्थक और भी दबाव में आ जायेगें
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