Thursday, July 29, 2010

मैं पंडित के बी परसाई का एक नास्तिक अनुयायी हूँ

शेष नारायण सिंह


पिछले साल जुलाई में पंडित के बी परसाई का देहांत हो गया था. एक साल से कुछ ज्यादा हो गए. मैंने उनके बारे में कुछ लिखने की कोशिश की लेकिन नहीं लिख पाया. मेरे लिए बाबा के बारे में कुछ भी लिखना बहुत मुश्किल है . . उन्हें दुनिया तरह तरह से जानती थी. घोषित रूप से वे संस्कृत, धर्मशास्त्र और ज्योतिष के विद्वान् थे. अंग्रेज़ी और संस्कृत के विद्वान् थे .इन दोनों ही विषयों में उन्होंने एम ए पास किया था. वे भारत सरकार में काम करते थे और निदेशक पद से रिटायर हुए थे . लेकिन इसके अलावा वे बहुत कुछ थे. पूरी दुनिया में ज्योतिष और धर्मशास्त्र के विद्वान् उन्हें जानते थे. लेकिन उन्होंने संबंधों का ढिंढोरा कभी नहीं पीटा. मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के एक गाँव में जन्मे बाबा , बहुत बड़े इंसान थे. भाग्यशाली भी माने जायेगें क्योंकि ४२ साल की उम्र रही होगी उनकी जब जवाहर लाल नेहरू का स्वर्गवास हुआ था. उस अवसर पर इंदिरा जी ने उनसे कहा कि जब तक नेहरू जी का पार्थिव शरीर तीन मूर्ति में है, गीता का अखंड पाठ होना चाहिए . बाबा ने ही वह पाठ किया था. इंदिरा जी उन्हें जानती थीं लेकिन इस घटना के बाद सब को पता चल गया कि वे इंदिरा जी के करीबी थे. और कोई होता तो इस सम्बन्ध का लाभ उठाता लेकिन बाबा ने ऐसा नहीं किया . अपनी साधना में लगे रहे और पूरा जीवन मध्यवर्गीय जीवन जीते रहे..

मेरी उनसे मुलाक़ात बहुत ही अजीबो गरीब परिस्थितियों में हुई थी. १९७८ में मैं किसी काम से ऋषिकेश गया था . हमारे शुभ चिन्तक डॉ इंदु प्रकाश सिंह ने चिट्ठी लिख दी थी तो वहां के शिवानन्द आश्रम में स्वामी कृष्णानंद जी महराज ने मेरे ठहरने का इंतज़ाम वहीं आश्रम में , द्वारका अतिथि गृह में करवा दिया था. बगल के कमरे में एक अन्य व्यक्ति थे , जो मूल रूप से अँगरेज़ थे लेकिन उन दिनों वहीं गढ़वाल में कहीं दूर दराज़ के गाँव में रहते थे. स्वामी जी के यूं पर ख़ास कृपा थी. उन्होंने मुझसे कुछ देर बात की और कुछ भविष्यवाणी कर दीं . मुझे ज्योतिष पर विश्वास नहीं है इसलिए मैं शिष्टाचार बस हाँ में हाँ मिलाता रहा . उन्होंने कागज़ उठाया और भविष्य में घटने वाली घटनाओं की कुछ तारीखें लिख कर मेरे हाथ में पकड़ा दीं .मैंने कागज़ संभाल कर रख लिया . उनको लगा कि मैं उनका विश्वास नहीं कर रहा हूँ . थोडा नाराज़ हुए और कहा कि अगर किसी बात पर विश्वास न हो तो बहस करो लेकिन मुझे मालूम था कि ज्योतिष पर बहस करने से क्या फायदा . आखिर में उन्होंने कहा कि दिल्ली में जाकर पंडित कन्हैया लाल परसाई से मिलो. बाबा का यही वास्तविक नाम था. दिल्ली आकर मैं पंडित के बी परसाई से मिला. और उन्हें बताया कि मैं क्यों मिल रहा हूँ . पंडित जी ने कहा कि बड़े भाग्यशाली हो जो उन्होंने तुम्हे यह सब बताया , वे किसी को कुछ बताते नहीं . कुछ दिन बाद ऋषिकेश वाले महराज की एकाध बातें उन्हीं तारीखों पर सही साबित हुईं जो उन्होंने लिख कर दिया था. मैं फिर बाबा से मिलने गया और सारी बात बतायी. . उन्होंने कहा कि अब उस संत पर शक मत करो . बाबा ने भी कुछ तारीखें लिख दीं . जो बाद में सही उतरीं. मुझे लगा कि ज्योतिष में मेरा विश्वास बढ़ रहा है . लेकिन बाबा ने कहा कि तुम बहुत बड़े संत से मिलकर आये हो , उनकी टक्कर का कोई नहीं . हर ज्योतिषी की बात सच नहीं होती. बहुत ज्ञान के ज़रुरत होती है . बाद मेंमें सैकड़ों ज्योतिषियों से मिला कभी किसी को किसी नया ज्योतिषी की तारीफ़ करते मैंने नहीं सुना है . लेकिन बाबा करते थे. मैंने एक दिन उनसे पूछा कि बाबा क्या मेरे जीवन में कभी आराम नहीं लिखा है . उन्होंने कहा जिस उम्र में लोग रिटायर होते हैं ,उस में तुम्हें कुछ चैन मिलेगा . अभी तो लगे रहो.अब लगता है कि शायद कुछ चैन की ज़िंदगी नसीब हुई है लेकिन किससे बताऊँ क्योंकि बाबा ही नहीं हैं .

उनकी भविष्यवाणी बहुत ही सटीक होती थी . हालांकि मैं कभी विश्वा नहीं करता था लेकिन जब घटना उनके बताये के अनुसार हो जाए मैं सन्न रह जाता था . बहुत सारी ऐसी भविष्यवाणियाँ हैं जिन्हें उन्होंने पहले ही लिख दिया था . उन्होंने बहुत पहले कह दिया था कि संजय गाँधी की मृत्यु किसी दुर्घटना में होगी.उन्होंने इंदिरा जी को नेहरू की मृत्यु के बारे में पहले ही बता दिया था और चेतावनी दी थी कि १९८४ में उन्हें संभल कर रहना चाहिए क्योंकि बाबा ने देख लिया था कि इंदिरा जी के जीवन को १९८४ में बहुत बड़े खतरे से दो चार होना पडेगा.

उनको यह लोक छोड़े एक साल हो गए . १९८६ और १९९६ के बारे में जो भी मुझे बताया था सच निकला . आखिर में मुझे उन्होंने बताया कि बेटा जब तुम्हें ज्योतिष में विश्वास नहीं है तो अपने आप पर जोर मत दो . बस यह मान कर चलो कि हो सकता है कि ज्योतिष के बारे में पूरी बात जानने के लिए अभी तुम्हारा मानसिक विकास नहीं हुआ है. लेकिन बाबा का विकास हुआ था क्योंकि उन्होंने ११ साल की उम्र में ही ज्योतिष का गहन अध्ययन शुरू कर दिया था और उम्र के ८७ साल तक उस में लगे रहे उनके पूर्वज भी ज्योतिष के विद्वान् थे और बाबा उस परंपरा की पचीसवीं पीढी के सदस्य थे. यह मेरे निहायत ही निजी ख्यालात हैं . यहाँ लिखी गयी किसी भी बात को मैं तर्क से नहीं साबित कर सकता लेकिन यह मेरे अनुभव हैं , एक नास्तिक के अनुभव . .