Sunday, July 8, 2012

चन्द्रशेखर ने कहा था --जिसमें मानव संवेदना नहीं है उसमें धर्मनिरपेक्षता नहीं हो सकती.


शेष नारायण सिंह 


८ जुलाई को चन्द्रशेखर जी को गए पांच साल हो गए. अगर होते तो ८५ साल के हो गए होते. उनको लोग बहुत अच्छा संसदविद कहते हैं . वे संसद में थे इसलिए संसदविद भी थे लेकिन लेकिन सच्चाई यह है कि वे जहां भी रहे धमक के साथ रहे और कभी भी नक़ली ज़िंदगी नहीं जिया. मैं चन्द्रशेखर जी  को एक ऐसे इंसान के रूप में याद करता हूँ जो राजनेता भी थे नहीं , लेकिन वे सही  अर्थ में स्टेट्समैन थे . जो दूरद्रष्टा थे और राष्ट्र और समाज के हित को सर्वोपरि मानते थे. आज चन्द्रशेखर की विरासत को संभालने वाला कोई नहीं है क्योंकि उनकी राजनीति को आगे ले जाने वाली कोई पार्टी ही कहीं नहीं है . जिस पार्टी को उन्होंने अपनी बनाया था उसके वे आख़िरी कार्यकर्ता साबित हुए . पचास के दशक में आचार्य नरेंद्रदेव के सान्निध्य में उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की राजनीति में हिस्सा लेना शुरू किया लेकिन १९६४ आते आते उनको लग गया कि उनकी और आचार्य जी की राजनीति की सबसे बड़ी वाहक जवाहरलाल नेहरू की कांग्रेस पार्टी ही रह गयी थी. शायद इसीलिये उन्होंने अपनी पार्टी के एक अन्य बड़े नेता, अशोक मेहता के साथ कांग्रेस की सदस्यता ले ली. लेकिन उनका और शायद देश के दुर्भाग्य था कि उसके बाद ही से कांग्रेस में जो राजनीतिक शक्तियां उभरने लगीं , वे पूंजीवादी राजनीति को समर्थन करने वाली थीं. कांग्रेसी सिंडिकेट ने कांग्रेस की राजनीति को पूरी तरह से काबू में कर लिया . सिंडिकेट से इंदिरा गाँधी ने बगावत तो किया लेकिन वह पुत्रमोह में फंस गयीं और उन्होंने ने भी तानाशाही का रास्ता अपना लिया . नतीजा यह हुआ  कि चन्द्र शेखर जी को जय प्रकाश नारायण के  नेतृत्व में चल रहे तानाशाही विरोधी आन्दोलन का साथ देना पड़ा. यह भी अजीब इत्तेफाक है कि जिस साम्प्रदायिक राजनीति का चन्द्रशेखर जी  ने हमेशा ही विरोध किया था , उसी राजनीति के पोषक लोग जेपी के आन्दोलन में चौधरी बने बैठे थे. हालांकि समाजवादी लोग सबसे आगे आगे  नज़र आते थे लेकिन सबको मालूम था कि गुजरात से लेकर बिहार तक आर एस एस वाले ही वहां हालत को कंट्रोल कर रहे थे . बाद में जो सरकार बनी उसमें भी आर एस एस की सहायक पार्टी जनसंघ वाले ही हावी थे. चन्द्रशेखर और मधु  लिमये ने आर एस एस को एक राजनीतिक पार्टी बताया और कोशिश की कि जनता पार्टी के सदस्य किसी और पार्टी के सदस्य न रहें . लेकिन आर एस एस ने जनता पार्टी ही तोड़ दी और अलग भारतीय जनता पार्टी बना ली. लेकिन चन्द्र शेखर ने अपने  उसूलों से कभी समझौता नहीं किया 

उनके जाने के पांच साल बाद यह साफ़ समझ में आता है  कि उनकी विरासत को जिंदा रखने के लिए किसी संस्था की ज़रुरत नहीं है . उनकी ज़िंदगी ही एक ऐसी संस्था का रूप ले चुकी थी जिसमें बहुत सारी सकारात्मक शक्तियां एकजुट हो गयी थीं.उनकी ज़िंदगी ने देश की राजनीति को हर मुकाम पर प्रभावित किया.  इंदिरा गाँधी ने जब सिंडिकेट के चंगुल से निकल कर राष्ट्र की संपत्ति को जनता की हिफाज़त में रखने के लिए बैंकों का  राष्ट्रीयकरण किया तो चन्द्रशेखर ने उनको पूरा समर्थन दिया और सिंडिकेट वालों के लिए राजनीतिक मुश्किल पैदा की. लेकिन वही इंदिरा गाँधी जब पुत्रमोह में तानाशाही और गैर ज़िम्मेदार राजनीतिक परंपरा की स्थापना करने लगीं तो चन्द्रशेखर ने उनको चेतावनी दी और  बाद में तानाशाही प्रवृत्तियों को ख़त्म करने के आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई. 
आज चन्द्रशेखर जी के जीवन की बहुत सारी घटनाएं याद आती हैं . लेकिन उनके जीवन की जिस घटना ने मुझे हमेशा ही प्रभावित किया है वह भारत की लोकसभा में ७ नवम्बर १९९० में घटी थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को हटाने के लिए  लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां एकजुट थीं. विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपने ग्यारह महीने के राज में बहुत सारे  गैरज़िम्मेदार फैसले किये थे और उनका प्रधान मंत्री पद  से हटना बहुत ज़रूरी माना जा रहा  रहा. जब चन्द्रशेखर जी  को अध्यक्ष ने भाषण करने के लिए बुलाया तो सदन में बिलकुल सन्नाटा छा गया था . और जब  चन्द्रशेखर ( बलिया ) ने कहा कि मुझे  अत्यंत दुःख के साथ इस बहस में हिस्सा  लेना पड़  रहा है तो सदन में बैठे लोगों ने उस स्टेट्समैन के दर्द  का अनुभव किया था. गैलरी  में बैठे लोगों ने भी सांस खींच कर उनके भाषण को सुना. उन्होंने कहा कि जब ग्यारह महीने पहले हमने देश को बचाने के लिए बीजेपी से समझौता किया था .उस समय सोचा था कि  देश संकट में है ,कठिनाई में है और उस कठिनाई से निकलने के लिए सबको साथ मिलकर चलना चाहिए .उन्होंने अफ़सोस जताया कि  ग्यारह महीने पहले देश की जो दुर्दशा  थी , ग्यारह महीने बाद उस से बदतर हो गयी थी. उन्होंने पूछा कि क्या यह सही नहीं है कि हमारे देश में आतंक  बढा है , क्या यह सही नहीं है कि हमारे देश में विषमता बढ़ी है , क्या यह सही नहीं है कि बेकारी , बेरोजगारी,मंहगाई बढ़ी है ,,क्या यह सही नहीं है कि हमारे देश में सामाजिक तनाव बढ़ा है .क्या यह सही नहीं है कि पंजाब पीड़ा से कराह रहा है ,क्या यह सही नहीं है कश्मीर में आज वेदना है.क्या यह सही नहीं है कि असम में आतंक बढ़ रहा है ,क्या यह सही नहीं है कि देश के गाँव गाँव में धर्म और जाति के नाम पर आदमी ही आदमी के खून का प्यासा हो रहा  है . उन्होंने तत्कालीन प्रधान मंत्री से कहा कि संसद और देश को चलाना कोई ड्रामा नहींहै इसलिए गंभीरता  हर राजनीतिक काम के बुनियाद में होनी  चाहिए . 

लोकसभा के उसी  सत्र के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को हटा दिया गया था .चन्द्रशेखर जी ने साफ़  कहा कि सिद्धांतों की बात करने वाले  विश्वनाथ प्रताप सिंह धर्मनिरपेक्षता का सवाल क्यों नहीं उठाते.चन्द्रशेखर जी ने कहा कि धर्म निरपेक्षता मानव संवेदना की पहली परख है .  जिसमें मानव संवेदना नहीं है उसमें धर्मनिरपेक्षता नहीं हो सकती.इसी भाषण में चन्द्र शेखर जी ने बीजेपी की राजनीति को आड़े हाथों लिया था .  उन्होंने कहा कि मैं आडवाणी जी से ग्यारह महीनों से एक सवाल पूछना चाहता हूँ कि   बाबरी मज्सिद के बारे में सुझाव देने  के लिए एक समिति बनायी गयी, उस समिति से भारत के गृह मंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री को हटा दिया जाता है . बताते चलें  कि  उस वक़्त गृह मंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद थे और उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री मुलायम सिंह यादव थे. चन्द्र शेखर जी ने आरोप लगाया कि इन लोगों को इस लिए हटाया गया क्योंकि विश्व हिन्दू परिषद् के कुछ नेता उनकी सूरत नहीं देखना चाहते.क्या इस  तरह से देश को चलाना है . उन्होंने सरकार सहित बीजेपी -आर एस एस की राजनीति को भी घेरे में ले लिया और बुलंद आवाज़ में पूछा कि क्यों हटाये गए मुलायम सिंह , क्यों हटाये गए मुफ्ती मुहम्मद सईद ,उस दिन किसने समझौता किया था ? चाहे वह समझौता विश्व हिन्दू परिषद् से हो ,चाहे बाबरी मस्जिद के सवाल पर किसी इमाम से बैठकर समझौता करो ,यह समझौते देश की हालत को  रसातल में ले जाने के लिए ज़िम्मेदार हैं .उन्होंने प्रधान मंत्री को चेतावनी दी कि आपकी सरकार जा सकती है ,ज उस से कुछ नहीं बिगड़ेगा .लेकिन याद रखिये कि जो संस्थाएं बनी हुई हैं ,उनका अपमान आप मत कीजिये . क्या यही परंपरा है कि बातचीत को चलाने के लिए राष्ट्रपति के पद का इस्तेमाल किया  जाय .शायद दुनिया के इतिहास में ऐसा कहीं भी नहीं हुआ होगा.कभी ऐसा नहीं हुआ कि अध्यादेश लगाए जाएँ और २४ घंटों के अंदर उसको वापस ले लिया  जाए..उन्होंने कहा  कि यह तुगलकी मिजाज़ इस  देश को रसातल  तक पंहुचाएगा और देश को बचाने के लिए मैं तुगलकी मिजाज़ का विरोध करना अपना राष्ट्रीय कर्तव्य मानता हूँ.
इसी भाषण के  दौरान किस्मत के मारे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने  बीच में टिप्पणी कर दी और कहा कि सिद्धांत के चर्चे सरकारी पदों के गलियारों के नहीं गुज़रते हैं.चन्द्रशेखर जी ने कहा कि , चलिए मुझे मालूम है .सिद्धांत संघर्षों से पलते हैं और संघर्ष करना जिसका  इतिहास नहीं है वह सिद्धांतों की बात करता है . मैं उन लोगोंमें से  नहीं हूँ जो कि अपनी गलती को स्वीकार ही न करें . उन्होंने  प्रधान मंत्री से कहा कि जिस समय आप कुर्सियों से चिपके रहने के लिए हर प्रकार के घिनौने समझौते  कर रहे थे , उस समय संघर्ष के रास्ते चल कर मैं हर  मुसीबत  का मुकाबला कर रहा था. आप सिद्धांतों की चर्चा हमसे मत करें .

चन्द्रशेखर जी ने इस भाषण में और भी बहुत सारी बातें कहीं जो कि भारत के राजनीतिक  भविष्य के लिए दिशा निर्देश का प्रकाश स्तम्भ हो सकती  हैं . आज उन्हीं चन्द्र शेखर की पुण्य तिथि है जिन्होंने  स्वार्थ के सामने कभी भी सर नहीं झुकाया  . भारत के एक नागरिक के रूप में उन्हें आज सम्मान से याद करने में मुझे गर्व है .