Friday, August 30, 2013

नार्वे के चुनाव में यूरोपियन यूनियन और प्रवासी अल्पसंख्यक भी मुद्दा हैं




शेष नारायण सिंह

ओस्लो, २८ अगस्त. नार्वे के चुनाव में नेता भी आम आदमी की तरह रहते हैं . भारत से आये किसी रिपोर्टर के लिए यह सुखद तो है ही लेकिन एक पछतावा भी है कि काश हमारे नेता भी ऐसे होते. शहर के पूर्वी इलाके में आयोजित एक चुनावी सभा में सत्ताधारी लेबर पार्टी का नेता हाफ पैंट पहनकर अपनी साइकिल से आया और हाथ में एक चाकलेट का बार भी था क्योंकि खाने का मौक़ा नहीं मिला था. सत्ताधारी गठ्बंधन की पार्टी सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी की ओस्लो नगर की सबसे महत्वपूर्ण नेता , इन्गुन येरास्ता , मीटिंग शुरू होने के पहले गेट पर खड़े होकर आने वालों से गप्प मार रही थी, .आज की मीटिंग इस इलाके में पर्यावरण की निगरानी रखने वाले एन जी ने किया था और सभी पार्टियों के नेताओं को बुलाया गया था .सभी पार्टियों के नेता समय से पहले हाज़िर थे और एन जी ओ ने शुरुआती वक्तव्य के लिए सबके लिए तीन मिनट का समय तय कर दिया था और समय पूरा होने पर घंटी बजती थी और नेता लोग चुप हो जाते थे .
मीटिंग शुरू होने के पहले आयोजकों  की तरफ से तैनात माडरेटर ने साफ़ बता दिया था कि सारी चर्चा पर्यावरण और सार्वजनिक यातायात की सुविधाओं पर केंद्रित रहेगी. शुरुआती वक्तव्य के बाद लोगों को सवाल पूछने की अनुमति दी जायेगी लेकिन सवाल पूछने वाले केवल सवाल पूछेगें अपनी राय नहीं देगें . सवाल सीधे और डायरेक्ट होने चाहिए . यह भी बताया गया कि मीटिंग के दौरान अगर  कोई आग वगैरह लग जाए तो बाहर जाने का रास्ता किधर से है. इस मीटिंग में लेबर पार्टी के यान ब्योलर और सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी की इन्गुन येरास्ता भी उपस्थित थे . यह अपनी पार्टियों के बड़े नेता हैं . मुख्य विपक्षी दल होयरे की तरफ से निकोलाई आस्त्रुप आये थे जो मामूली स्तर के नेता हैं . होयरे यानी कंज़रवेटिव पार्टी को इस इलाके से किसी खास समर्थन की उम्मीद नहीं है शायद इसलिए उन्होने किसी बड़े नेता को नहीं भेजा था  . नार्वे के चुनाव में शामिल सभी पार्टियों के प्रतिनिधि आये थे और अगर किसी मुद्दे पर सवाल को टालने की कोशिश करते थे तो माडरेटर तुरंत टोक देता था. एक भारतीय के रूप में हमारे लिए यह अहम नहीं है कि लोकल मुद्दों पर किसने क्या कहा लेकिन यह अहम है कि चुनाव के पहले  होने वाली  बैठकों में भी  हर स्तर पर लोकतंत्र का ध्यान रखा जाता है .
सत्ताधारी गठबंधन को शुरुआती सर्वेक्षणों में बहुत कम समर्थन मिलता बताया जा रहा था लेकिन अब हालात सुधर रहे हैं और सोशलिस्ट लेफ्ट और लेबर पार्टी ,दोनों की स्वीकार्यता बढ़ रही है. इसलिए  यहाँ के राजनीतिक पर्यवेक्षकों को अब लगने लगा है कि शायद मौजूदा गठबंधन ही सत्ता पर बना रहे. इसलिए गठबंधन की प्रमुख नेता और ओस्लो इलाके से स्तूर्तिंग ( संसद ) पंहुचने की प्रबल दावेदार  इन्गुन येरास्ता से अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बात करने की कोशिश की गयी . ओस्लो इलाके से उनकी पार्टी ने चार उम्मीदवार उतारे हैं . आनुपातिक प्रतिनिधित्व के नियम के अनुसार २००५ के चुनाव में सोशलिस्ट लेफ्ट को ओस्लो से ३ सीटें मिली थीं जबकि २००९ में २ सीटें मिलीं थीं . इस बार भी पार्टी कम से कम दो सीटों की उम्मीद कर रही है . पार्टी के लिस्ट में इन्गुन येरास्ता  का नाम दूसरी जगह पर है इसलिए उनकी संसद पंहुचने की संभावना बहुत ज्यादा है. जब उनको बताया गया कि चुनावी सर्वे में तो उनकी पार्टी को पिछडता हुआ  दिखाया गया है तो उन्होंने कहा कि इन सर्वेक्षणों का विश्वास मत कीजिये . यह सारे सर्वे टेलीफोन से बात करके किये जाते हैं और उनकी पार्टी का समर्थन मूल रूप से  प्रवासी समुदाय में है . दक्षिण अमरीका और अफ्रीका से आये लोगों में उनकी पार्टी की मज़बूत ताक़त है और कोई भी सर्वे वाला इन लोगों  को फोन पर संपर्क ही नहीं करता . इसलिए किसी भी चुनाव में चुनाव पूर्व सर्वे करने वाले नतीजों के आसपास भी नहीं पंहुचते . उनकी इस बात से अपने देश के चुनावी पंडितों की याद आ गयी . वे भी तो टी वी स्टूडियो में बैठे ज्ञान देते रहते हैं और नतीजा  उनके ज्ञान से  बिलकुल अलग होता है .उन्होंने बताया कि अल्पसंख्यकों और प्रवासियों में उनकी पार्टी की ताक़त ज्यादा है .सोशालिस्ट लेफ्ट पार्टी ने ओस्लो क्षेत्र से तीसरे नंबर पर ब्राजील मूल की ओलिविया सेलेस  और चौथे नंबर पर मोरक्को के यासीन एजारी को टिकट दिया है . इन दोनों के जीतने की उम्मीद नहीं है क्योंकि पार्टी दो सीटों से ज्यादा की उम्मीद नहीं रख रही  है  . लेकिन लिस्ट में इन दो समुदायों के उम्मीदवार होने का फायदा यह है कि इन की कम्युनिटी के लोग  पार्टी को वोट देगें . मुझे लगा कि जातिवाद की राजनीति के दूसरे रूप में यहाँ भी मौजूद है .
इन्गुन येरास्ता ने बताया कि नार्वे में बजट का एक प्रतिशत विदेशी सहायता के लिए  दिया जाता है . जिस से अफ्रीका और एशिया के देशों में  गरीबी और स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रहे लोगों को ताक़त मिलती है लेकिन मुख्य विपक्षी पार्टी ,होयरे ,उसको खत्म कर देना  चाहती है . उसके सहयोगी एफ आर पी वाले तो अश्वेत लोगों के प्रति सौतेला व्यवहार अपनाने की राजनीति कर रहे हैं . उन्होंने कहा कि इतने पुरातनपंथी और पिछड़े हुए लोग हैं फिर भी यह पता नहीं क्यों एफ आर पी वाले अपने आप को प्रोग्रेसिव पार्टी कहते हैं . उन्होंने कहा कि नार्वे की सम्पन्नता से इंसानी बिरादरी को लाभ मिलना चाहिए और इसके लिए सबको तरक्की में शामिल करके ही रास्ता निकलेगा.
अपने देश में भी ट्रेड यूनियन अधिकारों को मज़बूत करने की उनकी राजनीति  उनकी पार्टी को देश के शहरी इलाकों  तक ही सीमित रखती है. उनकी पार्टी को डर है कि कंज़रवेटिव पार्टी के नेता यूरोपियन यूनियन  में बढ़ रहे बेरोजगार लोगों की संख्या से चिंतित है लेकिन उसके बाद भी ट्रेड यूनियन अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए .उनकी पार्टी यूरोपियन यूनियन की नार्वे की सदस्यता का विरोध करती रही है . उनका मानना है कि नार्वे अगर यूरोपियन यूनियन का सदस्य होता तो यह परेशानी नहीं होती . लेकिन फिर भी वर्कर को सम्मान मिलना चाहिए . अगर एफ आर पी की चली तो नार्वे के जो नागरिक अश्वेत हैं तो वेह तबाह हो जायेगें और स्वीडन आदि जैसे देशों से श्वेत लोग आकर नार्वे के रोजगारों पर कब्जा कर  लेगें .जहां तक बाकी दुनिया के देशों से संबंध की बात है नार्वे को अपना स्वतंन्त्र अस्तित्व बनाए रखना चाहिए . इन्गुन येरास्ता से बातचीत के बाद लगा कि वे  बाकी यूरोप की गरीबी इम्पोर्ट करने के खिलाफ हैं लेकिन अपने देश के मजदूरों की ताकत से मज़बूत बनाने के लिए प्रयत्नशील हैं .

अकादामिक घेरे में फंसने के बाद एक रिपोर्टर का बयान तहरीरी


शेष नारायण सिंह


कल दोपहर बाद जोस्टाइन से मुलाक़ात हुई .उससे मिलकर बहुत अच्छा लगा . ओस्लो विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र विभाग में शोध छात्र जोस्टाइन की इच्छा है कि वे भारत की राजनीति के विशेषज्ञ बनें.  अमरीका की तरह ही रिसर्च को इन विश्वविद्यालयों में बहुत ही गंभीरता से लिया जाता है .यूरोप के इन हिस्सों में रिसर्च कोई टाइम पास नहीं होता . अपनी जे एन यू में रिसर्च कर रहे लोगों का काम देख कर थोडा बहुत अंदाज़ तो लग जाता है कि उच्च शोध की दिशा कैसे होती है. लेकिन जिन लोगों ने मेरे पुराने विश्वविद्यालयों में शोध छात्रों की दिनचर्या देखी है  और प्रोफ़ेसर के परिवार के लोगों, उनकी गाय भैंसों में रिसर्च स्कालर को ध्यानमग्न होते देखा है , उनको रिसर्च की गंभीरता समझ में आनी थोड़ी मुश्किल है . यह रिसर्च स्कालर मेरे मुख्य सम्पादाक श्री ललित सुरजन के संपर्क में है और उनकी सलाह पर ही इसने मुझसे मुलाकात की  .  मिलने के पहले जोस्टाइन ने मेरे लिखे के तत्व को समझ रखा था , टेलिविज़न में जो कुछ मैंने अंग्रेज़ी में कहा है, उसके बारे में उसे मालूम था . मैं थोडा सकते में आ गया कि भाई यह और क्या क्या जानता है . बहरहाल मुझसे प्रभावित नज़र आया इसलिए लगा कि अच्छी बातें ही जानता है . अपने प्रोफ़ेसर से भी मिलाएगा और दक्षिण भारतीय राजनीति के छात्रों से भी . मैंने जब बताया कि मैं तो एक मामूली रिपोर्टर हूँ ,  बुद्धिजीवी नहीं हूँ . तो उसने भरोसा दिलाया कि चिंता न करें , आप जो बातें मुझसे इम्पिरिकल अनुभव के आधार पर कर रहे हैं , वह यहाँ दूर देश में बैठे हुए  छात्रों के लिए बहुत उपयोगी होंगी. अब हाँ तो कर दिया है आगे जो होगा देखा जाएगा.