Monday, May 6, 2013

तालिबान का फरमान---महिलायें वोट नहीं देगीं,पाकिस्तानी लड़कियों ने कहा--देखें कौन रोकता है


    

शेष नारायण सिंह

पाकिस्तान में ११ मई को होने वाले आम चुनाव पर पूरी दुनिया की निगाहें लगी हुई हैं . दुनिया भर के , खासकर पश्चिमी देशों के अखबारों में उसके बारे में ख़बरें छप रही हैं .लोकशाही की पक्षधर जमातों को लग रहा है कि शायद पाकिस्तान में मजबूती के साथ सिविलियन और लोकतांत्रिक हुकूमत कायम हो सके . लेकिन लगता है कि पिछले पचास साल से साम्प्रदायिक ताक़तों ने जो विचारधारा का शून्य पैदा किया है उसके चलते अभी पाकिस्तान में  लोकतंत्र की स्थापना में बहुत वक़्त लगेगा . पाकिस्तान के मौजूदा चुनाव के लिए सबसे बड़ा ख़तरा पुरातनपंथियों और तालिबानी सोच के लोगों से है . पाकिस्तान के सूबा सरहद में तालिबानियों की ओर से पर्चे बांटे जा रहे हैं जिसमें अपील की जा रही है कि चुनाव के दिन कोई भी महिला घर से बाहर न निकले और वोट न डाले . सूबा सरहद को अब खैबर पख्तूनख्वां नाम दे दिया गया है . सूबे के मर्दों को हिदायत दी जा रही है कि अपने घर की औरतों को वोट डालने के लिए घर से बाहर न निकलने दें . जो पर्चे बांटे जा रहे हैं उनमें लिखा है कि औरतों के लिए डमोक्रेसी में शरीक होना गैर इस्लामी है .

पाकिस्तानी तालिबान की इस गैर ज़िम्मेदार जिद के आगे पाकिस्तानी लड़कियों का एक ग्रुप खड़ा हो गया है . अवेयर गिल्स नाम का  युवतियों का यह संगठन तालिबानियों को हर मुकाम पर चुनौती दे रहा है. मलाला युसुफजई नाम की जिस लडकी को स्कूल जाने से रोकने के लिए तालिबानियों ने  हमला किया था, वह इसी  संगठन की सदस्य है और आजकल लन्दन में शिक्षा पा रही है . अवेयर गर्ल्स  नाम के संगठन की संस्थापक सबा इस्माइल ने अपने संगठन की स्थापना करीब आठ साल पहले की थी जब वह केवल १६ साल की थी . आज वह २४ साल की हैं इसकी निदेशक हैं . वे तालिबानियों की मर्दवादी सोच को नाकाम करने के लिए  धमकियों की परवाह किये बिना अपना काम कर रही है . अवेयर गर्ल्स का मकसद बिलकुल साफ़ है . वह औरतों के अधिकारों के लिए उनको जागरूक करने का अभियान चला रहे है.’इस संगठन की शुरुआत इसलिए हुई  कि सबा इस्माइल ने देखा कि उसके अपने घर में लड़कों को ज्यादा अहमियत दी जा रही  थी जबकि उन्हीं लड़कों की सगी बहनों को दूसरे दर्जे का इंसान माना जा रहा था. यही हाल बाकी घरों का भी था . उनकीछोटी  चचेरी बहन कुल १५ साल की थी और उसकी शादी उस से दुगुनी उम्र के आदमी के साथ तय कर दी गयी थी. वह पढाई नहीं पूरी कर सकी जबकि उससे बड़े उसके भाई पढ़ रहे .उनके मोहल्ले में ऐसा माहौल था कि जो लडकियां चुपचाप फटकार और मारपीट को क़ुबूल कर लेती थीं उनकी बहुत इज्ज़त  होती थी . जो औरत अपने बाप या पति की हर उल्टी सीधी बात को मान लेती थी उसे  बहुत सम्माननीय माना जाता था . अवेयर गर्ल्स ने इसका विरोध  किया और आज जब तालिबानी सोच के लोग लड़कयों को वोट नहीं देने की हिदायत दे रहे हैं तो खैबर पख्तूनख्वां  में यह लडकियां इन्साफ के हरावल दस्ते में शामिल हैं .पाकिस्तानी समाज की मर्दवादी सोच को उनके घर में ही इन बहादुर लडकियों से चुनौती मिल रही है .
 पाकिस्तान के ११ मई को होने वाले चुनाव को नौजवानों का चुनाव कहा जा रहा है . कुल मतदाताओं का करीब ३५ प्रतिशत १८ से २९ साल की आयु वर्ग में शामिल है . ऐसे माहौल में पूरे देश में लडकियां मैदान ले चुकी हैं और सरकार, सेना और तालिबानी सोच के नेताओं को लगातार चुनौती दे रही हैं .२००८ के चुनावों में बहुत सारे पोलिंग बूथों को जला दिया गया था और कहा गया था कि वोट देना ऐसा काम है  जिसमें महिलाओं को शामिल नहीं होना चाहिए क्योंकि वह बहुत ही गन्दा काम है . सबा इस्माइल का कहना है कि पाकिस्तान में जहां औरतों को वोट देने का मौक़ा भी नसीब होता है वहाँ उनके पति या पिता या और कोई पुरुष रिश्तेदार तय करता है कि वोट किसको दिया जाना है .यह लड़कियां इस व्यवस्था को खत्म करना चाहती हैं . उनका आरोप है कि कोटा पूरा करने के लिए जिन कुछ महिलाओं को राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल होने दिया जाता है उन्हें भी अपनी मर्ज़ी से कोई फैसला लेने का हक नहीं होता . उनको भी उनके परिवार के मालिक अपने हुक्म से हांकते हैं .
सेना ने ऐलान कर रखा है कि ७० हज़ार सैनिकों को चुनावी ड्यूटी पर लगाया जायेगा .बलूचिस्तान और खैबर पक्तूनख्वां में लड़कियों को वोट देने से रोकने के लिए आतंकवादियों ने बहुत जोर लगा रखा है . इसके बावजूद भी उम्मीद की जा रही है कि इस बार २००८ के ४४ प्रतिशत से ज़्यादा वोट पडेगा और लड़कियों के आन्दोलन का नतीजा होगा कि तालिबान के गढ़ में भी महिलायें पहले से ज्यादा वोट डालने में सफल होगीं .