Saturday, January 12, 2013

अकबरुद्दीन ओवैसी को देशद्रोह की सज़ा मिलनी चाहिए





शेष नारायण सिंह   

आंध्र प्रदेश के एम एल ए अकबरुद्दीन ओवैसी को आखिर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया .उसे बहुत पहले  गिरफ्तार हो जाना चाहिए था लेकिन आन्ध्र प्रदेश की कांग्रेस सरकार उसको पकड़ने या उस पर आपराधिक मुक़दमा  चलाने से बच रही थी. इसका सीधा कारण  यह लगता है कि कांग्रेस को अकबरुद्दीन ओवैसी की पार्टी का केन्द्र और राज्य में समर्थन मिलता है .जिन लोगों ने अकबरुद्दीन ओवैसी के भाषण सुने हैं वे उसे पागल कहने में संकोच करेगें . वह पागलपन की हदें भी पार कर गया है .अब तक होता यह रहा है कि जिस तरह के भाषण यह अकबरुदीन देता  है वे पब्लिक डोमेन में नहीं आते थे . नतीजा यह होता था कि आम तौर पर लोगों तक बात पंहुचती नहीं थी लेकिन अब सोशल मीडिया के प्रचार प्रसार के कारण हर बात सब तक पंहुच रही है. यू ट्यूब पर जिसने भी उसके भाषणों को सुना है वह उसे  भारत का दुश्मन ही मानेगा . अपने ताज़ा भाषण में इस अकबरुद्दीन ओवैसी ने राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक आचरण की सभी सीमाएं लांघ दी हैं जब यह हिंदू देवी  देवताओं  और भारतीय  राष्ट्र के खिलाफ अभियान छेड़ता है . अदालतों के आदेश के बाद पुलिस ने उसके खिलाफ ताजीरात हिंद ( आईपीसी ) की धारा 153ए (दो समुदायों के बीच धर्मभाषावंश और जन्म स्थाने के आधार पर दुश्मनी पैदा करना। जो सद्भाव के कार्य में बाधा है), 295ए (किसी के धर्म और धार्मिक विश्वास के अपमान के द्वारा किसी भी वर्ग के आक्रोश व धार्मिक भावनाओं को जानबूझ कर भड़काना) और धारा 121 (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छोड़ना या युद्ध छेड़ने का प्रयास या युद्ध के लिए उकसाने का प्रयास) के तहत मुक़दमा दर्ज किया है . उसके खिलाफ मुक़दमा दर्ज करके कार्रवाई की जानी चाहिए और उसको ऐसी सज़ा दी जानी चाहिए जिस से आने वाले वक़्त में कोई भी सिरफिरा यह हिम्मत न कर सके कि वह इस तरह से भारत राष्ट्र के खिलाफ कोई भी गैर जिम्मेदार बयान देकर बच सकता  है.

अकबरुद्दीन के गैर ज़िम्मेदार भाषण की बातें गिनाकर उस जैसे आदमी को किसी तरह का सम्मान देने की  ज़रूरत नहीं है लेकिन इतना पक्का है कि यह आदमी गरीब और अनपढ़ मुसलमानों का समर्थन लेने के लिए के लिए धर्म का इस्तेमाल करता है और धर्म का इस्तेमाल करते हुए आगे बढ़ जाता है और अन्य धर्मों का अपमान करने लगता है . उसके बाद अपनी रौ में वह आगे बढ़ जाता है और राष्ट्र के खिलाफ ज़हर उगलने लगता है . सरकार का कर्त्तव्य था कि इसके खिलाफ आज के कई साल पहले कानून के हिसाब से कार्रवाई की जाती और इसे इसकी औकात बता दी जाती लेकिन सरकार ने अपना काम नहीं किया और इसको लगा कि यह कुछ भी करके पार पा जाएगा . नतीजा यह  हुआ कि ज़हर फ़ैलाने का इसका  काम चलता  रहा. अकबरुद्दीन ओवैसी के भाषण को सुनकर कोई भी यह बता देगा कि यह पूरी तरह से डरा हुआ इंसान है . वह बात तो उसकी गिरफ्तारी के बाद साबित भी हो गयी जब उसने गिरफ्तारी से बचने के लिए बीमारी का बहाना बनाया और अपने जाहिल समर्थकों को तोड़ फोड के लिए उकसाया . हाँ सरकारों  और राजनीतिक पार्टियों का रवैया गैर ज़िम्मेदार  रहा . जहां कांग्रेस उसे वोट बैंक की राजनीति का हथियार मानती रही वहीं बीजेपी उसको मुस्लिम तोगडिया मानकर उस पर हमले करती रही . दोनों ही बातें गलत हैं .  इस देश का मुसलमान आम तौर पर अकबरुद्दीन जैसे पागल के कहने पर वोट नहीं देता . जहां तक हैदराबाद के कुछ इलाकों का सवाल है , वहाँ पर अकबरुद्दीन की तीन पीढ़ियों ने मुसलमानों के एक बड़े वर्ग को शिक्षित नहीं होने दिया है ,उनको पुरातनपंथी तरीके से सोचने को मजबूर कर दिया है और आज वे लोग अकबरुद्दीन के परिवार के आगे नहीं सोच पाते .अकबरुद्दीन ओवैसी ने जिन्दगी में कुछ  भी हासिल नहीं किया . अपने सांसद  पिता के प्रभाव के तहत वह  शहर के कुछ स्कूलों में पढ़ने के बाद डाकटरी की पढाई के लिए गुलबर्गा गया था लेकिन दो साल के अंदर  ही वहाँ से भाग खड़ा हुआ और तब से अब तक हैदराबाद शहर में बदमाशी और प्रापर्टी की हेराफेरी का धंधा करता है . ज़ाहिर है उस से किसी जिम्मेदार आचरण की उम्मीद नहीं की जा सकती है .सरकार को चाहिए था कि उसको उसकी सही जगह यानी जेल में बंद रखते  लेकिन ऐसा नहीं हुआ  क्योंकि सरकार भी हैदराबाद के पुराने शहर में रहने वाले लोगों  की सही देखभाल नहीं की है और उनको आधुनिक शिक्षा  नहीं दी है  . नतीजा  यह है कि अकबरुद्दीन आज उन लोगों की जहालत को कवर बनाकर राजनीति कर  रहा है और देश किंकर्तव्य विमूढ़ होकर देख रहा है .  

अपने राष्ट्र के लिए संतोष की जो बात है वह यह है  कि अकबरुद्दीन ओवैसी के ज़हरीले और भारत विरोधी भाषण के पब्लिक डोमेन में  आने के बाद बुद्धिजीवियों के एक  बहुत बड़े वर्ग ने उसकी निंदा की . अकबरुद्दीन ने अपने ताज़ा भाषण में हिन्दुस्तान के भविष्य को चुनौती  दी है और धर्म निरपेक्ष बिरादरी के एक बड़े वर्ग के लोग उसकी तुलना प्रवीण तोगडिया या नरेंद्र मोदी से कर रहे हैं .  मोदी के खिलाफ गुजरात में अभियान चला रही शबनम हाशमी ने अकबरुद्दीन ओवैसी के खिलाफ दिल्ली  के किसी थाने  में रिपोट दर्ज करवा दी है और उसके खिलाफ मुक़दमे की तैयारी कर रही हैं. उनके अलावा  जामिया मिलिया के  वाइस चांसलर नजीब जंग और असगर अली इंजीनियर ने भी  इस अकबरुद्दीन ओवैसी की निंदा की हो . मुसलमानों के एक बड़े वर्ग के लोग इस ओवैसी के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं .लेकिन बहुत सारे लोग यह मांग करते पाए जा रहे हैं कि अगर तोगडिया पर कार्रवाई नहीं की जा रही  है तो अकबरुद्दीन पर क्यों कार्रवाई की जाय . जबकि सच्चाई यह है कि तोगडिया के हर बयान के खिलाफ इस देश  की सेकुलर बिरादरी के लोग ऐलानियाँ हमला बोलते हैं वह चाहे जिस मंच से  मुसलमानों के खिलाफ धार्मिक बयान दे . लेकिन अकबरुद्दीन ने तो हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को भारी ठेस पंहुचाया है , भगवान राम के लिए गाली की भाषा का इस्तेमाल किया है और उनकी माँ कौशल्या के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है जिसे कभी भी माफ नहीं किया जा सकता . उसने इस तरह की बात की है जैसे हिन्दुस्तान केवल हिंदुओं का है और हिंदुओं के हवाले से उसने हिन्दुस्तान की शान में गुस्ताखी और बदतमीजी  की है .उसने  भारत की हैसियत को चैलेंज किया है . ज़रूरी यह था कि भारत सरकार या आंध्र प्रदेश  की सरकार ने उसको उसकी औकात बता दी होती लेकिन ऐसा नहीं हुआ . १९४७ में जब  भारत आज़ाद हुआ  तो इस अकबरुद्दीन की पार्टी,इत्तेहादुल मुसलमीन  का मुखिया एक कासिम रिजवी हुआ करता था .कुख्यात रजाकार, इसी संगठन के मातहत काम करते थे . कासिम  रिज़वी ने तिकड़म करके निजाम के दीवान ,नवाब छतारी की छुट्टी करवा दी और उनकी जगह पर मीर  लायक  अली नाम के एक व्यापारी   को तैनात करवा दिया . बस इसी फैसले के बाद निजाम की मुसीबतों  का सिलसिला शुरू हुआ जो बहुत बाद तक चला...मीर लायकअली हैदराबाद  के  थे ,मुहम्मद अली  जिन्ना के कृपापात्र थे और पाकिस्तान की तरफ से संयुक्तराष्ट्र जाने वाले प्रतिनिधि मंडल के सदस्य रह चुके थे... इसके बाद हैदराबाद में  रिज़वी की तूती बोलने लगी थी  .निजाम के प्रतिनिधि के रूप में  उसने दिल्ली की यात्रा भी की. जब उसकी मुलाक़ात सरदार पटेल से हुई तो वह बहुत ही ऊंची किस्म की डींग मार रहा था. उसने सरदार पटेल से कहा कि उसके साथी अपना मकसद हासिल करने के लिए अंत तक लड़ेंगें .ठीक इसी अकबरुद्दीन की तरह जिसके जवाब में सरदार पटेल ने कहा कि अगर आप आत्महत्या करना चाहते हैं तो आपको कोई  कैसे रोक सकता है .अपनी  बीमारी  के बावजूद  सरदार  पटेल  ने बातचीत  की और साफ़  कह  दिया  कि यह रिज़वी अगर   फ़ौरन  काबू  में न  किया गया  तो  निजाम और हैदराबाद के लिए  बहुत  ही मुश्किल  पेश  आ  सकती  है . आज भी ज़रूरत इस बात की है कि सरदार पटेल की तरह की मजबूती सरकार दिखाए और इस अकबरुद्दीन को उसकी औकात बतायी जाए जैसा कि सरदार पटेल ने इसके पूर्वज कासिम रिजवी को बतायी थी .

यह अकबरुद्दीन ओवैसी  किसी भी सूरत में मुसलमानों का नुमाइंदा नहीं  हो सकता . अगर यह  मुसलमानों का  नुमाइंदा मान लिया  गया तो बहुत बुरा होगा क्योंकि इस देश ने जिन मुसलमानों को अपना नुमाइंदा माना है वे अलग किस्म के लोग होते हैं. मुसलमानों ने कभी भी भारत विरोधियों को अपना नेता नहीं माना . मुसलमानो के बड़े बुद्धिजीवियों ने भी हमेशा अपने भारत की पक्षधरता दिखाई 1930 में जब इलाहाबाद में संपन्न हुए मुस्लिम लीग के सम्मेलन में डा. मुहम्मद इकबाल ने अलग मुस्लिम राज्य की बात की तो दारुल उलूम के विख्यात कानूनविद मौलाना हुसैन अहमद मदनी ने उसकी मुखालिफत की थी.1857 में आज़ादी की लड़ाई में मुसलमान , हाजी इमादुल्ला के नेतृत्व में इकट्ठा हुए थे . हाजी इमादुल्ला तो 1857 में मक्का चले गए थे. उनके दो प्रमुख अनुयायियों मौलाना मुहम्मद कासिम नानौतवी और मौलाना रशीद अहमद गंगोही ने देवबंद में दारुल उलूम की स्थापना करने वालों की अगुवाई की थी . जब 1885 में कांग्रेस की स्थापना हुई तो दारुल उलूम के प्रमुख मौलाना रशीद अहमद गंगोही थे। उन्होंने फतवा दिया कि शाह अब्दुल अज़ीज़ का फतवा है कि भारत दारुल हर्ब है। इसलिए मुसलमानों का फर्ज है कि अंग्रेजों को भारत से निकाल बाहर करें।  उनकी प्रेरणा से बड़ी संख्या में मुसलमानों ने कांग्रेस की सदस्यता ली और आजादी की लड़ाई में शामिल हो गये।

आज़ादी की इसी लड़ाई के बाद जो भारत राष्ट्र बना है उसको चुनौती देने वाले इस अकबरुद्दीन जैसे कायर के खिलाफ सबसे पहले आवाज़ मुसलमानों की तरफ से उठनी चाहिए और अगर ऐसा न हुआ तो उन लोगों के लिए बहुत मुश्किल पेश आयेगी जो  इस देश और इसकी धर्मनिरपेक्षता से बेपनाह मुहब्बत करते हैं .