Friday, July 15, 2011

आतंक फैलाने वाले मौत के सौदागरों को बेनकाब करने की ज़रुरत

शेष नारायण सिंह

मुंबई में एक बार फिर आतंक का हमला हुआ. तीन भीड़ भरे मुकामों को निशाना बनाया गया . मकसद फिर वही था, आम आदमी के अंदर दहशत भर देना . मुंबई फिर अपने काम काज में लग गयी. आतंकवादी अपने मकसद में कामयाब नहीं हुए . उनके हिसाब में कुछ लोगों का क़त्ल और लिख दिया गया. सरकार ने अपना काम शुरू कर दिया और आम आदमी ने इस तरह से अपना काम करने का फैसला किया जैसे कुछ हुआ ही नहीं है. जिन लोगों की जान गयी है उनके परिवार वाले ज़िंदगी भर का दर्द अपने सीने में लेकर जिंदा रहेगें. जो घायल हुए हैं उनकी ज़िंदगी बिलकुल बदल जायेगी. वे आतंक को कभी भी माफ़ नहीं करेगें. पाकिस्तान की फौज और आई एस आई की तरफ से दावा किया जाता है कि भारत में जो लोग भी आतंक फैला रहे हैं, वे किसी अन्याय का बदला ले रहे होते हैं . दुर्भाग्य की बात यह है कि पाकिस्तान की एक बड़ी आबादी को भी यह बता दिया गया है कि भारत ने कभी कुछ नाइंसाफी की थी ,उसी को दुरुस्त करने के लिए जिया उल हक और परवेज़ मुशर्रफ जैसे फौजी तानाशाहों ने पाकिस्तान की गरीब जनता को आतंकवादी बना कर भारत में भेज दिया था . लेकिन हर आतंकी हमले के बाद यह साफ़ हो जाता है कि मौत के यह सौदागर किसी भी अन्याय के खिलाफ नहीं हैं .यह तो अन्याय का निजाम कायम करने के अभियान को चलाने वाले के हाथ की कठपुतली हैं .
मुंबई के दादर, झवेरी बाज़ार और ओपेरा हाउस में हुए धमाकों के पीछे छुपे इरादों की निंदा पूरी दुनिया में हो रही है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने इस हमले को अपराधी कारनामा बताया है और कहा है कि इसको किसी भी सूरत में सही नहीं ठहराया जा सकता . इंग्लैण्ड, अमरीका, रूस आदि देशों के नेताओं ने भी मुंबई पर हुए आतंक के हमले की निंदा की है . भारत में भी इस हमले के बाद संतुलन दिख रहा है . आमतौर पर किसी भी आतंकी हमले को पाकिस्तान की साज़िश बता देने वाले मीडिया के उस वर्ग में भी संतुलन नज़र आ रहा है . मीडिया ने मुंबई के ताज़ा आतंक की विस्तार से रिपोर्ट की है लेकिन अभी तक आमतौर पर यही कहा जा रहा है कि हर उस संगठन और मंशा की जांच की जा रही है जो भारत को नुकसान पंहुचा सकते हों . महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री ने साफ़ कह दिया है कि शक़ करने का कोई मतलब नहीं है . मामले की गहराई से जांच की जा रही है . अक्सर ऐसा होता है कि दक्षिण एशिया के इलाके में शान्ति बनाए रखने की कोशिशों को पटरी से उतारने के लिए इस तरह के हमले किये जाते हैं . अगर हमला करने वालों का यह उद्देश्य था तो वे पूरी तरह से नाकाम हो गए हैं . भारत और पाकिस्तान की सरकारों की तरफ से बयान आ गए हैं कि दोनों देशों के विदेश मंत्रालय के बीच जुलाई के अंत में होने वाली बातचीत पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा. अमरीकी विदेश मंत्री , हिलेरी क्लिंटन की प्रस्तावित भारत यात्रा भी कार्यक्रम के अनुसार ही होगी. यानी कुछ निरीह लोगों की जान लेने के अलावा इस हमले ने कोई भी राजनीतिक मकसद नहीं हासिल किया है. उलटे ऐसा लगता है कि जब भी इस हमले के लिए ज़िम्मेदार लोगों की पहचान हो जायेगी , उनके समर्थकों के बीच भी उनकी निंदा होगी .

मुंबई पर बुधवार को हुए हमले का एक अहम पक्ष यह भी है कि पाकिस्तान को तुरंत ही ज़िम्मेदार बता देने वाले नेता भी इस बार शांत हैं और आतंक के खिलाफ माहौल बनाने की बात कर रहे हैं . इस बार ऐसा लग रहा है कि भारत और पाकिस्तान के सभ्य समाज के लोगों की तरह वहां की सरकारें भी एक ही तरीके से आतंक की कार्रवाई की निंदा कर रही हैं . इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि हमले में पाकिस्तानी फौज , आई एस आई या कुछ पाकिस्तानी जनरल शामिल हों . लेकिन लगता है कि पाकिस्तानी फौज के गुनाहों को इस बार पाकिस्तान की सरकार अपने सिर लेने को तैयार नहीं है . अगर ऐसा हुआ तो इसे बहुत ही बड़ी बात के रूप में याद रखा जाएगा .ज़रुरत इस बात की है कि पाकिस्तानी फौज और उसके आतंक के निजाम को अलग थलग किया जाए . यह अजीब लग सकता है लेकिन सच यही है कि पाकिस्तान में हुकूमत सेना की ही चलती है .पहली बार ऐसा हो रहा है कि पाकिस्तान की तथाकथित सिविलियन सरकार अपनी ही फौज के किसी कारनामे को अपनाने को तैयार नहीं है. ओसामा बिन लादेन की हत्या के बाद पाकिस्तानी राष्ट्र और समाज में भी तूफ़ान आया हुआ है . लगता है कि अपनी बेचारगी को दुनिया के सामने रख कर पाकिस्तानी सरकार ने अपनी ही फौज़ को घेरने में शुरुआती सफलता हासिल की है . आगे के राजनीतिक घटनाक्रम में दुनिया का आतंक के प्रति रुख बदलने की क्षमता है . कोशिश की जानी चाहिए कि आतंक के सौदागर जहां भी हों उन्हें पकड़ा जाए और सज़ा दी जाए.