Saturday, December 25, 2010

डॉ बिनायक सेन को सज़ा देने के लिए हुकूमत ने किया पुलिस का इस्तेमाल

शेष नारायण सिंह

छत्तीसगढ़ में रायपुर की एक अदालत ने मानवाधिकार नेता , डॉ. बिनायक सेन को आजीवन कारावास की सज़ा सुना दी. पुलिस ने डॉ सेन पर कुछ मनगढ़ंत आरोप लगाए हैं लेकिन उनपर असली मामला यह है कि उन्होंने छत्तीसगढ़ रियासत के शासकों की भैंस खोल ली है . बिनायक सेन बहुत बड़े डाक्टर हैं, बच्चों की बीमारियों के इलाज़ के जानकार हैं . किसी भी बड़े शहर में क्लिनिक खोल लेते तो करोड़ों कमाते और मौज करते . शासक वर्गों को कोई एतराज़ न होता .छतीसगढ़ का ठाकुर भी बुरा न मानता लेकिन उन्हें पता नहीं क्या भूत सवार हुआ कि वे पढ़ाई लिखाई पूरी करके छत्तीसगढ़ पंहुच गए और गरीब आदमियों की मदद करने लगे. अगर उन्हें गरीब आदमियों की मदद करनी थी तो छत्तीसगढ़ के बाबू साहेब से मिलते और सलवा जुडूम टाइप किसी सामजिक संगठन में भर्ती हो जाते. गरीब आदमी की मदद भी होती और शासक वर्ग के लोग खुश भी होते . लेकिन उन्होंने राजा के खिलाफ जाने का रास्ता चुना और असली गरीब आदमियों के पक्षधर बन गए . केसरिया रंग के झंडे के नीचे काम करने वाले छत्तीसगढ़ के राजा को यह बात पसंद नहीं आई और जब उनकी चाकर पुलिस ने फर्जी आरोप पत्र दाखिल करके उन्हें जेल में भर्ती करवा दिया है तो देश भर में लोकतंत्र और नागरिक आज़ादी की बात करने वाले आग बबूला हो गए हैं और अनाप शनाप बक रहे हैं . दिल्ली हाई कोर्ट में पूर्व मुख्य न्यायाधीश , राजेन्द्र सच्चर कहते हैं कि न्याय नहीं हुआ . मुझे ताज्जुब है कि जस्टिस सच्चर इस तरह की गैर ज़िम्मेदार बात क्यों कर रहे हैं . उनके स्वर्गीय पिता जी , स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ,भीमसेन सच्चर ने तो सत्ता के मद में पागल लोगों की कारस्तानियों को बहुत करीब से देखा है . वे आज़ादी के बाद भारतीय पंजाब के मुख्य मंत्री थे . आज का दिल्ली , हरियाणा , हिमाचल प्रदेश और भारतीय पंजाब तब एक सूबा था . स्व भीमसेन सच्चर उसी राज्य के मुख्य मंत्री थे और जब उनको 1975 में लोकतंत्र की रक्षा की बीमारी लगी तो जेल में ठूंस दिए गए . उनपर इमरजेंसी की मार पड़ गयी थी . जब वे जेल के अन्दर बंद करने के लिए ले जाए जा रहे थे तो उन्होंने जेल के गेट पर लगी शिलापट्टिका को पढ़ा . लिखा था " इस जेल का शिलान्यास पंजाब के मुख्य मंत्री ,श्री भीमसेन सच्चर के कर कमलों से संपन्न हुआ. " मुस्कराए और आगे बढ़ गए . तो जब उन आज़ादी के दीवानों को जिनकी वजह से इमरजेंसी की देवी प्रधान मंत्री बनी थीं ,भी जेल में ठूंसा जा सकता है तो डॉ बिनायक सेन की क्या औकात है . उनका तो छत्तीस गढ़ के बाबू या उनके दिल्ली वाले आकाओं पर कोई एहसान नहीं है , उनको जेल में बंद करने में कितना वक़्त लगेगा . यहाँ यह भी समझने की गलती नहीं करनी चाहिए कि बिनायक सेन को जेल में ठूंसने वाली सरकार और स्व भीमसेन सच्चर को जेल में बंद करने वाली सरकार की विचारधारा अलग थी . ऐसा कुछ नहीं था . दोनों ही शासक वर्गों के हित साधक हैं और दोनों ही गरीब आदमी को केवल मजदूरी करने का हक देने के पक्ष धर हैं . ऐसी मजदूरी जिसमें मेहनत की असली कीमत न मिले . डॉ बिनायक सेन की गलती यह है कि उन्होंने अपने आपको उन गरीब आदमियों के साथ खड़ा कर दिया जिनका शोषण शासक वर्गों के लोग कर रहे थे और डॉ सेन ने उनको जागरूक बनाने की कोशिश की . इसके पहले इसी गलती में जयप्रकाश नारायण को जेल की हवा खानी पड़ी थी.महात्मा गाँधी और उनके सभी साथियों को 1920 से 1945 तक बार बार जेल जाना पड़ा था .उनका भी जुर्म वही था जो बिनायक सेन का है यानी गरीब आदमी को उसके हक की बात बताना.. शासकवर्ग शोषित पीड़ित जनता के जागरण को कभी बर्दाश्त नहीं करता . जो भी उन्हें जागरूक बनाने की कोशिश करेगा , वह मारा जायेगा. वह महात्मा गाँधी भी हो सकता है , जयप्रकाश नारायण हो सकता है , या बिनायक सेन हो सकता है . एक बात और. अगर महात्मा गाँधी के साथ पूरा देश न खड़ा हुआ , तो आज उनकी कहानी का कोई नामलेवा न होता . जेपी के साथ भी देश का नौजवान खड़ा हो गया तो सत्ता के मद में पागल लोग हार गए . अगर हुजूम न बना होता तो सब को मालूम है कि इमरजेंसी की देवी ने हर उस आदमी को जेल में बंद कर दिया था जो जयप्रकाश नारायण को सही मानता था . अगर सब उनके साथ न आ गए होते तो जेपी के साथ साथ हर उस आदमी की मौत की खबर जेल से ही आती जो लोकतंत्र और नागरिक आज़ादी को सही मानते थे. डॉ बिनायक सेन के केस में भी यही होने वाला है. अगर लोकशाही की पक्षधर जमातें ऐलानियाँ उनके साथ न खडी हो गयीं तो सब का वही हाल होगा जो बिनायक सेन का हुआ है .बिनायक सेन के दुश्मन छत्तीस गढ़ के राजा हैं लेकिन उनके साथी हर राज्य में हैं , कहीं वे कांग्रेस पार्टी में हैं तो कहीं बीजेपी में लेकिन हैं सभी लोकतंत्र की मान्यताओं के दुश्मन . इसलिए ज़रुरत इस बात की है कि देश भर में वे लोग मैदान ले लें जो नागरिक आज़ादी और जनवाद को सही मानते हैं . वरना आज जो लोग बिनायक सेन का घर जलाने पंहुचे हैं वे कल मेरे और आपके दरवाज़े भी आयेगें और हमारे साथ खड़ा होने के लिए कोई नहीं होगा .

भ्रष्टाचार के मैदान में बीजेपी और कांग्रेस बराबर के वीर हैं ,मैडम राडिया से पूछो

शेष नारायण सिंह

भारतीय जनता पार्टी की पूरी कोशिश है कि अपने ख़ास लोगों, नीरा राडिया और बी एस येदुरप्पा का कोई भी नुक्सान न होने पाए .बीजेपी की यह अदा मुझे बहुत पसंद आ गयी. कर्नाटक के राज्यपाल ने जब बीजेपी के नेता और मुख्य मंत्री को भ्रष्टाचार की ऐसी गलियों में घेर लिया जहां उनके बचने की संभावना बहुत कम रह गयी तो , बीजेपी ने अपनी वही पुरानी वाली चाल चल दी. बेंगलूरू में चर्चा है कि राज्यपाल हटाओ वाला खेल लगा दिया जाएगा . इसके पहले बीजेपी यह काम कई बार कर चुकी है . जब स्पेक्ट्रम घोटाले में बीजेपी के नेता ही फंसने लगे और सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ ऐलान कर दिया कि स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच २००१ से होगी तो बीजेपी वालों ने कहा कि उसे बाद में देख लेगें ,अभी तो फिलहाल मनमोहन सिंह को धमका कर भागने को मजबूर करते हैं .ज़ाहिर है कि २००१ से जांच होने पर प्रमोद महाजन के अलावा अरुण शोरी , अनंत कुमार और रंजन भट्टाचार्य के नाम भी उछ्लेगें . शायद इसीलिये स्पेक्ट्रम राजा के नाम से कुख्यात पूर्व संचार मंत्री के खिलाफ उनके सुर भी थोड़े पतले पड़ रहे हैं क्यों कि अब पता चल चुका है कि स्पेक्ट्रम राजा के गैंग की सबसे बड़ी लठैत , नीरा राडिया के तो मूल सम्बन्ध बीजेपी वालों से ही हैं .आज एक अखबार में खबर छपी है कि नीरा रादिया ने बीजेपी की वाजपेयी सरकार के दौर में नागरिक उड्डयन विभाग के बारे में बहुत सारी इकठ्ठा की थी और उसको अपने विदेशी मुवक्किलों को बेचा था . जानकार बताते हैं कि जब नीरा राडिया पर शिकंजा कसने लगा तो उसने ही बीजेपी में अपने लोगों को आगे कर दिया कि अब इस सरकार को गिराने का वक़्त आ गया है . वास्तव में सारा घोटाला तो नीरा राडिया के फोन टेप होने से जुडा हुआ है . राजा तो एक बहाना है . यहाँ यह कहने का कोई मतलब नहीं है कि राजा पाक साफ़ है . माननीय राजी जी तो चोरकट हैं ही . नामी अखबार " हिन्दू " में राजा और प्रधान मंत्री के पत्र छपने के बाद साफ़ हो गया है कि राजा ने खेल लम्बा किया था . आजकल बीजेपी के आन्दोलन की दिशा बिलकुल मुड़ गयी है . अब बीजेपी वाले राजा का नाम नहीं ले रहे हैं . अब निशाने पर प्रधान मंत्री हैं . अखबार के पर्दा फाश से साफ़ हो चुका है कि राडिया के सबसे ख़ास दोस्त बीजेपी के नेता अनंत कुमार हैं ,जबकि आडवाणी गुट के बाकी लोग भी राडिया के पक्ष में काम कर चुके हैं . आज अखबार में छपी सूचना से पता चला है कि आडवाणी ने गृहमंत्री के रूप में राडिया के दरबार में हाजिरी लगाई थी . अब बीजेपी वाले कहते हैं कि वह रादिया नहीं, किसी स्वामी जी का कार्यक्रम था. मामला अगर इतना गंभीर है तो यह पक्का है कि बीजेपी वाले राडिया गैंग का कोई नुकसान नहीं होने देगें . इसी अखबार ने दावा किया है कि राडिया ने पहले महाराष्ट्र सरकार में भी बड़े काम करवाए थे जब नितिन गडकरी वहां मंत्री थे. इसलिए अब रहस्य से पर्दा उठ रहा है कि बीजेपी का राष्ट्रीय नेतृत्व सारा खेल राडिया को बचाने के लिए कर रहा है . और बीजेपी की जांची परखी रणनीति भी सामने आ रही है कि अगर कोई प्रधान मंत्री या कोई अन्य बड़ा नेता बीजेपी की मर्जी के खिलाफ कोई काम करेगा तो उसके खिलाफ अभियान इतना तेज़ कर दिया जाएगा कि वह खुद मुश्किल में पड़ जाएगा .यह काम बीजेपी के आला नेता पहले भी कर चुके हैं . जब प्रधान मंत्री के रूप में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कर दीं तो बीजेपी ने उन्हें पैदल करने का मन बना लिया . लेकिन ऐलानियाँ मंडल का विरोध करने की हिम्मत नहीं थी , तो मंदिर के नाम पर आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक की साम्प्रदायिक यात्रा कर दी. विश्वनाथ प्रताप सिंह कहीं के नहीं रह गए. जब मुलायम सिंह यादव मज़बूत पड़ने लगे और पिछड़ों के नेता बनने के ढर्रे पर चल निकले तो मायावती और कांशी राम को ललकार कर उनको पैदल कर दिया .विश्वनाथ प्रताप सिंह वाले खेल में तो बहुत ही अजीब तथ्य सामने आये . राम विलास पासवान और शरद यादव ने वी पी सिंह को घेर कर इमोशनल ब्लैकमेल के ज़रिये मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू करवाईं थीं , बाद में यह दोनों ही बीजे पी के बहुत ख़ास हो गए, वी पी सिंह अपनी बाकी ज़िंदगी कमंडल के घाव चाटते रहे. इस बार भी यही लग रहा है कि नीरा राडिया और उसके गैंग को बचाने के लिए बीजेपी का आला नेतृत्व कुछ भी करेगा जबकि कर्नाटक में बी एस येदुरप्पा को बचाने के लिए भी वही तरीका अपनाया जा रहा है जिसका इस्तेमाल करके राडिया को बचाया जाने वाला है . वहां भी हंसराज भरद्वाज को हटाने का अभियान चल चुका है. बस बीजेपी के लिए मुश्किल यह है कि इस बार मुकाबला विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसे कमज़ोर आदमी से नहीं है . मुकाबले में सोनिया गाँधी की राजनीतिक कुशलता खडी है जिसने बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व के कई बहादुरों को पैदल किया है