शेष नारायण सिंह
बंगला देश की प्रधान मंत्री शेख हसीना वाजेद की भारत यात्रा सही मायनों में ऐतिहासिक रही ..ख़ास कर खालिदा जिया के ६ साल के कुशासन के बाद लगता है कि बंगलादेश में बदलाव की बयार बह रही है .. भारत ने भी शेख हसीना का ज़ोरदार स्वागत किया . उन्हें इंदिरा गाँधी शान्ति पुरस्कार से नवाज़ा और उनके साथ ऐसे समझौते किये जो उनको अपने मुल्क में राजनीतिक मजबूती देंगें ..भारत ने बंगलादेश को करीब ५ हज़ार करोड़ रूपये की लाइन ऑफ़ क्रेडिट देने का फैसला किया है जो कि वहां की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के लिए आक्सीजन का काम करेगी. . पिछले कुछ वर्षों में बंगलादेश, भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों का केंद्र बनता जा रहा था जिसकी वजह से दोनों देशों के बीच रिश्ते बहुत ही खराब होने का ख़तरा बना हुआ था . ऐसा शायद इस लिए हो रहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री, खालिदा जिया की सोच ऐसी थी जिसके तहत भारत को सबसे ख़ास दोस्त मानने से उनकी संप्रभुता पर आंच आ सकती थी . शायद इसीलिए उन्होंने बहुत सारे ऐसे काम किये जिससे भारत विरोध की बू आती थी. दोनों देशों के बीच रिश्ते खराब होने का मुख्य कारण यह था कि उन्होंने भारत विरोधी लोगों को महत्व दिया , बंगलादेश में रहने वाले उन लोगों को संरक्षण दिया जो भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियाँ चलाते हैं , धार्मिक असहिष्णुता को बढ़ावा दिया जिसकी वजह से भारत से उनके रिश्ते बहुत बिगड़ गए. सही बात यह है कि बेगम खालिदा के वक़्त में भारत के साथ बंगलादेश के रिश्ते बहुत खराब थे .इस चक्कर में बंगलादेशी हुक्मरान ने बहुत सारे ऐसे फैसले भी लिए जिससे उनका नुकसान ज्यादा हो रहा था लेकिन भारत के खिलाफ बाकी दुनिया में शेखी मारने में मदद मिलती थी. . इस तरह का एक फैसला ट्रांस एशियन हाइवे प्रोजेक्ट का था . जिस से बंगलादेश को तो लाभ होता ही लेकिन भारत का ज्यादा लाभ होता . खालिदा जिया ने उस पर रोक लगा दी क्योंकि वे भारत की पक्षधर के रूप में नहीं देखी जाना चाहती थीं. उनको लगता था कि भारत के सामने अपनी नक़ली शान दिखाने से उनकी संप्रभुता को ताक़त मिलती है . दुनिया जानती है कि बंगलादेश की अर्थव्यवस्था आज मुश्किल दौर से गुज़र रही है . शेख हसीना की भारत यात्रा को बहुत ही उपयोगी बनाने में भारत ने भी कोई कसर नहीं छोडी है .नेपाल और भूटान से बंगलादेश के व्यापार को बढ़ावा देने के दिशा में भारत ने बहुत ही अहम् फैसला किया . अब इन दोनों देशों से बंगलादेशी व्यापारियों को काम करने में बहुत सुविधा रहेगी क्योंकि भारत ने ट्रांज़िट की बात को मान लिया है .भारत आतंकवाद से परेशान है लेकिन बंगलादेश उस से भी ज्यादा पीड़ित देश है. वहां तो एक मौक़ा ऐसा भी आया था जब कि शेख हसीना की पार्टी, अवामी लीग के सभी बड़े नेता काल के गाल में चले गए होते जब अगस्त २००४ में उनकी एक रैली के ऊपर बम फेंके गए थे . इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच समझदारी होनी चाहिए . शेख हसीना की सरकार ने आतंक् से मुकाबला करने के लिए कई महत्वपूर्ण क़दम उठाये हैं.. आतंकवादियों के संगठनों को तबाह किया है ,भारत के खिलाफ काम करने वाले आतंकवादी संगठनों के बड़े नेताओं को पकड़ा है, इस से लगता है कि इस क्षेत्र को आतंकवादियों का स्वर्ग न बनने देने की शेख हसीना की चुनावी घोषणा को उनकी सरकार गंभीरता से ले रही है और भारत सरकार उसमें पूरी मदद कर रही है .. शेख हसीना और खालिदा जिया के बीच बुनियादी फर्क भी है . हसीना ने बंगलादेश देश की मुक्ति के आन्दोलन में हिस्सा लिया था और सच्ची बात यह है कि बंगलादेश की आज़ादी में उनका बहुत कुछ दांव पर लगा था. उनके स्वर्गीय पिता शेख मुजीबुर्रहमान ने तो बंगलादेश की मुक्ति के संग्राम का नेतृत्व किया था लेकिन ढाका की सडकों पर जो लाखों नौजवान उस वक़्त के पाकिस्तानी तंत्र को उखाड़ फेंकने के लिए निकल पड़े थे , शेख हसीना भी उसमें शामिल थीं. और बंगलादेश की आज़ादी के बाद फौज के कुछ बागियों ने उनके पूरे परिवार को ख़त्म कर दिया था जिसमें उनके पिता मुजीबुर्रहमान भी थे . शेख हसीना को मालूम है कि आजादी के लिए कैसे कुर्बानी दी जाती है .और वह उन्होंने दी है . इसलिए उस आजादी के रक्षा के लिए वे वह सब कुछ करेगीं जो करना चाहिए.
ऐसी स्थिति में भारत का भी फ़र्ज़ है कि वह उन्हें पूरी मदद दे क्योंकि भौगोलिक और ऐतिहासिक कारणों से हालात ऐसे हैं कि भारत की सुरक्षा भी बंगलादेश की स्थिरता और खुशहाली से जुडी हुई है . क्योंकि अगर वहां मजबूती होगी तो भारत में भी चैन की सांस ली जा सकेगी. हो सकता है कि ऐसा करने में भारत को थोडा आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़े लेकिन आर्थिक नुकसान उठा कर सुरक्षा को मुकम्मल करना भी कूटनीति का एक प्रमुख हिस्सा है . बहरहाल शेख हसीना की भारत यात्रा के दौरान हुए समझौतों और फैसलों से इस इलाके की जनता को राहत मिलेगी इसमें कोई दो राय नहें है ...हाँ एक बात का ध्यान रखना ज़रूरी रहेगा कि दोनों देशों के बीच होने वाले समझौतों में बहुत सारा राजनीतिक तत्व रहता है इसलिए उसमें राजनीति को प्रमुख भूमिका अदा करनी पड़ेगी .अगर सब कुछ नौकरशाहों के हवाले कर दिया गया तो सब कुछ लाल फीताशाही हजम कर जायेगी और सरकारें ताकती रह जायेंगीं.ऐसा एक बार हो चुका है जब भारत सरकार ने बंगलादेश को चावल देने की घोषणा की थी और वह वहां पंहुचा ही नहीं . सारा मामला नौकरशाही की भूल भुलैया में फंस कर रह गया..
Friday, January 15, 2010
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