शेष नारायण सिंह
कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों की दस्तक के साथ ही राजनीतिक मुद्दों की तलाश में भटक रही पार्टियां खासे हबड़ तबड में हैं . ताज़ा राजनीतिक संकेतों से साफ़ लगने लगा है कि कांग्रेस और बीजेपी वाले इस बार अपने लिए तो कुछ नया नहीं ढूंढ पायेगें लेकिन अपने विरोधियों की राजनीति को कमज़ोर करने की योजना को ज़रूर ताक़त देगें .मंडल कमीशन लागू होने के बाद देश की राजनीति में लगभग सभी समीकरण बदल गए थे. पिछले बीस वर्षों में यह साफ़ हो गया है कि पिछड़े वर्गों में दो तीन जातियों के लोग ही सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ ले रहे हैं . नतीजा यह हुआ है कि अपेक्षाकृत संपन्न पिछड़ी जातियों के लोग बहुत ही ताक़त र हो गए हैं . उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और बिहार में लालू प्रसाद की राजनीतिक ताक़त के पीछे इन्हीं जातियों के समर्थन को माना जा रहा है .लेकिन अब यह सब गडबडाने वाला है . योजना आयोग ने एक ऐसा प्रस्ताव तैयार किया है कि जिसके बाद पिछड़ी जातियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण से मिलने वाले लाभ के हक़दार वे लोग भी होंगें जो अभी तक टुकटुकी लगाए बैठे हैं .
योजना आयोग की एक कमेटी ने केंद्र सरकार को सलाह दी है कि वह ऐसे कानून बनाए या कानून में ऐसा सुधार करे जिसके चलते अन्य पिछड़े वर्गों में शामिल सभी जातियों को सरकारी नौकरियों में फायदा मिल सके.योजना आयोग की सलाह है कि ओ बी सी को पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों में बाँट कर २७ प्रतिशत के कोटे में अति पिछड़ों के लिए अलग से आरक्षण का इंतज़ाम किया जाए. अभी यह केवल सुझाव मात्र है लेकिन यह राजनीतिक ध्रुवीकरण का एक बड़ा साधन बन सकने की क्षमता रखता है .योजना आयोग की यह धारणा अभी सरकारी नीति तो बनेगी नहीं लेकिन राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल होने लगेगी .योजना आयोग के सुझाव को अगर केंद्र सरकार सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लेती है तो अगले कुछ वर्षों में ओ बी सी की राजनीति करने वालों को बैकफुट पर जाना पड़ सकता है . योजना आयोग के पहले ही नैशनल बैकवर्ड कास्ट कमीशन के अध्यक्ष एम एन राव भी इसी तरह की बात कर चुके हैं. कहते हैं कि ओ बी सी के मौजूदा आरक्षण के निजाम से सही मायनों में सामाजिक न्याय नहीं मिल पा रहा है . पिछड़ों की प्रभावशाली जातियां ही सारा फायदा उठा रही हैं . अति पिछड़े अभी भी अति पिछड़े रहने के लिए अभिशप्त हैं .
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को इसका सबसे ज्यादा नुकसान होगा. समाजवादी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता , मोहन सिंह ने बताया कि यह ओ बी सी जातियों में फूट डालने के उद्देश्य से किया जा रहा है . जब उनको बताया गया कि अभी तो पिछड़ों के सारे आरक्षण पर एक ख़ास जाति के लोग क़ब्ज़ा करते पाए जा रहे हैं तो उन्होंने कहा कि यह गलत बात है . यह शुद्ध रूप से पिछड़ी जातियों को कमज़ोर करने की साज़िश है . जहां तक अति पिछड़े वर्गों का सवाल है वह समय की गति के साथ ओ बी सी की मुख्य धारा में शामिल हो रहे हैं और कुछ समय बाद वह भी उतने की सक्षम हो जायेगें जितने सक्षम अन्य जातियों के लोग हैं . उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछड़े वर्गों की मुख्य पार्टी को केंद्र सरकार की यह योजना सही नहीं लग रही है . समाजवादी पार्टी की चिंता है कि इस तरह के राजनीतिक प्रस्तावों से पिछड़े वर्गों की एकता खंडित होगी .
केंद्र सरकार, योजना आयोग और नैशनल बैकवर्ड कास्ट कमीशन की बातें तो अभी फाइलों में हैं या नीति के स्तर पर बहस के दायरे में हैं . लेकिन उत्तर प्रदेश में तो पिछड़े वर्गों की राजनीति में एक तूफ़ान आने वाला है . बीजेपी ने २०१२ के विधान सभा चुनावों के दौरान इस मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में डालने का मन बना लिया है . कांग्रेस भी योजना आयोग के सुझाव को अपना बनाकर पेश करने से बाज़ नहीं आयेगी. इस तरह की बात से राजनीतिक समीकरण निश्चित रूप से बदलेगें.. बीजेपी वालों ने पिछड़ी और दलित जातियों को खंडित करने की योजना पर पहले भी काम किया है . राजनाथ सिंह के मुख्य मंत्री बनने के बाद पार्टी ने सरकारी तौर पर अति दलितों और अति पिछड़ों के नाम पर एस सी और ओ बी सी कोटे के अंदर कोटे की व्यवस्था कर दी थी. इस तरह का कानून भी बना दिया था, कुछ भर्तियाँ भी हो गयी थीं लेकिन जब बीजेपी के बाद मायावती मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने उस आदेश को रद्द कर दिया था. राजनाथ सिंह की सरकार ने अपनी सरकार के एक मंत्री हुकुम सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाकर दलित और पिछड़ी जातियों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति का आकलन करवाया था. उन्होंने दलित और पिछड़ी जातियों में अति दलित और अति पिछड़ों को चिन्हित किया था .उस समिति की रिपोर्ट से कुछ दिलचस्प आंकड़े सामने आये. देखा गया कि ७९ पिछड़ी जातियों में कुछ जातियां लगभग सारा लाभ ले रही हैं . ऐसी जातियों में यादव, कुर्मी, जाट आदि शामिल हैं जबकि मल्लाह ,कुम्हार ,कहार , राजभर आदि जातियां नौकरियों में अपना सही हिस्सा नहीं पा रही थीं . राजनाथ सिंह की सरकार ने पिछड़ी जातियों को तीन श्रेणियों में बाँट दिया . पिछड़ी जाति में केवल एक जाति ,यादव रखा और २८ प्रतिशत के कोटे में उनके लिए ५ प्रतिशत का रिज़र्वेशन दे दिया. अति पिछड़ी जातियों में आठ जातियों को रखा और उन्हें ९ प्रतिशत का रिज़र्वेशन दे दिया. बाकी सत्तर जातियों को अत्यधिक पिछड़ी जातियों की श्रेणी में रख दिया और उन्हें १४ प्रतिशत का रिज़र्वेशन दे दिया . अगर यह व्यवस्था लागू हो जाती तो उत्तर प्रदेश में मूल रूप से यादवों के कल्याण में लगी हुई समाजवादी पार्टी को भारी नुकसान होता लेकिन मुलायम सिंह यादव का सौभाग्य ही था कि राजनाथ सिंह के बाद मायवाती उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री बनीं और उन्होंने राजनाथ सिंह के मंसूबों पर पानी फेर दिया . अब विधान सभा चुनावों के मद्दे नज़र राजनाथ सिंह ने एक बार इस प्रस्ताव को फिर से ज़िन्दा करने की कोशिश शुरू कर दी है . ज़ाहिर है उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों की राजनीति करने वालों के सामने कुछ मुश्किलें ज़रूर पेश आयेगीं.हालांकि इसका एक नतीजा यह भी हो सकता है कि जो सवर्ण जातियां बीजेपी की तरफ खिंच रही हीब वे इस तरह की चर्चा से नाराज़ भी हो सकती हैं.
उतर प्रदेश में तो इसे नहीं लागू कर सके लेकिन बिहार में बीजेपी के सहयोगी दल के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अति पिछड़ों के आरक्षण की राजनीति के सहारे लालू यादव को एक जाति का नेता बनाने में पक्की सफलता हासिल कर ली और राज्य में अपनी राजनीतिक हैसियत को बढ़ा लिया .अब इस खेल में केंद्र सरकार के योजना आयोग के शामिल होने के बाद बहस राष्ट्रीय स्तर पर चलेगी . ज़ाहिर है सामाजिक न्याय का विमर्श आने वाले दिनों में राष्ट्रीय स्तर पर बहस का विषय बनने वाला है .
Sunday, November 13, 2011
ईरान को भी ईराक बनाने के फ़िराक़ में हैं अमरीका
शेष नारायण सिंह
अमरीका ने ईरान को घेरने की अपनी कोशिश तेज़ कर दी है . इस बार परमाणु हथियारों के नाम पर वह ईरान को कटघरे में खड़ा करना चाहता है .पश्चिम एशिया पर नज़र रखने वालों को भरोसा है कि अमरीका ने ईरान के खिलाफ इजरायल को इस्तेमाल करने का मन बना लिया है .हालांकि अमरीका, फ्रांस सहित कई अन्य पश्चिमी देश मानते हैं कि इजरायल के राष्ट्रीय नेता हमेशा सच नहीं बोलते लेकिन इजरायल की ओर से मिली इंटेलिजेंस के आधार पर अमरीका ने ईरान को अलग थलग करने की कोशिश तेज़ कर दी है . हर बार की तरह इस बार भी अमरीका संयुक्त राष्ट्र को अपने हित में इस्तेमाल करने की योजना बना चुका है .अमरीकी अखबारों में पिछले एक हफ्ते से सनसनीखेज़ बनाकर खबरें छापी जा रही हैं कि अंतर राष्ट्रीय परमाणु एनर्जी एजेंसी के पास ऐसे दस्तावेजी सबूत हैं जिसके आधार पर साबित किया जा सके कि ईरान अब परमाणु हथियार विकसित कर सकता है . इस कथित इंटेलिजेंस में वही पुराने राग अलापे जा रहे हैं . मसलन यह कहा जा रहा है कि सोवियत संघ में हथियारों को बनाने वाले वैज्ञानिकों की सेवाएँ ली जा रही हैं , उत्तरी कोरिया वालों से मदद ली जा रही है और पाकिस्तानी परमाणु स्मगलर ए क्यू खां से भी इस प्रोजेक्ट में मदद ली गयी है .ज़ाहिर है कि यह सब बहाने हैं . लेकिन इन सबके हवाले से अमरीका छुप कर हमला करने की अपनी नीति को अंजाम तक पंहुचाने की कोशिश कर रहा है.
ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने अमरीका की संयुक्त राष्ट्र के ज़रिये ईरान को बदनाम करने के नाटक को अनुचित बताया है . अहमदीनेजाद ने संयुक्त राष्ट्र की कथित रिपोर्ट की चर्चा शुरू होने के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा है कि अमरीका की कोशिश है कि वह ईरान सहित बाकी विकास शील देशों को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में आत्म निर्भर न बनने दे. अहमदीनेजाद ने कहा है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम से बिलकुल पीछे नहीं हटेगा. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के बहाने अमरीका दुनिया को गुमराह कर रहा है.उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की संस्था अंतर राष्ट्रीय परमाणु एनर्जी एजेंसी की भी आलोचना की और कहा कि उसे अमरीका के बेहूदा आरोपों को अपनी तरफ से प्रचारित करने से बचना चाहिए .उन्होंने कहा कि ईरानी राष्ट्र शान्तिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणु ऊर्जा के विकास करने के रास्ते से ज़रा सा भी विचलित नहीं होगा. एक जनसभा को संबोधित करते हुए अहमदीनेजाद ने कहा कि अंतर राष्ट्रीय परमाणु एनर्जी एजेंसी को अमरीका के चक्कर में पड़कर अपनी विश्वसनीयता से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए. ईरान ने संयुक्त राष्ट्र को आगाह किया है कि अमरीका के एजेंट के रूप में काम करने से वह बाकी दुनिया की नजर में बिलकुल नीचे गिर जाएगा .अमरीका ने दावा किया है कि ईरान ने अपना परमाणु कार्यक्रम २००३ में अंतर राष्ट्रीय दबाव के चलते बंद कर दिया था लेकिन अब वह फिरसे चालू हो गया है.
ईरान ने संयुक्त राष्ट्र की ईरानी परमाणु कार्यक्रम को हथियारों का कार्यक्रम बताने की कोशिश को बहुत ही हलके से लिया है.ईरान के परमाणु कार्यक्रम से बहुत निकट से जुड़े अधिकारी और मौजूदा ईरानी विदेश मंत्री अली अकबर सालेही ने कहा कि अगर संयुक्त राष्ट्र का यही रुख है तो उन्हें रिपोर्ट को प्रकाशित कर लेने दीजिये . सालेही ने कहा कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर शुरू हुआ विवाद सौ फीसदी राजनीति से प्रेरित है .उन्होंने आरोप लगाया कि अंतर राष्ट्रीय परमाणु एनर्जी एजेंसी ( आई ई ए ई ) पूरी तरह से विदेशी ताक़तों के दबाव में काम रही है .आई ई ए ई वाले कई साल से ईरानी परमाणु कार्यक्रम पर सवाल उठाते रहे हैं लेकिन इस बार उनका दावा है कि इस बार जो सूचना मिली है उसके आधार पर कहा जा सकता है कि अब ईरान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से विकसित हो चुका है और अब उसमें रिसर्च को बहुत ही मह्त्व दिया जा रहा है .
जिस तरह से इस बार आई ई ए ई ने दावा किया है और जिस तरह से भारत समेत पूरी दुनिया के अमरीका परस्त मीडिया संगठन इस खबर को ले उड़े हैं उस से लगता है कि अमरीका एक बार फिर वही करने के फ़िराक़ में है जो उसने ईराक में किया था. दुनिया भर में फैले हुए अपने हमदर्द देशों और अखबारों की मदद से पहले ईराक के खिलाफ माहौल बनाया गया उसके बाद यह साबित करने की कोशिश की गयी कि ईराक के पास सामूहिक संहार के हथियार हैं . फिर संयुक्त राष्ट्र का इस्तेमाल कारके इराक पर हमला कर दिया गया. आज ईराक में अमरीकी कठपुतली सरकार है और अमरीका उनके पेट्रोल को अपने हित में इस्तेमाल कर रहा है . अब यह बात भी सारी दुनिया को मालूम है कि इराक और उसेक राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को तबाह करने के बाद अमरीकी विदेश नीति के करता धरता मुंह छुपाते फिर रहे थे क्योंकि जब पूरे देश पर अमरीका का क़ब्ज़ा हो गया और उस से पूछा गया कि सामूहिक नरसंहार के हथियार कहाँ हैं तो अमरीकी राजनयिकों के पास कोई जवाब नहीं था.
ऐसा लगता है कि अमरीका अपनी उसी नीति पर चल रहा है जिसके तहत उसने तय कर रखा है कि जो देश उसकी बात नहीं मानेगा उसे किसी न किसी तरीके से सैनिक कार्रवाई का विषय बना देगा.दिलचस्प बात यह है कि इस बार के अमरीका के ईरान विरोधी अभियान में भी वही व्यक्ति इस्तेमाल हो रहा है जो ईराक के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के अभियान में शामिल रह चुका है . डेविड अल्ब्राईट नाम का यह पूर्व हथियार इन्स्पेक्टर अमरीका की नीतियों को संयुक्त राष्ट्र का मुखौटा पहनाने में माहिर बताया जाता है . इसी अल्ब्राईट के हवाले से इस बार अमरीकी अखबारों में खबरें प्लांट की जा रही हैं . इसने दावा किया है कि जब बाकी दुनिया को बताया गया था कि ईरान ने २००३ में परमाणु कार्यक्रम रोक दिया था , उस वक़्त भी ईरान ने कोई काम रोका नहीं था. वास्तव में उसने परमाणु कार्यक्रम पर काम कर रहे अपने वैज्ञानिकों को अन्य क्षेत्रों में रिसर्च करने के काम में लगा दिया था. संयुक्त राष्ट्र से छुट्टी पाने के बाद डेविड अल्ब्राईट अमरीका की राजधानी वाशिंगटन डी सी के एक संस्थान का अध्यक्ष है .वहां भी यह अमरीकी हितों के काम में ही लगा हुआ है . इंस्टीटयूट फार साइंस ऐंड इंटरनैशनल सिक्योरिटी नाम के इस संगठन का काम प्रकट में तो पूरी दुनिया के परमाणु कार्यक्रमों का विश्लेषण करना है लेकिन वास्तव यह अमरीकी विदेश नीति के हित साधन का एक फ्रंट मात्र है . इसी संस्थान में बैठकर अब डेविड अल्ब्राईट अमरीकी विदेश नीति का काम संभाल रहे हैं . बताया जाता है कि सी आई ए ने अपने बहुत सारे गुप्त संगठनों की तरफ से इस संस्थान को ग्रांट भी दिलवा रखी है .डेविड आल्ब्राईट के इस संस्थान को अमरीकी विदेश और रक्षा विभाग से भी पैसा मिलता है .इसी संस्थान के पास मौजूद तथाकथित दस्तावजों के आधार पर डेविड अल्ब्राईट ने अपने लाल बुझक्कड़ी अंदाज़ में दावा किया है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को चलाने वाले वाले वैज्ञानिकों को पुराने सोवियत संघ के परमाणु वैज्ञानिकों ने पढ़ा लिखा कर हथियार बनाने की शिक्षा दी है .
यह सारा प्रचार अभियान अभी ऐसे संगठनों और व्यक्तियों की तरफ से चलाया जा रहा है जिनका अमरीकी सरकार से डायरेक्ट समबन्ध नहीं है . यह सब या तो एन जी ओ हैं ,या थिंक टैंक का लबादा ओढ़े हुए हैं. अमरीकी अधिकारियों ने प्रकट रूप से यही कहा है कि अभी ईरान के नेताओं ने हथियार बनाने का फैसला नहीं किया है लेकिन उनके पास अब पूरी तकनीकी जानकारी है . उनके पास सारा सामान भी उपलब्ध है . वे जब चाहें परमाणु हथियार बहुत कम समय में तैयार कर सकते हैं .अमरीकी अधिकारी यह भी कहते हैं कि ईरान का यह दावा कि वह परमाणु कार्यक्रम की मदद से बिजली पैदा करना चाहता है , भरोसे के काबिल नहीं है. ज़ाहिर है अमरीका की पूरी कोशिश है कि ईरान का भी वही हाल किया जाए जो उसने ईराक का किया था लेकिन लगता है कि ईरान से पंगा लेना इस बार अमरीका को मुश्किल में डाल सकता है .
अमरीका ने ईरान को घेरने की अपनी कोशिश तेज़ कर दी है . इस बार परमाणु हथियारों के नाम पर वह ईरान को कटघरे में खड़ा करना चाहता है .पश्चिम एशिया पर नज़र रखने वालों को भरोसा है कि अमरीका ने ईरान के खिलाफ इजरायल को इस्तेमाल करने का मन बना लिया है .हालांकि अमरीका, फ्रांस सहित कई अन्य पश्चिमी देश मानते हैं कि इजरायल के राष्ट्रीय नेता हमेशा सच नहीं बोलते लेकिन इजरायल की ओर से मिली इंटेलिजेंस के आधार पर अमरीका ने ईरान को अलग थलग करने की कोशिश तेज़ कर दी है . हर बार की तरह इस बार भी अमरीका संयुक्त राष्ट्र को अपने हित में इस्तेमाल करने की योजना बना चुका है .अमरीकी अखबारों में पिछले एक हफ्ते से सनसनीखेज़ बनाकर खबरें छापी जा रही हैं कि अंतर राष्ट्रीय परमाणु एनर्जी एजेंसी के पास ऐसे दस्तावेजी सबूत हैं जिसके आधार पर साबित किया जा सके कि ईरान अब परमाणु हथियार विकसित कर सकता है . इस कथित इंटेलिजेंस में वही पुराने राग अलापे जा रहे हैं . मसलन यह कहा जा रहा है कि सोवियत संघ में हथियारों को बनाने वाले वैज्ञानिकों की सेवाएँ ली जा रही हैं , उत्तरी कोरिया वालों से मदद ली जा रही है और पाकिस्तानी परमाणु स्मगलर ए क्यू खां से भी इस प्रोजेक्ट में मदद ली गयी है .ज़ाहिर है कि यह सब बहाने हैं . लेकिन इन सबके हवाले से अमरीका छुप कर हमला करने की अपनी नीति को अंजाम तक पंहुचाने की कोशिश कर रहा है.
ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने अमरीका की संयुक्त राष्ट्र के ज़रिये ईरान को बदनाम करने के नाटक को अनुचित बताया है . अहमदीनेजाद ने संयुक्त राष्ट्र की कथित रिपोर्ट की चर्चा शुरू होने के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा है कि अमरीका की कोशिश है कि वह ईरान सहित बाकी विकास शील देशों को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में आत्म निर्भर न बनने दे. अहमदीनेजाद ने कहा है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम से बिलकुल पीछे नहीं हटेगा. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के बहाने अमरीका दुनिया को गुमराह कर रहा है.उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की संस्था अंतर राष्ट्रीय परमाणु एनर्जी एजेंसी की भी आलोचना की और कहा कि उसे अमरीका के बेहूदा आरोपों को अपनी तरफ से प्रचारित करने से बचना चाहिए .उन्होंने कहा कि ईरानी राष्ट्र शान्तिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणु ऊर्जा के विकास करने के रास्ते से ज़रा सा भी विचलित नहीं होगा. एक जनसभा को संबोधित करते हुए अहमदीनेजाद ने कहा कि अंतर राष्ट्रीय परमाणु एनर्जी एजेंसी को अमरीका के चक्कर में पड़कर अपनी विश्वसनीयता से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए. ईरान ने संयुक्त राष्ट्र को आगाह किया है कि अमरीका के एजेंट के रूप में काम करने से वह बाकी दुनिया की नजर में बिलकुल नीचे गिर जाएगा .अमरीका ने दावा किया है कि ईरान ने अपना परमाणु कार्यक्रम २००३ में अंतर राष्ट्रीय दबाव के चलते बंद कर दिया था लेकिन अब वह फिरसे चालू हो गया है.
ईरान ने संयुक्त राष्ट्र की ईरानी परमाणु कार्यक्रम को हथियारों का कार्यक्रम बताने की कोशिश को बहुत ही हलके से लिया है.ईरान के परमाणु कार्यक्रम से बहुत निकट से जुड़े अधिकारी और मौजूदा ईरानी विदेश मंत्री अली अकबर सालेही ने कहा कि अगर संयुक्त राष्ट्र का यही रुख है तो उन्हें रिपोर्ट को प्रकाशित कर लेने दीजिये . सालेही ने कहा कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर शुरू हुआ विवाद सौ फीसदी राजनीति से प्रेरित है .उन्होंने आरोप लगाया कि अंतर राष्ट्रीय परमाणु एनर्जी एजेंसी ( आई ई ए ई ) पूरी तरह से विदेशी ताक़तों के दबाव में काम रही है .आई ई ए ई वाले कई साल से ईरानी परमाणु कार्यक्रम पर सवाल उठाते रहे हैं लेकिन इस बार उनका दावा है कि इस बार जो सूचना मिली है उसके आधार पर कहा जा सकता है कि अब ईरान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से विकसित हो चुका है और अब उसमें रिसर्च को बहुत ही मह्त्व दिया जा रहा है .
जिस तरह से इस बार आई ई ए ई ने दावा किया है और जिस तरह से भारत समेत पूरी दुनिया के अमरीका परस्त मीडिया संगठन इस खबर को ले उड़े हैं उस से लगता है कि अमरीका एक बार फिर वही करने के फ़िराक़ में है जो उसने ईराक में किया था. दुनिया भर में फैले हुए अपने हमदर्द देशों और अखबारों की मदद से पहले ईराक के खिलाफ माहौल बनाया गया उसके बाद यह साबित करने की कोशिश की गयी कि ईराक के पास सामूहिक संहार के हथियार हैं . फिर संयुक्त राष्ट्र का इस्तेमाल कारके इराक पर हमला कर दिया गया. आज ईराक में अमरीकी कठपुतली सरकार है और अमरीका उनके पेट्रोल को अपने हित में इस्तेमाल कर रहा है . अब यह बात भी सारी दुनिया को मालूम है कि इराक और उसेक राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को तबाह करने के बाद अमरीकी विदेश नीति के करता धरता मुंह छुपाते फिर रहे थे क्योंकि जब पूरे देश पर अमरीका का क़ब्ज़ा हो गया और उस से पूछा गया कि सामूहिक नरसंहार के हथियार कहाँ हैं तो अमरीकी राजनयिकों के पास कोई जवाब नहीं था.
ऐसा लगता है कि अमरीका अपनी उसी नीति पर चल रहा है जिसके तहत उसने तय कर रखा है कि जो देश उसकी बात नहीं मानेगा उसे किसी न किसी तरीके से सैनिक कार्रवाई का विषय बना देगा.दिलचस्प बात यह है कि इस बार के अमरीका के ईरान विरोधी अभियान में भी वही व्यक्ति इस्तेमाल हो रहा है जो ईराक के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के अभियान में शामिल रह चुका है . डेविड अल्ब्राईट नाम का यह पूर्व हथियार इन्स्पेक्टर अमरीका की नीतियों को संयुक्त राष्ट्र का मुखौटा पहनाने में माहिर बताया जाता है . इसी अल्ब्राईट के हवाले से इस बार अमरीकी अखबारों में खबरें प्लांट की जा रही हैं . इसने दावा किया है कि जब बाकी दुनिया को बताया गया था कि ईरान ने २००३ में परमाणु कार्यक्रम रोक दिया था , उस वक़्त भी ईरान ने कोई काम रोका नहीं था. वास्तव में उसने परमाणु कार्यक्रम पर काम कर रहे अपने वैज्ञानिकों को अन्य क्षेत्रों में रिसर्च करने के काम में लगा दिया था. संयुक्त राष्ट्र से छुट्टी पाने के बाद डेविड अल्ब्राईट अमरीका की राजधानी वाशिंगटन डी सी के एक संस्थान का अध्यक्ष है .वहां भी यह अमरीकी हितों के काम में ही लगा हुआ है . इंस्टीटयूट फार साइंस ऐंड इंटरनैशनल सिक्योरिटी नाम के इस संगठन का काम प्रकट में तो पूरी दुनिया के परमाणु कार्यक्रमों का विश्लेषण करना है लेकिन वास्तव यह अमरीकी विदेश नीति के हित साधन का एक फ्रंट मात्र है . इसी संस्थान में बैठकर अब डेविड अल्ब्राईट अमरीकी विदेश नीति का काम संभाल रहे हैं . बताया जाता है कि सी आई ए ने अपने बहुत सारे गुप्त संगठनों की तरफ से इस संस्थान को ग्रांट भी दिलवा रखी है .डेविड आल्ब्राईट के इस संस्थान को अमरीकी विदेश और रक्षा विभाग से भी पैसा मिलता है .इसी संस्थान के पास मौजूद तथाकथित दस्तावजों के आधार पर डेविड अल्ब्राईट ने अपने लाल बुझक्कड़ी अंदाज़ में दावा किया है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को चलाने वाले वाले वैज्ञानिकों को पुराने सोवियत संघ के परमाणु वैज्ञानिकों ने पढ़ा लिखा कर हथियार बनाने की शिक्षा दी है .
यह सारा प्रचार अभियान अभी ऐसे संगठनों और व्यक्तियों की तरफ से चलाया जा रहा है जिनका अमरीकी सरकार से डायरेक्ट समबन्ध नहीं है . यह सब या तो एन जी ओ हैं ,या थिंक टैंक का लबादा ओढ़े हुए हैं. अमरीकी अधिकारियों ने प्रकट रूप से यही कहा है कि अभी ईरान के नेताओं ने हथियार बनाने का फैसला नहीं किया है लेकिन उनके पास अब पूरी तकनीकी जानकारी है . उनके पास सारा सामान भी उपलब्ध है . वे जब चाहें परमाणु हथियार बहुत कम समय में तैयार कर सकते हैं .अमरीकी अधिकारी यह भी कहते हैं कि ईरान का यह दावा कि वह परमाणु कार्यक्रम की मदद से बिजली पैदा करना चाहता है , भरोसे के काबिल नहीं है. ज़ाहिर है अमरीका की पूरी कोशिश है कि ईरान का भी वही हाल किया जाए जो उसने ईराक का किया था लेकिन लगता है कि ईरान से पंगा लेना इस बार अमरीका को मुश्किल में डाल सकता है .
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