शेष नारायण सिंह
आज बहुत मज़ा आया . एक टी वी न्यूज़ चैनल में स्टूडियो गेस्ट के रूप में बुलाया गया था . कार्यक्रम के अंत में डेढ़ हज़ार रूपये मिले . बहुत खुशी हुई . पिछले चार पांच साल से स्टूडियो में बतौर गेस्ट बुलाया जाता हूँ लेकिन कहीं कभी कोई पैसा नहीं मिला . दरअसल जो चैनल पैसा देते हैं ,वे हमें बुलाते ही नहीं . जिन चैनलों में हम जाते थे वहां पैसा देने की परम्परा नहीं थी. आज एक महत्वपूर्ण चैनल में पैसा मिला तो दिल्ली में अपना अस्सी का दशक याद आ गया.उन दिनों जब भी कभी कहीं से एक्स्ट्रा पैसा मिल जाता था , मन खुशी से भर जाता था . सबसे पहले दालें खरीदता था . ऑटो रिक्शा में बैठकर जब मैं घर पंहुचता था तो मेरी पत्नी बहुत खुश हो जाती थीं. उन्हें अंदाज़ लग जाता कि आज कुछ पैसा मिला है और कोई ऐसा सामान खरीद कर आ रहा है जो बस में नहीं लाया जा सकता था . लोकसभा के स्वागत कक्ष के सामने जहां आज कल पार्किंग बनी हुई है,उन दिनों वहीं केंद्रीय भण्डार हुआ करता था. आम बोलचाल की भाषा में उसे ' पी ब्लाक ' कहते थे. जब दिल्ली के भ्रष्ट नेताओं और अफसरों ने सुपर बाज़ार को दफन कर दिया था तो पी ब्लाक ही वह ठिकाना था जहां से सही दाम पर लो इनकम ग्रुप वाले सही सामान ले सकते थे. हमारे यहाँ दाल वहीं से आती थी. मेरे बच्चे तब बड़े हो रहे थे . मैंने अपनी औकात से ज़्यादा खर्चे बढ़ा रखे थे . दोनों बड़े बच्चे तो पब्लिक स्कूलों में जाते ही थे , छोटी बेटी को उस समय के दिल्ली के सबसे महंगे स्कूल में भर्ती करा दिया गया. दिल्ली में तीन बच्चों की फीस और दक्षिण दिल्ली के किसी साधारण इलाके में किराए का मकान लेकर रहने के लिए मजबूर आदमी की क्षमता का हर तरह से इम्तिहान हो रहा था. लेकिन हम भी अपनी जिद पर कायम थे , बच्चों की शिक्षा में कोई समझौता करने को तैयार नहीं थे. ज़ाहिर है एक्स्ट्रा काम करना पड़ता था . और हम जैसे लोगों को एक्स्ट्रा काम भी क्या मिलता है . कहीं ट्रांसलेशन कर लिया, कहीं किसी के लिए घोस्ट राइटिंग के रास्ते कुछ लिख पढ़ दिया , कभी किसी ऐसे आदमी के बच्चे को सामान्य ज्ञान और अंग्रेज़ी की तैयारी करवा दी, जो किसी कम्पटीशन में बैठने की कोशिश कर रहा होता था. दिलचस्प बात यह है कि इस काम के बारे में अपनी पत्नी के अलावा किसी को बताया नहीं जाता था. जिस दिन ट्रांसलेशन के पैसे मिलते थे, उस दिन बच्चों के लिए वे चीज़ें खरीदी जाती थीं जो बहुत दिनों से ज़रूरी सामान की लिस्ट का हिस्सा बनी हुई होती थीं . मेरे बच्चों को भी मालूम था कि जो फिक्स पैसे पिता जी को मिलते हैं वह तो पहली तारीख को ही ख़त्म हो जाते हैं. उनकी छोटी छोटी ज़रूरतों के लिए इसी तरह के पैसों का सहारा रहता था. आज जब चैनल में गेस्ट के रूप में जाने का पैसा मिला तो बहुत खुशी हुई लेकिन अपनी पिछ्ली ज़िंदगी के वे खौफनाक क्षण भी याद आ गये , जिन्हें हम भुला देना चाहते हैं .
Thursday, October 21, 2010
कामनवेल्थ की हेराफेरी की जांच में फिल्म 'जाने भी दो यारो 'की झलक
शेष नारायण सिंह
कामनवेल्थ खेलों के भ्रष्टाचार की जांच शुरू हो गयी है . कांग्रेस सरकार और उसके कुछ नेता कामनवेल्थ खेलों के सभी फैसलों के लिए ज़िम्मेदार हैं लेकिन जांच में पहला हमला बी जे पी के एक बड़े नेता के घर और दफ्तर में छापा डालकर किया गया है . इस छापे का एक मकसद तो शायद यह बताना था कि कामनवेल्थ की लूट में बी जे पी के नेता भी शामिल हैं लेकिन इसका एक मतलब और भी हो सकता है कि भाई जब सभी शामिल हैं तो सुरेश कलमाड़ी को ही बलि का बकरा क्यों बनाया जाय . जब सबने लूटा है तो मिलजुल कर मामले को रफा दफा करना ही ठीक रहेगा. यानी कामनवेल्थ खेलों की जांच में भी करीब २७ साल पुरानी फिल्म "जाने भी दो यारो" को एक बार फिर जीवंत किया जायेगा .जहाना तक कांग्रेस का सवाल है उसने अध्यक्ष के गुट के बड़े सिपहसालार को घेर कर यह सन्देश दे दिया है कि अगर जांच की बार बार बात की गयी तो बी जे पी की अंदरूनी कलह की पिच पर ही कामनवेल्थ के भ्रष्टाचार के जांच की क्रिकेट खेली जायेगी. मैं आम तौर पर अपने पुराने लेखों के शब्दों को कापी नहीं करता लेकिन १६ अक्टूबर को लिखी गयी अपनी टिप्पणी के कुछ वाक्यों को आज के लेख में इस्तेमाल करना चाहता हूँ .
मैंने लिखा था " अपने कामनवेल्थ खेलों के समापन के अगले दिन ही खेलों की तैयारियों में हुई हेराफेरी की जांच का आदेश देकर केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर संभावित राजनीतिक पैंतरेबाजी पर लगाम लगा दिया है लेकिन इस जांच की गंभीरता पर सवाल किये जाने लगे हैं . दिल्ली में सत्ता के गलियारों में सक्रिय ज़्यादातर लोग इस खेल में शामिल थे. पूना वाले बुड्ढे नौजवान ने मामला इस तरह से डिजाइन किया था कि दिल्ली के सभी अमीर उमरा ७० हज़ार करोड़ रूपये की लूट में थोडा बहुत हिस्सा पा जाएँ . दिल्ली की काकटेल सर्किट में पिछले ३० वर्षों से सक्रिय इस राजनेता के लिए यह कोई असंभव बात नहीं थी. देश के कोने कोने से आये और दिल्ली में धंधा करने वाले सत्ता के ब्रोकरों के एक बड़े वर्ग के आराध्य देव के रूप में प्रतिष्ठित , सुरेश कलमाडी को नुकसान पंहुचा पाना आसान नहीं माना जाता . पिछले एक वर्ष में देखा गया है कि दिल्ली में जिसके कंधे पर भी सुरेश कलमाडी ने हाथ रख दिया ,वह करोडपति हो गया. ऐसी स्थिति में यह मुश्किल लगता है कि इस लूट के लिए उनको ज़िम्मेदार ठहराया जा सकेगा . दिल्ली में सक्रिय सभी पार्टियों के सत्ता के दलालों के रिश्तेदारों को कोई न कोई ठेका दे चुके कलमाडी के चेहरे पर जो प्रसन्नता नज़र आ रही है ,उसे देख कर तो लगता है कि वे आश्वस्त हैं कि उनका कोई नुकसान नहीं होगा. जिन लोगों ने इसी दिल्ली में जैन हवाला काण्ड की जांच होते देखी है , उनका कहना है कि मौजूदा जांच का भी वही हश्र होने वाला है."
यह मेरी १६ अक्टूबर वाली टिप्पणी है. मुझे भी उम्मीद नहीं थी कि कामनवेल्थ के घोटालों की जांच को इतनी जल्दी राजनीति की बलि बेदी पर कुरबान करने की तैयारियां शुरू हो जायेगीं . लेकिन जांच को जैन हवाला काण्ड बनाने का काम शुरू हो चुका है . जांच के पहले ही दिन बी जे पी के नेता और स्व प्रमोद महाजन के करीबी रहे व्यापारी सुधांशु मित्तल को घेरे में लेकर सरकार ने साफ़ संकेत दे दिया है कि वह तक़ल्लुफ़ में विश्वास नहीं करती. इस बात में दो राय नहीं है कि खेलों के घोटाले में कांग्रेसी नेताओं के मित्र और रिश्तेदार भी शामिल होंगें . लेकिन सबसे पहले बी जे पी के एक हाई प्रोफाइल नेता को पकड़ कर केंद्र सरकार ने साफ़ कर दिया है कि अगर इस मुद्दे पर राजनीति खेली तो सबसे पहले विपक्षियों के घरों में ही आग लगाई जायेगी. लेकिन बी जे पी को निशाने में लेने की सरकार की तरकीब के शिकार कई और भी हैं . सुधांशु मित्तल बी जे पी की आन्तरिक राजनीति में नितिन गडकरी के करीबी माने जाते हैं . आडवानी गुट के डी-4 वाले नेता गडकरी को ठिकाने लगाना ही चाहते हैं वे सुधांशु मित्तल को गडकरी के विनाश की सीढ़ी बनाना चाहते हैं . गडकरी गुट में इस बात की भी चर्चा है कि डी-4 वालों ने अपने दिल्ली दरबार के संपर्कों का इस्तेमाल करके जांच की मुसीबत को सबसे पहले गडकरी के ख़ास बन्दे दरवाज़े पर पंहुचा दी. घबड़ाकर गडकरी ने विशेष प्रेस कान्फरेन्स बुला दी और प्रधान मंत्री पर ही आरोपों की झड़ी लगा दी . बी जे पी के अक़लमंद तबके को मालूम है कि प्रधानमंत्री के ऊपर व्यक्तिगत रूप से भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगाए जा सकते , कोई फायदा नहीं होगा . कांग्रेस वाले गडकरी को गंभीरता से नहीं लेते . उनके प्रवक्ता मनीष तिवारी ने यह बयान कि खोदा पहाड़ निकला गडकरी ,निश्चित रूप से सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के अध्यक्ष का अपमान है लेकिन बी जे पी का डी-4 खुश है .
सुधांशु मित्तल के यहाँ जांच की शुरुआत करके सरकार ने बी जे पी के गडकरी गुट को बैकफुट पर लाने में सफलता पायी है लेकिन अभी तो यह शुरुआत है . अभी तो बी जे पी में गडकरी के विरोधी भी फंसेगें क्योंकि उनके बहुत सारे रिश्तेदारों को भी ठेका दिया गया है और हर ठेके में हेराफेरी हुई है . इसका मतलब यह कतई नहीं कि कांग्रेस वाले बहुत ही पवित्र हैं . जांच का दायरा उन तक पंहुचेगा ज़रूर लेकिन केंद्र सरकार के मौजूदा रुख को देख कर लगता है कि सबसे पहले कामनवेल्थ घोटालों के जांच की डुगडुगी बी जे पी के दर पर ही बजेगी. गडकरी गुट के एक मज़बूत नेता के यहाँ शुरुआती छापा डालकर यह सन्देश तो दे ही दिया गया है कि भ्रष्टाचार के जांच की मशाल लिए हुए कांग्रेस दिल्ली में राजनीति करने वाले किसी भी नेता को हड़का सकती है . बी जे पी के नेताओं को जांच के डंडे से धमकाकर कांग्रेसी अपने आप को बचा सकते हैं क्योंकि अगर बी जे पी के नेता डर गए तो भ्रष्टाचार पर से पर्दा नहीं उठ पायेगा . अंत में वही होगा जो जैन हवाला काण्ड में हुआ था . और ठेकेदारी और बे-ईमानी पर आधारित फिल्म " जाने भी दो यारो " को एक बार फिर से दोहराया जाएगा.
कामनवेल्थ खेलों के भ्रष्टाचार की जांच शुरू हो गयी है . कांग्रेस सरकार और उसके कुछ नेता कामनवेल्थ खेलों के सभी फैसलों के लिए ज़िम्मेदार हैं लेकिन जांच में पहला हमला बी जे पी के एक बड़े नेता के घर और दफ्तर में छापा डालकर किया गया है . इस छापे का एक मकसद तो शायद यह बताना था कि कामनवेल्थ की लूट में बी जे पी के नेता भी शामिल हैं लेकिन इसका एक मतलब और भी हो सकता है कि भाई जब सभी शामिल हैं तो सुरेश कलमाड़ी को ही बलि का बकरा क्यों बनाया जाय . जब सबने लूटा है तो मिलजुल कर मामले को रफा दफा करना ही ठीक रहेगा. यानी कामनवेल्थ खेलों की जांच में भी करीब २७ साल पुरानी फिल्म "जाने भी दो यारो" को एक बार फिर जीवंत किया जायेगा .जहाना तक कांग्रेस का सवाल है उसने अध्यक्ष के गुट के बड़े सिपहसालार को घेर कर यह सन्देश दे दिया है कि अगर जांच की बार बार बात की गयी तो बी जे पी की अंदरूनी कलह की पिच पर ही कामनवेल्थ के भ्रष्टाचार के जांच की क्रिकेट खेली जायेगी. मैं आम तौर पर अपने पुराने लेखों के शब्दों को कापी नहीं करता लेकिन १६ अक्टूबर को लिखी गयी अपनी टिप्पणी के कुछ वाक्यों को आज के लेख में इस्तेमाल करना चाहता हूँ .
मैंने लिखा था " अपने कामनवेल्थ खेलों के समापन के अगले दिन ही खेलों की तैयारियों में हुई हेराफेरी की जांच का आदेश देकर केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर संभावित राजनीतिक पैंतरेबाजी पर लगाम लगा दिया है लेकिन इस जांच की गंभीरता पर सवाल किये जाने लगे हैं . दिल्ली में सत्ता के गलियारों में सक्रिय ज़्यादातर लोग इस खेल में शामिल थे. पूना वाले बुड्ढे नौजवान ने मामला इस तरह से डिजाइन किया था कि दिल्ली के सभी अमीर उमरा ७० हज़ार करोड़ रूपये की लूट में थोडा बहुत हिस्सा पा जाएँ . दिल्ली की काकटेल सर्किट में पिछले ३० वर्षों से सक्रिय इस राजनेता के लिए यह कोई असंभव बात नहीं थी. देश के कोने कोने से आये और दिल्ली में धंधा करने वाले सत्ता के ब्रोकरों के एक बड़े वर्ग के आराध्य देव के रूप में प्रतिष्ठित , सुरेश कलमाडी को नुकसान पंहुचा पाना आसान नहीं माना जाता . पिछले एक वर्ष में देखा गया है कि दिल्ली में जिसके कंधे पर भी सुरेश कलमाडी ने हाथ रख दिया ,वह करोडपति हो गया. ऐसी स्थिति में यह मुश्किल लगता है कि इस लूट के लिए उनको ज़िम्मेदार ठहराया जा सकेगा . दिल्ली में सक्रिय सभी पार्टियों के सत्ता के दलालों के रिश्तेदारों को कोई न कोई ठेका दे चुके कलमाडी के चेहरे पर जो प्रसन्नता नज़र आ रही है ,उसे देख कर तो लगता है कि वे आश्वस्त हैं कि उनका कोई नुकसान नहीं होगा. जिन लोगों ने इसी दिल्ली में जैन हवाला काण्ड की जांच होते देखी है , उनका कहना है कि मौजूदा जांच का भी वही हश्र होने वाला है."
यह मेरी १६ अक्टूबर वाली टिप्पणी है. मुझे भी उम्मीद नहीं थी कि कामनवेल्थ के घोटालों की जांच को इतनी जल्दी राजनीति की बलि बेदी पर कुरबान करने की तैयारियां शुरू हो जायेगीं . लेकिन जांच को जैन हवाला काण्ड बनाने का काम शुरू हो चुका है . जांच के पहले ही दिन बी जे पी के नेता और स्व प्रमोद महाजन के करीबी रहे व्यापारी सुधांशु मित्तल को घेरे में लेकर सरकार ने साफ़ संकेत दे दिया है कि वह तक़ल्लुफ़ में विश्वास नहीं करती. इस बात में दो राय नहीं है कि खेलों के घोटाले में कांग्रेसी नेताओं के मित्र और रिश्तेदार भी शामिल होंगें . लेकिन सबसे पहले बी जे पी के एक हाई प्रोफाइल नेता को पकड़ कर केंद्र सरकार ने साफ़ कर दिया है कि अगर इस मुद्दे पर राजनीति खेली तो सबसे पहले विपक्षियों के घरों में ही आग लगाई जायेगी. लेकिन बी जे पी को निशाने में लेने की सरकार की तरकीब के शिकार कई और भी हैं . सुधांशु मित्तल बी जे पी की आन्तरिक राजनीति में नितिन गडकरी के करीबी माने जाते हैं . आडवानी गुट के डी-4 वाले नेता गडकरी को ठिकाने लगाना ही चाहते हैं वे सुधांशु मित्तल को गडकरी के विनाश की सीढ़ी बनाना चाहते हैं . गडकरी गुट में इस बात की भी चर्चा है कि डी-4 वालों ने अपने दिल्ली दरबार के संपर्कों का इस्तेमाल करके जांच की मुसीबत को सबसे पहले गडकरी के ख़ास बन्दे दरवाज़े पर पंहुचा दी. घबड़ाकर गडकरी ने विशेष प्रेस कान्फरेन्स बुला दी और प्रधान मंत्री पर ही आरोपों की झड़ी लगा दी . बी जे पी के अक़लमंद तबके को मालूम है कि प्रधानमंत्री के ऊपर व्यक्तिगत रूप से भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगाए जा सकते , कोई फायदा नहीं होगा . कांग्रेस वाले गडकरी को गंभीरता से नहीं लेते . उनके प्रवक्ता मनीष तिवारी ने यह बयान कि खोदा पहाड़ निकला गडकरी ,निश्चित रूप से सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के अध्यक्ष का अपमान है लेकिन बी जे पी का डी-4 खुश है .
सुधांशु मित्तल के यहाँ जांच की शुरुआत करके सरकार ने बी जे पी के गडकरी गुट को बैकफुट पर लाने में सफलता पायी है लेकिन अभी तो यह शुरुआत है . अभी तो बी जे पी में गडकरी के विरोधी भी फंसेगें क्योंकि उनके बहुत सारे रिश्तेदारों को भी ठेका दिया गया है और हर ठेके में हेराफेरी हुई है . इसका मतलब यह कतई नहीं कि कांग्रेस वाले बहुत ही पवित्र हैं . जांच का दायरा उन तक पंहुचेगा ज़रूर लेकिन केंद्र सरकार के मौजूदा रुख को देख कर लगता है कि सबसे पहले कामनवेल्थ घोटालों के जांच की डुगडुगी बी जे पी के दर पर ही बजेगी. गडकरी गुट के एक मज़बूत नेता के यहाँ शुरुआती छापा डालकर यह सन्देश तो दे ही दिया गया है कि भ्रष्टाचार के जांच की मशाल लिए हुए कांग्रेस दिल्ली में राजनीति करने वाले किसी भी नेता को हड़का सकती है . बी जे पी के नेताओं को जांच के डंडे से धमकाकर कांग्रेसी अपने आप को बचा सकते हैं क्योंकि अगर बी जे पी के नेता डर गए तो भ्रष्टाचार पर से पर्दा नहीं उठ पायेगा . अंत में वही होगा जो जैन हवाला काण्ड में हुआ था . और ठेकेदारी और बे-ईमानी पर आधारित फिल्म " जाने भी दो यारो " को एक बार फिर से दोहराया जाएगा.
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