Friday, November 6, 2009

आतंक के भस्मासुर के सामने लाचार पाकिस्तान

पाकिस्तान अपने ६२ साल के इतिहास में सबसे भयानक मुसीबत के दौर से गुज़र रहा है. आतंकवाद का भस्मासुर उसे निगल जाने की तैयारी में है. देश के हर बड़े शहर को आतंकवादी अपने हमले का निशाना बना चुके हैं . आतंकवादी हमलों के नए दौर के बाद मरने वालों में बच्चो और औरतों की संख्या बहुत ज्यादा है .अगर पाकिस्तान को विखंडन हुआ तो बांग्लादेश की स्थापना के बाद यह सबसे बड़ा झटका माना जाएगा. अजीब बात यह है कि तानाशाही के व्यापार के चक्कर में पाकिस्तान ने अपने अस्तित्व को ही दांव पर लगा दिया है...हालांकि पाकिस्तानी हुक्मरान को बहुत दिनं तक मुगालता था कि आस पास के देशों में आतंक फैला कर वे अपनी राजनीतिक महत्ता बढा सकते थे. दर असल अमरीकी मदद के बदले में इन्हीं तालिबान को अफगानिस्तान में भेजकर पाकिस्तानी हुकूमतों ने अच्छी खासी रक़म पैदा की थी जब अमरीका की मदद से पाकिस्तानी तानाशाह, जिया उल हक आतंकवाद को अपनी सरकार की नीति के रूप में विकसित कर रहे थे , तभी दुनिया भर के समझ दार लोगों ने उन्हें चेतावनी दी थी. लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी . जनरल जिया ने धार्मिक उन्मादियों और फौज के जिद्दी जनरलों की सलाह से देश के बेकार फिर रहे नौजवानों की एक जमात बनायी थी जिसकी मदद से उन्होंने अफगानिस्तान और भारत में आतंकवाद की खेती की थी .उसी खेती का ज़हर आज पाकिस्तान के अस्तित्व पर सवालिया निशान बन कर खडा हो गया है.. अमरीका की सुरक्षा पर भी उसी आतंकवाद का साया मंडरा रहा है जो पाकिस्तानी हुक्मरानों की मदद से स्थापित किया गया था . दुनिया जानती है कि अमरीका का सबसे बड़ा दुश्मन, अल कायदा , अमरीकी पैसे से ही बनाया गया था और उसके संस्थापक ओसामा बिन लादेन अमरीका के ख़ास चेला हुआ करते थे . बाद में उन्होंने ही अमरीका पर आतंकवादी हमला करवाया और आज अमरीकी हुकूमत उनको किसी भी कीमत पर पकड़ने के लिए आमादा है. जबकि अमरीका की घेरेबंदी के चलते बुरी तरह से घिर चुके पाकिस्तानी आतंकवादी , अपने देश को ही तबाह करने के लिए तुले हुए हैं .इस माहौल में कश्मीर की सरकारी यात्रा पर गए भारत के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढा दिया है. अंतर राष्ट्रीय मामलों के जानकार बताते हैं कि मनमोहन सिंह का दोस्ती के लिए बढा हुआ हाथ वास्तव में जले पर नमक की तरह का असर करेगा क्योंकि पाकिस्तान अब किसी से दोस्ती या दुश्मनी करने की ताक़त नहीं रखता. वह तो अपनी अस्तित्व की लड़ाई में इतना बुरी तरह से उलझ चुका है कि उसके पास और किसी काम के लिए फुर्सत ही नहीं है. यहाँ यह याद करना दिलचस्प होगा कि भारत जैसे बड़े देश से पाकिस्तान की दुश्मनी का आधार, कश्मीर है. वह कश्मीर को अपना बनाना चाहता है लेकिन आज वह इतिहास के उस मोड़ पर खडा है जहां से उसको कश्मीर पर कब्जा तो दूर , अपने चार राज्यों को बचा कर रख पाना ही टेढी खीर नज़र आ रही है. लेकिन कश्मीर के मसले को जिंदा रखना पाकिस्तानी शासकों की मजबूरी है क्योंकि १९४८ में जब जिनाह की सरपरस्ती में कश्मीर पर कबायली हमला हुआ था उसके बाद से ही भारत के प्रति नफरत के पाकिस्तानी अभियान में कश्मीर विवाद क भारी योगदान रहा है अगर पाकिस्तान के हुक्मरान उसको ही ख़त्म कर देंगें तो उनके लिए बहुत मुश्किल हो जायेगी

पाकिस्तान की एक देश में स्थापना ही एक तिकड़म का परिणाम है. वहां रहने वाले ज़्यादातर लोग अपने आपको भारत से जोड़ कर अपने इतिहास को याद करते हैं . शुरू से ही पाकिस्तानी शासकों ने धर्म के सहारे अवाम को इकठ्ठा रखने की कोशिश की . यह बहुत बड़ी गलती थी. जब भी धर्म को राज काज में दखल देने की आज़ादी दी जायेगी, राष्ट्र का वही हाल होगा जो आज पाकिस्तान का हो रहा है . दुर्भाग्य की बात यह है कि पाकिस्तान के संस्थापक जब इतिहास और भूगोल से इस तरह का खिलवाड़ कर रहे थे तो उन्हें अंदाज़ ही नहीं था कि वे किस सर्वनाश की नींव डाल रहे हैं . जब अंग्रेजों के एक खेल को पूरा करने के लिए जिनाह ने पाकिस्तान की जिद पकडी थी उसी वक़्त यह अंदाज़ लग गया था कि आने वाला समय इस नए देश के लिए ठीक नहीं होगा..पाकिस्तान की आज़ादी के लिए कोई लड़ाई तो लड़ी नहीं गयी . वह देश तो उस वक़्त के ब्रिटिश प्रधान मंत्री, चर्चिल के एक शातिराना खेल का नतीजा था. मुंबई के अपने घर में बैठकर मुहम्मद अली जिनाह ने चिट्ठियाँ लिख लिख कर पाकिस्तान बना दिया था. आज़ादी की जो लड़ाई १९२० से १९४७ तक चली थी , वह पूरे भारत की आज़ादी के लिए थी और उसमें वह इलाके भी शामिल थे जहां आज का पाकिस्तान है. इस इलाके के जन नायक , खान अब्दुल गफ्फार खान थे. जिनाह जननेता कभी नहीं रहे. वे तो मुस्लिम एलीट के नेता थे. उसी एलीट की हैसियत को बनाए रखने के लिए उन्होंने अंग्रेजों के साथ मिलकर पाकिस्तान बनवा दिया. उनकी अदूरदर्शी सोच का नतीजा है कि आज पाकिस्तान में रहने वाला आम आदमी अमरीकी खैरात पर जिंदा है. आज पाकिस्तान
की अर्थ व्यवस्था पूरी तरह से विदेशी मदद के सहारे चल रही है.. भारत और पाकिस्तान एक ही दिन स्वतंत्र हुए थे. लेकिन भारत आज एक ताक़तवर देश है जबकि पाकिस्तान के अन्दर होने वाली हर गतिविधि अब अमरीकी निगरानी का विषय बन चुकी है. वैसे पाकिस्तान में भी जिस सिलसिलेवार तरीके से जनतंत्र का खत्म किया गया उसका भी आतंकवाद के विकास में खासा योगदान है.आज वहां पाकिस्तानी फौज पूरी तरह से कण्ट्रोल में है. वह जो चाहती हैं करवाती है.ज़रदारी और गीलानी को जनतंत्र का मुखिया बनना भी संभवतः फौज की ही किसी रणनीति का हिस्सा है. इसी लिए जब ताज़ा अमरीकी मदद के मामले में अमरीकी सीनेट ने एक ऐसा नियम जोड़ दिया जिस से पाकिस्तानी जनरलों की तरक्की तब तक नहीं हो पायेगी जब तक कि सिविलियन सरकार उसकी मंजूरी न दे . फौज के अफसर भड़क गए और अमरीकी राष्ट्रपति को फरमान सुना दिया कि इन शर्तों के साथ अमरीकी सहायता नहीं ली जायेगी. लेकिन पाकिस्तान सरकार इस हुक्म को नहीं मान सकती क्योंकि अगर लैरी कुगर एक्ट वाली आर्थिक सहायता न मिली तो पाकिस्तान में रोज़मर्रा का खर्च चलना भी मुश्किल हो जाये़या. जहां तक मदद की बात है अमरीकी विदेश मंत्री सहित लगभग सभी बड़े अधिकारोयों ने मीडिया की मार्फ़त यह ऐलान कर दिया है कि यह मदद मुफ्त में नहीं दी जा रही है . इसके बदले पाकिस्तानी सत्ता को अमरीकी हितों की साधना करनी पड़ेगी.

सच्ची बात यह है कि यह वास्तव में पाकिस्तान के आतंरिक मामलों में अमरीका की खुली दखलंदाजी है और पाकिस्तान के शासक इस हस्तक्षेप को झेलने के लिए मजबूर हैं एक संप्रभु देश के अंदरूनी मामलों में अमरीका की दखलंदाजी को जनतंत्र के समर्थक कभी भी सही नहीं मानते लेकिन आज पाकिस्तान जिस तरह से अपने ही बनाए दलदल में फंस चुका है.और उस दलदल से निकलना पाकिस्तान के अस्तित्व के लिए तो ज़रूरी है ही बाकी दुनिया के लिए भी उतना ही ज़रूरी है. क्योंकि अगर पाकिस्तान तबाह हुआ तो वहां मौजूद प्रशिक्षित आतंकवादी बाहर निकल पडेंगें और तोड़ फोड़ के अलावा उन्हें और तो कुछ आता नहीं लिहाजा जहां भी जायेंगें तोड़ फोड़ का खेल खेलेंगे..पाकिस्तान के अस्थिर हो जाने का नुकसान भारत को सबसे ज्यादा होगा क्योंकि पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी जमातों को शुरू से ही यह बता दिया गया है कि भारत ही उनका असली दुश्मन है. इस लिए बाकी दुनिया के साथ मिलकर भारत को भी यह कोशिश करनी चाहिए कि आतंकवाद का सफाया तो हो जाए लेकिन पाकिस्तान बचा रहे ज विदेशी मामलों के जानकार बताते हैं कि अमरीका की पूरी कोशिश है कि पाकिस्तान का अस्तित्व बना रहे क्योंकि राजनीतिक सत्ता ख़त्म होने के बाद किसी और देश का प्रशासन चला पाना कितना कठिन होता है उसे अमरीकी नेताओं से बेहतर कोई नहीं जानता . इराक और अफगानिस्तान में यह गलती वे कर चुके हैं और कोई दूसरी मुसीबत झेलने को तैयार नहीं हैं लेकिन पाकिस्तान को एक राष्ट्र के रूप में बचाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी वहां के सभ्य समाज और गैर जनतंत्र की पक्षधर जमातों की है. .इस लिए इस बात में दो राय नहीं कि पाकिस्तान को एक जनतांत्रिक राज्य के रूप में बनाए रखना पूरी दुनिया के हित में है.. यह अलग बात है कि अब तक के गैर जिम्मेदार पाकिस्तानी शासकों ने इसकी गुंजाइश बहुत कम छोडी है. ..