Tuesday, August 27, 2013

अमरीकी साम्राज्यवाद का डर दिखाकर इस्लामी देशों में औरतों के प्रति हो रही ज्यादती को सही ठहराने की कोशिश



शेष नारायण सिंह 
ओस्लो,२६ अगस्त. ओस्लो विश्वविद्यालय के धार्मिक अध्ययन विभाग में आज आस्ता हँसतीन  स्मारक व्याख्यान का आयोजन किया  गया . २०११ में शुरू हुए इस लेक्चर का महत्व इसलिए है कि वह आस्ता हँसतीन के नाम पर है . आस्ता हँसतीन नार्वे और यूरोप में महिला अधिकारों  की क्रांतिकारी नेता के रूप में जानी  जाती हैं . नार्वे में महिलाओं को वोट देने का अधिकार सबसे पहले मिला था . १९१३ में मिले इस अधिकार की सौंवी वर्षगाँठ पूरे नार्वे में मनाई जा रही है.हालांकि वे खुद १९०८ में ही मर गयी थीं इसलिए अपनी मेहनत के नतीजों को देख नहीं पाईं .इस साल का लेक्चर दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन विश्वविद्याला की सहायक प्रोफ़ेसर सादिया शेख ने दिया . समझ में नहीं आया कि इतने बड़े लेक्चर के लिए सादिया शेख को क्यों  बुलाया गया था क्योंकि उनका अकादमिक स्तर बहुत ही मामूली था और उन्होंने इस्लामोफोबिया के हवाले से ऐसी बहुत सी बातें स्थापित करने की कोशिश की जो इस्लाम में महिलाओं के साथ हो रहे आचरण को बिलकुल सही ठहराने की कोशिश थी और इस्लामी मुल्कों  में जो महिलायें अपनी तकलीफों  को आत्मकथा के रूप में लिख रही हैं उस सारे को अमरीकी साम्राज्यवाद की ओर से प्रायिजित बताकर यह साबित करने की कोशिश की कि इस्लाम में माहिलाओं को जो अधिकार मिले हुए हैं वे बहुत ही काफी हैं .
ओस्लो विश्वविद्यालय में अकादमिक धर्मशास्त्र  विभाग की स्थापना के दो  सौ साल पूरे होने पर २०११ में आस्ता हँसतीन स्मारक व्याख्यान माला की शुरुआत की गयी थी.  इस साल का भाषण भारतीय मूल की सादिया शेख ने दिया . सादिया दक्षिण अफ्रीका में उन लोगों की वंशज हैं जो महात्मा  गांधी के साथ दक्षिण अफ्रीका में आज के सौ साल पहले लाठी गोली खा रहे थे . सादिया ने अपना भाषण एलिजाबेथ कैस्टेली और इब्न अरबी के हवाले से शुरू किया और इतने प्रतिष्ठित भाषण को आधे घंटे में निपटा दिया . उन्होंने इब्न अरबी के अलफुतूहात अलमक्किया का कई बार उल्लेख किया और श्रोताओं  को आठ सौ साल पुराने ज्ञान को आधुनिक सन्दर्भ में इस्तेमाल करने के उपदेश दिया . इबन अरबी १२४० इस्स्वी में इंतकाल फर्मा गए तह .बाद में जब सेमीनार हुआ तो हर मुद्दे की पूरी तरह से ढुलाई हो गयी . लेकिन चर्चा में शामिल  लोगों को यह समझ में आ गया कि अमरीकी साम्राज्यवाद के नाम पर किस तरह अल कायदा और उसकी तरह के इस्लाम का प्रचार किया जा रहा  है और उस काम के  लिए बुद्धिजीवी भी तलाश कर लिए गए हैं .

सादिया शेख ने कहा जब से अमरीका ने इस्लाम पर हमला करने की विदेशनीति का पालन शुरू किया है , बाज़ार में बहुत सारी ऐसी आत्मकथाएँ आ गयी हैं जो इस्लामी देशों में महिलाओं की  दुर्दशा का ज़िक्र करती हैं और अपने अमरीकी मालिकों को इस्लामोफोबिया का माहौल बनाने में मदद करती हैं .अमरीका के आतंक पर जारी युद्ध में इन आत्मकथा लिखने वाली मुखबिरों की आपबीती को बहुत बड़े बहाने के रूप में इस्तेमाल किया जाता है .उन्होने आरोप लगाया कि कई बार यह काम पी आर कंपनियों के ज़रिये भी किया जा रहा है ,उन्होंने लगभग सिरे से यह कह दिया कि अमरीका की तरफ से इराक ,अफगानिस्तान या अन्य इस्लामी देशों में युद्ध को सही साबित करने के लिए इन आत्मकथाओं  का इस्तेमाल किया जा  रहा है .अमरीकी मीडिया में इन किताबों में लिखी जानकारी को खूब प्रचारित किया जाता है लेकिन इस्लामी देशों में अमरीका की तरफ से थोपे गए युद्ध  के कारण मरने वाली महिलाओं  का ज़िक्र नहीं होता . मैंने जब उनसे पूछा कि अमरीकी साम्राज्यवाद का तो हर हाल में विरोध किया जाना चाहिए लेकिन  क्या उसका डर दिखाकर इस्लामी  व्यवस्थाओं में औरतों के प्रति हो रही ज्यादती को सही ठहराया जा सकता है . उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था . बाद में ज़्यादातर विद्वानों ने उनकी बातों को कट्टरपंथी इस्लाम को सही साबित  करने की एक योजना के रूप में स्थापित करने की कोशिश की सादिया शेख की हर मान्यता की धज्जियां उड़ा दी गयीं .

जिस देश में कैबिनेट मंत्री साइकिल पर चलता है और सड़क पर खड़े होकर चुनावी पर्चे बांटता है


शेष नारायण सिंह

ओस्लो,२५ अगस्तनार्वे की संसद के चुनाव के लिए मतदान में अभी दो हफ्ते से ज़्यादा समय बाकी है .अब तक के संकेतों से साफ़ है कि चुनाव में दोनों ही गठबंधनों के बीच कांटे  का मुकाबला होगा, हालांकि शुरुआती संकेत यही था कि  प्रधानमंत्री येंस स्तूलतेंबर्ग की सरकार की विदाई होने वाली थी लेकिन अब कंज़रवेटिव पार्टी पिछड़ रही है क्योंकि उनकी अति पूंजीवादी राजनीति उनको जनकल्याण की योजनाओं से दूर भगा देती है . नार्वे की राजनीति में जनकल्याण और इंसानियत स्थायी भाव के रूप में स्थापित है . जो उसके खिलाफ जाता है वह यहां के आम आदमी से दूर हो जाता है . यह भी सच है कि आठ साल से चली आ रही लेबर गठबंधन की सरकार से लोग परेशान हैं . कंज़रवेटिव पार्टी और उनके साथी प्रोग्रेस पार्टी वालों को शुरू में जनता का समर्थन इसी कारण से मिला था लेकिन अब वह रोज ही कम हो रहा है . यहाँ चुनाव पूरी तरह से लोकतंत्रीय तरीके से ही लड़ा जाता है . अपने देश के बाहुबली और माफिया टाइप नेता कहीं नहीं दीखते .इसलिए जनमत में बदलाव साफ़ नज़र आने लगता है .
नार्वे के  संसद भवन और नैशनल थियेटर के बीच में जो जगह है वहाँ सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रचार के लिए बूथ बना रखा है . नौजवान कार्यकर्ता वहाँ चुनावी पर्चे बाँट रहे होते  है . लेबर पार्टी वालों ने गुलाब के फूल में अपना पर्चा लगा रखा है और हर आते जाते को दे रहे है .अपनी बात कहते देखे जा रहे हैं . सोशलिस्ट-लेफ्ट पार्टी के बूथ के सामने जब मैं कार्यकर्ताओं से बात कर रहा था तो  थोड़े सीनियर एक कार्यकर्ता ने समझाना शुरू कर दिया , उन्होंने अपना परिचय दिया तो पता लगा कि वे मौजूदा सरकार के विदेश मंत्रालय में अंतरराष्ट्रीय डेवेलपमेंट के मंत्री हैं .उनका नाम हायिकी होल्मोस है और वे साइकिल से चलते हैं . यह बात भारतीय रिपोर्टर को अजीब लग सकती है क्योंकि यहान तो मंत्री का चमचा अभी चमचमाती  हुई कीमती  कार में चलता है .जब मुझसे बात शुरू की तो सिर पर हेलमेट थी लेकिन जब उनको बताया गया कि मैं भारतीय रिपोर्टर हूँ तो हेलमेट उतारकर मेरे साथ फोटो खिंचाया. सड़क पर खड़े मंत्री को अपनी पार्टी के चुनाव के पर्चे बाँटते मैंने कभी नहीं देखा था इसलिए उनसे प्र्भावित हुआ और बातों बातों  में उनका इंटरव्यू कर डाला.
सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी यानी एस वी की ओर से मौजूदा संसद में ११ सदस्य है . जब उनसे पूछा गया कि क्या इस बार वे २० सीटें जीतने की उम्मीद कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि अभी तो ११ हैं , इस संख्या को बरकरार रखने की कोशिश की जायेगी लेकिन अगर बहुत अच्छा नतीजा आया तो भी १५ से ज़्यादा की उम्मीद बिलकुल नहीं है . सरकार के वरिष्ठ मंत्री के इस बयान के बाद अपने देश के मंत्री बहुत याद आये जो रिज़ल्ट आते वक़्त जब हार रहे होते हैं तो कहते पाए जाते हैं कि अभी शुरुआती रुझान है , अभी थोड़ी देर तक गिनती चलने दीजिए , सरकार तो उनकी पार्टी की ही बनेगी. हायिकी होल्मोस ने बताया कि उनकी सरकार दक्षिणपंथी पार्टियों की राजनीति का विरोध करती है. उनकी सरकार महिलाओं के स्वास्थ्य और उनके अधिकारों के लिए अपने देश में और दुनिया भर में लीडरशिप की भूमिका में रहना चाहती है  . ९ सितमबर के बाद भी लेबर पार्टी की अगुवाई वाले गठबंधन को बहुमत मिलेगा और यह काम सारी दुनिया में जारी रखेगें . लेबर पार्टी के गठबंधन में सेंटर पार्टी भी है जो नार्वे के देहातों में रहने वाले किसानों और मछली पालन करने वालों की लोकप्रिय पार्टी के रूप में जानी जाती है , उस पार्टी ने भी नार्वेजी जीवन मूल्यों की रक्षा की बात की है जबकि विपक्षी पार्टियां ,होयरे यानी  कंज़रवेटिव और एफ आर पी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को मदद करने के लिए मानवता के आदर्शों की परवाह  नहीं कर रहे हैं .

सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी के इस नेता ने कहा कि उनकी पार्टी गरीबी के खिलाफ है और पूरी दुनिया में गरीबी के कारण हो रहे मानवाधिकारों के हनन का विरोध किया जाएगा .उन्होंने कहा कि दुनिया में ऐसे भी देश हैं , जहां माता पिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते बल्कि कूड़ा बीनने के लिए भेज देते हैं  और वे बच्चे अधजली सिगरेट बीनकर उसमें बची हुई तम्बाकू को रिसाइकिल करके बेचते हैं जिससे उनको कुछ खाने को मिल सके . उनकी पार्टी इस अमानवीय काम का हर स्तर पर विरोध करेगी. और गरीबी के खिलाफ पूरी दुनिया में लड़ाई लड़ी जायेगी . गरीबी से ही मानवाधिकारों का हनन होता है. गरीबी बहुत बड़ी बेइंसाफी है .इस बेइंसाफी के लिए पूंजीवादी अर्थव्यवस्था ज़िम्मेदार है . उन्होंने कहा कि विश्व की अर्थव्यवस्था आज के पचास साल पहले जिस मुकाम पर थी आज उससे पांच गुनी ज़्यादा संपन्न है और आबादी में दुगुनी वृद्धि हुई है . इस तरह हम देखते हैं  कि दुनिया की पूरी आबादी के लिए धन की कमी  नहीं है . ज़रूरत इस बात की है कि उस संपत्ति को ईमानदारी से लोगों तक पंहुचाया जाए. एक राष्ट्र के रूप में नार्वे का यह कर्तव्य है और विपक्ष उसको खत्म करने पर आमादा है . उन्होंने कहा कि नार्वे के लोग मानवाधिकारों की रक्षा का ज़िम्मा अपनी खुशी से अपने ऊपर लेते हैं कोई उन्हें मजबूर नहीं कर सकता . हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम पूरी दुनिया में  मुसीबतज़दा लोगों की मदद कर सकें . जबकि प्रोग्रेस पार्टी वाले विदेशी सहायता की राशि में ७ अरब क्रोनर की कटौती करना चाहते  हैं .इसका नार्वे के लोगों  को विरोध करना चाहिए . प्रोग्रेस पार्टी की मांग है कि अफ्रीका में जाने वाली सहायता में एक अरब क्रोनर की कटौती की जाए . अगर ऐसा हुआ तो वहाँ की एन जी ओ को मिलने वाली रकम बंद हो जायेगी. अफ्रीका के ज्यादातर देशों में एन जी ओ की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि उसी के ज़रिये आम आदमी की जायज़ मांगे सरकार तक पंहुचती हैं .प्रोग्रेस पार्टी वाले चाहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या फंड को  दिया जाने वाला १२० मिलियन क्रोनर भी न दिया जाए . इस धन का इस्तेमाल महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए इस्तेमाल होता है . अगर यह बंद हो गया तो सीधे सीधे अफ्रीका में महिलाओं के मानवाधिकारों को हमला माना जायेगा .जाहिर है कि नार्वे के लोग इस को पसंद नहीं करेगें और अंत में प्रोग्रेस पार्टी और उनके गठ्बंधन की बड़ी पार्टी कंज़रवेटिव पार्टी को सत्ता से बाहर रखेगी
.