Tuesday, August 6, 2013

जन्मदिन मुबारक मेरे बेटे





शेष नारायण सिंह

आज हमारे बेटे का जन्मदिन है . इमरजेंसी लगने के करीब डेढ़ महीने बाद सुल्तानपुर जिले के मेरे गाँव में ६ अगस्त के दिन इनका जन्म हुआ. कई साल बाद उनके जन्मदिन के दो दिन पहले मुंबई के उनके घर में साथ थे ,उनकी अम्मा ने कहा कि चलो एक बहुत अच्छी कमीज़ खरीद कर लाते हैं . बातों बातों में मेरे मुंह से निकल गया तो उन्होंने कहा कि मेरे जन्मदिन पर कपडे तो कभी नहीं आये . उनकी इस बात के बाद ऐसा लगा कि पिछले अडतीस साल का एक एक दिन नज़रों के सामने से गुज़र गया . आज वे एक बड़ी विदेशी बैंक में बड़े पद पर काम करते हैं ,उच्च मध्य वर्ग की अच्छी ज़िंदगी जीते  हैं , एक बहुत ही ज़हीन लड़की उनकी पत्नी है और एक निहायत ही काबिल लड़का उनका बेटा है . स्कूल जाता है और बहुत बड़ा पाटी करता है ,बाबा  को उसे साफ़ करने का मौक़ा देता है और  अपनी दादी को बुलाने के लिए सप्तम सुर में दादी दादी कहकर आवाज़ लगाता है .अगर अच्छे मूड में होता है तो दादी को भी पाटी देखने का मौक़ा देता है . उनकी दादी धन्य हो जाती हैं .
अपने बेटे के लिए पहली बार जन्मदिन का गिफ्ट लेने हम १९८१ में गए थे . उसके पहले गाँव में  रहते थे ,किसी को पता भी नहीं होता था कि जन्मदिन क्या होता है लेकिन दिल्ली में जब यह स्कूल गए तो हर महीने कुछ बच्चों का जन्मदिन होता था, लिहाजा इनका जन्मदिन भी  इनकी क्लास में और घर में सबको पता लगा . जन्मदिन का गिफ्ट लेने के चक्कर में कई दुकानों में गए लेकिन समझ में कुछ नहीं आया . जिस गिफ्ट पर भी हाथ डाला ,वह खरीद की सीमा के बाहर था . शाम तक वापस आ गए . अगले दिन जे एन यू जाना हुआ और गीता बुक सेंटर पर खड़े हुए दूकान के मालिक दादा से भी ज़िक्र कर दिया . उसके बाद तो लगा कि सारी राहें आसान हो गयीं . दादा ने प्रगति प्रकाशन मास्को की कई किताबें पैक कर दीं और कहा कि जब तक बच्चा बड़ा न हो जाए उसे हर साल किताब ही देते रहना .  वह सारा गिफ्ट दस रूपये में आया था. उसके बाद जब तक हम साथ रहे हर साल किताबों का गिफ्ट देते रहे. उनके जन्मदिन पर दी  गयी किताबों ने उनकी ज़िंदगी को खूबसूरत बनाने में अहम  भूमिका निभाई वर्ना एक अनिश्चित आमदनी वाले माँ बाप के बच्चों की जिन्दगी में वह स्थिरता नहीं होती जो इनकी ज़िंदगी में है और इनकी बहनों की जिन्दगी में है . जन्मदिन की किताबें खरीदने के लिए हम कई बार गोलचा सिनेमा के पास बिकने वाली पुरानी किताबों को देखने फुटपाथ पर भी गए ,कई बार बुक आफ नालेज लाये और कई बार डिक्शनरियां लाये .किताबों के प्रति उनके मन में आज भी बहुत सम्मान है और जब भी कहीं टाइम पास करना होता है किताबें खरीद लेते हैं .

आज जब पीछे  मुड़कर देखता हूँ तो लगता  है कि दादा की सलाह ने मेरे और और मेरे बच्चों के भविष्य को बदल दिया . मैं जानता हूँ  कि हमारा बेटा जहां भी होता है उसको लोग बहुत सम्मान देते हैं , पढ़ा लिखा इंसान माना जाता  है. आमतौर पर शांत रहने वाला हमारा यह बेटा एक बेहतरीन पति और बहुत अच्छा बाप है . मुझे मालूम है कि वह अपनी अम्मा को बहुत सम्मान करता  है और मेरी हर परेशानी को समझता है लेकिन मेरे सिद्धार्थ ने मुझे कभी बेचारा नहीं माना . जैसे ही  हमारी किसी  परेशानी का पता चलता है मेरा बेटा उसको हल करने के लिए तड़प उठता है लेकिन जब तक हम कह न दें कोई पहल नहीं करता . जन्मदिन मुबारक मेरे बेटे अम्मा की तरफ से भी और पापा की तरफ से भी .