Wednesday, October 13, 2010

शासक वर्ग हिन्दी से डरते क्यों हैं ?

शेष नारायण सिंह

हिन्दी के वरिष्ठ पत्रकार , अजय ब्रह्मात्मज ने एक दिलचस्प विषय पर फेसबुक पर चर्चा शुरू की है . कहते हैं कि सारी पीआर कंपनियां हिंदी समेत सभी भारतीय भाषाओं को रीजनल मीडिया कहती हैं।कोई विरोध नहीं करता। वक्‍त आ गया है कि उन्‍हें भारतीय भाषा कहा जाए। आगे कहते हैं कि मैं उनकी राय से सहमत हूं और उन सभी पीआर कंपनियों की भर्त्‍सना करता हूं जो सभी भारतीय भाषाओं को रीजनल कैटेगरी में डालती हैं . इस बहस में बहुत बड़े लोग शामिल हो गए हैं . गरम हवा और और श्याम बेनेगल की ज़्यादातर फिल्मों की सहयात्री ,शमा ज़हरा जैदी का कहना है कि अंग्रेज़ी को नेशनल मीडिया कहना गलत है .उसे एंग्लो-इन्डियन मीडिया कहना चाहिए अजय जी कहते हैं आज से उन्होंने विरोध और फटकार आरंभ कर दिया है। थोड़ा प्रेम से भी समझाएंगे। उन्‍हें मालूम ही नहीं कि वे कौन सी परंपरा ढो रहे हैं। एक तरीका यह भी है कि सभी स्‍टारों को रीजनल स्‍टार कहा जाए। सलमान,आमिर,रितिक,शाहरूख सभी रीजनल स्‍टार हैं,क्‍योंकि हिंदी मीडिया रीजनल मीडिया है।
इस बहस में शामिल होने की ज़रूरत है . अंग्रेज़ी जिसे इस देश में दो प्रतिशत लोग भी नहीं जानते , उसे यह लोग राष्ट्रीय मीडिया कहते हैं . भारतीय भाषाओं को रीजनल मीडिया कहने की यह बीमारी अखबारों में भी है . कुछ तो ऐसे पाषाण युगीन सोच के लोग हैं कि वे भारतीय भाषाओं के अखबारों को वर्नाक्युलर प्रेस भी कहते हैं.
यह हमारी गुलामी की मानसिकता की उपज है और इसका हर स्तर पर विरोध किया जाना चाहिए . मामला मीडिया से सम्बंधित है इसलिए ज़रुरत इस बात की है कि इस पर बाकायदा बहस चलाई जाय.