Friday, January 22, 2010

गैरज़िम्मेदार मंत्री, विदेशी हस्तक्षेप और महंगाई

शेष नारायण सिंह

केंद्रीय कृषि और खाद्य मंत्री ,शरद पवार ने एक बार फिर वह काम किया है जिसके लिए उन्हें गरीब आदमी कभी माफ़ नहीं करेगा.एक बार फिर उन्होंने सरकार के संभावित फैसले को लीक कर के महंगाई के नीचे पिस रही जनता को भूख से मरने वालों की अगली कतार में झोंक दिया है .उन्होंने एक बयान दे दिया है कि आने वाले कुछ दिनों में दूध की कीमतें भी बढ़ने वाली हैं ... उनके इस बयान का असर यह हुआ है कि अभी सरकार तो पता नहीं कब दूध की कीमतें बढायेगी, लेकिन आज सुबह से ही दूध वालों ने निरीह मिडिल क्लास के लोगों से दूध की ज्यादा कीमतें वसूलना शुरू कर दिया है ...अभी कुछ हफ्ते पहले उन्होंने चीनी की कीमतें बढ़ने की चेतावनी दे कर चीनी के जमाखोरों को आगाह कर दिया था कि चीनी की मूल्यवृद्धि के बहाने आम आदमी की जेब पर हमला बोलने का वक़्त आ गया है ..जमाखोरों और मुनाफाखोरों ने उनकी उस सूचना का फायदा भी उठाया और चीनी की कीमतें आसमान तक पंहुच गयी.चीनी के जमाखोरों को फायदा पंहुचाने की बात समझ में आती है क्योंकि शरद पवार को आम तौर पर शुगर लॉबी का एजेंट माना जाता है और वे खुद भी कई चीनी मिलों में हिस्सेदार हैं . इस देश में इस बात का इतिहास रहा है कि शुगर लॉबी वाले और चीन मिल मालिक सरकार में शामिल अपने बन्दों की मदद से मुनाफाखोरी करते रहे हैं . शरद पवार तो पहले से ही शुगर लॉबी के आदमी माने जाते हैं. इसलिए जब उन्होंने चीनी की कीमतों को बढाने की चीनी मिल मालिकों और जमाखोरों की साज़िश में सरगना के रूप में हिस्सा लेना शुरू किया तो लोगों को लगा कि एक भ्रष्ट मंत्री को जो करना चाहिए, कर रहा है . जनता चीनी की बढ़ती कीमतों का तमाशा देखती रही और त्राहि त्राहि करती रही. दुनिया जानती है कि चीनी की कीमत बढ़ने से बहुत सारी चीज़ों की कीमतें अपने आप बढ़ जाती हैं . शरद पवार को कोई फर्क नहीं पड़ा. वे नीरो की तरह अपने काम में लगे रहे . जिस तरह जब रोम में आग लगी थी तो नीरो बांसुरी बजा रहा था उसी तरह जब चौतरफा राजनीतिक दबाव के बाद बुरी तरह घिर चुकी सरकार ने कुछ करने की कोशिश की तो सरकारी सख्ती को बिलकुल बेकार करने की गरज से शरद पवार ने कहा कि मैं ज्योतिषी नहीं हूँ जो चीनी की कीमतों को कम करने के बारे में कोई तारीख बता सकूं. इसका सीधा मतलब यह था कि शरद पवार ने चीनी के जमाखोरों को आश्वस्त कर दिया था कि घबड़ाओ मत अभी कुछ नहीं होने वाला है . लूटमार बदस्तूर जारी रही और जब केंद्र सरकार ने लोकलाज से बचने के लिए खाद्यमंत्री को टाईट किया तो उन्होंने फरमाया कि अभी चीनी की कीमतें कम होने में दस दिन लगेंगें . इसका मतलब यह हुआ कि उन्होंने साफ़ भरोसा दे दिया चीनी के जमाखोरों और मुनाफाखोरों को कि अभी दस दिन तक का समय है अपना सारा हिसाब किताब दुरुस्त कर लो.. स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक से एक भ्रष्ट और गैर ज़िम्मेदार मंत्री हुए है लेकिन लगता है कि शरद पवार उस लिस्ट में सबसे ऊपर पाए जायेंगें .. . शरद पवार को एक और काम में भी महारत हासिल है .अपनी शातिराना साजिशों के असर का ज़िम्मा किसी और के ऊपर मढ़ देने में भी उनका जवाब नहीं है .. जब पिछले दिनों चौतरफा महंगाई के लिए उनसे मीडिया ने सवाल किया तो उन्होंने कहा कि राशन की दुकानों और गरीबी के रेखा के नीचे के लोगों का काम राज्य सरकारों के जिम्मे है और राज्य सरकारें अपना काम सही तरीके से नहीं कर रहीहैं इसलिए महंगाई पर काबू पाने में दिक्क़त हो रही है . . चीनी की कीमतें बढाने के साज़िश में शरद पवार के शामिल होने की बात में आम तौर किसी शक की गुंजाइश नहीं है . लेकिन केंद्रीय सरकार में विभिन्न व्यापारिक हितों के प्रतिनिधियों के शामिल होने की वजह से भी खाने पीने की चीज़ों के दाम आसमान छू रहे हैं . महंगाई का एक बड़ा कारण यह भी है कि अनाज के वायदा कारोबार का काम भी शुरू हो गया है . यानी जमाखोरों को इस बात की छूट है कि वे जितना चाहें ,उतना अनाज जमा कर के कीमतें बढ़ने पर बेचें ..इसकी वजह से बहुत बड़े पैमाने पर आनाज जमाखोरों के गोदामों में जमा है . हालांकि यह बात अखबारों में ठीक से प्रचारित नहीं की गयी है लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि अमरीका की सबसे बड़ी निजी क्षेत्र की कंपनी कारगिल भी पिछले कुछ वर्षों से देश में बहुत बड़े पैमाने पर अनाज की खरीद कर रही है . उसने जिलों में अपने कर्मचारी तैनात कर रखे हैं जो एफ सी आई से ज्यादा कीमत पर गेहूं और धान की खरीद कर रहे हैं . इस खरीद का सारा हिस्सा सीधे वायदा कारोबार के हवाले हो जाता है . इसका एक तोला भी राशन की दुकानों या सार्वजनिक वितरण की प्रणाली में नहीं जाता . ज़ाहिर है इसकी वजह से कृत्रिम कमी के हालात बन रहे हैं ...यही हाल चीनी का भी है .. सवाल उठता है कि कारगिल को तो शरद पवार ने देश में अनाज खरीदने की अनुमति नहीं दी . , उसके लिए तो अमरीका परस्ती की केंद्र सरकार की नीतियाँ ही ज़िम्मेदार मानी जायेंगीं. .पता लगाने की ज़रुरत है किअपने देश में इस तरह से खुले आम खरीद करने की अनुमति कारगिल जैसी कंपनी को किसने दी है . कारगिल की भयावहता के बारे में अभी भारत में जानकारी का अभाव है. यह वही कंपनी है जिसने लातिन अमरीका के कई देशों में खाने पीने की चीज़ों की कृत्रिम कमी का माहौल बनाया और वहां खाद्य दंगें तक करवाए. कारगिल अफ्रीका के कई देशों में सरकारे गिराने का काम भी कर चुका है .. . दुनिया में कई देशों की सरकारें कारगिल की नाराज़गी झेल चुकी हैं और उन्हें अपदस्थ भी होना पड़ा है ..अमरीकी प्रशासन में भी इस कंपनी की तूती बोलती है .. इस बात की जांच करना दिलचस्प होगा कि किस राजनेता ने कारगिल को देश में काम करने की अनुमति दी है . खाद्य सामग्री की कमी का ज़िम्मा उस व्यक्ति पर भी डालना पडेगा. ..

केंद्र सरकार में बैठे लोगों को यह भी ध्यान रखना पड़ेगा कि आम आदमी की पंहुच से खाने पीने की चीज़ों को हटा कर , संविधान के उस मूल अधिकार का भी उन्ल्लंघन हो रहा है जिसके तहत संविधान से सभी नागरिकों को राईट तो फ़ूड का प्रावधान किया है .. जो सरकार दो जून की रोटी के लिए भी आम आदमी को तरसाने की फ़िराक़ में है उसे सत्ता में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है .... ऐसा नहीं है कि नागरिकों के सामने से रोटी का निवाला छीनने के लिए केवल शरद पवार की ज़िम्मेदार हैं . मौजूदा केंद्र सरकार में और भी ऐसे सूरमा मंत्री हैं जो जनता के पेट पर लात मार कर अपनी पूंजीपति आकाओं को खुश करने के लिए तड़प रहे हैं ... अभी पिछले हफ्ते एक श्रीमान जी को जनता के गुस्से से घबडाई केंद्र सरकार ने रोका वरना वे तो डीज़ल और पेट्रोल की कीमतें भी बढाने जा रहे थे . सबको मालूम है कि पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें बढ़ने से चौतरफा महंगाई आती है ..लेकिन आज पूंजीपतियों के हुक्म की गुलाम सरकार से कोई उम्मीद करना बिलकुल ठीक नहीं है . हाँ यह उम्मीद की जा सकती है कि मौजूदा सरकार अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए ही सही , अनाज, चीनी और पेट्रोल की कीमतों के ज़रिये आम आदमी को लूटने के लिए बैठे पूंजी पतियों को थोडा बहुत काबू में करेगी क्योंकि अगर ऐसा न हुआ और जनता सडकों पर आ गयी तो तब तो ताज भी उछलेंगें और तख़्त भी उछाले जायेंगें