Wednesday, July 20, 2011

क्या भारतीय जांच अधिकारी हर बार गाफ़िल रहेगें ?

शेष नारायण सिंह

अमरीकी जांच एजेंसी, एफ बी आई ने कश्मीरी अलगाववादी आन्दोलन के एक नेता को गिरफ्तार किया है जिसके ऊपर आरोप है कि वह अमरीकी नागरिक होते हुए पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी,आई एस आई के लिए काम करता था . उसने अमरीका में एक संगठन बना रखा था तो प्रकट रूप से तो कश्मीर के अवाम के हित में काम करने का दावा करता था लेकिन वास्तव में वह आई एस आई के कंट्रोल वाली एक संस्था चलाता था जो पूरी तरह से पाकिस्तान की सरकार के पैसे से चलती थी. उसने अमरीकी संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को प्रभावित करने के लिए आई एस आई के पैसे से लाबी ग्रुप भी तैनात किया था. वर्जीनिया में रहने वाले डॉ गुलाम नबी नाम के इस आदमी के खिलाफ जांच के बाद एफ बी आई ने अपने हलफनामे में कहा है कि वह आई एस आई का एजेंट है और इसके काम से अमरीकी कानून का उन्ल्लंघन होता है .एफ बी आई के हलफनामे में लिखा है कि डॉ गुलाम नबी ने पाकिस्तानी सरकार के एजेंट के रूप में एक ऐसी साज़िश का हिसा बन कर काम किया जिसके नतीजे अमरीकी हितों की अनदेखी करते थे. उन्होंने अमरीकी नागरिक होते हुए पाकिस्तान सरकार के लिए काम किया और सरकार को अपने काम के बारे में जानकारी नहीं दी. ऐसा करना अमरीकी कानून के हिसाब से ज़रूरी है .डॉ गुलाम नबी के साथ इस साज़िश में एक और अमरीकी नागरिक शामिल है जिसकी तलाश की जा रही है . पता चला है कि वह आजकल पाकिस्तान में कहीं छुपा हुआ है .ज़हीर अहमद नाम का यह आदमी भी अमरीकी नागरिक है और उसके ऊपर भी वही आरोप हैं जो डॉ गुलाम नबी के ऊपर लगे हुए हैं .आई एस आई के कश्मीर एजेंडा पर काम करने वाले डॉ गुलाम नबी ने पाकिस्तानी सरकार के मातहत काम करने की बात को कभी किसी से नहीं बताया.हालांकि वे करीब २० साल से कश्मीर में पाकिस्तान की दखलंदाजी के खेल में शामिल हैं . अमरीका में वे कश्मीर की तथाकथित " आज़ादी " के लिए संघर्षशील व्यक्ति के रूप में सक्रिय थे. अब जाकर अमरीकी जांच अधिकारियों को पता चला है कि वे वास्तव में आई एस आई के फ्रंटमैन थे. उन्होंने अमरीका की राजधानी , वाशिंगटन डी सी में कश्मीरी-अमेरिकन कौंसिल (के ए सी ) बना रखा है और उसी के बैनर के नीचे अमरीकी राजनेताओं के बीच में घूमते थे. अब अमरीकी अधिकारियों ने भरोसे के साथ यह सिद्ध कर दिया है कि के ए सी पूरी तरह से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी का एक विभाग है . के ए सी वास्तव में आई एस आई का कश्मीर सेंटर है . आई एस आई ने इसी तरह के दो और सेंटर बना रखें हैं . एक ब्रसेल्स में है जबकि दूसरा लन्दन में .
अमरीका में सक्रिय इस पाकिस्तानी संगठन की जांच अमरीका केवल इसलिए कर रहा है कि इसमें पाकिस्तानी मूल के उसके दो नागरिक शामिल हैं और पाकिस्तान सरकार के लिए काम करके उन्होंने अमरीका के कानून को तोडा है . लेकिन भारत के लिए यह जांच बहुत ही अहम साबित हो सकती है . पाकिस्तान की सरकार और वहां के नेता कहते रहते हैं कि कश्मीर में उनकी कोई दखलंदाजी नहीं है ,वहां तो कश्मीरी लोग खुद ही आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं और पाकिस्तान उन्हें केवल नैतिक समर्थन देता है . सवाल है कि क्या नैतिक समर्थन देने के लिए अमरीका में ही अमरीकी नागरिकों को साजिशन पैसा देकर उनसे अपराध करवाना उचित है .जहां तक पाकिस्तान का सवाल है वह तो अब बाकी दुनिया में आतंकवाद की प्रायोजक सरकार के रूप में देखा जाता है लेकिन क्या भारत के सरकारी अधिकारियों और नेताओं को नहीं चाहिए कि वे भारत के हितों के लिए पूरी दुनिया में चौकन्ना रहें और जहां भी भारत के दुश्मन सक्रिय हों उनके बारे में जानकारी हासिल करें. अफ़सोस की बात यह है कि भारत की सरकार इस मोर्चे पर पूरी तरह से फेल है . मुंबई पर २६ नवम्बर २००८ को हुए हमलों में भी पाकिस्तानी आई एस आई की पूरी हिस्सेदारी को साबित कर पाने में नाकाम रही भारत की जांच एजेंसियों को सारी बात तब पता चला था जब अमरीकी जांच एजेंसियों ने हेडली को पकड़ लिया था.गौर करने की बात यह है कि अमरीकी जांच का मकसद २६/११ के हमले की पूरी जांच करना नहीं था. वे तो केवल इसलिए जांच कर रहे थे कि २६/११ के हमले में कुछ अमरीकी नागरिक भी मारे गए थे. वर्जीनिया में डॉ गुलाम नबी के पकडे जाने के बाद एक बार फिर साबित हो गया है कि भारतीय सुरक्षा और जांच एजेंसियां भारत के हितों के प्रति गाफिल रहती हैं .

क्या कैश फार वोट केस में अमर सिंह और लाल कृष्ण आडवाणी की भी जांच होगी ?

शेष नारायण सिंह

लोक सभा में पिछली लोकसभा में जो दृश्य देखा गया वह उसके पहले कभी नहीं देखा गया था. कुछ संसद सदस्य हज़ार हज़ार के नोटों के बण्डल उपाध्यक्ष जी के सामने लहरा रहे थे . बाद में पता चला कि वह रूपये उनका समर्थन खरीदने के लिए उनके पास समाजवादी पार्टी के तत्कालीन नेता अमर सिंह ने भेजे थे.पिछली लोकसभा में अमरीका के साथ परमाणु समझौते वाला बिल पास कराने के लिए उस वक़्त की यू पी ए सरकार ने एड़ी चोटी का जोर लगाया था.आरोप है कि उस काम के लिए कि सरकार ने सांसदों की खरीद फरोख्त की थी. बीजेपी वाले खुद लोक सभा में हज़ार हज़ार के नोटों की गड्डियाँ लेकर आ गए थे और दावा किया था कि यूपीए के सहयोगी और समाजवादी पार्टी के नेता ,अमर सिंह ने वह नोट उनके पास भिजवाये थे, बाद में एक टी वी चैनल ने सारे मामले को स्टिंग का नाम देकर दिखाया भी था. बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने स्वीकार भी किया था कि उनके कहने पर ही उनकी पार्टी के सांसद वह भारी रक़म लेकर लोकसभा में आये थे . सारे मामले की जे पी सी जांच भी हुई थी और जे पी से ने सुझाव दिया था कि मामला गंभीर है लेकिन जे पी सी के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि आपराधिक मामलों की जांच कर सके . इसलिए किसी उपयुक्त संस्था से इसकी जांच करवाई जानी चाहिए . जिन लोगों की गहन जांच होनी थी , उसमें बीजेपी के नेता, लाल कृष्ण आडवाणी के विशेष सहायक सुधीन्द्र कुलकर्णी का भी नाम था . कमेटी की जांच के नतीजों के मद्दे नज़र लोकसभा के तत्कालीन अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने आदेश भी दे दिया था कि गृह मंत्रालय को चाहिए कि सारे मामले की जांच करे .लोक सभा के महासचिव ने दिल्ली पुलिस को एक चिट्ठी लिख कर जानकारी दी थी जिसे प्राथामिकी के रूप में रिकार्ड कर लिया गया था . लेकिन कहीं कोई जांच नहीं हुई .जब पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को हडकाया तो जाकर मामला ढर्रे पर आया. अमर सिंह के तत्कालीन सहायक संजीव सक्सेना से पुलिस हिरासत में पूछ ताछ चल रही है .अमर सिंह के ड्राइवर की तलाश की जा रही है लेकिन आडवाणी के सहायक और एक अन्य व्यक्ति जिसके लिए लोक सभा की कमेटी ने जांच का आदेश दिया था , अभी गिरफ्तार नहीं हुए हैं . दिल्ली में सत्ता के गलियारों में जो सवाल पूछे जा रहे हैं ,वे बहुत ही मुखर हैं . सवाल यह है कि क्या सक्सेना और कुलकर्णी टाइप प्यादों की जांच करके ही न्याय हो जाएगा या अमर सिंह और आडवाणी की भी जांच होगी. इसके अलावा कैश फार वोट की राजनीति का लाभ सबसे ज्यादा तो कांग्रेस को मिला था .क्या उनके भी कुछ नेताओं को जांच के दायरे में लिया जायेगा.क्योंकि यह मानना तो बहुत ही मुश्किल है कि कुलकर्णी, सक्सेना या हिन्दुस्तानी अपने मन से संसद सदस्यों को करोड़ों रूपये दे रहे थे. मार्च में जब विकीलीक्स के दस्तावेजों में बात एक बार फिर सामने आई तो बीजेपी वालों को फिर गद्दी नज़र आने लगी थी . आर एस एस के मित्र टेलीविज़न एंकरों ने जिस हाहाकार के साथ मामले को गरमाने की कोशिश की वह बहुत ही अजीब था. बीजेपी ने भी अपने बहुत तल्ख़-ज़बान प्रवक्ताओं को मैदान में उतारा था और मामला बहुत ही मनोरंजक हो गया था . लेकिन बाद में सब कुछ शांत हो गया .यह चुप्पी हैरान करने वाली थी . जानकार बताते हैं कि उस वक़्त बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों को अंदाज़ हो गया था कि अगर सही जांच होगी तो अमर सिंह के सहायक और आडवानी के सहायक तक ही मामला सीमित नहीं रहेगा .सब को मालूम है कि लोकसभा में नोटों की गड्डियाँ लहराए जाने के बाद ही लाल कृष्ण आडवाणी ने संसद भवन परिसर में ही टी वी चैनलों को बताया था कि बहुत सोच विचार के बाद उन्होंने अपनी पार्टी के सांसदों को नोटों के बण्डल लोकसभा में लाने की अनुमति दी थी. इस इक़बालिया बयान के बाद लोकसभा में नोटों के बण्डल लहराए जाने के मामले में की गयी साजिश में सक्सेना, कुलकर्णी और अमर सिंह के अलावा आडवानी की भूमिका की भी जांच होना जरूरी है .अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एक बार फिर उम्मीद बनी है कि सही जांच होगी . लेकिन जांच का उद्देश्य असली ज़िम्मेदार लोगों को भी पकड़ना होना चाहिए , प्यादों की जांच करके मामले की लीपा पोती की दिल्ली पुलिस और सरकार की हर कोशिश को खारिज किया जाना चाहिए .