शेष नारायण सिंह
११ साल हो गए ,जब उदयन शर्मा को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में दाखिल कराया गया था. बाद में उन्हें जी बी पन्त अस्पताल में लाया गया जहां उन्होंने अंतिम सांस ली. हर साल यह महीना मेरे लिए बहुत मुश्किल बीतता है . उदयन शर्मा बहुत बड़े पत्रकार थे, बेहतरीन इंसान थे, बहुत अच्छे पिता थे , बेहतरीन दोस्त थे ,. उन्होंने बहुत लोगों से दोस्ती की और बहुत लोगों ने उन्हें नापसंद किया . इसी दिल्ली शहर में ऐसे सैकड़ों लोग मिल जायेगें जो उनको बहुत अच्छी तरह जानते होंगें.अगर इन लोगों के सामने कोई अन्य व्यक्ति कह दे कि वह भी उदयन शर्मा को जानता है तो वे बुरा मान जायेगें और दावा करेगें कि सबसे अच्छे दोस्त तो उदयन शर्मा उनके ही थे. मैं ऐसे बहुत सारे लोगों को जनता हूँ जो उदयन शर्मा को बहुत अच्छी तरह जानते हैं, उनसे अच्छी तरह कोई नहीं जानता . मुझे हमेशा से लगता रहा है कि उदयन के व्यक्तित्व में वह खासियत थी कि जो भी उनसे मिलता था वह उनको अपना सबसे करीबी दोस्त मानने लगता था. उदयन शर्मा के जन्मदिन के मौके पर ११ जुलाई के दिन दिल्ली में एक कार्यक्रम होता है जिसमें उन्हें याद किया जाता है . उनकी पुण्यतिथि को याद नहीं किया जाता. सब कहते हैं कि पंडित जी की मृत्यु को याद करना ठीक नहीं है, उस से दर्द बढ़ जाता है . उनकी मृत्यु के महीने , अप्रैल में कहीं कोई कार्यक्रम नहीं होता, कहीं कोई आयोजन नहीं होता . लेकिन सच्ची बात है कि उनके चाहने वालों को वे सबसे ज्यादा अप्रैल में ही याद आते हैं . हाँ यह भी पक्का है कि कोई किसी से कहता नहीं ,कहीं उदयन का ज़िक्र नहीं होता. डर यह रहता है कि कहीं तकलीफ बढ़ न जाए. लेकिन अप्रैल के महीने में सभी लोग उदयन शर्मा को अप्रैल में बहुत मिस करते हैं. कोई किसी से कहता नहीं .सभी लोग उदयन शर्मा को अपने तरीके से याद करते रहते हैं .
मैं भी उदयन को हर साल पूरे अप्रैल निजी तौर पर याद करता हूँ . आज तक तो मैं अपने कुछ बहुत करीबी लोगों से बता दिया करता था कि मुझे उदयन की बहुत याद आती है लेकिन आज मैंने प्रतिज्ञा कर ली है अब कभी किसी से नहीं बताऊंगा कि मुझे भी उदयन शर्मा की याद आती है . पिछले ११ वर्षों में मैं ऐसे बहुत लोगों से मिला हूँ जिनको उदयन ने पत्रकारिता सिखाई है . मुझे भी उन्होंने बहुत बुरे वक़्त में नौकरी दी थी और मुझे सम्पादकीय लिखना सिखाया था. हुआ यह कि एक दिन अचानक उन्होंने मुझसे कह दिया कि अब तुम रोज़ एक सम्पादकीय लिखा करोगे. मुझे तो लगा कि सांप सूंघ गया . कभी लिखा ही नहीं था सम्पादकीय . लेकिन पंडित जी ने मुझे एक मिनट में सिखा दिया . कहने लगे कि मेरे भाई , आप जिस तरह से किसी भी टापिक पर बात करते रहते हैं , उसी को कलमबंद कर दो , बस वही सम्पादकीय हो जाएगा. मैंने लिख दिया और जनाब हम एक दिन के अंदर सम्पादकीय लेखक बन गए . यह मेरे निजी विचार हैं . किसी को तकलीफ देने के लिए नहीं लिखे गए है और मेरे ब्लॉग पर रहेगें .
Saturday, April 7, 2012
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