Wednesday, November 18, 2009

बी जे पी में किसी भी गुट की मनमानी नहीं चलेगी

शेष नारायण सिंह

बी जे पी को एक बँटा हुआ घर कहकर नए संघ प्रमुख ने इस बात का ऐलान कर दिया है कि बी जे पी में किसी भी गुट की मनमानी नहीं चलेगी आर एस एस ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि देश में हिंदुत्व की राजनीति पर केवल उस का कण्ट्रोल है. दिल्ली में बैठे कॉकटेल सर्किट वालों की किसी भी राय का संघ के फैसलों पर कोई असर नहीं पड़ता.पिछले कई महीनों से चल रहे आतंरिक विवाद का जब कोई हल नहीं निकला तो , संघ के मुखिया , मोहन भागवत ने बाकायदा एक न्यूज़ चैनल को इंटरव्यू दिया. इस इंटरव्यू में जो कुछ उन्होंने कहा , उसका भावार्थ यह है कि बी जे पी में अब तक सक्रिय अडवाणी और राजनाथ गुटों को किनारे करने का फैसला हो चुका है. दिल्ली में सक्रिय मौजूदा बी जे पी नेताओं की ऐसी ताक़त है कि वे किसी भी नेता के सांकेतिक भाषा में दिए गए बयान को अपने हिसाब से मीडिया में व्याख्या करवा देते हैं . लगता है कि नागपुर वालों को भी इस ताक़त का अंदाज़ लग गया है. इसीलिये अबकी बार , मोहन भागवत ने हिन्दी के सबसे बड़े टी वी न्यूज़ चैनल को अपनी बात कहने के लिए चुना.. कहीं कोई शक न रह जाए इस लिए उन्होंने अडवाणी के करीबी चार बड़े नेताओं का नाम लेकर उन्हें अध्यक्ष पद की दावेदारी से बाहर कर दिया. जब अरुण जेटली,सुषमा स्वराज और वेंकैया नायडू बी जे पी संगठन से बाहर हो जायेंगें , तो एक तरह से अडवाणी की ताक़त ख़त्म हो जायेगी क्योंकि लोकसभा में पार्टी के नेता पद से अडवाणी को हटाने का फैसला पहले ही किया जा चुका है. उस फैसले को लागू करने में थोड़ी मोहलत दे दी गयी है लेकिन हिंदुत्व की राजनीति की बारीकियां समझने वाले जानते हैं कि अडवाणी के लिए अब लोकसभा में नेता बने रहना असंभव है . इसी तरह तो उनके जिन्नाह वाले भाषण के बाद अडवाणी को अध्यक्ष पद से हटाया गया था. उस वक़्त भी कुछ दिन तक दिल्ली के सत्ता के गलियारों में और मीडिया में प्लांट की गयी ख़बरों के ज़रिये फैसले को टालने की कोशिश की गयी थी लेकिन आखिर में जाना ही पड़ा था. इस बार भी मामला लेट लतीफ़ तो हो सकता है लेकिन अडवाणी और राजनाथ के ख़ास बन्दों के कब्जे से संघ के आला नेता अपनी पार्टी को निकाल लेने का मन बना चुके हैं . यह भी एक सच है कि दिल्ली में जमे हुए अमीर-उमरा आसानी से सत्ता नहीं छोड़ते लेकिन नागपुर की ताक़त को भी कम करके नहीं आँका जा सकता . नागपुर को भी मालूम है कि दिल्ली वाले पूरी कोशिश करेंगें लेकिन आर एस एस का काम भी पूरी प्लानिंग के साथ होता है . १९९८ में सत्ता में आने के बाद जिस तरह से बी जे पी के नेताओं और मंत्रियों ने कांग्रेसियों की तरह घूस और बे-ईमान्री का आचरण शुरू किया था , उस से आर एस एस के नेताओं को बहुत निराशा हुई थी. उसी दौर में उन्होंने अपने सबसे काबिल संगठनकर्ता , गोविन्दाचार्य को बी जे पी से अलग कर दिया था और उन्हें बी जे पी का विकल्प तलाशने और राजनीतिक हस्तक्षेप की अन्य संभावनाओं को तलाशने का काम सौंप दिया था.. राष्ट्र निर्माण जैसे नारों के साथ गोविन्दाचार्य तभी से इस काम में जुटे हुए हैं. उनकी कोशिश है कि आर एस एस के बाहर से भी लोगों को लाकर जोड़ा जाए. देश के ज़्यादातर गांधीवादी संगठनों पर आर एस एस का कब्जा हो ही चुका है . कोशिश की जा रही है कि हिंद स्वराज जैसी गाँधी की विरासत की निशानियों की भी हिन्दुत्ववादी व्याख्या कर ली जाये और जल्द से जल्द बी जे पी का विकल्प तैयार कर लिया जाए. अभी तक के एप्रगति को देखन इसे लगता है कि उसमें अभी कुछ और टाइम लगेगा. शायद इसीलिये संघ ने फैसला किया है कि तब तक दिल्ली में जमे हुए नेताओं के कब्जे से बाहर लाकर अपनी राजनीतिक शाखा को अपने ख़ास बन्दों के हवाले कर दिया आये. जिस से अगर बहुत ज़रूरी न हो तो नयी पार्टी बनाने की झंझट से बचा जा सके.

महाराष्ट्र के बी जे पी अध्यक्ष , नितिन गडकरी की ताजपोशी की तैयारी, शायद इसी योजना का हिस्सा है . नितिन गडकरी एक कुशाग्रबुद्धि इंसान हैं . पेशे से इंजीनियर , नितिन गडकरी ने मुंबई वालों को बहुत ही राहत दी थी जब पी डब्ल्यू डी मंत्री के रूप में शहर में बहुत सारे काम किये थे. वे नागपुर के हैं और वर्तमान संघ प्रमुख के ख़ास बन्दे के रूप में उनकी पहचान होती. है.उनके खिलाफ स्थापित सत्ता वालों का जो अभियान चल रहा है उसमें यह कहा जा रहा है कि उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कोई काम नहीं किया है. जो लोग यह कुतर्क चला रहे हैं उनको भी मालूम है कि यह बात चलने वाली नहीं है. मुंबई जैसे नगर में जहां दुनिया भर की गतिविधियाँ चलती रहती हैं , वहां नितिन गडकरी की इज्ज़त है, वे राज्य में मंत्री रह चुके हैं , उनके पीछे आर एस एस का पूरा संगठन खडा है तो उनकी सफलता की संभावनाएं अपने आप बढ़ जाती हैं . और इस बात को तो हमेशा के लिए दफन कर दिया जाना चाहिए कि दिल्ली में ही राष्ट्रीय अनुभव होते हैं . मुंबई, बेंगलुरु , हैदराबाद आदि शहरों में भी राष्ट्रीय अनुभव हो सकते हैं . बहरहाल अब लग रहा है कि नितिन गडकरी ही बी जे पी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जायेंगें और दिल्ली में रहने वाले नेताओं को एक बार फिर एक प्रादेशिक नेता के मातहत काम करने को मजबूर होना पड़ेगा . राजंथ सिंह की तैनाती के बाद भी दिल्ली वाली जमात को इसी दौर से गुज़रना पड़ा था. .. यह बात भी सच है कि दिल्ली वाले नेता नागपुर की मनमानी को आसानी से मानने वाले नहीं है ..अडवाणी गुट की एक प्रमुख नेता, सुषमा स्वराज ने बयान दिया है कि अडवाणी से पांच साल के लिए लोक सभा में बी जे पी के नेता चुने गए हैं और वे अपना कार्यकाल पूरा करेंगें . राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि इस बयान में बगावत की बू आ रही है . हो सकता है सच भी हो लेकिन हिंदुत्व की राजनीति में बड़े बड़े लोगों की बगावत को कुचल दिया गया है. सुषमा स्वराज की बी जे पी में रहते हुए, संघ के खिलाफ झंडा बुलंद करने की वैसे भी हैसियत नहीं है क्योंकि वे मूल रूप से समाजवादी राजनीति के रास्ते सत्ता की राजनीति में आई हैं . जिस उम्र में लोग संघ की राजनीति में शामिल होते हैं उस दौर में वे अम्बाला में रह कर आर एस एस को एक फासिस्ट संगठन कहती थीं. बाद में जनता पार्टी बनने पर मंत्री बनीं और जब बी जे पी वाले जनता पार्टी से अलग हुए तो हिन्दुत्ववादी बनीं. इसलिए संघ की राजनीति में उनकी पोजीशन दूसरे स्तर की है. इस लिए अब इस बात में कोई शक नहीं है कि हिन्दुत्व की राजनीति इस देश में करवट ले रही है और आने वाले कुछ महीनों में हिन्दुत्ववादी ताक़तें रिग्रुप होने जा रही हैं .

सचिन की हैसियत के मुकाबले में बाल ठाकरे की औकात

शेष नारायण सिंह

भोजपुरी अभिनेता और गायक मनोज तिवारी के घर पर कुछ गुंडा टाइप लोगों ने हमला कर दिया और तोड़ फोड़ की. मनोज वहां थे नहीं वरना उनको भी नुक्सान पंहुंच सकता था. . जो लोग आये थे उन्होंने अपनी कोई पहचान तो नहीं बतायी लेकिन कहा कि शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने जब क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर को फटकार लगाई तो उस पर अपनी प्रतिक्रिया देकर मनोज तिवारी ने शिवसेना के मुखिया को नाराज़ कर दिया है. यह मुखिया महोदय सचिन तेंदुलकर से भी नाराज़ हैं क्योंकि उसने कहीं कह दिया था कि उन्हें भारतीय होने पर गर्व है..अब सचिन ने क्या गलत बात कह दी कि बाल ठाकरे नाराज़ हो गए. कमज़ोर लोगों को हड़का कर ही बाल ठाकरे ने अपनी राजनीतिक खेती की है. उन इस गुण को उनके बेटे तो नहीं अपना पाए लेकिन उनके भतीजे राज ठाकरे में वे सारे गुण विद्यमान हैं . वे भी अपने स्वनामधन्य चाचा की तरह ही मुंबई में आकर रोटी कमाने वालों को धमकाते रहते हैं . और पिछले चुनाव में उनकी हैसियत बढ़ गयी जबकि बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे बेचारे पिछड़ गए. .. सचिन तेंदुलकर को नसीहत देने वाला बाल ठाकरे का सम्पादकीय उसी लुम्पन राजनीति के खोये हुए स्पेस को फिर से हासिल करने की कोशिश है . लेकिन लगता है कि इस बार दांव उल्टा पड़ गया है . बाल ठाकरे के बयान पर पूरे देश में नाराज़गी व्यक्त की जा रही है. हालांकि इस बात की ठाकरे ब्रांड राजनीति करने वालों को कभी कोई परवाह नहीं रही लेकिन अब शिव सेना की सहयोगी पार्टी बी जे पी ने भी सार्वजनिक रूप से सचिन तेंदुलकर को सही ठहरा कर बाल ठाकरे को बता दिया है कि किसी भी राजनीतिक पार्टी के बर्दाश्त की भीएक हद होतीहै. और बी जे पी के लिए ठाकरे की हर बात को सही कहना संभव नहीं होगा. बी जे पी का बयान किसी प्रवक्ता टाइप आदमी ने नहीं दिया है . पार्टी की तरफ से उनके सबसे गंभीर और प्रभावशाली नेता , अरुण जेटली ने बयान दिया है. अरुण जेटली कोई प्रकाश जावडेकर या रवि शंकर प्रसाद तो हैं नहीं कि उनके बयान को कोई बड़ा नेता खारिज कर देगा . इसलिए अब यह शिव सेना को तय करना है कि मराठी मानूस की अहंकार पूर्ण नीति चलानी है कि सही तरीके से राजनीतिक आचरण करना है . अरुण जेटली के बयान का साफ़ मतलब है कि बी जे पी अब शिवसेना के उन कारनामों से अपने को अलग कर लेगी जो देशवासियों में नफरत फैलाने की दिशा में काम कर सकते होंगें..

सचिन तेंदुलकर को मराठी मानूस वाले खांचे में फिट करने की कोशिश करके बाल ठाकरे ने जहां राष्ट्रीय एकता का अपमान किया है वहीं सचिन को भी नुक्सान पहुचाने की कोशिश की है .सचिन तेंदुलकर आज एक विश्व स्तर के व्यक्ति हैं . पूरे भारत में उनके प्रसंशक हैं . जगह जगह उनके फैन क्लब बने हुए हैं. पूरे देश की कंपनियों से उन्हें धन मिलता है क्योंकि वे उनके विज्ञापनों में देखे जाते हैं . . इस तरह के व्यक्ति को अपने पिंजड़े में बंद करने की बाल ठाकरे की कोशिश की चारों तरफ निंदा हो रही है. विधान सभा चुनावों में राज ठाकरे की मराठी शेखी की मदद कर रही , कांग्रेस पार्टी ने भी बाल ठाकरे की बात का बुरा माना है .महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, अशोक चह्वाण ने भी बाल ठाकरे को उनके गैर ज़िम्मेदार बयान के लिए फटकार लगाई है. . लगता है कि शिव सेना के बूढ़े नेता से नौजवानों के हीरो सचिन तेंदुलकर की अपील के तत्व को समझने में गलती हो गयी क्योंकि अगर कहीं सचिन तेंदुलकर ने अपनी नाराज़गी को ज़ाहिर कर दिया तो शिव सेना का बचा खुचा जनाधार भी भस्म हो जाएगा. पता नहीं बाल ठाकरे को क्यों नहीं सूझ रहा है कि सचिन तेंदुलकर की हैसियत बहुत बड़ी है और किसी बाल ठाकरे की औकात नहीं है कि उसे नुक्सान पंहुचा सके. हाँ अगर सचिन की लोकप्रियता की चट्टान के सामने आकर उसमें सर मारने की कोशिश की तो बाल ठाकरे का कुनबा मराठी समाज के राडार से हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएगा. क्योंकि जिंदा कौमें अपने हीरो का अपमान करने वालों को कभी माफ़ नहीं करतीं.
सचिन से पंगा लेना बाल ठाकरे को महंगा पड़ेगा इसमें कोई शक नहीं है लेकिन जब तक समय की गति के साथ यह बात ठाकरे के लोगों को पता चलेगी तब तक अपने आका के हुक्म से काम करने वाले शिव सेना के लुम्पन भाई लोग कम से कम मुंबई में अपनी ताक़त का जलवा दिखाने से बाज़ नहीं आयेंगें. . इसका मतलब यह हुआ कि मुंबई एक बार फिर बदमाशी की राजनीति का शिकार होने वाली है. . महानगर के सभ्य समाज को अभी वे दिन नहीं भूले हैं जब राज ठाकरे ने बिहार से आये लोगों को कल्याण स्टेशन पर पिटवाया था, या उत्तर भारत के टैक्सी वालों को नुक्सान पहुचाया था. दुर्भाग्य की बात यह है कि महाराष्ट्र की सरकारें ठाकरे परिवार की राजनीतिक गुंडागर्दी को बर्दाश्त करती हैं , कभी कभी तो बढ़ावा भी देती हैं . ऐसा शायद इस लिए होता रहा है कि हर बार ठाकरे छाप बदमाशी गरीब उत्तर भारतियों या दक्षिण भारतीयों को निशाना बनाती थी लेकिन इस बार तो ठाकरे ने मराठी गौरव के प्रतीक सचिन तेंदुलकर को ही अपनी नफरत की राजनीति के घेरे में ले लिया है . बाल ठाकरे के इस कारनामें को समझने के लिये अगर क्रिकेट की शब्दावली का प्रयोग करें तो इसे लूज़ बाल कहा जाएगा. सबको मालूम है कि जब लूज़ बाल आती है तो छक्का पड़ जाता है . सभ्य समाज को चाहिए कि महाराष्ट्र सरकार पर दबाव बनाए कि वह बाल ठाकरे के इस लूज़ बाल पर छाका मारे और उसे पकड़ कर जेल में बंद कर दे. बाल ठाकरे की नफरत की राजनीति पर लगाम लगाने के लिए यह एक अच्छा अवसर है