Monday, September 26, 2011

मीडियाकर्मी को न्याय के निजाम की स्थापना के लिए काम करना चाहिए

शेष नारायण सिंह

नई दिल्ली,२४ सितम्बर. सुप्रीम कोर्ट की जज ,न्यायमूर्ति श्रीमती ज्ञान सुधा मिश्रा ने कहा है कि मीडिया में काम करने वालों अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुनकर ही काम करना चाहिए . उन्होंने ख़ास तौर से टेलिविज़न वालों को संबोधित करते हुए कहा कि मीडियाकर्मी भी एक तरह के जज हैं , जो भी विषय उनके सामने आता है ,वे उस पर एक तरह से फैसला ही देते हैं . वे लोगों का क्रास एग्जामिनेशन करते हैं और उनके काम का असर देश काल पर पड़ता है . मीडियाकर्मी को ध्यान रखना चाहिए कि उनका भी एक मुख्य न्यायाधीश होता है जो उनकी आत्मा के अंदर बैठा रहता है . ज़रूरी यह है कि मीडिया में काम करने वाले अपने उस मुख्य न्यायाधीश की बात सुनें और चैनल के मालिक के व्यापारिक हितों के प्रभाव में आकर काम न करें .क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो वे मीडियाकर्मी के पवित्र काम से विचलित हो जायेगें और अपने मालिक के व्यापारिक हितों के साधक के रूप में काम करते पाए जायेगें जो कि उनके लिए निश्चित रूप से ठीक नहीं होगा

नई दिल्ली में गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा की जन्मशती के अवसर पर आयोजित एक गोष्ठी में जस्टिस श्रीमती ज्ञानसुधा मिश्रा ने इस बात पर दुःख व्यक्त किया किया कि समाज में बहुत सारी रूढ़ियाँ और कुरीतियाँ व्याप्त हैं . समाज के कई क्षेत्रों में बहुत सारी बुराइयां हैं . उन बुराइयों को ख़त्म करने की ज़रूरत है लेकिन यह काम कानून के सहारे नहीं किया जा सकता . उसके लिए ज़रूरी है व्यक्ति की मानसिकता में बदलाव आये . अगर व्यक्ति बदलेगा ,तो समाज भी बदल जाएगा. समाज में बदलाव आने के बाद जो भी कानून बनेगा वह आसानी से लागू किया जा सकेगा. जस्टिस मिश्रा ने कहा कि इसके लिए समाज में विचार क्रान्ति की ज़रुरत है . उन्होंने भरोसा जताया कि विचार क्रान्ति के ज़रिये बहुत सारी समस्याओं का शान्तिपूर्ण और सकारात्मक हल निकाला जा सकता है . विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा के विचार क्रान्ति के दर्शन की उन्होंने तारीफ़ की और कहा कि इस विचार क्रान्ति के दर्शन से बहुत कुछ बदला जा सकता है और समाज में चौतरफा शांति का निजाम कायम किया जा सकता है .अगर समाज की मासिकता शुद्ध नहीं है तो कानून बनने के बाद भी हालात सुधरने की गारंटी नहीं की जा सकती . उन्होंने कन्या भ्रूण की हत्या के हवाले से अपनी बात समझाने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि उनकी नानी -दादी बताया करती थीं कि उनके बचपन में उनके इलाके में कुछ लोगों के घर अगर बच्ची पैदा हो जाती थी तो उसे पैदा होते ही नमक चटाकर मार डालते थे. आज विज्ञान तरक्की कर गया है ,अल्ट्रासाउंड के ज़रिये लोग पता लगा लेते हैं कि गर्भ में बेटी है कि बेटा. विज्ञान की इतनी तरक्की हो जाने के बाद भी आज ऐसे बहुत सारे केस मालूम हैं जहां बच्ची को गर्भ में आते ही मार डाला जाता है . इस तरह के काम के खिलाफ बहुत ही मज़बूत कानून है लेकिन जब तक व्यक्ति के विचार में शुद्धता नहीं आयेगी , वैज्ञानिक और कानूनी प्रगति के बाद भी न्याय का निजाम नहीं कायम हो सकेगा और समाज में पीड़ा व्याप्त रहेगी. गायत्री परिवार के संस्थापक के काम की उन्होंने प्रशंसा की और कहा कि यह खुशी की बात है कि उनके उत्तराधिकारी डॉ प्रणव पंड्या ने आचार्य श्रीराम शर्मा के विचार क्रान्ति वाले दर्शन को सामाजिक परिवर्तन के एक निमित्त के रूप में अपनाया और समाज में शुचिता का माहौल बनाने में अपने संगठन का योगदान दे रहे हैं . इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश , जस्टिस आर सी लाहोटी ने विश्व गायत्री परिवार के वर्तमान प्रमुख डॉ प्रणव पंड्या से अपने करीबी संबंधों का उल्लेख किया और बताया कि आचार्य श्रीराम शर्मा ने आज की समस्याओं का अपनी किताबों में बाकायदा हल सुझा दिया था . उन्होंने विश्व गायत्री परिवार के कार्यक्रमों की तारीफ़ की और कहा कि भारतीय संस्कृति में ऐसे तत्व मौजूद हैं जो हमारी मौजूदा समस्याओं का हल निकाल सकते हैं . हमें ज्ञान के प्रकाश के ज़रिये अज्ञान और निराशा के अँधेरे के ऊपर विजय पाने की कोशिश करनी चाहिए . अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ प्रणव पंड्या ने इस अवसर पर बताया कि पूरी दुनिया में उनके संगठन के करीब दस करोड़ लोग सक्रिय है जो भारतीय वैदिक मूल्यों के सहारे अपने विचार परिवर्तन करके समाज में परिवर्तन लाने की कोशिश कर रहे हैं . उन्होंने बताया कि कोशिश की जा रही है कि सभी समस्याओं का हल सबसे पहले व्यक्ति खुद अपने अंदर परिवर्तन करके निकालने के लिए उपाय करे. अगर ऐसा हो सका तो सारे समाज में परिवर्तन आ जाएगा.