एक क्रांति ऐसी भी
पारुल अग्रवाल
बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
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बीबीसी की खास पेशकश सिटीज़न रिपोर्ट एक कोशिश है, समाज में बदलाव के लिए संघर्ष कर रहे लोगों की कहानियां देश-दुनिया तक पहुंचाने की. ये वो लोग हैं जो दूसरों के लिए बदलाव की मिसाल बन गए हैं.
पेश है सिटीज़न रिपोर्टर आदित्य कुमार की ज़ुबानी उनकी अपनी कहानी.
'' मेरा नाम आदित्य कुमार है और मैं लखनऊ का रहने वाला हूं. भारत में अंग्रेज़ी को ऊँचे तबक़े की भाषा माना जाता है लेकिन नौकरियों में बढ़ती ज़रुरत के चलते मैने अंग्रेज़ी को आम आदमी तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया है.
अपने इस सफ़र में मैंने अपना हमसफ़र बनाया आम आदमी की सवारी साईकिल को.
15 साल पहले मैं रोज़ी-रोटी की तलाश में फ़र्रुख़ाबाद से लखनऊ आया और यहाँ आकर ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया.
शहर के हालत देख कर मुझे लगा कि अंग्रेज़ी भाषा सीखे बिना कम आमदनी वाले परिवारों के बच्चे तरक्की नहीं कर सकते.
'ऑनरोड अंग्रेज़ी शिक्षक'
सड़क पर क्लास लगाने का सिलसिला यहीं से शुरू हुआ जो पिछले तीन साल से लगातार चल रहा है. अंग्रेज़ी सीखने की चाह रखने वाले बच्चों और नौजवानों को मैं नि: शुल्क पढ़ाता हूं.ऐसे में इन बच्चों तक पहुँचने के लिए मैंने साइकिल से लखनऊ की सड़कों और गलियों की ख़ाक छाननी शुरू कर दी.
यहां तक कि लोग मुझे अब 'निर्धनों का शिक्षक', 'साइकिल टीचर' और 'ऑनरोड अंग्रेज़ी शिक्षक' तक कहने लगे हैं.
ऐसी ही क्लास का हिस्सा बने अनूप कुमार कहते हैं, ''मैं आदित्य सर की नि: शुल्क कक्षा में पढ़ने जाता हूं. पैसे की तंगी के चलते मेरे लिए अंग्रेज़ी सीखना संभव न था लेकिन उनकी बदौलत आज मैं अंग्रेज़ी समढ पाता हूं और बात कर पाता हूं.''
'पिछड़ी जातियों का उद्धार'
फ़िलहाल मैं अपनी क्लास चौराहों और नुक्कडों पर चलाता हूँ लेकिन मेरी कोशिश है की मैं ज़्यादा से ज़्यादा इलाकों और झुग्गी झोपड़ियों तक पहुँच सकूं.
अंग्रेज़ी सिखाने के लिए मैंने ख़ास तरह का पाठ्यक्रम भी तैयार किया है.
कभी-कभी रोड पर क्लास लेने के कारण मुझे परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है. इसलिए में अपना वीडियो कैमरा भी साथ रखता हूँ ताकि जो भी मेरी क्लास में शामिल हैं उनका रिकॉर्ड रख सकूं.
मेरा मानना है की पिछड़ी जातियों का उद्धार पढ़ने-लिखने और अंग्रेज़ी की जानकारी से ही हो सकता है. मेरा लक्ष्य बस यही है की एक दलित होने के नाते जो परेशानियां मैंने झेलीं उनका सामना किसी और को ना करना पड़े.'
( बी बी सी हिन्दी डाट काम से साभार )
Sunday, July 3, 2011
हर भ्रष्ट नेता मज़बूत लोकपाल के खिलाफ है
शेष नारायण सिंह
लोकपाल के मुद्दे पर सभी पार्टियां घिरती नज़र आ रही हैं. यह दुनिया जानती है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी भ्रष्टाचार को जड़ से ख़त्म कर देने के पक्ष में नहीं है . भ्रष्टाचार की कमाई से ही तो पार्टियों का खर्चा चलता है ,उसी से नेताओं की दाल रोटी का बंदोबस्त होता है . यह अलग बात है कि भ्रष्टाचार के नाम पर अन्य पार्टियों को घेरने की बात सभी करते रहते हैं .कांग्रेस ने साफ़ ऐलान कर ही दिया है कि वह प्रधानमंत्री को लोकपाल की जांच के दायरे में नहीं लाना चाहती. बीजेपी की कोशिश थी कि वह इसी मुद्दे पर प्रधानमंत्री को भ्रष्ट साबित करने की अपनी योजना को आगे बढाती लेकिन बीजेपी का दुर्भाग्य है कि उसकी पार्टी में मौजूद गुणी जनों की तरह कांग्रेस में भी कुछ उस्ताद मौजूद हैं जो बीजेपी को घेरने की योजना पर ही दिन रात काम करते हैं . लोकपाल के मामले में ताज़ा खेल बीजेपी की पोल खोलता नज़र आता है .कांग्रेस ने सर्भी पार्टियों की बैठक बुलाकर लोकपाल के मसौदे पर चर्चा करने की योजना बना दी जिसमें प्रधानमंत्री समेत सभी मुख्यमंत्रियों को लोकपाल की जांच के दायरे में लाने पर चर्चा की बात है. ज़ाहिर है कि बीजेपी सभी मुख्यमंत्रियों को लोकपाल के दायरे में नहीं ला सकती. अगर कहीं बीजेपी ने तय किया कि वह रणनीतिक कारणों से ही कुछ वक़्त के लिए मुख्यमंत्री को लोकपाल में लाने के बारे में सोच सकती है तो उनके मुख्यमंत्री नाराज़ हो जायेगें . इसका सीधा भावार्थ यह हुआ कि उनकी पार्टी टूट जायेगी. बी एस येदुरप्पा कभी नहीं मानेगें कि उनके भ्रष्टाचार की जांच किसी ऐसी एजेंसी से कराई जाय जो उनके अधीन न हो .बीजेपी के दिल्ली में रहने वाले सभी नेता जानते हैं कि बी एस येदुरप्पा की नज़र में दिल्ले में केवल अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और राजनाथ सिंह बड़े नेता हैं .बाकी राष्ट्रीय नेताओं को वे बहुत मामूली नेता मानते हैं . उन्हें यह भी मालूम है कि कर्नाटक में बीजेपी की ताक़त बी एस येदुरप्पा की निजी ताक़त है . अगर वे पार्टी से अलग हो जाएँ तो राज्य में बीजेपी शून्य हो जायेगी. इसीलिये बीजेपी वाले पिछले कई दिनों से अपने प्रवक्ताओं के मुंह से कहलवा रहे हैं कि पहले सरकार यह बताये कि वह क्या चाहती है . पार्टी की मंशा यह लगती है कि अगर कांग्रेस ने कोई पोजीशन ले ली तो उसी की धज्ज़ियां उड़ाकर सर्वदलीय बैठक के संकट से बच जायेगें लेकिन कांग्रेस उनको यह अवसर नहीं दे रही है. बीजेपी ने इस संकट से बचने के लिए ही तय किया था कि वह सर्वदलीय बैठक का बहिष्कार करेगी लेकिन नीतीश कुमार और प्रकाश सिंह बादल ने दबाव डालकर ऐसा नहीं करने दिया . पता नहीं क्यों मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थकविहीन नेता, प्रकाश करात बीजेपी के सुर में सुर मिला रहे हैं .वे भी कह रहे हैं कि उन्हें भी सरकारी ड्राफ्ट चाहिए . खैर उनकी तो कोई औकात नहीं है लेकिन बीजेपी बुरी तरह से फंस गयी है . मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री को बाहर रखने की उनकी नीति जब बहस के दायरे में आयेगी तो देश को पता लग जाएगा कि बीजेपी वाले भी कांग्रेस की तरह की भ्रष्ट हैं . इसलिए लोकपाल की संस्था को बहुत ही कमज़ोर कर देने के बारे में देश की दोनों की बड़ी पार्टियों में लगभग एक राय है लेकिन एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए दोनों की पार्टियों के वे प्रवक्ता , जो टी वी की कृपा से नेता बने हुए हैं,कुछ ऐसी बातें करते रहते हैं जिसका उनकी पार्टी को राजनीतिक फायदा होता है . उनका दुर्भाग्य यह है कि जिस टी वी ने उन्हें नेता बनाया है ,वही टी वी और मीडिया देश की जनता को भी सही खबर देता रहता है . अभी पंद्रह साल पहले एक ऐसा मामला आया था जिसमें सभी पार्टियों के नेता फंसे थे .जैन हवाला काण्ड के नाम से कुख्यात इस केस में कांग्रेस, बीजेपी , लोकदल, जनता दल सभी पार्टियों के बड़े नेता एक कश्मीरी संदिग्ध संगठन से रिश्वत लेने के आरोप में जांच के घेरे में आये थे लेकिन सब ने मिलजुल कर मामले को दफना दिया था . लगता है कि लोकपाल बिल के साथ भी वही करने की योजना इन नेताओं की है . लेकिन इस बार यह काम इतना आसान नहीं होगा . यह संभव है कि समाचार देने वाले बड़े संगठनों के कुछ मालिकों को यह नेता लोग अरदब में लेने में सफल हो जाएँ लेकिन वैकल्पिक मीडिया सबकी पोल खोलने की ताक़त रखता है और वह खोल भी देगा. देश की जनता को उम्मीद है कि एक ऐसा लोकपाल कानून बने जिसके बाद भ्रष्टाचार को लगाम देने का काम शुरू किया जा सके.
लोकपाल के मुद्दे पर सभी पार्टियां घिरती नज़र आ रही हैं. यह दुनिया जानती है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी भ्रष्टाचार को जड़ से ख़त्म कर देने के पक्ष में नहीं है . भ्रष्टाचार की कमाई से ही तो पार्टियों का खर्चा चलता है ,उसी से नेताओं की दाल रोटी का बंदोबस्त होता है . यह अलग बात है कि भ्रष्टाचार के नाम पर अन्य पार्टियों को घेरने की बात सभी करते रहते हैं .कांग्रेस ने साफ़ ऐलान कर ही दिया है कि वह प्रधानमंत्री को लोकपाल की जांच के दायरे में नहीं लाना चाहती. बीजेपी की कोशिश थी कि वह इसी मुद्दे पर प्रधानमंत्री को भ्रष्ट साबित करने की अपनी योजना को आगे बढाती लेकिन बीजेपी का दुर्भाग्य है कि उसकी पार्टी में मौजूद गुणी जनों की तरह कांग्रेस में भी कुछ उस्ताद मौजूद हैं जो बीजेपी को घेरने की योजना पर ही दिन रात काम करते हैं . लोकपाल के मामले में ताज़ा खेल बीजेपी की पोल खोलता नज़र आता है .कांग्रेस ने सर्भी पार्टियों की बैठक बुलाकर लोकपाल के मसौदे पर चर्चा करने की योजना बना दी जिसमें प्रधानमंत्री समेत सभी मुख्यमंत्रियों को लोकपाल की जांच के दायरे में लाने पर चर्चा की बात है. ज़ाहिर है कि बीजेपी सभी मुख्यमंत्रियों को लोकपाल के दायरे में नहीं ला सकती. अगर कहीं बीजेपी ने तय किया कि वह रणनीतिक कारणों से ही कुछ वक़्त के लिए मुख्यमंत्री को लोकपाल में लाने के बारे में सोच सकती है तो उनके मुख्यमंत्री नाराज़ हो जायेगें . इसका सीधा भावार्थ यह हुआ कि उनकी पार्टी टूट जायेगी. बी एस येदुरप्पा कभी नहीं मानेगें कि उनके भ्रष्टाचार की जांच किसी ऐसी एजेंसी से कराई जाय जो उनके अधीन न हो .बीजेपी के दिल्ली में रहने वाले सभी नेता जानते हैं कि बी एस येदुरप्पा की नज़र में दिल्ले में केवल अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और राजनाथ सिंह बड़े नेता हैं .बाकी राष्ट्रीय नेताओं को वे बहुत मामूली नेता मानते हैं . उन्हें यह भी मालूम है कि कर्नाटक में बीजेपी की ताक़त बी एस येदुरप्पा की निजी ताक़त है . अगर वे पार्टी से अलग हो जाएँ तो राज्य में बीजेपी शून्य हो जायेगी. इसीलिये बीजेपी वाले पिछले कई दिनों से अपने प्रवक्ताओं के मुंह से कहलवा रहे हैं कि पहले सरकार यह बताये कि वह क्या चाहती है . पार्टी की मंशा यह लगती है कि अगर कांग्रेस ने कोई पोजीशन ले ली तो उसी की धज्ज़ियां उड़ाकर सर्वदलीय बैठक के संकट से बच जायेगें लेकिन कांग्रेस उनको यह अवसर नहीं दे रही है. बीजेपी ने इस संकट से बचने के लिए ही तय किया था कि वह सर्वदलीय बैठक का बहिष्कार करेगी लेकिन नीतीश कुमार और प्रकाश सिंह बादल ने दबाव डालकर ऐसा नहीं करने दिया . पता नहीं क्यों मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थकविहीन नेता, प्रकाश करात बीजेपी के सुर में सुर मिला रहे हैं .वे भी कह रहे हैं कि उन्हें भी सरकारी ड्राफ्ट चाहिए . खैर उनकी तो कोई औकात नहीं है लेकिन बीजेपी बुरी तरह से फंस गयी है . मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री को बाहर रखने की उनकी नीति जब बहस के दायरे में आयेगी तो देश को पता लग जाएगा कि बीजेपी वाले भी कांग्रेस की तरह की भ्रष्ट हैं . इसलिए लोकपाल की संस्था को बहुत ही कमज़ोर कर देने के बारे में देश की दोनों की बड़ी पार्टियों में लगभग एक राय है लेकिन एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए दोनों की पार्टियों के वे प्रवक्ता , जो टी वी की कृपा से नेता बने हुए हैं,कुछ ऐसी बातें करते रहते हैं जिसका उनकी पार्टी को राजनीतिक फायदा होता है . उनका दुर्भाग्य यह है कि जिस टी वी ने उन्हें नेता बनाया है ,वही टी वी और मीडिया देश की जनता को भी सही खबर देता रहता है . अभी पंद्रह साल पहले एक ऐसा मामला आया था जिसमें सभी पार्टियों के नेता फंसे थे .जैन हवाला काण्ड के नाम से कुख्यात इस केस में कांग्रेस, बीजेपी , लोकदल, जनता दल सभी पार्टियों के बड़े नेता एक कश्मीरी संदिग्ध संगठन से रिश्वत लेने के आरोप में जांच के घेरे में आये थे लेकिन सब ने मिलजुल कर मामले को दफना दिया था . लगता है कि लोकपाल बिल के साथ भी वही करने की योजना इन नेताओं की है . लेकिन इस बार यह काम इतना आसान नहीं होगा . यह संभव है कि समाचार देने वाले बड़े संगठनों के कुछ मालिकों को यह नेता लोग अरदब में लेने में सफल हो जाएँ लेकिन वैकल्पिक मीडिया सबकी पोल खोलने की ताक़त रखता है और वह खोल भी देगा. देश की जनता को उम्मीद है कि एक ऐसा लोकपाल कानून बने जिसके बाद भ्रष्टाचार को लगाम देने का काम शुरू किया जा सके.
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