शेष नारायण सिंह
किसी को उम्मीद नहीं थी कि इस हफ्ते हुई बात चीत के बाद कोई बहुत बड़ा फैसला हो जाएगा . क्योंकि दोनों ही देशों के बीच तल्खियां इतनी ज़्यादा हैं कि अपनी घोषित नीति से आगे कोई भी बढ़ने को तैयार नहीं है . अगर एक पक्ष ज़रा सा भी रियायत देता नज़र आयेगा तो उसके देश के धार्मिक कट्टरपंथी उस सरकार का जीना दूभर कर देगें . इसलिए कूटनीतिक बातचीत का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि अगली बातचीत के लिए कार्यक्रम तय हो जाता है . इस बार भी वही हुआ. दोनों विदेश मंत्रियों ने तय किया कि बातचीत का सिलसिला आगे भी जारी रखा जाएगा. हर बार की तरह इस बार भी दोनों ही पक्षों ने उम्मीद जताई कि आगे की बातचीत से सकारात्मक नतीजे निकलेगें . . हर बार की तरह इस बार भी भरोसा पैदा करने वाले तरीकों यानी सी बी एम को जारी रखने की बात की गयी. .इसके पहले की बैठक में तय किया गया था कि परमाणु हथियारों के बारे में भी भरोसा पैदा करने वाले तरीकों पर काम किया जाएगा. इस बार की बैठक में उन पर अब तक की प्रगति का लेखा जोखा लिया गया. परमाणु मुद्दे पर गंभीर चर्चा हुई और तय किया गया कि इस दिशा में बातचीत को आगे बढाने के लिए विशेषज्ञों की समिति बनायी जायेगी. वही समिति यह सुझाव देगी कि और क्या किया जाए जिस से इस महत्वपूर्ण समस्या पर विचारों का आदान प्रदान नियमित रूप से होता रहे और कूटनीतिक माहौल बनाया जा सके. विदेश सचिवों ने इस बात पर जोर दिया कि दोनों ही देशों के सामने आतंक का ख़तरा बना हुआ है . लेकिन आतंक के बारे में कोई ख़ास क़दम नहीं उठाया जा सका और कूटनीतिक भाषा के जाल में ही सारी बात फंस कर रह गयी. दोनों ही देशों में आतंक से लड़ने के अपने संकल्प को हर बार की तरह फिर से दोहराया और कहा कि हर तरह के आतंक को खत्म करने के लिए प्रभावशाली क़दम उठाये जायेगें.जम्मू-कश्मीर पर भी बात की गयी लेकिन हर बार की तरह किसी भी मुद्दे पर समझौता नहीं हुआ. सही बात यह है कि जम्मू-कश्मीर का मामला इतना पेचीदा हो गया है कि अब दोनों देशों की किसी सरकार की हैसियत नहीं है कि उस पर कोई समझौता कर सके. इस बात चीत में भी यही हुआ . दोनों ही देशों के आला अफसर इस बात पर सहमत हो गए कि जम्मू-कश्मीर के बारे में आगे भी बात चीत की जायेगी और शान्ति पूर्ण तरीकों से समस्या का हल निकाला जाएगा. यह भी तय किया गया कि आने वाले दिनों में कुछ ऐसा किया जाये़या जिसके बाद कश्मीर के बारे में दोनों देशों के मतभेद कम किये जा सकें. जानकार बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर के बारे में इस से ज्यादा कोई सहमति पैदा कर सकना फिलहाल असंभव है .
नियंत्रण रेखा के रास्ते सीमा पार के व्यापार को बढ़ावा देने के बारे में भी बातचीत हुई और तय पाया गया कि इस दिशा में क़दम उठाये जा सकते हैं . इस काम के लिए सम्बंधित अफसरों की बैठक भी इसी साल १९ जुलाई को करने का फैसला कर लिया गया . इस रास्ते व्यापार और लोगों की यात्रा ऐसे मुद्दे हैं जिन पर दोनों ही देशों एक बीच अधिकतम सहमति है . ज़ाहिर है कि आने वाले दिनों में भी इस दिशा में कुछ अहम ऐलान हो सकते हैं .दोनों देशों के मीडियाकर्मियों , पत्रकारों और खिलाड़ियों आवाजाही को भी प्रोत्साहित करने का फैसला किया गया है. दोनों देशों की जनता के बीच आवाजाही को बढ़ावा देने के फैसला भी किया गया . मुझे लगता है यह एक ऐसा फैसला है जिसके बाद भारत और पाकिस्तान की सरकारों पर इस बात का दबाव बढेगा कि वे दुश्मनी को कम करें. दोनों ही देशों की जनता जब दोस्ती के लिए तैयार होगी तो दुश्मनी की तिजारत करने वालों के लिए बहुत ही मुश्किल हो जायेगी. दोनों ही विदेश सचिव जल्दी ही इस्लामाबाद में मिलेगें जहां सितम्बर में प्रस्तावित विदेश मंत्रियों की मुलाक़ात की तैयारियों का जायजा लिया जाएगा और उनकी बातचीत के बाद घोषित किये जाने वाले फैसलों को अंतिम रूप देने की दिशा में आगे का काम होगा.
भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती हालांकि बहुत ज़रूरी है लेकिन आज के माहौल में यह बहुत ही मुश्किल काम लगता है . लेकिन फिर भी दोनों देशों के बीच बातचीत होते रहने का फायदा यह है उम्मीद कभी भी ख़त्म नहीं होगी. विदेश सचिव स्तर की बातचीत का सबसे बड़ा यही लाभ हुआ है कि बातचीत आगे भी जारी रहेगी और और अगर सब ठीकठाक रहा तो दूर भविष्य में कभी न कभी फैसला हो ही जाएगा.