Sunday, April 24, 2011

अन्ना हजारे के आन्दोलन को उत्तर प्रदेश की पिच पर तौल रहे हैं कांग्रेस और बीजेपी वाले

शेष नारायण सिंह

अन्ना हजारे के आन्दोलन ने अलग अलग राजनीतिक खेमों में अलग अलग असर डाला है . जहां तक कांग्रेस का सवाल है उसने पक्के तौर पर इस आन्दोलन को बीजेपी की गोद से छीनकर अपनी अध्यक्ष सोनिया गाँधी की छवि को दुरुस्त करने की कोशिश में शुरुआती सफलता हासिल कर ली है . जब अन्ना हजारे ने सरकारी दखल वाली ड्राफ्टिंग कमेटी में आपने बन्दों के साथ शामिल होने का फैसला किया तो बीजेपी के हाथ बड़ी निराशा लगी. नागपुर जिले के बीजेपी नेता और मौजूदा अध्यक्ष नितिन गडकरी खासे नाराज़ हुए और उन्होंने इस आन्दोलन में सबसे अहम भूमिका निभा रहे बाबा रामदेव से आपनी नाराज़गी भी ज़ाहिर कर दी. दिल्ली में मौजूद उनके प्रवक्ताओं ने उसी राग में अपनी बात कहनी शुरू कर दी .शायद इसलिए कि दिल्ली में सक्रिय ज़्यादातर बीजेपी नेताओं का राजनीतिक ज्ञान अखबारों को पढ़कर ही आता है . इस बीच कांग्रेस ने अपनी सर्वोच्च नेता सोनिया गाँधी को भ्रष्टाचार के खिलाफ सक्रिय महान नेता साबित करने के चक्कर में अन्ना हजारे के साथियों के खिलाफ उल जलूल बयान देना शुरू कर दिया .दिग्विजय सिंह ने शान्ति भूषण ,प्रशांत भूषण और संतोष हेगड़े को निशाने पर लिया . एक फर्जी सी डी को बाज़ार में डालकर अन्ना के साथियों को भ्रष्ट साबित करने की मुहिम को तेज़ कर दिया गया .ज़ाहिर है कि देश में कांग्रेस की इस दोहरी चाल के खिलाफ माहौल बनने लगा . वेब मीडिया की कृपा से सबको मालूम पड़ गया कि कांग्रेस का खेल क्या है . बीजेपी को इस आन्दोलन की समर्थक बता कर कांग्रेस की तरफ से किया गया हमला अब बेअसर हो चुका है .उधर बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह के पटना से आये बयान ने नए राजनीतिक समीकरणों का संकेत दे दिया है .उनके बयान से लगता है कि अब बीजेपी अन्ना के आन्दोलन का जितना भी इस्तेमाल कांग्रेस को बेनकाब करने के लिए कर पायेगी ,करेगी. उन्होंने कहा है कि कांग्रेस की कोशिश है कि जन लोक पाल बिल को बेमतलब कर दिया जाए . लोकपाल बिल की मसौदा समिति के सदस्यों के खिलाफ शुरू हुए कांग्रेस के अभियान को वे इस सांचे में फिट करके अन्ना के अभियान से ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक लाभ लेने की बात करते नज़र आते हैं . हालांकि उन्होंने किसी को भी क्लीन चिट देने से इनकार किया लेकिन बिल का मसौदा तैयार होने के पहले ही उसमें तरह तरह के पेंच फंसाने के कांग्रेस के अभियान को आड़े हाथों लिया . राजनाथ सिंह का बयान कोई निजी बयान नहीं है .यह इस बात का संकेत है कि बीजेपी में अन्ना के आन्दोलन को लेकर जो दुविधा बनी हुई थी , वह अब दूर हो रही है . लगता है कि दिल्ली में बसने वाले बीजेपी के जड़ विहीन नेताओं की ज़द से अब रणनीति बाहर आ चुकी है और अब उसमें ज़मीनी राजनीति के दिग्गज भी शामिल किये जा रहे हैं . राजनाथ सिंह की पहचान देश के उन बीजेपी नेताओं के रूप में होती है जिन्होंने ज़मीनी राजनीति के बल पर मौजूदा ऊंचाइयां तय की हैं . भागते भूत की लंगोटी पर क़ब्ज़ा करने की उनकी रणनीति से बीजेपी को शायद बहुत वोटों का फायदा न हो लेकिन बीजेपी वालों को एक मौक़ा और मिल गया है जब वे कांग्रेस को भ्रष्टाचार की पोषक पार्टी के रूप में पेश कर सकते हैं . राजनीति की ज़बान में कहा जाए तो यह अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि होगी.

बीजेपी की बदली हुई सोच का अंदाज़ कांगेस को भी लग चुका है .शायद इसीलिये हर मंच से अब कांग्रेसी नेता संतोष हेगड़े की तारीफ़ कर रहे हैं . यहाँ तक कि दिग्विजय सिंह भी पिछले एकाध दिन से बदले बदले नज़र आ रहे हैं . उन्होंने भी संतोष हेगड़े की तारीफ़ की और आजकल शान्ति भूषण और उनके बेटे के खिलाफ बयान नहीं दे रहे हैं . अमर सिंह भी थोडा ढीले पड़े हैं . हालांकि 'भूषण गरियाओ अभियान' के दौरान तो वे दिग्विजय सिंह के भाई ही बन गए थे .दोनों भाइयों ने फर्रुखाबाद जाकर एक ही मंच से भाषण दिया और एक माला साथ साथ पहनी . लेकिन लगता है कि दिग्विजय सिंह ने इतनी बार अन्ना के आन्दोलन के खिलाफ बयान दे दिया है कि वे कांग्रेस की विश्वसनीयता पर बहुत बड़ा सवालिया निशान लगा चुके हैं . ऐसे माहौल में राजनाथ सिंह का बयान दिग्विजय सिंह को बहुत नुकसान पंहुचाएगा. इस खेल के अंदर का खेल समझने की कोशिश की जाए तो तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी सामने आता है. आजकल उत्तर प्रदेश में मायावाती से नाराज़ ठाकुरों को अपनी तरफ करने का अभियान चल रहा है . कांग्रेस की कोशिश है कि अगर ठाकुर जाति के लोग एक वोट बैंक के रूप में उसके साथ जुड़ जाएँ तो मुसलमानों को समझाया जा सकता है कि ठाकुर उनके साथ हैं और अगर मुसलमान भी साथ आ जाएँ तो बीजेपी को कमज़ोर किया जा सकता है .उत्तर प्रदेश में दिग्विजय सिंह का यह एक प्रमुख एजेंडा है . लेकिन उनका दुर्भाग्य है कि उत्तर प्रदेश के आम ठाकुरों की बात तो जाने दीजिये ,वहां के कांग्रेसी राजपूत भी उनको अपना नेता नहीं मानते . वे अपने आपको दिग्विजय सिंह से बड़ा नेता मानते हैं . बीजेपी की भी यही कोशिश है . अगर राजपूत थोक में उसके पास आ गए तो मुसलमान कांग्रेस का चक्कर छोड़कर सीधे बी एस पी में जाएगा. ऐसी हालत में बीजेपी को उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में बी एस पी के खिलाफ खडी सबसे मज़बूत पार्टी के रूप में अपने आपको पेश करने का मौक़ा लगेगा.यानी बीजेपी की भी मजबूरी है कि वह अब राजनाथ सिंह को ज्यादा गंभीरता से ले क्योंकि उत्तर प्रदेश में जो भी मज़बूत होगा ,दिल्ली में उसकी सत्ता स्थापित होने की संभावना बहुत बढ़ जायेगी.