Thursday, May 13, 2010

अब मीडिया को भी काबू करने के चक्कर में हैं अफसराने-वतन

शेष नारायण सिंह

सावधानी हटी और दुर्घटना हुई. देश के नौकरशाह हमेशा इस फ़िराक़ में रहते हैं कि जहां से भी देश के राजकाज को प्रभावित किया जा सकता हो , वहां की चौधराहट उनके पास ही होनी चाहिए. देश में कहीं कोई कमेटी बने, कोई आयोग बने, कोई जांच बैठे, कोई सर्वे हो , आई ए एस वाले बाबू लोग किसी न किसी तिकड़म से वहां पंहुच जाते हैं . . ताज़ा मामला टेलिविज़न की ख़बरों को अर्दब में लेने की कोशिश से सम्बंधित है . टी आर पी के नाम पर इस देश में कुछ गैर ज़िम्मेदार न्यूज़ चैनलों ने खबरों को मजाक का विषय बना दिया था. देश के हर प्रबुद्ध वर्ग से मांग उठ रही थी कि खबरों को इस तरह से पेश करने की इन चैनलों की कोशिश पर लगाम लगाई जानी चाहिए . जब इन स्वम्भू पत्रकारों से कभी कहा जाता था, कि भाई खबरों को खबर की तरह प्रस्तुत करो , जोकरई मत करो . तो यह लोग कहते थे कि जनता यही पसंद कर रही है . ज़्यादातर नामी टी वी चैनलों पर हास्य विनोद से लदी हुई खबरें पेश की जा रही थीं . कुछ आलोचकों ने तो यहाँ तक कह दिया कि अगर यू ट्यूब बंद हो गया तो कुछ तथाकथित न्यूज़ चैनल बंद हो जायेंगें . यानी टी वी न्यूज़ चैनल के स्पेस में मनमानी और अराजकता का माहौल था . देश की नौकरशाही को इसी मौके का इंतज़ार था. चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था. खबरों को हल्का करके पेश करने वालों पर नकेल कसने की मांग चल रही थी. पर तौल रही नौकरशाही ने अपनी पहली चाल चल दी. दिल्ली में आई ए एस अफसरों के ठिकाने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर पर एक बैठक हुई और उसमें कई अवकाश प्राप्त अफसरों ने अपनी अपनी राय दी. यह अफसर इतने सीनियर थे कि मुख्य चुनाव आयुक्त उनके सामने बच्चे लग रहे थे . बहर हाल उन्होंने ऐलान कर दिया कि टी वी चैनलों पर लगाम लगाए जाने की ज़रुरत है . अब यहाँ खेल की बारीकियों पर गौर करने से तस्वीर साफ़ हो जायेगी. जिन लोगों ने टी वे चैनलों पर कंट्रोल की बात की उनमें से ज़्यादातर अवकाश प्राप्त अफसर हैं . यानी अगर हल्ला गुल्ला हुआ तो सरकार बहुत ही आसानी से अपना पल्ला झाड लेगी लेकिन अगर कहीं कुछ न हुआ तो उनकी बात चीत को औपचारिक रूप दे दिया जाएगा. और मीडिया संगठनों को आई ए एस के कंट्रोल में थमा दिया जाएगा. ज़्यादातर मीडिया संगठनों के महाप्रभुओं ने इस मामले को नोटिस नहीं किया और नौकरशाही ने अगली चाल चल दी. सेल्फ रेगुलेशन की बात बहुत दिनों से चल रही थी लेकिन पैड न्यूज़ पर काबू करने के नाम पर अफसरों ने कहा कि सेल्फ रेगुलेशन से काम नहीं चलेगा. . इन मीडिया वालों को टाईट करना पड़ेगा और एक कमेटी बना दी गयी. . सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से एक कमेटी के गठन का ऐलान कर दिया गया .. अजीब बात यह है कि इस कमेटी की अध्यक्षता फिक्की के सेक्रेटरी जनरल अमित मित्रा को सौंपी गयी है . यानी जिन टी वी चैनलों के रिपोर्टरों के सामने वे घिघियाते रहते थे अब उनके मालिकों को वे तलब किया करेंगें .. पत्रकार कोटे में इस कमेटी में नीरजा चौधरी को शामिल किया गया है . डी एस माथुर नाम के एक आई ए एस अफसर भी हैं .. जबकि सूचना और प्रासारण मंत्रालय के एक अधिकारी इसके पदेन सचिव हैं . आईआईएम अहमदाबाद के डायरेक्टर को भी इसमें शामिल किया गया है . वे भी मीडिया पर नकेल कसने के चक्कर में ही रहेगें .. इस कमेटी के रिपोर्ट ३ महीने में आ जायेगी . जो लोग इस देश की नौकरशाही के मिजाज़ को समझते हैं उन्हें मालूम है कि रिपोर्ट में कुछ भी हो, किया वही जाएगा जो इस देश के आला अफसरों के हित में होगा और मीडिया की स्वतंत्रता को हमेशा के लिए दफ़न कर दिया जाएगा. इस बार मीडिया की आज़ादी को समाप्त करने वालों में सबसे ज़्यादा उन मीडिया वालों का हाथ माना जाएगा जिन्होंने मीडिया को भडैती के साथ ब्रेकट करने की गलती कर दी थी.

उम्मीद की जानी चाहिए कि पूरे देश का प्रबुद्ध वर्ग नौकरशाही की इस साज़िश के खिलाफ आवाज़ उठाएगा. क्योंकि इस देश ने मीडिया पर सरकारी कंट्रोल का ज़माना देखा है . इमरजेंसी में जब सेंसर की व्यवस्था लागू की गयी थी तो खबरों को चापलूसी में बदलते बहुत लोगों ने देखा था. उस दौर में भी कुलदीप नैय्यर जैसे कुछ लोगों ने मीडिया की आज़ादी के लिए कुरबानी दी थी और जेल गए थे . इमरजेंसी के बाद सरकार को सेंसरशिप हटानी पड़ी लेकिन तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री लाल कृष्ण आडवानी ने पत्रकारों को याद दिलाया था कि सरकार ने उनसे झुकने को कहा था और वे रेंगने लगे थे . यानी सरकारी नकेल को पत्रकार बिरादरी ने खुशी खुशी स्वीकार कर लिया था. . बाद में जगन्नाथ मिश्र के शासन के दौरान बिहार सरकार ने भी मीडिया को दबोचने का कानून बनाने की कोशिश की थी लेकिन इतना हल्ला गुल्ला हुआ कि सब ठंडे पड़ गए. और अब बहुत ही बारीक तरीके से नौकरशाही ने मीडिया को अपने कंट्रोल में लेने की कोशिश की है . उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार भी शासक वर्गों के मीडिया को अर्दब में लेने के मंसूबे को नाकाम कर दिया जाएगा.