Thursday, May 20, 2010

समाज के हस्तक्षेप के बिना घरेलूं हिंसा पर रोक नहीं लग पायेगी

शेष नारायण सिंह

आई सी एस ई बोर्ड के दसवीं और बारहवीं के नतीजे आ गए हैं. इस बार भी लड़कियों ने बाज़ी मारी है . सभी वर्गों में लड़कियों ने ही टाप किया है . दो दिन बाद सी बी एस ई के नतीजे आ जायेंगें ,उम्मीद है कि वहां भी हर साल की तरह लड़कियां ही टाप करेंगीं .क्योंकि हर साल ऐसा ही होता रहा है . कुल नतीजों में भी लड़कियां बेहतर पायी गयी हैं . फेल होने वालों में लड़कों की संख्या लड़कियों से बहुत ज्यादा है . पिछले बीस वर्षों से दसवीं और बारहवीं के नतीजों में लड़कियों का प्रदर्शन बेहतर होता रहा है लेकिन आगे की ज़िंदगी में वे बहुत कम संख्या में नज़र आती हैं . आज के नतीजों में पास हुई बहुत सारी लड़कियों की पढ़ाई अब ख़त्म हो जायेगी , वे आगे नहीं पढ़ पाएंगीं. लेकिन इनमें से जो कुछ लड़कियां उच्च शिक्षा के लिए जायेंगीं , वे सफल होंगीं क्योंकि अब लगभग हर कम्पटीशन में लड़कियां ही टाप कर रही हैं . इस साल के आई ए एस के नतीजे भी उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल किये जा सकते हैं .इसका मतलब यह हुआ कि अगर लड़कियों को अवसर दिया जाए तो वे ज़िंदगी के किसी क्षेत्र में लड़कों से पीछे नहीं रहेंगीं . लेकिन सच्चाई यह है कि महिलायें हमारे समाज में पीछे हैं . माइक्रोसाफ्ट कंपनी के मुखिया , बिल गेट्स जब राहुल गाँधी के साथ अमेठी गए तो उन्होंने किसी से पूछा कि कार्यक्रमों में महिलायें क्यों नहीं हैं , सडकों पर भी महिलायें बहुत कम दिख रही हैं ..उनको कौन बताये कि यह हमारे देश की सच्चाई है . आज जो लड़कियां बोर्ड की परीक्षाओं में टाप कर रही हैं कल इनमें से बड़ी संख्या में स्कूल जाना बंद कर देंगीं . उनकी शादी होगी और वे घर के काम काज में लग जायेंगीं . बहुत सारे ऐसे मामले आजकल देखे जा रहे हैं कि उच्च शिक्षा प्राप्त लड़कियां दसवीं फेल लड़कों के साथ ब्याह दी जा रही हैं .. सामाजिक बंधन ऐसे हैं कि उनको अपनी मर्जी से अपना जीवन साथी चुनने का मौक़ा नहीं दिया जा सकता . उन्हें उसी लडके से शादी करनी पड़ेगी जिसे उनके माता पिता ने पसंद कर दिया है . हरियाणा और उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों के उदारण ताज़ा हैं और उनके हवाले से बात को ठीक से समझा जा सकता है . दिल्ली की पत्रकार निरुपमा पाठक का हाल दुनिया जानती है. उसको भी मार डाला गया कि क्योंकि वह अपनी मर्जी से अपना जीवन साथी चुनना चाहती थी.

यह तो कुछ ऐसे मामले हैं जो पब्लिक डोमेन में आ गए है और दुनिया को इनकी जानकारी हो गयी. लेकिन बहुत बड़ी संख्या उन लड़कियों की है जो शादी के बाद चुपचाप अपमानित होती रहती हैं और कहीं भी बात को कहती नहीं .उनकी ज़िंदगी डांट फटकार खाते बीत जाती है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के गावों से बहुत सारे ऐसे मामलों की जानकारी आई है जहाँ कम पढ़े लिखे लडके अपनी हीन भावना को छिपाने के लिए ही अपनी बीवियों को मार-पीट रहे हैं हालांकि बीवी एम ए पास है और पति देव दसवीं फेल हैं .. कुदरत ने सबको बराबर बनाया है लेकिन औरत को अपने से कमज़ोर समझने के रीति रिवाज़ को सही ठहराने वाले समाज में औरत को दबा कर रखना शेखी मना जाता है .. घरेलू हिंसा आज की एक बड़ी समस्या है . ज्यादातर समाजों में औरतों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है जो अक्षम्य अपराध है लेकिन यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है . सरकार को भी इसकी जानकारी है लेकिन वह कुछ नहीं कर पा रही है.,घरेलू हिंसा को रोकने के लिए सरकार ने कानून भी बनाया है लेकिन उसको लागू कर पाना बहुत मुश्किल है क्योंकि अगर कोई औरत अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के तहत शिकायत कर दे तो उसकी खैर नहीं है क्योंकि रहना तो उसको उसी छत के नीचे है जहां हिंसा को अपना हक समझने वाला उसका पति रहता है . घरेलू हिंसा के भी कई रूप हैं . सीधे मार पीट को तो घरेलू हिंसा की श्रेणी में रखा ही जा सकता है लेकिन और भी बहुत से तरीके हैं जिनके ज़रिये औरतों को हिंसा का शिकार बनाया जा सकता है और बनाया जा रहा है . उनको अपमानित करना मानसिक यातना पंहुचाना, बलात्कार आदि बहुत से ऐसे तरीके हैं जो महिलाओं को अपमानित करने के लिए इस्तेमाल किये जा रहे हैं और घरेलू हिंसा कानून, अपराधी का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा है .

इसका मतलब यह हुआ कि घरेलू हिंसा को रोकने के लिए कानून उतना कारगर नहीं है जितना होना चाहिए . ज़ाहिर है और रास्ते तलाशने पड़ेंगें .एक रास्ता तो यह है कि लड़कियों को इतनी शिक्षा दे दी जाए कि वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर रहें . परिवार का हिस्सा रहें और परिवार की तरक्की में बराबर की भागीदारी करें लेकिन जो सबसे उपयोगी तरीका है वह है सामाजिक सरोकार . जिन समाजों में औरत को डांटने फटकारने या मारने पीटने पर सामाजिक बहिष्कार का खतरा रहता है वहां , घरेलू हिंसा बिलकुल नहीं होती. केरल में कई ऐसे समाज हैं . पूर्वोत्तर भारत में भी कई राज्यों में सही मायनों में औरतों और मर्दों के बराबरी की परम्परा है और उसे समाज की मंजूरी है .वहां भी घरेलू हिंसा शून्य के बराबर है . इसका मतलब यह हुआ कि अगर समाज और सरकार को घरेलू हिंसा का माहौल ख़त्म करना है तो समाज को जागरूक करना होगा और औरत को अपने हक के लिए तैयार होना होगा

बाबू जगजीवन राम को ये लोग केवल दलित नेता ही मानते हैं

शेष नारायण सिंह

हर साल एकाध बार दिल्ली के कृष्ण मेनन मार्ग की कोठी नंबर ६ के बारे में अखबारों में खबरें निकलती रहती हैं. आजकल भी वही सीज़न शुरू हो गया है . किसी ने सूचना के अधिकार कानून के तहत फिर कुछ जानकारी इकठ्ठा कर ली है और उसे सवर्ण मानसिकता वालों ने अखबारों की सेवा में पेश कर दिया है ,खबर छप गयी है , और भी अखबारों में छपेगी और समाज की नैतिकता के ठेकेदार बड़े बड़े उपदेश देने लगेंगें कि सार्वजनिक संपत्ति पर गैरज़रूरी क़ब्ज़ा कर लिया गया है और उसे फ़ौरन उस महकमे के हवाले कर दिया जाना चाहिए जो सरकारी अफसरों और मंत्रियों के लिए दिल्ली में कोठियों का इंतज़ाम करता है .बात सही है लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हो रहा है . नयी दिल्ली में ऐसे बहुत सारे मकान हैं जो किसी न किसी के नाम पर यादगार में बदल दिए गए हैं तो बाबू जगजीवन राम के लिए क्या यह देश एक स्मारक नहीं बनवा सकता . जिस बिल्डिंग में आज़ादी की लड़ाई के एक महत्वपूर्ण योद्धा ने अपना लगभग पूरा जीवन बिताया हो उस भवन को उसी याद में रखने की मांग करके क्या जगजीवन राम के प्रशंसक कोई ऐसी मांग कर रहे हैं जो बहुत ही अनुचित है .. क्या ऊंची जातियों के लोगों के लिए ही सरकारी भवनों में स्मारक बनाए जाने चाहिए ? क्या सरकार में बैठे लोगों को नहीं मालूम है कि जगजीवन राम का योगदान आज़ादी की लड़ाई में बेजोड़ रहा है .? जगजीवन राम उस वक़्त महात्मा गाँधी के नेतृत्व में आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाली जमातों में शामिल हुए थे जब अँगरेज़ अपनी पूरी ताक़त के साथ आज़ादी के सपने को हमेशा के लिए कुचल देना चाहते थे . पृथक निर्वाचन क्षेत्रों के लिए अंग्रेजों ने अपनी सारी ताक़त झोंक दी थी . मुस्लिम लीग की कमान जिन्नाह के हाथ में आ चुकी थी और वे अंग्रेजों के हाथ में खेल रहे थे . अंग्रेजों की कोशिश थी कि दलितों के लिए भी पृथक चुनाव क्षेत्रों का गठन कर दिया जाए . दुनिया जानती है कि पाकिस्तान के गठन की शुरुआत पृथक चुनाव क्षेत्रों की चर्चा के साथ ही शुरू हो चुकी थी . अँगरेज़ का इरादा दलितों के बारे में भी यही था . गाँधी जी ने साम्राज्यवादी अंग्रेजों के इरादे को भांप लिया था कि अँगरेज़ बांटो और राज करो के अपने खेल को पूरी तरह से अंजाम तक पहुचाने की तैयारी कर चुका था. एकाध दलित नेताओं को भी पटा लिया गया था कि वे पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की बात का समर्थन करें लेकिन महात्मा गाँधी ने इसका विरोध किया और उस काम में बाबू जगजीवन राम उनके साथ खड़े थे .

आज़ादी की लड़ाई को एक सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई के रूप में चलाने के लिए गाँधी जी ने अभियान चलाया था. दलितों के लिए जो अभियान चलाया गया था उसमें बाबू जगजीवन राम पूरे जोर से लगे हुए थे .. पटना में आयोजित छुआछूत विरोधी समेलन में उन्होंने कहा कि " सवर्ण हिन्दुओं की इन नसीहतों से कि मांस भक्षण छोड़ दो,मदिरा मत पियो.सफाई के साथ रहो ,अब काम नहीं चलेगा . अब दलित उपदेश नहीं , अच्छे व्यवहार की मांग करते हैं और उनकी मांग स्वीकार करनी होगी. शब्दों की नहीं ठोस काम की आवश्यकता है . मुहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों को अपना अलग देश बनाने के लिए उकसा दिया है . डॉ आम्बेडकर ने अछूतों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की माग की है .राष्ट्र की रचना हमसे हुई है ,राष्ट्र से हमारी नहीं /. राष्ट्र हमारा है . इसे एकताबद्ध करने का प्रयास भारत के लोगों को ही करना है . महात्मा गाँधी ने निर्णय लिया है कि छुआछूत को समाप्त करना होगा . इसके लिए मुझे अपनी कुर्बानी भी देनी पड़े तो मैं पीछे नहीं हटूंगा . देश की आज़ादी की लड़ाई में सभी धर्म और जाति के लोगों को बड़ी संख्या में जोड़ना होगा. "

यह एक महान राजनीतिक जीवन की शुरुआत थी बाद के वर्षों में महात्मा गाँधी के साथ हमेशा खड़े रहने वाले जगजीवन राम ने राष्ट्रीय आन्दोलन का हमेशा नेतृत्व किया . आज़ादी के बाद जब पहली सरकार बनी तो वे उसमें कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल हुए और जब तानाशाही का विरोध करने का अवसर आया तो लोकशाही की स्थापना की लड़ाई में शामिल हो गए. सब जानते हैं कि ६ फरवरी १९७७ के दिन केंद्रीय मंत्रिमंडल से दिया गया उनका इस्तीफ़ा ही वह ताक़त थी जिसने इमरजेंसी के राज को ख़त्म किया. उसके बाद उन्हें इस देश ने प्रधानमंत्री नहीं बनाया क्योंकि वे दलित थे . हालांकि उनको ही प्रधान मंत्री होना चाहिए था . केंद्र में वे जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गाँधी के मंत्रिमंडलों में रहे . कृषि और खाद्य मंत्री के रूप में उन्होंने देश की खाद्य समस्या का ऐसा हल निकाला कि आज तक अनाज के लिए हमें किसी मुल्क के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ा . बंगलादेश की स्थापना के समय वे रक्षा मंत्री थे . सेना को जो नेतृत्व उन्होंने दिया वह अपने आप में एक मिसाल है . उन दिनों एक बहुत ही गैर ज़िम्मेदार आदमी अमरीका का राष्ट्रपति था , उसने भारत को धमकाने के लिए हिंद महासागर में अमरीकी सेना का परमाणु हथियारों से लैस विमानवाहक पोत , 'इंटरप्राइज़' भेज दिया था. बाबू जगजीवन राम ने ऐलान कर दिया कि अगर ' इंटरप्राइज़' बंगाल की खाड़ी में ज़रा सा भी आगे बढा तो भारत के जांबाज़ सैनिक उसे वहीं डूबा देंगें .
उन्हीं बाबू जगजीवन राम की याद में उनके प्रशंसक एक स्मारक बनवाना चाहते हैं . ऐसे समारक के लिए उस बिल्डिंग से ज्यादा महत्वपूर्ण और कोई इमारत हो ही नहीं सकती, जहां आज़ादी के इस महान योद्धा का लगभग पूरा जीवन बीता लेकिन सवर्णवादी सोच की मानसिकता से ग्रस्त नेता और अफसर उसमें अडंगा लगाते रहते हैं . .जबकि कुछ परिवारों के मामूली लोगों के नाम पर भी देश में भर में स्मारक बने हुए हैं . कुछ पार्टियों के नेताओं के नाम भी स्मारक बन रहे हैं लेकिन आज़ादी के इतने बड़े सिपाही के नाम पर अडंगा लगाने वाले ऐलानिया घूम रहे हैं और कोई उनका कुछ नहेने बिगाड़ पा रहा है .