शेष नारायण सिंह
आई सी एस ई बोर्ड के दसवीं और बारहवीं के नतीजे आ गए हैं. इस बार भी लड़कियों ने बाज़ी मारी है . सभी वर्गों में लड़कियों ने ही टाप किया है . दो दिन बाद सी बी एस ई के नतीजे आ जायेंगें ,उम्मीद है कि वहां भी हर साल की तरह लड़कियां ही टाप करेंगीं .क्योंकि हर साल ऐसा ही होता रहा है . कुल नतीजों में भी लड़कियां बेहतर पायी गयी हैं . फेल होने वालों में लड़कों की संख्या लड़कियों से बहुत ज्यादा है . पिछले बीस वर्षों से दसवीं और बारहवीं के नतीजों में लड़कियों का प्रदर्शन बेहतर होता रहा है लेकिन आगे की ज़िंदगी में वे बहुत कम संख्या में नज़र आती हैं . आज के नतीजों में पास हुई बहुत सारी लड़कियों की पढ़ाई अब ख़त्म हो जायेगी , वे आगे नहीं पढ़ पाएंगीं. लेकिन इनमें से जो कुछ लड़कियां उच्च शिक्षा के लिए जायेंगीं , वे सफल होंगीं क्योंकि अब लगभग हर कम्पटीशन में लड़कियां ही टाप कर रही हैं . इस साल के आई ए एस के नतीजे भी उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल किये जा सकते हैं .इसका मतलब यह हुआ कि अगर लड़कियों को अवसर दिया जाए तो वे ज़िंदगी के किसी क्षेत्र में लड़कों से पीछे नहीं रहेंगीं . लेकिन सच्चाई यह है कि महिलायें हमारे समाज में पीछे हैं . माइक्रोसाफ्ट कंपनी के मुखिया , बिल गेट्स जब राहुल गाँधी के साथ अमेठी गए तो उन्होंने किसी से पूछा कि कार्यक्रमों में महिलायें क्यों नहीं हैं , सडकों पर भी महिलायें बहुत कम दिख रही हैं ..उनको कौन बताये कि यह हमारे देश की सच्चाई है . आज जो लड़कियां बोर्ड की परीक्षाओं में टाप कर रही हैं कल इनमें से बड़ी संख्या में स्कूल जाना बंद कर देंगीं . उनकी शादी होगी और वे घर के काम काज में लग जायेंगीं . बहुत सारे ऐसे मामले आजकल देखे जा रहे हैं कि उच्च शिक्षा प्राप्त लड़कियां दसवीं फेल लड़कों के साथ ब्याह दी जा रही हैं .. सामाजिक बंधन ऐसे हैं कि उनको अपनी मर्जी से अपना जीवन साथी चुनने का मौक़ा नहीं दिया जा सकता . उन्हें उसी लडके से शादी करनी पड़ेगी जिसे उनके माता पिता ने पसंद कर दिया है . हरियाणा और उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों के उदारण ताज़ा हैं और उनके हवाले से बात को ठीक से समझा जा सकता है . दिल्ली की पत्रकार निरुपमा पाठक का हाल दुनिया जानती है. उसको भी मार डाला गया कि क्योंकि वह अपनी मर्जी से अपना जीवन साथी चुनना चाहती थी.
यह तो कुछ ऐसे मामले हैं जो पब्लिक डोमेन में आ गए है और दुनिया को इनकी जानकारी हो गयी. लेकिन बहुत बड़ी संख्या उन लड़कियों की है जो शादी के बाद चुपचाप अपमानित होती रहती हैं और कहीं भी बात को कहती नहीं .उनकी ज़िंदगी डांट फटकार खाते बीत जाती है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के गावों से बहुत सारे ऐसे मामलों की जानकारी आई है जहाँ कम पढ़े लिखे लडके अपनी हीन भावना को छिपाने के लिए ही अपनी बीवियों को मार-पीट रहे हैं हालांकि बीवी एम ए पास है और पति देव दसवीं फेल हैं .. कुदरत ने सबको बराबर बनाया है लेकिन औरत को अपने से कमज़ोर समझने के रीति रिवाज़ को सही ठहराने वाले समाज में औरत को दबा कर रखना शेखी मना जाता है .. घरेलू हिंसा आज की एक बड़ी समस्या है . ज्यादातर समाजों में औरतों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है जो अक्षम्य अपराध है लेकिन यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है . सरकार को भी इसकी जानकारी है लेकिन वह कुछ नहीं कर पा रही है.,घरेलू हिंसा को रोकने के लिए सरकार ने कानून भी बनाया है लेकिन उसको लागू कर पाना बहुत मुश्किल है क्योंकि अगर कोई औरत अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के तहत शिकायत कर दे तो उसकी खैर नहीं है क्योंकि रहना तो उसको उसी छत के नीचे है जहां हिंसा को अपना हक समझने वाला उसका पति रहता है . घरेलू हिंसा के भी कई रूप हैं . सीधे मार पीट को तो घरेलू हिंसा की श्रेणी में रखा ही जा सकता है लेकिन और भी बहुत से तरीके हैं जिनके ज़रिये औरतों को हिंसा का शिकार बनाया जा सकता है और बनाया जा रहा है . उनको अपमानित करना मानसिक यातना पंहुचाना, बलात्कार आदि बहुत से ऐसे तरीके हैं जो महिलाओं को अपमानित करने के लिए इस्तेमाल किये जा रहे हैं और घरेलू हिंसा कानून, अपराधी का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा है .
इसका मतलब यह हुआ कि घरेलू हिंसा को रोकने के लिए कानून उतना कारगर नहीं है जितना होना चाहिए . ज़ाहिर है और रास्ते तलाशने पड़ेंगें .एक रास्ता तो यह है कि लड़कियों को इतनी शिक्षा दे दी जाए कि वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर रहें . परिवार का हिस्सा रहें और परिवार की तरक्की में बराबर की भागीदारी करें लेकिन जो सबसे उपयोगी तरीका है वह है सामाजिक सरोकार . जिन समाजों में औरत को डांटने फटकारने या मारने पीटने पर सामाजिक बहिष्कार का खतरा रहता है वहां , घरेलू हिंसा बिलकुल नहीं होती. केरल में कई ऐसे समाज हैं . पूर्वोत्तर भारत में भी कई राज्यों में सही मायनों में औरतों और मर्दों के बराबरी की परम्परा है और उसे समाज की मंजूरी है .वहां भी घरेलू हिंसा शून्य के बराबर है . इसका मतलब यह हुआ कि अगर समाज और सरकार को घरेलू हिंसा का माहौल ख़त्म करना है तो समाज को जागरूक करना होगा और औरत को अपने हक के लिए तैयार होना होगा
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