शेष नारायण सिंह
बीजेपी की राजनीतिक अदूरदर्शिता की जितनी धुनाई झारखंड में हुई है, उतनी कभी नहीं हुई। झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन ने बीजेपी का जो हाल किया है, इतिहास में किसी भी राजनीतिक पार्टी की ऐसी दुर्दशा नहीं हुई। बीजेपी ने झारखंड चुनाव पूरी तरह से शिबू सोरेन और भ्रष्टाचार के विरोध को मुद्दा बनाकर लड़ा था। लेकिन जब सरकार बनाने की नौबत आई तो बीजेपी ने शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री बनवाने में एड़ी चोटी का जोर लगा दिया।
सरकार बन गयी और भ्रष्टाचार का कारोबार शुरू हो गया। बीजेपी के ट्रेनी राष्ट्रीय अध्यक्ष को मुगालता था कि वे चक्रवर्ती सम्राट बन गये हैं। ब्रिटिश पीरियड के भारतीय राजाओं की तरह मनमानी के बादशाह हो गए हैं। उन्होंने जल्दबाजी में फैसले करके सब काम ठीक कर दिया। बीजेपी के कट मोशन पर जब शिबू सोरेन ने कांग्रेस का साथ दे दिया तो बीजेपी वालों ने उन्हें सबक सिखाने की धमकी दी। राजनीति का मामूली जानकार भी जानता है कि शिबू सोरेन के सामने बीजेपी के किसी नेता की कोई औकात नहीं है लेकिन सारे लोग नितिन गडकरी को ललकार रहे थे कि शिबू सोरेन को ठीक कर दिया जाए। बेचारे नौसिखिया नितिन गडकरी टूट पड़े और दिल्ली में आडवाणी गुट के नेताओं ने नितिन गडकरी की इज्जत का जो फालूदा बनाया है, वह तो बंगारू लक्ष्मण का भी नहीं बना था। आज बीजेपी के विधायकों ने राज्यपाल को सूचित कर दिया है कि वे शिबू सोरेन सरकार से समर्थन वापस ले रहे हैं। झारखंड की राजनीति के जानकार बताते हैं कि राज्य में बीजेपी की जग हंसाई का सिलसिला आज शुरू हुआ है। विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी के विधायकों की संख्या 18 थी। माना जा रहा है कि इसमें से कम से कम एक तिहाई तो अब बीजेपी छोड़ ही देंगे। शिबू सोरेन के करीबी लोगों का कहना है कि इससे ज्यादा भी छोड़ सकते हैं।
झारखंड में पूरी तरह से कुव्यवस्था का राज है। बिहार के हिस्से के रूप में रांची, धनबाद और जमशेदपुर का इलाका लूट का केन्द्र माना जाता था। अब यह और बढ़ गया है। राज्य की स्थापना के बाद कुछ दिन तक बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री रहे। सुलझी हुई राजनीतिक सोच के मालिक बाबूलाल मरांडी ने नए राज्य की संस्थाओं के निर्माण का काम शुरू किया लेकिन उन दिनों उनकी पार्टी बीजेपी थी, दिल्ली में राज था, अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, प्रमोद महाजन और रंजन भट्टाचार्य का युग चल रहा था, उनकी कसौटी पर बाबूलाल मरांडी खरे नहीं उतरे। वे बेइमान और रिश्वतखोर नहीं थे। बीजेपी ने उन्हें पीछे धकेल दिया। उसके बाद तो लूट का अभियान शुरू हो गया। शिबू सोरेन और मधु कोड़ा की सरकारों ने भ्रष्टाचार के रिकॉर्ड बनाए और झारखंड में भ्रष्टाचार की संस्कृति अब संस्थागत रूप लेने के मुकाम पर पहुंच चुकी है। बीजेपी के समर्थन वापसी के फैसले से कुछ बदलने वाला नहीं है क्योंकि खींचखांच कर जो सरकार बनेगी उसका स्थायी भाव भ्रष्टाचार ही होगा क्योंकि कांग्रेस के नेता भी बीजेपी वालों से किसी भी तरह से कम नहीं है। भ्रष्टाचार के हवाले से कांग्रेस का शिबू सोरेन से पुराना याराना है क्योंकि पीवी नरसिंहराव की सरकार को बचाने के लिए जो भ्रष्टाचार का रिकॉर्ड कांग्रेस ने बनाया था उसमें शिबू सोरेन मुख्य अभिनेता थे। उसके बाद भी जब भी मौका मिला कांग्रेस ने शिबू सोरेन मार्का भ्रष्टाचार का भरपूर उपयोग किया।
यह झारखंड का दुर्भाग्य है कि नए राज्य के गठन के बाद भी वहां उसी भ्रष्टाचार का बोलबाला है। बिहार में तो नीतिश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद चीजें बदली लेकिन झारखंड में लूट-खसोट का सिलसिला जारी है। झारखंड में 32 वर्षों से पंचायत चुनाव नहीं हुए हैं। इसलिए केन्द्र सरकार की कई योजनाओं का लाभ राज्य को नहीं मिल पा रहा है। सत्ता लोभी बीजेपी, कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा की तिकड़मबाजी के चलते राज्य में किसी भी स्थिरता की संभावना नहीं है। राज्य में उद्योगों की हालत खस्ता है। दुनिया भर की कंपनियां राज्य की खनिज संपदा को लूटने की फिराक में हैं। तरह-तरह के पूंजीवादी जाल बिछाए गए हैं और जनता त्राहि-त्राहि कर रही है।
इस निराशा के माहौल में राज्य में एक व्यक्ति ऐसा है जो झारखंड को लोगों के साथ खड़े होने की हिम्मत दिखा रहा है। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी पिछले चार वर्षों से झारखंड के गांव-गांव में घूम रहे थे। पिछले हफ्ते रांची में अपनी नवगठित पार्टी के कार्यकर्ताओं का सम्मेलन किया और झारखंड के लोगों को राजनीतिक रूप से मजबूत करने के अपने मंसूबों का एलान किया। उन्होंने दिल्ली और नागपुर में बैठकर राज्य की राजनीति का भाग्यविधाता बनने का स्वांग रचने वालों को साफ बता दिया कि राज्य के समग्र विकास के लिए राष्ट्रीय नेताओं और पार्टियों को ईस्ट इंडिया कंपनी की मानसिकता से बाहर निकलना पड़ेगा।
राज्य के सीधे सादे लोगों को बाबूलाल मरांडी ने बता दिया है कि अपने यहां से किसी भी सूरत में खनिजों की कच्चे माल की निकासी का विरोध करेंगे। अब झारखंड की जनता यह मांग करेगी कि आइरन ओर का निर्यात नहीं, लोहे की बनी वस्तुओं का निर्यात होगा। कोयला निर्यात करने की जरूरत नहीं है, उससे बिजली बनाकर बाकी राज्यों और उद्योगों को दिया जाएगा। बड़ी कंपनियों को झारखंड राज्य की सीमा में ही मुख्यालय रखना होगा। उन्होंने टाटा को भी चेताया है कि टाटा स्टील का मुख्यालय जमशेदपुर में होना चाहिए, मुंबई में नहीं। बाबूलाल मरांडी ने बताया कि अगर जरूरत पड़ी और दिल्ली में बैठे कलर ब्लाइंड लोगों की समझ में झारखंडी अवाम की बात न आई तो जनता जाम भी लगाएगी और डंडा भी बजाएगी। झारखंड की तबाह हो चुकी राजनीति और भ्रष्टाचार का भोजन बनने के लिए तैयार अर्थव्यवस्था के लिए बाबूलाल मरांडी की योजना आशा की एक किरण है। देखना यह है कि सत्ता के बाहर का नेता क्या सत्ता पाने पर भी ईमानदार रह पाएगा
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