Wednesday, September 22, 2010

अफगानिस्तान में इंसान को मारकर खुश होते थे अमरीकी सैनिक

शेष नारायण सिंह



अमरीकी फौजियों की वहशत का एक नया मामला सामने आया है . पता चला है कि अफगानिस्तान में तैनात अमरीकी सेना के दूसरे इन्फैंट्री डिवीज़न के पांचवे स्ट्राइकर कोम्बाट ब्रिगेड के कुछ सैनिकों ने एक ऐसा खेल ईजाद किया जिसमें अफगानिस्तान के निर्दोष नागरिकों को मार डालने और बच निकलने को मज़े के लिए खेले जाने वाले एक खेल का रूप दे दिया गया था . इस जालिमाना खेल का और कोई नियम नहीं था . बस कोई बहाना ढूंढ कर किसी निर्दोष अफगान नागरिक को मार डालना था . हर वारदात के लिए नंबर मिलते थे. यह खेल २००७ में १५ जनवरी को शुरू हुआ जब एक अफगान नागरिक ब्रिगेड की कैम्प के पास आया . एक सैनिक ने एक हैण्ड ग्रेनेड फेंक दिया और कहा कि वह अफगान हमला करने की गरज से आया था , बस क्या था ,बाकी लोगों ने गोलियां बरसाना शुरू कर दिया . यह खेल एक महीने तक चलता रहा और बहुत सारे अफगान नागरिक मारे गए. ज़ुल्म का आलम यह था कि इस प्लाटून के सदस्य मरे हुए नागरिकों की लाशों की फोटो खींच कर ट्राफी की तरह रखते थे. एक सैनिक के पास तो एक नरमुंड भी पकड़ा गया है . ऐसा नहीं है कि सेना के अधिकारियों को इसके बारे में मालूम नहीं था. एक अमरीकी नागरिक ने अमरीकी सेना के सर्वोच्च नेतृत्व को इस तरह की पहली ह्त्या बाद ही चेतावनी दे दी थी . उसका अपना ही बेटा इस खेल में शामिल था जिसने अपने पिता को इस सम्बन्ध में जानकारी देते हुए ,शेखी बघारी थी लेकिन सेना के बड़े अधिकारियों ने इस जानकारी को पूरी तरह से नज़रंदाज़ किया था. यहीं नहीं इस सैनिक के पिता को सेना के अधिकारियों ने डांट भी दिया था. इस जघन्य अपराध में शामिल अमरीकियों ने अफगानिस्तान के कंदहार प्रांत में और भी कई आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने का काम किया है . उनके ही एक साथी ने जब इस सारे मामले को ऊपर तक पंहुचाने की कोशिश की तो उसे भी ठिकाने लगाने की कोशिश की गयी. अपराधी फौजियों के इस कारनामे की जांच अब अमरीकी सेना कर रही है लेकिन उन्हें अपराधी सैनिकों को सज़ा दिलवाने से ज्यादा चिंता इस बात की है कि कहीं बात खुल न जाए क्योंकि उस हालत में अमरीकी सेना की बहुत बदनामी होगी . अपराधी सैनिकों के घर वाले और उनके वकील अपने बन्दों को निर्दोष बता रहे हैं और औरों के ऊपर आरोप लगा रहे हैं लेकिन बात इतनी गंभीर है कि अपराध के बारे में किसी को शक़ नहीं है . जानकार बाते हैं कि बात के खुल जाने के बाद अमरीकी अधिकारी जांच इस लिए कर रहे हैं कि मामले को रफा दफा किया जा सके. लेकिन अब यह इतना आसन नहीं होगा क्योंकि चश्मदीद गवाहों ने इस मौत के अमरीकी खेल के पहले शिकार की पहचान गुलमुद्दीन नाम के अफगान के रूप में की है ,जो कंदहार प्रांत के मैवंद जिले के ला मोहम्मद काले गाँव का रहने वाला था . वह इस वहशत भरे अपराध का पहला शिकार था इसके बाद क़त्ल का यह सिलसिला चलता रहा और अमरीकी प्रशासन के बड़े फौजियों ने हस्तक्षेप करने के बजाय मामले को दबाने की कोशिश की. अपराध में शरीक एक अमरीकी सैनिक के पिता ने सारे मामले को बाहर लाने में मदद की , यह अलग बात है कि अब उसकी परेशानियाँ बहुत बढ़ गयी हैं . शुरू में तो उसे अधिकारियों ने टालने की कोशिश की लेकिन बाद में उनकी कोशिश रंग लाई और अब सेना ही जांच कर रही है . बात मीडिया की नज़र में है इसलिए दब जाने की कोई संभावना नहीं है . जब अमरीका ने आज से करीब ९ साल पहले अफगानिस्तान का अभियान शुरू किया था तो जानकारों ने कहा था कि यह अमरीका के लिए वियतमान से भी ज्यादा मुश्किल सैनिक अभियान साबित होगा लेकिन उन दिनों अमरीकी राष्ट्रपति , बुश जूनियर के पास ब्रिटेन के प्रधान मंत्री टोनी ब्लेयर थे जो बुश की हर बात को सही साबित करने के लिए व्याकुल रहते थे. बहर हाल अमरीका ने जिस मकसद को घोषित करके अफगानिस्तान पर हमला किया था वहां तक पंहुचने की तो कोई संभावना ही नहीं है . क्योंकि अल कायदा और उसके मातहत काम करने वाले तालिबान पहले से ज्यादा मज़बूत हो गए हैं जबकि अमरीका अफगानिस्तान की लड़ाई में रोज़ ही शिकस्त झेल रहा है .अब तो मानवाधिकारों के क्षेत्र में इतनी नीच गतिविधियों में शामिल अपने फौजियों को लेकर अमरीकी सेना कहाँ मुंह छुपाएगी.

जहां तक अफगानिस्तान पर अमरीकी हमले की बात है ,उसे तो अब कोई सही नहीं मानता लेकिन इस हमले से हुए अमरीकी नुकसान का आकलन कर पाना अपने आप में एक कठिन काम है . इस लड़ाई में अमरीकी सेना के बहुत ज्यादा सैनिक मारे गए हैं , बहुत ज़्यादा धन लगा है और आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले एक मुल्क को बहुत बड़े पैमाने पर आर्थिक सहायता देनी पड़ी है . लेकिन उस वक़्त के अमरीकी राष्ट्रपति बुश को आम तौर पर मंदबुद्धि इंसान मान जाता है . उन्होंने इस मूर्खता पूर्ण अभियान की शुरुआत की थी जिसे आने वाले वक़्त में अमरीकी जनता भोगेगी.