Sunday, August 9, 2009

बाल की खाल

भोपाल के सुरेश नंदमेहर एक मामूली चर्मकार हैं। अन्याय सहना उनकी फितरत में नहीं है और इसी फितरत के चलते उन्होंने पानी में आग लगाने जैसा काम करने निकल पड़े हैं।

चर्मकार समाज की मांग को लेकर २७ दिनों तक भोपाल के रोशनपुरा चौराहे पर धरने पर बैठे सुरेश को जब अखबारों में पर्याप्त जगह नहीं मिली तो उन्होंने मन में ठान लिया कि अब वे अखबारों में अपनी खबर छपवाने के लिए नहीं जाएंगे बल्कि अपना अखबार निकालेंगे जो उनके समाज की आवाज उठाने में आगे रहेगा।

इस तरह एक अखबार का जन्म हुआ और नाम रखा गया 'बाल की खाल'। आगे पढें...