Sunday, November 20, 2011

यह हंगामा क्यों ? जस्टिस काटजू ने किसी की भैंस नहीं खोल ली है

शेष नारायण सिंह

हमें गर्व है कि हम उसी देश में रहते हैं जहां जस्टिस मार्कंडेय काटजू रहते
हैं .१७ नवम्बर के दिन प्रेस काउन्सिल की बैठक में जिस तरह से कुछ अखबारों के
मालिकों ने उनका बहिष्कार करने की कोशिश की हम अपने आप को उस से पूरी तरह
से अलग करते हैं. मार्कंडेय काटजू ने पिछले दिनों कुछ टी वी पत्रकारों को कम
बौद्धिक स्तर का व्यक्ति बताकर टी वी पत्रकारिता के मठाधीशों को नाराज़ कर
दिया था .उन्होंने इस बात पर भी एतराज़ किया था कि ज़्यादातर टी वी चैनल
गैरज़िम्मेदार तरीकों से खबर का प्रसारण करते हैं . उन्होंने यह भी कहा था कि
टी वी पत्रकारिता को भी प्रेस काउन्सिल की तरह के किसी कायदे कानून के निजाम
को स्वीकार करना चाहिए . उनके इस बयान के बाद तूफ़ान मच गया . टी वी न्यूज़ के
संगठनों ने लाठी भांजना शुरू कर दिया . उनके बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया
जाने लगा . पत्रकार बिरादरी में मार्कंडेय काटजू को घटिया आदमी बताने का फैशन
चलाने की कोशिश शुरू हो गयी. अधिकतम लोगों तक अपनी पंहुच की ताक़त के बल पर
टी वी चैनलों के कुछ स्वनामधन्य न्यूज़ रीडरों ने तूफ़ान खड़ा कर दिया . लेकिन
मार्कंडेय काटजू ने अपनी बात को सही ठहराने का सिलसिला जारी रखा. हर संभव मंच
पर उन्होंने अपनी बात कही. जब एक टी वी चैनल की महिला एंकर ने उनके बयान को
तोड़ मरोड़ कर पेश किया तो उन्होंने फ़ौरन अपना प्रोटेस्ट दर्ज किया . उन देवी जी
को टेलीफोन करके बताया कि वे उनके बयान को सही तरीके से उद्धरित नहीं कर रही
हैं . टी वी चैनल की नामी एंकर साहिबा कह रही थीं कि मार्कंडेय काटजू ने
अधिकतर पत्रकारों को अशिक्षित कहा है . काटजू ने उनको फोन करके बताया कि आप
गलत बोल रही हैं . करण थापर के साथ हुए इंटरव्यू में मैंने कुछ पत्रकारों को "
पूअर इंटेलेक्चुअल लेवल " वाला कहा है . उन्होंने उन देवी जी से आग्रह किया कि
मेरी आलोचना अवश्य कीजिये लेकिन कृपया मेरी बात को सही तरीके से कोट तो
कीजिये . झूठ के आधार पर कोई डिस्कशन संभव नहीं है .

संतोष की बात यह है कि देश के सबसे सम्मानित अंग्रेज़ी अखबार ने जस्टिस
मार्कंडेय काटजू के स्पष्टीकरण को प्रमुखता से छापा है और टी वी पत्रकारों
के " पूअर इंटेलेक्चुअल लेवल " के विषय पर सार्थक बहस शुरू कर दिया है .यह
बहुत अच्छी बात है क्योंकि इसके बाद देश के प्रमुख टी वी चैनल वाले जस्टिस
काटजू को टाल नहीं पायेगें .बड़े माँ बाप के बेटे बेटियों के दबदबे से भरे
हुए टी वी चैनलों के आकाओं को यह मालूम होना चाहिए कि मार्कंडेय काटजू
भी बहुत बड़े बाप दादाओं की औलाद हैं . उनके पिता ,जस्टिस एस एन काटजू
इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं. मार्कंडेय काटजू के दादा
डॉ कैलाश नाथ काटजू आज़ादी की लड़ाई में शामिल हुए थे और केंद्र सरकार में
कानून और रक्षा विभाग के मंत्री भी रह चुके थे. वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री
और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल भी थे. खुद मार्कंडेय काटजू अंग्रेज़ी,
हिन्दी, संस्कृत , उर्दू, इतिहास ,दर्शनशास्त्र ,समाजशास्त्र जैसे विषयों के
अधिकारी विद्वान् हैं . १९६८ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की एल एल बी परीक्षा
में उन्होंने टाप किया था . इलाहाबाद के हाई कोर्ट में ४५ साल की उम्र में ही
जज बन गए थे. मद्रास और दिल्ली हाई कोर्टों में मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं
. बहुत सारी किताबों के लेखक हैं और अपनी बात को बिना किसी संकोच के , बिना
किसी हर्ष विषाद के कह देने की कला में निष्णात हैं . उन्होंने ही इलाहाबाद
हाई कोर्ट के बारे में वह बयान दिया था जिसमे उस महान संस्था में काम करने
वालों की कठोर आलोचना की गई थी.

अब मीडिया के बारे में उनके बयान आये हैं . उनके बयान इसलिए भी अहम हैं कि वे
आजकल प्रेस कौंसिल के अध्यक्ष हैं . ज़ाहिर है मीडिया को नियमित करने में उनकी
भूमिका पर सब की नज़र रहेगी और मीडिया के मह्त्व को समझने वालों को उम्मीद
रहेगी कि शायद उनके प्रयत्नों से मीडिया अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभा सके. अपने
बयान के बारे में एक बड़े अखबार में लेख लिख कर उन्होंने जी सफाई पेश की है
वह बेहतरीन अंग्रेज़ी गद्य का नमूना है . हम कोशिश करेगें कि लोगों तक हिन्दी
में जस्टिस काटजू की बात को पंहुचा सकें.

जस्टिस काटजू कहते हैं कि भारतीय मीडिया को भी वही ऐतिहासिक भूमिका निभानी है
जो सामंतवाद से औद्योगीकरण के दौर में जा रहे यूरोपीय समाज के निगहबान के रूप
में पश्चिमी मीडिया ने निभाया था . भारतीय सन्दर्भ में वह काम सामंतवादी सोच
पर हमला करके किया जा सकता है . अगर आज के दौर में मीडिया ने जातिवाद ,
सम्प्रदायवाद,रूढ़िवाद, स्त्रियों का शोषण आदि विषयों पर प्रगतिशील रुख न
अपनाया तो आने वाली पीढियां उसे माफ़ नहीं करेगीं .एक दौर था जब राजा राममोहन
रॉय, मुंशी प्रेमचंद और निखिल चक्रवर्ती ने पत्रकारिता की ऊंचाइयों पर जाकर
समाज को जागरूक बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. बंगाल के अकाल की १९४३ में की
गयी निखिल चक्रवर्ती की रिपोर्टिंग की भी मार्कंडेय काटजू ने प्रशंसा की है .
उन्होंने आज की पत्रकारिता के शिरोमणि पत्रकारों की भी तारीफ की है . उन्होंने
पी साईनाथ की भूरि भूरि तारीफ़ की है और कहा है कि उनका नाम स्वर्णाक्षरों में
लिखा जाना चाहिए .. एन. राम, विनोद मेहता, प्रनंजय गुहा ठाकुरता,श्रीनिवास
रेड्डी आदि पत्रकारों की काटजू ने तारीफ़ की है . इसलिए टी वी चैनलों के उन
न्यूज़ रीडरों की उस बात में कोई दम नहीं है कि उन्होंने सभी पत्रकारों को
अशिक्षित कहा है . लेकिन यह दुर्भाग्य है कि जब उन्होंने टी वी चैनलों पर
यह आरोप लगाया कि वे प्रगतिशीलता के अपने ऐतिहासिक रोल की अनदेखी कर रहे हैं
तो कुछ टी वी चैनलों ने उन पर हमला बोल दिया . कई बार तो ऐसा लगता था कि जैसे
किसी बहस में न शामिल होकर कुछ टी वी पत्रकार काटजू से कोई पुरानी
दुश्मनी निकाल रहे हों या जिस तरह से व्यापारिक संगठनों के लोग अपने सदस्यों
के हर काम को सही ठहराते हैं , उस तरह का काम कर रहे हों. कई बार देखा गया है
कि व्यापार और उद्योग के संगठन अपने सदस्यों की टैक्स चोरी या स्मगलिंग की
कारस्तानियों को भी सही ठहराते हैं . काटजू के खिलाफ भी टी वी संगठनों के जो
बयान आ रहे थे , उनमें से भी वही बू आती थी. इसलिए टी वी चैनलों के मालिकों
के संगठनों या टी वी न्यूज़ के संपादकों के संगठनों की बात को गंभीरता से लेने
की ज़रुरत नहीं है .इन लोगों का आचरण वैसा ही था जैसा अपने गैंग के लोगों की
हर बात को सही ठहराने की कोशिश कर रहे अपराधियों का होता है . संतोष की बात यह
है कि मार्कंडेय काटजू भी उसी स्तर नहीं उतरे . हालांकि उनके ऊपर बहुत
नीचे उतर कर व्यक्तिगत हमले भी किये गए थे . उनको सरकारी एजेंट तक कहा गया
लेकिन उन्होंने न तो राडिया टेप्स का ज़िक्र किया और न ही एक बार भी कुछ टी
वी पत्रकारों को पूंजीपतियों का एजेंट कहा . हालांकि वे यह बातें आसानी से कह
सकते थे और उनकी बात को सही मानने वाली बहुत बड़ी सँख्या में लोग मिल जाते
.ज़रुरत इस बात की है कि जस्टिस मार्कंडेय काटजू के " पूअर इंटेलेक्चुअल
लेवल " वाले बयान पर पूरी गंभीरता से बहस हो और टी वी चैनलों में मौजूद
अज्ञानी लोग अपनी गलती मानें और मीडिया को अपने सामजिक और ऐतिहासिक दायित्व
को निभाने का मौक़ा मिले.