Sunday, June 8, 2014

औरतों को तालीम की ताक़त दो ,वरना इन्साफ नहीं होगा



शेष नारायण सिंह

देश के हर कोने से महिलाओं पर हो रहे अत्याचार की ख़बरें आ रही हैं।  अभी खबर आयी है कि  मुंबई के पास कल्याण में एक मर्द ने सरकारी बस में यात्रा कर रही एक महिला को इतना पीटा कि  वह बेहोश हो गयी।  उसको बचाने के लिए बस की कंडक्टर आई तो उसको भी मारा पीटा।  बस में  ने उनकी वहशत का कोई जवाब  नहीं  दिया।  उत्तर प्रदेश से  बलात्कार की ख़बरें कई ज़िलों से आ रही हैं।  मध्य प्रदेश और राजस्थान में महिलाओं के साथ अत्याचार की इतनी ख़बरें आती हैं कि  जब किसी दिन घटना की सूचना नहीं आती तो लगता है कि  वही समाचार  का विषय है। आज दिल्ली के अखबारों में खबर है  कि  किसी नराधम ने एक तीन साल की बच्ची के साथ बलात्कार किया। उत्तर प्रदेश से लड़कियों से हैवानियत की जितनी भी रिपोर्टें आ रही हैं उनमें ज़्यादातर ऐसी बच्चियों को शिकार बनाया गया है जो शाम ढले शौच के लिए घर से बाहर खेतों में  जा रही थीं . यानी अगर उनके घर में शौच की सुविधा होती , शौचालय बनाने की सरकारी स्कीम के तहत शौचालय बनवा दिए गए होते तो बड़ी संख्या में लड़कियों को बलात्कार जैसी जघन्य पाशविकता का शिकार होने से बचाया जा सकता था. केंद्र सरकार के संगठन , राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन( एन एस एस ओ ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के गाँवों में रहने वाली साठ फीसदी आबादी के पास घर में या घर के पास शौचालय नहीं है . केंद्र सरकार की तरफ से राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन लागू किया गया है .ग्रामीण आबादी के लिये अप्रैल, 2005 में शुरू किया गया . इस कार्यक्रम में महिलाओं और उनके स्वास्थ्य में सुधार को सबसे ज़्यादा प्राथमिकता दी गयी है . एक बड़ी धनराशि महिलाओं की सुविधा को ध्यान में रखकर शौचालयों के लिए रिज़र्व कर दी गयी थी. देश के अठारह राज्यों के लिए इस स्कीम में ख़ास इंतज़ाम किये गए थे . अरुणाचल प्रदेश,असमबिहारछत्तीसगढ़हिमाचल प्रदेशझारखंडजम्मू कश्मीरमणिपुरमिजोरममेघालयमध्य प्रदेश,नागालैण्डउड़ीसाराजस्थानसिक्किमत्रिपुराउत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश में केंद्र सरकार की और से अब तक शौचालय के नाम पर बड़ी रक़म दी जा चुकी है लेकिन गैरजिम्मेदार राज्य सरकारों ने इस दिशा में कोई ख़ास काम नहीं किया. मन कहता है की काश सरकारों ने अपने ज़िम्मेदारी निभाई होती तो आज  उन बच्चियों को बलात्कार जैसे भयानक अपराध से बचाया जा सका होता.

 

लेकिन यहीं पर दूसरा सवाल पैदा होता है . क्या वे लड़कियां जो अकेले देखी जायेगीं उनको बलात्कार का शिकार बनाया जायेगा. बार बार सवाल पैदा होता है कि लड़कियों के प्रति समाज का रवैया इतना वहशियाना क्यों है। दिसंबर २०१३ में हुए दिल्ली गैंग रेप कांड के बाद समाज के हर वर्ग में गुस्सा था.  अजीब बात है कि बलात्कार जैसे अपराध के बाद शुरू हुए आंदोलन से वह बातें निकल कर नहीं आईं जो महिलाओं को राजनीतिक ताक़त  देतीं  और उनके सशक्तीकरण की बात को आगे बढ़ातीं . गैंग रेप का शिकार हुई लडकी के साथ हमदर्दी वाला जो आंदोलन शुरू हुआ था उसमें बहुत कुछ ऐसा था जो कि व्यवस्था बदल देने की क्षमता रखता था लेकिन बीच में पता नहीं कब अपना राजनीतिक एजेंडा चलाने वाली राजनीतिक पार्टियों ने आंदोलन को हाइजैक कर लिया और केन्द्र सरकार ,दिल्ली  सरकार और इन सरकारों को चलाने वाली राजनीतिक पार्टी फोकस में आ गयी . कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने की कोशिश में लगी हुई पार्टियों ने आंदोलन को दिशाहीन और हिंसक बना दिया . इस दिशाहीनता का नतीजा या हुआ  कि महिलाओं के सशक्तीकरण के मुख्य मुद्दों से राजनीतिक विमर्श को पूरी तरह से भटका दिया गया  .  बच्चियों और महिलाओं के प्रति समाज के रवैय्ये को  बदल डालने का जो अवसर मिला था  उसको गँवा दिया गया।   अब ज़रूरी है कि कानून में ऐसे इंतजामात किये जाएँ कि अपराधी को मिलने वाली सज़ा को देख कर भविष्य में किसी भी पुरुष की हिम्मत न पड़े कि बलात्कार के बारे में सोच भी सके.  उस समाज के खिलाफ सभ्य समाज को लामबंद होने की ज़रूरत है जो लडकी को इस्तेमाल की वस्तु साबित करता है  और उसके साथ होने वाले बलात्कार को भी अपनी शान में गुस्ताखी मान कर सारा काम करता है . हमें एक ऐसा समाज  चाहिए जिसमें लडकी के साथ बलात्कार करने वालों और उनकी मानसिकता की हिफाज़त करने वालों के खिलाफ लामबंद होने की इच्छा हो और ताक़त हो. 

 चारों तरफ महिलाओं के प्रति अत्याचार की ख़बरें हैं।  किसी दिन के अखबारों पर नज़र डालें तो बलात्कार के कम से कम दस मामले ऐसे हैं जिनकी खबर छपी है . ये ऐसे मामले हैं जिनको पुलिस थानों में बाकायदा रिपोर्ट किया गया है . इन बलात्कारों से भी ज्यादा अपमानजनक बहुत सारे  विज्ञापन हैं जो अखबारों और टेलिविज़न चैनलों पर चलाये जा रहे हैं .महिलाओं को उपभोग की चीज़ साबित करने की कोशिश करने वाली इस मानसिकता के खिलाफ जंग  छेड़ने की ज़रूरत है जिसमें लडकी को संपत्ति मानते हैं . इसी मानसिकता के चलते इस देश में लड़कियों को दूसरे दरजे का इंसान माना जाता है और उनकी इज्ज़त को मर्दानी इज्ज़त से जोड़कर देखा जाता है . लडकी की इज्ज़त की रक्षा करना समाज का कर्त्तव्य माना जाता है . यह गलत है . पुरुष कौन होता है लडकी की रक्षा करने वाला . ऐसी शिक्षा और माहौल बनाया जाना चाहिए जिसमें लड़की खुद को अपनी रक्षक माने . लड़की के रक्षक के रूप में पुरुष को पेश करने की  मानसिकता को जब तक खत्म नहीं किया जाएगा तह तक कुछ भी बद्लेगा नहीं. जो पुरुष समाज अपने आप को महिला की इज्ज़त का रखवाला मानता है वही पुरुष समाज अपने आपको यह अधिकार भी दे देता है कि वह महिला के  यौन जीवन का संरक्षक  और उसका उपभोक्ता है . इस मानसिकता को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया जाना चाहिए .मर्दवादी सोच से एक समाज के रूप में लड़ने की ज़रूरत है . और यह लड़ाई केवल वे लोग कर सकते हैं जो लड़की और लड़के को बराबर का  इंसान मानें और उसी सोच को जीवन के हर क्षेत्र में उतारें .  कमज़ोर को मारकर बहादुरी दिखाने वाले जब तक अपने कायराना काम को शौर्य बताते रहेगें तब तक इस देश में बलात्कार करने वालों के हौसलों को तोड़ पाना संभव नहीं होगा. अब तक का भारतीय समाज  का इतिहास ऐसा है जहां औरत को कमज़ोर बनाने के सैकड़ों संस्कार मौजूद हैं . स्कूलों में भी कायरता को शौर्य बताने वाले पाठ्यक्रमों की कमी  नहीं है .इन पाठ्यक्रमों को खत्म करने की ज़रूरत है . सरकारी स्कूलों के स्थान पर देश में कई जगह ऐसे स्कूल खुल गए हैं,जहां मर्दाना शौर्य की वाहवाही की शिक्षा दी जाती है . वहाँ औरत को एक ऐसी वस्तु की रूप में सम्मानित करने की सीख दी जाती है .इस समाज में औरत का सम्मान पुरुष के सम्मान से जुड़ा हुआ है . इस मानसिकता के खिलाफ एकजुट  होकर उसे ख़त्म करने की ज़रूरत है . अगर हम एक समाज के रूप में अपने आपको बराबरी की बुनियाद पर नहीं स्थापित कर सके तो जो पुरुष अपने आपको महिला का रक्षक बनाता फिरता है वह उसके साथ ज़बरदस्ती करने में भी संकोच नहीं करेगा. शिक्षा और समाज की बुनियाद में ही यह भर देने की ज़रूरत है कि पुरुष और स्त्री बराबर है और कोई किसी का रक्षक नहीं है. सब अपनी रक्षा खुद कर सकते हैं. बिना बुनियादी बदलाव के बलात्कार को हटाने की कोशिश वैसी  ही है जैसे किसी घाव पर मलहम लगाना . हमें ऐसे एंटी बायोटिक की तलाश करनी है जो शरीर में ऐसी शक्ति पैदा करे कि घाव होने की नौबत ही न आये. कहीं कोई बलात्कार ही न हो . उसके लिए सबसे ज़रूरी बात यह है कि महिला और पुरुष के बीच बराबरी को सामाजिक विकास की आवश्यक शर्त माना जाए.

इस बात की भी ज़रुरत है कि लड़कियों की तालीम को हर परिवार ,हर बिरादरी सबसे बड़ी प्राथमिकता बनाये और उनकी शिक्षा के लिए ज़रूरी पहल की जाए . जहां तक मुसलामानों की बात है केंद्र सरकार के पंद्रह सूत्र प्रोग्राम में लड़कियों की तालीम पर पूरा जोर दिया गया  है . मौजूदा  सरकार के प्रधानमंत्री ने कई बार कहा है कि पिछली सरकार की जो अच्छी बातें हैं उनको लागू किया जाएगा. सबको मालूम है की सच्चर कमेटी की रिपोर्ट और प्रधानमंत्री का पंद्रह सूत्री प्रोग्राम अल्पसंख्यकों के हवाले से पिछली सरकार के बहुत ही अच्छे प्रोग्राम हैं , मौजूदा सरकार अगर उनको लागू करती है जो लड़कियों का इम्पावरमेंट तालीम के ज़रिये होगा और अगर सही तरीके से महिलाओं को अवसर दिए गए तो बलात्कार जैसे अपराध बिलकुल कम हो जायेगें . या यह भी हो सकता है कि नई सरकार को इन दस्तावेजों से एतराज़ हो क्योंकि इनका फोकस मुस्लिम ख़वातीन पर ज़्यादा है तो उनको अपनी कोई नई स्कीम लानी चाहिए . लेकिन जो भी करना हो फ़ौरन करना पडेगा क्योंकि इस दिशा में जो काम आज से साठ साल पहले  होने चाहिए थे उन्हें अब शुरू करना है . अगर और देरी हुई तो बहुत देर हो जायेगी .

यू पी में बलात्कार की शिकार महिला जज भी ,सरकार की असंवेदनशीलता बरकरार

शेष नारायण सिंह 


उत्तर प्रदेश में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार लगातार चर्चा में हैं .  बदायूं में पिछड़ी जाति की दो लड़कियों के साथ बलात्कार ,बहुत ही जघन्य तरीके से की गयी उनकी हत्या और उस हत्या के ज़रिये आतंक फैलाने की अपराधियों की मंशा , मानवता के इतिहास के उन नीचतम कार्यों में दर्ज होगी जिसको याद करके आने वाली  नस्लें हमारी पीढी के शासकों के नाम पर थूकेगीं.  उत्तर प्रदेश की राजनीति और प्रशासन में एक ख़ास जाति के लोगों का दबदबा  है और उसी दबदबे के चलते इस जाति में अपराधी प्रवृत्ति के लोग आतंक फैला चुके हैं . आतंक के इस राज में देखा गया है कि पुलिस के कर्मचारी भी अपराधियों के साथ मिलकर वारदात को अंजाम दे रहे हैं . यह अक्षम्य है . बदायूं की घटना में पुलिस वाले भी शामिल थे . इस वारदात को मीडिया में खासी जगह मिल गयी.  शायद इसका कारण  यह था कि बहुत दिनों तक  उत्तर प्रदेश पर मीडिया का फोकस चुनाव की सरगर्मी के कारण रहा था और जब चुनाव से जुडी खबरें ख़त्म हो गयीं तो राजकाज में ज़िम्मेदारी से जुडी एक खबर को मीडिया ने अपनी ज़द में ले लिया और बलात्कार और ह्त्या की वे घटनाएं खबर बनने लगीं जो उत्तर प्रदेश में आमतौर पर रूटीन की घटनाएं बताकर टाल दी जाती हैं .
बदायूं की घटना के अलावा भी बहुत सी घटनाएं रोज़ ही उत्तर प्रदेश में हो रही हैं .बदायूं के बलात्कार और ह्त्या की घटना पर अपनी प्रतिक्रिया में उत्तर प्रदेश पुलिस के एक बहुत बड़े अफसर ने दावा किया कि राज्य में अभी प्रतिदिन बलात्कार की चौदह घटनाएं होती हैं . उनका कहना  था कि राज्य बहुत बड़ा  है , आबादी बहुत है , इसलिए अगर उत्तर प्रदेश में प्रतिदिन बलात्कार की बाईस घटनाएं हों तो अनुपात सही बैठेगा . इस गैरजिम्मेदार पुलिस अफसर की आपराधिक स्वीकारोक्ति को किस श्रेणी में रखा जाय यह बात समझ के बिकुल परे है. लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री भी कुछ कम  नहीं हैं . राज्य के हर कोने से आ रही बलात्कार  की घटनाओं और बिजली की कटौती से मचे हाहाकार के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव , मीडिया से मुखातिब हुए और जो ज्ञान उन्होंने दिया वह राजकाज के किसी भी जानकार की समझ में आने वाला नहीं हैं . उन्होने कहा कि ," मैंने बार बार कहा  है कि ऐसी घटनाएं केवल उत्तर प्रदेश में नहीं हो रही हैं . बंगलूरू में भी ऐसी  ही एक घटना हुयी , मध्यप्रदेश में एक बड़े मंत्री के रिश्तेदार की चेन उनके घर के सामने ही छीन ली गयी " मुख्यमंत्री ने सवाल उठाया कि क्या मीडिया ने उन खबरों को दिखाया . मुख्यमंत्री जी के इन सवालों का क्या जवाब हो सकता  है . सवाल उठता है कि अगर अन्य राज्यों में अपराध की घटनाएं हो रही हैं तो क्या उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री को अपराध को बढ़ावा देने और उनपर काबू करने की कोशिश न करने का लाइसेंस मिल जाता है .
 उत्तर प्रदेश सरकार और उसके मुख्यमंत्री उस घटना के बारे में क्या कहेगें जो अभी अलीगढ से रिपोर्ट हुई है जिसमें अलीगढ की एक महिला  जज के अति सुरक्षित घर में घुसकर दो बदमाशों ने  बलात्कार की कोशिश की ,उनको कोई ज़हरीला पदार्थ पिलाया और जज साहिबा को मारा पीटा.अलीगढ़ में जहां वारदात हुई है वह राज्य सरकार की  सुरक्षा पुलिस ,पी ए सी की २४ घंटे की सुरक्षा का क्षेत्र हैं . जजेज कम्पाउंड नाम  की कालोनी में महिला जज का यह घर और उसमें रहने वाली बड़ी न्यायिक अधिकारी की इज्ज़त भी जब अपराधियों  से  महफूज़ नहीं है तो राज्य के गरीब आदमियों की बच्चियों का कौन रक्षक होगा .  
अभी दो साल पहले पूरे बहुमत के साथ राज्य में सरकार बनाने वाले राज्य के मुख्यमंत्री को शासन करने की ज़रुरत से दो चार होना पडेगा, हुकूमत का इक़बाल बुलंद करना पडेगा , अपराधी चाहे जिस जाति या धर्म का हो उसके मन में कानून की ताक़त का अहसास करना पड़ेगा और अगर ऐसा नहीं हो सका तो हुकूमत को अपने अस्तित्व के बारे में भी गंभीरता से सोचना पडेगा क्योंकि जब राजकाज ही सही तरीके से नहीं चला सकते तो स्पष्ट बहुमत को जनता वैसे ही अल्पमत में बदल सकती है जिस तरह से लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की पार्टी की राजनीतिक ताक़त को तबाह करके किया है .मुख्यमंत्री जी को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि केंद्र में अब एक ऐसी सरकार है जो उनकी पार्टी या उसके नेताओं की किसी तरह से भी रक्षा नहीं करने वाली है ,बल्कि उनकी सरकार की कोई भी बड़ी गलती उनकी सरकार को अस्तित्व के संकट में डाल सकती है ..

प्रॉपर्टी माफिया के शिकार लोगों के प्रति सरकार की ज़िम्मेदारी




शेष नारायण सिंह 

मुंबई में संपन्न लोगों की हाउसिंग सोसाइटी ,कैम्पा  कोला बिल्डिंग के गिराये जाने के मुंबई महानगर निगम के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को सर्वोच्च न्यायलय से खारिज़ कर दिया और इस तरह से उस बिल्डिंग में रहने वाले लोगों की उम्मीदें समाप्त  हो गयी हैं।  उनको मालूम है कि  उनके घर अब बच पायेगें।  मुंबई के वर्ली इलाक़े में  यह आवासीय बिल्डिंग स्थित है। यह गैरकानूनी तरीके से बनायी गयी इमारत  है।  यहां रहने वालों का आरोप है बिल्डर ने उनको अँधेरे में रख कर उनसे गलत वायदा करके इस बिल्डिंग की बुकिंग की और महंगे दामों पर घर बनाकर दे दिया।  सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को नहीं मंज़ूर किया कि  उनको कुछ भी मालूम नहीं था।  अब इस बहुत क़ीमती   मकानों  वाली बिल्डिंग का गिराया जाना  निश्चित माना जा रहा है।  

मुंबई की कैम्पा कोला सोसाइटी के विवाद के सन्दर्भ से देश में हर बड़े शहर में पैदा होने वाले उस माफिया  के बारे में  चर्चा शुरू हो जानी चाहिए जो हमारे राजनीतिक और सामाजिक जीवन को बहुत ही बुरी तरह से प्रभावित कर रहे हैं  . हर बड़े शहर में ऐसे लोगों की बहुत बड़ी संख्या देखी जा  सकती है जो सरकार की मान्यताप्राप्त योजनाओं के दायरे से बाहर लोगों को मकान दिलवाने के सपने दिखाते  हैं।  इनकी कोशिश यह होती है कि  मध्य वर्ग को मान्यताप्राप्त इलाक़ों के बाहर  अपेक्षाकृत कम दाम वाले मकान दिलाने के नाम पर अपने जाल में फंसा लें।  देश के बड़े शहरों में इस तरह के लालच का शिकार  हुए लोगों  की बहुत बड़ी आबादी है।  दिल्ली में तो योजनाबद्ध तरीके से बसी हुयी कालोनियों के  बाहर रहने वालों की  संख्या बहुत अधिक है।  होता यह है कि  सरकार द्वारा अधिग्रहीत ज़मीनों पर कालोनी काटकर गरीब आदमियों को घर का सपना दिखाया जाता है।  कोशिश   होती है कि  जल्दी से जल्दी लोगों को वहां बसा दिया जाए और उनका नाम वोटर लिस्ट में डलवा दिया जाये. यह कालोनियां ऐसी होती हैं जहां कोई सुविधा नहीं होती. शुरू में जनरेटर से बिजली दी जाती है।  सीवेज की लाइन नहीं होती।  घर के आसपास ही सोक पिट बनवा दिए जाते हैं।  पीने के पानी का इंतज़ाम नहीं होता इसलिए कच्ची बोरिंग करवा दी जाती है।  ज़मीन का हर वर्ग फुट एक निश्चित कीमत दे रहा होता है इसलिए सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए कोई भी जगह नहीं छोड़ी जाती।  नतीजा यह होता है एक अनधिकृत स्लम बस्ती तैयार हो जाती है।  यहां की आबादी अन्य इलाक़ों से बहुत ज़्यादा होती है इसलिए यहां वोट भी बहुत ज़्यादा होते हैं।  नतीजा यह होता है कि  इतनी बड़ी संख्या में  वोट लेने के लिए सभी पार्टियों के नेता इन बस्तियों को नियमित कराने के वायदे करते  रहते हैं।  अक्सर देखा गया है कि  चुनाव के दौरान इस तरह की बस्तियों को अधिकृत करने के वायदे किये जाते हैं और जब चुनाव ख़त्म होता है  तो इन बस्तियों को नियमित कर दिया जाता है।  यह बहुत ही ज़हरीला सर्किल है और इस तरह की बस्तियों के चलते ही बहुत से काम होते हैं  जो सभ्य समाजों में नहीं होने चाहिए।    

ऐसी कालोनियों से समाज और मानवता का बहुत नुक्सान होता है। सबसे बड़ा नुक्सान तो  स्वास्थय सेवाओं के क्षेत्र में होता है।  इन बस्तियों में स्वास्थय की कोई सुविधा नहीं होती. उलटे बीमारी बढ़ाने की सारे इंतज़ाम मौजूद  रहते हैं.   अनधिकृत होने के कारण यहां सीवर लाइन नहीं होती और खुली नालियां बजबजाती रहती हैं।  पीने का पानी भी साफ़ नहीं होता।  शौच आदि की कोई सुविधा नहीं होती. शुरू में यह  कालोनियां किसी भी  म्युनिसिपल रिकार्ड आदि में नहीं होती इसलिए यहां रहने वाले लोगों के बारे में  कोई भी  सांख्यिकीय जानकारी नहीं उपलब्ध की जा सकती।  इसके अलावा यहां  रियल एस्टेट माफिया के लोग नेताओं के एजेंट के रूप में काम करते हैं।  आजकल तो एक नया  हो गया है।  प्रॉपर्टी के काम में लगे हुए बहुत सारे लोग बड़े  शहरों में चुनाव जीत रहे हैं।  प्रॉपर्टी के धंधे में  अपनाई  गयी बहुत सारी तरकीबों   राजनीति में भी अपनाते हैं। 



मुंबई की  हाउसिंग सोसाइटी ,कैम्पा  कोला के सर्वोच्च न्यायालय में आये केस के  हवाले से केंद्र में  सत्ता में आयी नरेंद्र मोदी सरकार को शहरी विकास के एक अहम मुद्दे पर  गौर करना बहुत ज़रूरी है।  नरेंद्र मोदी ने  प्रधानमंत्री बनने के पहले देश को  भरोसा दिलाया था कि  वे देश भर में एक सौ नए शहर बसाकर देश के औद्योगिक विकास की गति को तेज़ी देगें।  उनके सतर्क रहना चाहिए कि  इन नए शहरों में भी  रीयल  एस्टेट माफिया उनकी योजनाओं  को बेकार साबित करने की साज़िश में न जुट जाये.  ध्यान रखना होगा कि  रीयल  एस्टेट माफिया के पास आजकल बहुत सारी आर्थिक और राजनीतिक ताक़त  गयी है। कैम्प कोला सोसाइटी में समाज के सबसे धनी वर्ग के लोग रहते  हैं लेकिन देश की ज़्यादातर गैरकानूनी इमारतों  में बहुत गरीब लोग रहते हैं।  आज का फैसला इस बात  की चेतावनी है कि  सरकार को प्रॉपर्टी  माफिया से संभलकर रहना होगा।