Friday, October 8, 2010

पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन की अफवाह , मुशर्रफ की वापसी की चर्चा

शेष नारायण सिंह

पाकिस्तान पर अमरीकी शिकंजा कसता जा रहा है. गुरुवार को फिर पाकिस्तान में ५० ट्रकों को आग के हवाले कर दिया गया जो अमरीकी सेना के लिए पेट्रोल ,डीज़ल आदि लेकर अफगानिस्तान जा रहे थे. कल भी कुछ ट्रकों को आग के हवाले कर दिया गया था. खबर है कि अमरीका ने तय किया है कि अब नैटो की अफगानिस्तान में तैनात सेनाओं के लिए सारा सामान रूस के रास्ते भेजा जायेगा . पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादियों के बारे में अमरीका किसी बड़ी कार्रवाई की तैयारी कर रहा है. अब अमरीका पाकिस्तान को कोई भी स्पेस देने को तैयार नहीं है . पाकिस्तान की सिविलियन सरकार और सेना प्रमुख जनरल कयानी को अब अमरीकी बहुत दिनों तक बर्दाश्त करने के मूड में नहीं दीखते.पाकिस्तान की तरफ से अमरीका में काम कर रही कुछ लाबी कंपनियों ने बहुत ही सोच विचार कर एक अफवाह फैलाई थी कि नवम्बर में भारत की यात्रा पर जा रहे अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत से कहने वाले हैं कि कश्मीर के मामले में पाकिस्तान के साथ सुलह सफाई कर लो तो भारत को सुरक्षा परिषद् में शामिल करने पर विचार किया जाएगा . पाकिस्तान की आतंरिक राजनीति में इस अफवाह के ज़रिये बहुत काम हो सकता था . आम तौर पर इस तरह की अफवाहों का खंडन नहीं किया जाता . और मित्र देश को इस अफवाह के सहारे कुछ राजनीतिक माइलेज लेने दिया जाता है . लेकिन अब अमरीकी प्रशासन पाकिस्तान के साथ थोड़ी सख्ती बरत रहा है शायद इसी योजना के तहत एक अंग्रेज़ी टेलीविज़न चैनेल से बातचीत में भारत में अमरीकी राजदूत , रोमर ने साफ़ कह दिया कि कश्मीर में अमरीका किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करेगा क्योंकि अमरीका मानता है कि कश्मीर का मामला शुद्ध रूप से भारत का आन्तरिक मामला है . इस खंडन के बाद पाकिस्तानी हुक्मरान को खासी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है . इस बीच पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में यह चर्चा ज़ोरों पर है कि अमरीका पाकिस्तानी फौज़ और सिविलियन सरकार दोनों के आला हाकिम बदलना चाहता है . अफवाहों का बाज़ार गर्म है और पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और सेना प्रमुख जनरल परवेज़ मुशर्रफ को झाड़ पोंछ कर तैयार किया जा रहा है . दक्षिण एशिया की नयी भू-राजनैतिक साच्चाई के मद्दे नज़र अब अमरीका पाकिस्तान में ऐसा राजा तैनात करना चाहता है जो भारत के साथ दुश्मनी को थोडा कम करे . अमरीका ने जनरल मुशर्रफ को बैपरा हुआ है. उसे मालूम है कि जनरल मुशर्रफ को अपना रुख बदलने में कोई टाइम नहीं लगता . इस पृष्ठभूमि में जनरल मुशर्रफ से बढ़िया कोई आदमी हो ही नहीं सकता क्योंकि मुशर्रफ अमरीका की इच्छा का आदर करने के लिए भारत के खिलाफ दुश्मनी में कमी लाने में कोई संकोच नहीं करेगें . उन्होंने अमरीका को खुश रखने के लिए पाकिस्तान की अफगान नीति को एक दिन में बदल दिया था . तालिबान की सरकार को पाकिस्तान ने ही बनवाया था लेकिन जब अमरीका ने कहा कि उन्हें तालिबान के खिलाफ काम करना है , मुशर्रफ बिना पलक झपके तैयार हो गए थे. उन्हें उम्मीद है कि भारत के साथ दुश्मनी करने वाले को अब अमरीका पाकिस्तान के तख़्त पर नहीं बैठाना चाहता . उन्हें यह भी मालूम है कि मौजूदा ज़रदारी-गीलानी सरकार से भी अमरीका पिंड छुडाना चाहता है . फौज के मौजूदा मुखिया के दिलो-दिमाग पर भारत के खिलाफ नफरत कूट कूट कर भरी हुई है . ऐसी हालत में पाकिस्तान पर राज करने के लिए जिस पाकिस्तानी की तलाश अमरीका को है , जनरल मुशर्रफ अपने आप को उसी सांचे में फिट काना चाहते हैं . अमरीका और भारत की पसंद की बातें करके जनरल मुशर्रफ अपने प्रति सही माहौल बनाने के चक्कर में हैं .
जनरल परवेज़ मुशर्रफ का एक जर्मन अखबार को दिया गया बयान इसी रोशनी में देखा जाना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा है कि कश्मीर में आतंक का राज कायम करने की कोशिश में लगे आतंकवादियों को पाकिस्तान सरकार ने ही ट्रेनिंग दी है और उनकी देख-भाल भी पाकिस्तानी सरकार ही कर रही है . परवेज़ मुशर्रफ के इस इकबालिया बयान के बाद दुनिया भर के कूटनीतिक हलकों में यह चर्चा शुरू हो गयी है कि जनरल मुशर्रफ अमरीकियों के पसंद की बात कह कर उनके करीब आने की कोशिश कर रहे हैं . पाकिस्तान का राष्ट्रपति रहते हुए जनरल मुशर्रफ ने हमेशा यही कहा कि कश्मीर में जो भी हो रहा है वह कश्मीरियों की आज़ादी की लड़ाई है और पाकिस्तान की सरकार कश्मीर में लड़ रहे लोगों को केवल नैतिक समर्थन दे रही है . लेकिन अब उनकी बोली बदल रही है . पाकिस्तान में अमरीका की रूचि केवल इतनी है कि वह उसे अल-कायदा को ख़त्म करने के लिए इस्तेमाल करना चाहता है . .अमरीका अब भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा चुका है . ज़ाहिर है वह भारत से दुश्मनी करने वाले को पाकिस्तान का चार्ज देने में संकोच करेगा . उसे ऐसे किसी बन्दे की तलाश है जो भारत को दुश्मन नंबर एक न माने. और मुशर्रफ के बयान को कूटनीतिक हलकों में इसी पृष्ठभूमि के साथ समझा जा रहा है .