Friday, August 23, 2013

नार्वे के राष्ट्रीय चुनाव के बाद सत्ता परिवर्तन की दस्तक

शेष नारायण सिंह
ओस्लो,२२ अगस्त . नार्वे के संसद , स्तूर्तिंग, के लिए चुनाव प्रचार जोर शोर से चल रहा है . मौजूदा लेबर प्रधानमंत्री , येंस स्तूलतेनबर्ग को कंज़रवेटिव पार्टी के गठ्बंधन से चुनावी चुनौती मिल रही है . पार्टी का चुनावी नारा , अल्ले स्कल में यानी सब साथ रहेगें बहुत असर नहीं दिखा पा रहा है क्योंकि अब तक के चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में उनकी पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी का  गठबंधन पीछे चल रहा है . यहाँ संसद का टर्म चार साल का होता है . और इस बार का वोट  देश के १५८वी संसद का चुनाव करेगा .९ सितम्बर को पूरे देश में १६९ सदस्यों वाली संसद के लिए सदस्यों के चुनाव के लिए वोट डाले जायेगें . नार्वे में पार्टियों के लिए वोट डाले जाते हैं और  मिले हुए वोटों के प्रतिशत के हिसाब से उनके हिस्से में सदस्यों की संख्या आती है . भारत की तरह यहाँ हर चुनाव क्षेत्र में एक दूसरे के खिलाफ पार्टियों के उम्मीदवार नहीं खड़े होते. पार्टियों के चुनावी वायदे होते हैं उनके कार्यक्रम होते हैं और अपने कार्यकर्ताओं की उनकी अपनी लिस्ट होती है जो चुनाव के पहले ही दाखिल की जा चुकी होती  है . बाद में उनको मिले ही वोटों केअनुपात में हर पार्टी के सदस्यों की संख्या घोषित कर दी जाती है .

  निवर्तमान संसद में प्रधानमंत्री येंस स्तूलतेनबर्ग की लेबर पार्टी के ६४ सदस्य हैं . उनको सोशालिस्ट पार्टी के ११ और सेंटर पार्टी के ११ सदस्यों के सहयोग से बहुमत मिल गया था उसके बाद जब चार साल पहले सरकार बनाने की बात आई तो कुछ छोटी पार्टियों का समर्थन भी मिल गया. कंज़रवेटिव पार्टी को अभी तक के सर्वे के हिसाब से चुनावी बढ़त मिली हुई है . माहौल ऐसा  है कि लगता है कि इस बार आठ वर्षों से चली आ रही लेबर पार्टी की अगुवाई वाली येंस स्तूल्तेनबर्ग सरकार की विदाई हो जायेगी.
नार्वे के नामी टी वी चैनल  टी वी २ ने २१ अगस्त की रात राष्ट्रीय नेताओं  का टी वी डिबेट आयोजित किया .  यहाँ के चुनावों में इस बार मुख्य मुद्दा स्वास्थ्य सेवाओं का प्रशासन है .इसी विषय पर  टी वी २ चैनल का एक सर्वे भी आया है . उसी सर्वे को विषय बनाकर डिबेट आयोजित किया गया .बहस में यह बात साफ़ उभर कर आयी कि प्रधानमंत्री येंस स्तूल्तेनबर्ग  ने इस महत्वपूर्ण समस्या को पिछले आठ वर्षों में ज़रूरी गंभीरता से नहीं लिया है . होयरे पार्टी ( कंज़रवेटिव ) की अर्ना सूल्बर्ग ने बात को इस तरह से पेश किया कि  सरकार के  दावे विश्वास के लायक नहीं लगे और श्रीमती सूल्बर्ग की लोकप्रियता में इजाफा होता नज़र आया.  नार्वे पहला देश है जिसने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया था . इस साल नार्वे में उस ऐतिहासिक फैसले के सौ साल भी मनाये जा रहे हैं. लगता है कि इस चुनाव में जनता ने पुरुष प्रधानमंत्री को बेदखल करके होयरे पार्टी की अर्ना सूल्बर्ग और प्रोग्रेस पार्टी की सीव येन्सेन की संयुक्त टीम को सत्ता सौंपने का मन बना लिया है .टीवी के डिबेट यहाँ की चुनाव प्रक्रिया में एक अति महत्वपूर्ण भूमिका आदा करता है और उसके नतीजों से ४५ लाख की आबादी वाले इस देश की चुनावी दिशा का अंदाज़ लग जाता है . यह भी सच है कि विकसित दुनिया में सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आमदनी वाले संपन्न देश में  चुनावी माहौल बनता बिगड़ता रहता  अहि और ९ सितमबर को होने वाले चुनाव तक तस्वीर बदल भी सकती है .
लेबर पार्टी के चुनाव प्रचार को करीब से देखने का मौक़ा मिला. एक व्यापारिक सेंटर पर पार्टी के कार्यकर्ता इकट्ठा हुए . दो दो कार्यकर्ताओं की टोली एक ट्राली में गुलाब के फूल लेकर चल पडी. इलाके के हर घर में गए , जो मिला उससे बात की और लेबर को  वोट देने के लिए कहा . जो नहीं मिला उसके घर के सामने गुलाब का फूल रख दिया और अपना चुनावी पर्चा छोड़ दिया . निजी संपर्क का यह तरीका अपने देश के चुनावों से बिलकुल अलग और सभ्य लगा .अभी और भी टी वी  डिबेट आयोजित किये जायेगें और जनता को अपने फैसले लेने का मौक़ा मिलेगा  . नार्वे के चुनावों में लेबर के येंस स्तूल्तेनबर्ग को आठ साल में पहली बार निर्णायक चुनौती मिल रही है लेकिन ४५ लाख आबादी वाले इस देश में चुनाव का माहौल आख़री दिन तक बदलता है और अगली रिपोर्टों में बात को साफ़ करने की कोशिश की जायेगी.