Wednesday, August 3, 2011

गीता को पढने के बाद इंसान धीर गंभीर हो जाता है,गाली गलौज नहीं करता .

शेष नारायण सिंह

पिछले दिनों गीता को कर्नाटक के स्कूलों में ज़बरदस्ती पढाये जाने की एक खबर पर मैंने टिप्पणी की थी. उस टिप्पणी को कुछ मित्रों ने छाप दिया . उसके बाद गाली देने वालों की फौज उस पर टूट पड़ी . मुझे लगता है कि किसी ने यह देखने की तकलीफ नहीं उठायी थी कि उसमें लिखा क्या है. कर्नाटक के एक मंत्री ने कहा था कि जो लोग गीता को नहीं मानते वे देश छोड़कर चले जाएँ. दूसरी बात उसने कही थी कि गीता एक महाकाव्य है . मैंने बस यह कहा था कि यह दोनों ही बातें गलत हैं. वास्तव में महाभारत महाकाव्य है और गीता महाभारत का एक अंश है. मैंने गीता को पढ़ा है और मैं जानता हूँ कि योगेश्वर कृष्ण ने गाली गलौज को कभी सही बात नहीं माना . उन्होंने दुर्योधन को हमेशा घटिया आदमी माना क्योंकि वह गाली गलौज करता रहता था .उसी बात को मैंने रेखांकित कर दिया था . गाली देने वालों ने ऐसा माहौल बनाया कि मैं गीता के अध्ययन का ही विरोध कर रहा था. मैं यह मानता हूँ कि गीता को बार बार पढने के बाद इंसान धीर गंभीर हो जाता है,गाली गलौज नहीं करता .

धन्ना सेठों की चाकरी का एक और हथियार है केंद्र की प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण नीति

शेष नारायण सिंह

केंद्र सरकार का प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण कानून अगर पास हो गया तो देश में लगभग पूरी तरह से पूंजीवादी अर्थव्यवस्था लागू हो जायेगी. और आर्थिक विकास की प्रक्रिया में सरकारों की भूमिका बहुत ही कम हो जायेगी.मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े नेता, सीताराम येचुरी का कहना है कि यह बिल , भूमि अधिग्रहण जैसे संवेदनशील विषय पर जो विज़न पेश कर रहा है वह देश के औद्योगिक विकास को पूंजीपतियों के हवाले करके उस प्रक्रिया को अंजाम तक पंहुचाने का साधन है जिसे वित्तमंत्री के रूप में डॉ मनमोहन सिंह ने १९९१ में शुरू किया था. आर्थिक उदारीकरण की जो प्रक्रिया देश के आर्थिक विकास के माडल के रूप में उस वक़्त अपनाई गयी थी उसका सबसे बड़ा नुकसान आम आदमी को हो रहा है. आर्थिक उदारीकरण की वजह से ही देश में चारों तरह आज महंगाई का हाहाकार है .इसकी ज़िम्मेदारी पूरी तरह से प्रधानमंत्री की पूंजीवादी आर्थिक सोच पर ही है.संसद के मौजूदा सत्र में यह बिल पेश होने वाला है हालांकि इसका इसी रूप में पास हो पाना बहुत मुश्किल है .
केंद्र सरकार के प्रस्तावित कानून की तुलना में उत्तर प्रदेश सरकार की नई भूमि अधिग्रहण नीति कई गुना बेहतर है .सिंगुर ,नंदीग्राम भट्टा पारसौल आदि कांडों के बाद केंद्र सरकार ने १८९४ के भूमि अधिग्रहण क़ानून को हटाकर एक नया कानून लाने की प्रक्रिया शुरू कर दिया है .इस कानून का मसौदा भी ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने जारी कर दिया है . बिल की भूमिका में जयराम रमेश ने दावा किया है कि प्रत्येक मामले में भूमि का अधिग्रहण इस तरह से किया जाए कि इससे भूस्वामियों के हितों की पूरी तरह से सुरक्षा हो और साथ ही उनके हित भी सुरक्षित रहें जिनकी आजीविका अधिग्रहीत की जाने वाली ज़मीन से जुडी है . अजीब बात है कि केंद्र सरकार उन पूंजीपतियों की आजीविका को सुरक्षित करने की जल्दी में उनको किसान के समकक्ष खड़ा कर देना चाहती है जबकि इस देश में असली किसान आमतौर पर गरीब है और उसकी आर्थिक ताक़त पूंजीपतियों की आर्थिक ताक़त से बहुत कम है .जयराम रमेश ने बताया कि प्रस्तावित कानून में निजी कंपनियों को किसानों से ज़मीन खरीदने की पूरी छूट दी गयी है यानी अब राज्य और केंद्र सरकारों को निजी पूंजी की ताकत का सामना भी करना पडेगा.हालांकि प्रस्तावित बिल में किसानों को अधिक मुआवजा देने की बात की गयी है लेकिन यह दुधारी तलवार है . इसके लागू होने के बाद पिछड़े क्षेत्रों में विकास के बारे में सरकार की पहल करने की क्षमता पूरी तरह से ख़त्म हो जायेगी जबकि पूंजीपतियों के अलावा नए उद्यमियों को उद्योग लगाने का मौक़ा ही नहीं मिल पायेगा.
इस बिल की तुलना में उत्तर प्रदेश सरकार की नीति किसान के पक्ष में भी है और उद्योगों और नगरों के विकास को सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं जाने देती .उत्तर प्रदेश की नई नीति में किसान को उसकी अधिग्रहीन ज़मीन का ७ प्रतिशत आबादी का हिस्सा तो दिया ही गया है जबकि उसकी ज़मीन का १६ प्रतिशत विकसित ज़मीन बिना किसी भुगतान के देने का प्रावधान है .उस १६ प्रतिशत को वह बाज़ार के हिसाब से जैसा चाहे इस्तेमाल कर सकता है. दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस महासचिव ,राहुल गांधी अपने भाषणों में हरियाणा के भूमि अधिग्रहण कानून की तारीफ़ करते रहते हैं और बीजेपी वाले गुजरात के कानून की तारीफ़ करते पाए जाते हैं .राज्य में ज़मीन अधिग्रहण के मुक़दमों में व्यस्त उत्तर प्रदेश सरकार के एक अधिकारी ने बताया कि सच्चाई यह है कि उत्तर प्रदेश की ज़मीन अधिग्रहण की नई नीति हरियाणा और गुजरात की नीतियों से बेहतर है . यह अलग बात है कि उत्तर प्रदेश से चुन कर आये संसद सदस्य अपनी बेहतर नीति को मीडिया और संसद में ठीक से रख नहीं पाते.