Tuesday, February 1, 2011

मिस्र में अमरीकी विदेशनीति की अग्नि परीक्षा की घड़ी

शेष नारायण सिंह

काहिरा के तहरीर चौक पर आज लाखों लोग जमा हैं और हर हाल में सत्ता पर कुण्डली मारकर बैठे तानाशाह से पिंड छुडाना चाहते हैं . जहां तक मिस्र की जनता का सवाल है , वह तो अब होस्नी मुबारक को हटाने के पहले चैन से बैठने वाली नहीं है लेकिन अमरीका का रुख अब तक का सबसे बड़ा अडंगा माना जा रहा है. बहरहाल अब तस्वीर बदलती नज़र आ रही है . शुरुआती हीला हवाली के बाद अब अमरीका की समझ में आने लगा है कि मिस्र में जो जनता उठ खडी हुई है उसको आगे भी बेवक़ूफ़ नहीं बनाया जा सकता . अब लगने लगा है कि अमरीकी विदेशनीति के प्रबन्धक वहां के तानाशाह , होस्नी मुबारक को कंडम करने के बारे में सोचने लगे हैं . यह अलग बात है अभी सोमवार तक विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन इसी चक्कर में थीं कि मिस्र में सत्ता परिवर्तन ही हो . यानी अमरीकी हितों का कोई नया चौकी दार तैनात हो जाए जो होस्नी मुबारक का ही कोई बंदा हो कहीं . मुबारक मिस्र से हटकर कहीं और बस जाएँ और मौज की ज़िंदगी बिताते रहें . अपने प्रिय तानाशाहों के साथ अमरीका ऐसा ही करता रहा है . लेकिन इस बार अवाम का दबाव इतना है कि तिकड़म के कूटनीति के लिए कोई स्पेस नहीं बचा है . होस्नी मुबारक की फौज का लगभग सारा खर्च अमरीकी सैन्य सहायता से पूरा होता है . अमरीका मिस्र के लिए हर साल क़रीब डेढ़ अरब डालर की फौजी मदद का इंतज़ाम करता है .इस साल भी यह मदद की जा रही है . पिछले हफ्ते राष्ट्रपति ओबामा ने ऐलान किया था कि यह मदद बंद कर दी जायेगी लेकिन ऐसा होने वाला नहीं है. मिस्र की मज़बूत फौज मिस्र से ज्यादा इजरायल के काम आती है . उसी फौज़ की वजह से पश्चिम एशिया में इज़रायल की सुरक्षा सुनिश्चित होती है . जहां तक अमरीका का सवाल है वह इजरायल की बदमाशी के कारण ही पश्चिमी एशिया और अरब देशों में अपनी राजनीति को चमकाता है . इसलिए इजरायल किसी भी हालत में मिस्र की सेना को कमज़ोर नहीं होने देगा . लेकिन आज इज़रायल और अमरीका की चिंताएं दूसरी हैं . जो लाखों लोग आज तहरीर चौक पर जमा हैं , उनकी राजनीति के बारे में किसी को पता नहीं हैं . उनका कोई नेता नहीं है . हालांकि अभी तक वह आन्दोलन पूरी तरह से महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक विषमता को केंद्र में रख कर चलाया जा रहा है लेकिन खबर है कि इस्लामी ब्रदरहुड नाम की संस्था ने अगुवाई करने की कोशिश शुरू कर दी है . इस संगठन के प्रभाव वाली सरकार न तो अमरीका को सूट करेगी और न ही उसे इज़रायल स्वीकार करेगा . ज़ाहिर है कि अमरीका की कोशिश है कि होस्नी मुबारक को अगर हटाना ही पड़ता है तो वह उसे हटा तो देगा लेकिन उनकी गह पर वह किसी इस्लामी प्रभाव वाली सरकार को बर्दाश्त नहीं करेगा . इरान में शाह रजा पहलवी की सरकार घोषित रूप से अमरीका परस्त सरकार थी . शाह के खिलाफ जब आन्दोलन ने जोर पकड़ा तो अमरीका गाफिल पड़ गया और वहां इस्लामी सरकार बन गयी . आज तक अमरीकी विदेश नीति के प्रबंधक अमरीका के उस वक़्त के विदेश नीति के प्रबंधकों को कोसते पाए जाते हैं . इसलिए अमरीका किसी कीमत पर मिस्र में इरान वाली गलती नहीं दोहराना चाहता . शायद इसीलिये जांचे परखे अमरीका के दोस्त , अल बरदेई को आगे किया गया है . संयुक्त राष्ट्र के परमाणु इन्स्पेक्टर के रूप में वे अमरीकी हुक्म को पालन करने का तजुर्बा रखते हैं . दुनिया भर में जाने जाते है और उनका अंतर राष्ट्रीय प्रोफाइल भी ठीक है . अब तक की स्थिति से लगता है कि अमरीका उन पर ही अपनी बाज़ी लगा रहा है . जो भी हो आज की तहरीर चौक की स्थिति ऐसी है कि अब अमीका को फ़ौरन से पेशतर मिस्र में सत्ता परिवर्तन के लिए तैयार हो जाना पड़ेगा .

काहिरा की सडकों पर जमे हुए लोगों को इरान की सरकार ने आज पूरा समर्थन कर दिया है . यह एक ऐसा समर्थन है जिसे मिस्र की अगली सरकार से अमरीका हर हाल में दूर रखना चाहेगा . शायद इसी हालत से बचने के लिए अमरीकी विदेश विभाग ने मिस्र में हो रहे बद्लाव पर अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिए मिस्र में रह चुके अमरीकी राजदूत फ्रैंक विजनर को काहिरा के लिए रवाना कर दिया है . पश्चिमी एशिया में अमरीका के बहुत सारी दोस्त सरकारें हैं . सभी तानाशाही की सरकारें हैं और सभी उन गुनाहों में लिप्त हैं जिसकी वजह से होस्नी मुबारक को आज जाना पड़ रहा है . सभी सरकारों की नज़र अमरीका पर है . वे देख रहे हैं कि अपने हुक्म के एक गुलाम राष्ट्रपति को अमरीका कितना समर्थन दे पाता है . अमरीका के प्रति उनका रुख भी मिस्र की घटनाओं को ध्यान में रख कर ही तय होगा . लेकिन अमरीका की मजबूरी यह है कि वह अगर आज के बाद भी मुबारक को समर्थन देता है तो मिस्र की नयी सरकार के साथ उसको बहुत मुश्किल पेश आयेगी. ज़ाहिर है अमरीका का रास्ता बहुत मुश्किल हो गया है. उसकी हालत यह है कि उसके सामने आग का दरिया है और तैरना भी ज़रूरी है . मिस्र में सत्ता के बदलाव का असर पश्चिम एशिया की कूटनीति पर तो पडेगा ही बाकी दुनिया में भी अमरीकी विदेश नीति की अग्निपरीक्षा होने वाली है .

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