शेष नारायण सिंह
मुंबई ,११ अक्टूबर . मुम्बई के दो सरकारी अस्पतालों की नर्सों ने अपने अस्पतालों के सामने प्रदर्शन किया और नारे लगाये. उनकी मांग थी कि उन्होंने सरकारी अस्पताल में काम करने के लिए नौकरी की है . वे किसी मंत्री के घर जाकर उसके किसी रिश्तेदार की देखभाल करने के लिए तैयार नहीं हैं.इस हड़ताल का फौरी कारण था कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वी राज चह्वाण की सास जी का देखभाल करने के लिए मुंबई के कामा अस्पताल से कुछ नर्सों को उनके मालाबार हिल स्थित सरकारी आवास में भेज दिया गया था.
मुख्यमंत्री की बीमार सास की सेवा के लिए मुख्यमंत्री आवास पर तलब किये जाने से नर्सों में भारी गुस्सा है . कामा और आल्ब्लेस अस्पताल की जिन नर्सों को वहां भेजा गया था उन्होंने कहा कि अस्पताल के अफसर उनके ऊपर गैरकानूनी तरीके से दबाव डालते हैं . यह तरीका ठीक नहीं है . इन नर्सों के हड़ताल पर जाने के बाद तीन अन्य सरकारी अस्पतालों, जे जे ,सेंट जार्ज और जी टी अस्पताल की नर्सें भी उनके समर्थन में हड़ताल पर चली गयीं. नर्सों में इस बात को लेकर भारी नाराज़गी है कि उन्हें मंत्रियों के घर भेज दिया जाता है जब्कू उनकी ड्यूटी सरकारी अस्पताल में काम करने की है . उनका कहना है कि अस्पताल में चाहे कोई मंत्री आये या कोई सामान्य व्यक्ति , वे सबकी सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं लेकिन मंत्रियों के घरों पर जाना उन्हें बर्दाश्त नहीं है.जो नर्सें मुख्यमंत्री आवास पर भेजी गयी थीं, उनका आरोप है कि वहां नर्सिंग जैसा कोई काम नहीं था . मुख्य मंत्री की सास जी को चलने में थोड़ी दिक्क़त होती है , बस उनको वाकर के सहारे टहलाने भर का काम करना था जिसे घर का कोई भी सदस्य या कोई भी प्रायवेट नर्स कर सकती थी. नर्सों को इस बात पर भी घोर एतराज़ है कि राज्य के संसाधनों का इस्तेमाल मुख्यमंत्री जी की सास के सामने शेखी बघारने के लिए किया जा रहा है .
महाराष्ट्र सरकारी नर्स फेडरेशन की जनरल सेक्रेटरी , कस्तूरी कदम का कहना है कि ५ अक्टूबर को जे जे ग्रुप आफ हास्पिटल्स के डीन, डॉ टी पी लाहने ने आदेश भेज दिया था कि तीन नर्सों को मुख्यमंत्री आवास पर काम करना है . यह नहीं बताया गया कि कब तक वहां रहना है . जो नर्सें वहां गयी थीं, उनको १२ घंटे की ड्यूटी करनी पड़ी. और वे देर से घर पंहुचीं .फेडरेशन ने सवाल उठाया है कि अगर उन नर्सों के साथ कोई अनहोनी हो जाती तो कौन ज़िम्मेदार होता.
पता चला है कि सरकारी अस्पतालों के डाक्टरों और नर्सों को इस तरह से मंत्रियों के घरों पर भेजना कोई नई बात नहीं है . यह तो अक्सर होता रहता है . उधर जे जे ग्रुप आफ हास्पिटल्स के डीन ,डॉ टी पी लाहने का दावा है कि नर्सों को मुख्य मंत्री निवास पर ड्यूटी के लिए भेजने में कोई गैर कानूनी काम नहीं किया गया है .इन नर्सों की ड्यूटी इसलिए लगाई गयी थी क्यंकि मुख्यमंत्री की सास की देखभाल का काम जिस प्राइवेट नर्स के जिम्मे था वह छुट्टी पर चली गयी थी. लेकिन नर्सों का आरोप है कि यह काम तो गैरकानूनी है लेकिन विरोध के स्वर कमज़ोर होने की वजह से अपनी चापलूसी को चमकदार बनाने के लिए अधिकारी इस तरह के काम करते रहते हैं . नर्सों की यूनियन की एक अन्य नेता, श्रीमती वायकर का कहना है कि १९६६ में भी एक बार मुख्यमंत्री आवास पर नर्सों की ड्यूटी लगा दी गयी थी . जब विरोध किया गया तब जाकर कानूनी स्थिति साफ़ हुई और बाद के कई वर्षों तक किसी भी अफसर की हिम्मत नर्सों को मंत्रियों के यहाँ भेजने की नहीं पड़ी अब जब मुख्यमंत्री की सास की सेवा के मामले में ज़बरदस्त विरोध कर दिया गया है , सब लोग ठीक हो जायेगें.
Wednesday, October 12, 2011
जगजीत सिंह को श्रद्धांजलि
शेष नारायण सिंह
जगजीत सिंह को पहली बार १९७८ में जाकिर हुसेन मार्ग के मकान नंबर ४७ के लान में देखा था. दिल्ली हाई कोर्ट के ऐन पीछे यह मकान है. उस मकान में उन दिनों विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव डॉ इंदु प्रकाश सिंह रहते थे. जनता पार्टी का ज़माना था . इंदिरा गांधी १९७७ में चुनाव हार चुकी थीं . पाकिस्तानियों के लिए १९७१ की लड़ाई को भूल पाना मुश्किल था लेकिन मोरारजी देसाई के आने के बाद भारत की विदेशनीति का मुख्य नारा था कि पड़ोसियों से अच्छे सम्बन्ध बनाने की ज़रुरत है . वही कवायद चल रही थी. डॉ इंदु प्रकाश सिंह विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान डेस्क के इंचार्ज थे .विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे .अटल जी का शुमार उर्दू के बहुत बड़े शायर फैज़ अहमद फैज़ के समर्थकों में किया जाता था.अटल बिहारी वाजपेयी इमरजेंसी में जेल में बंद रह चुके थे . जेल से आने के बाद उन्होंने दिल्ली की एक सभा में बा-आवाज़े बुलंद घोषित किया था कि उन्होंने जेल में फैज़ की शायरी को पढ़ा था और उनको फैज़ का वह शेर बहुत पसंद आया था जहां फैज़ फरमाते हैं कि " कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले " . जब अटल जी का यह भाषण मावलंकर आडिटोरियम में चल रहा था ,उस वक़्त दर्शकों में कनाडा के नागरिक अशोक सिंह भी बैठे थे. अशोक सिंह किसी भारतीय राजनयिक के बेटे थे और पूरी दुनिया में संगीत और संगीतकारों के प्रमोशन का काम करते थे. मुझे लगता है कि वहीं उन्होंने तय कर लिया था कि फैज़ को इस देश में सम्मानपूर्वक लाना है . अशोक सिंह ही फैज़ को अपने पिता जी के मित्र डॉ इंदु प्रकाश सिंह के लान के कार्यक्रममें लाये थे . वह कार्यक्रम हालांकि घर पर हुआ था लेकिन वह कार्यक्रम था सरकारी . वहां पर माहौल फैज़मय था . फैज़ ने बहुत सारी अपनी गज़लें पढ़ीं . फैज़ की शायरी को फैज़ की मौजूदगी में गाने के लिए पाकिस्तान की नामी गज़ल गायिका मुन्नी बेगम भी तशरीफ़ लाई थीं. उन्होंने फैज़ की कई गज़लें गाईं. बीच में थक गयीं और लगा कि वे कुछ मिनटों का एक ब्रेक चाहती थीं ,. इसी बीच अशोक सिंह ने कहा कि माहौल बन चुका है .उसको जारी रखना ज़रूरी है . मुन्नी बेगम थोड़ी देर आराम करेंगीं लेकिन इस बीच उन्होंने अपने बम्बई के एक साथी को फैज़ गाने के लिए प्रस्तुत कर दिया. वहां मौजूद लोगों में किसी ने जगजीत सिंह नाम के इस नौजवान को कभी गाते नहीं सुना था . लेकिन टाइम पास करने के लिए लोगों ने इस नौजवान को भी सुनने के मन बना लिया. पहली ग़ज़ल के बाद ही सब कुछ बदल चुका था.इस खूबसूरत नौजवान की पहली ग़ज़ल सुन कर ही लोग फरमाइश करने लगे. दूसरी, तीसरी और चौथी ग़ज़ल के बाद मुन्नी बेगम ने मोर्चा संभाला लेकिन उन्होंने साफ़ कहा कि जगजीत सिंह की आवाज़ में फैज़ सुनना बहुत अच्छा लगा. प्रोग्राम के आखिर में फैज़ साहब ने खुद कहा कि यह नौजवान ग़ज़ल गायकी की बुलंदियों तक जाएगा. फैज़ की बात में दम था . जगजीत सिंह ने उस दिन बहुत सारे लोगों के अलावा फैज़ और मुन्नी बेगम का नाम भी अपने शुरुआती प्रशंसकों की लिस्ट में लिख लिया था .
उसके बाद बहुत दिन तक जगजीत सिंह को करीब से देखने का मौक़ा नहीं मिला. उनकी फिल्म प्रेमगीत ने यह सुनिश्चित कर दिया कि जगजीत सिंह एक गायक के रूप में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं .फ़िल्मी दुनिय अमन वे चलता सिक्का बन चुके थे. उसके बाद अर्थ आई, फिर फिल्म साथ साथ .उसके बाद तो फिल्मों का सिलसिला ही शुरू हो गया . जगजीत सिंह ने ग़ज़ल गायकी को एक मेयार दिया. जब टी वी में हमने नसीरुद्दीन शाह को गालिब के रूप में देखा तो समझ में आ गया कि करीब डेढ़ सौ साल पहले गालिब उसी हुलिया में दिल्ली में घूमते रहे होंगें लेकिन जगजीत सिंह ने गालिब की गजलों को जिस मुहब्बत के साथ गाया वह आने वाली नस्लों के लिए फख्र की बात है . जगजीत सिंह ने ग़ज़ल गायकी की मूल परम्परा को भी निभाया लेकिन बहुत सारे प्रयोग भी किये. उनके जाने के बाद ग़ज़ल के जानकारों का एक करीबी दोस्त गुज़र गया है . और ग़ज़ल को सुनने वालों का एक बहुत बड़ा हीरो चला गया है . अलविदा जगजीत , अलविदा ग़ज़ल के राजकुमार
जगजीत सिंह को पहली बार १९७८ में जाकिर हुसेन मार्ग के मकान नंबर ४७ के लान में देखा था. दिल्ली हाई कोर्ट के ऐन पीछे यह मकान है. उस मकान में उन दिनों विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव डॉ इंदु प्रकाश सिंह रहते थे. जनता पार्टी का ज़माना था . इंदिरा गांधी १९७७ में चुनाव हार चुकी थीं . पाकिस्तानियों के लिए १९७१ की लड़ाई को भूल पाना मुश्किल था लेकिन मोरारजी देसाई के आने के बाद भारत की विदेशनीति का मुख्य नारा था कि पड़ोसियों से अच्छे सम्बन्ध बनाने की ज़रुरत है . वही कवायद चल रही थी. डॉ इंदु प्रकाश सिंह विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान डेस्क के इंचार्ज थे .विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे .अटल जी का शुमार उर्दू के बहुत बड़े शायर फैज़ अहमद फैज़ के समर्थकों में किया जाता था.अटल बिहारी वाजपेयी इमरजेंसी में जेल में बंद रह चुके थे . जेल से आने के बाद उन्होंने दिल्ली की एक सभा में बा-आवाज़े बुलंद घोषित किया था कि उन्होंने जेल में फैज़ की शायरी को पढ़ा था और उनको फैज़ का वह शेर बहुत पसंद आया था जहां फैज़ फरमाते हैं कि " कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले " . जब अटल जी का यह भाषण मावलंकर आडिटोरियम में चल रहा था ,उस वक़्त दर्शकों में कनाडा के नागरिक अशोक सिंह भी बैठे थे. अशोक सिंह किसी भारतीय राजनयिक के बेटे थे और पूरी दुनिया में संगीत और संगीतकारों के प्रमोशन का काम करते थे. मुझे लगता है कि वहीं उन्होंने तय कर लिया था कि फैज़ को इस देश में सम्मानपूर्वक लाना है . अशोक सिंह ही फैज़ को अपने पिता जी के मित्र डॉ इंदु प्रकाश सिंह के लान के कार्यक्रममें लाये थे . वह कार्यक्रम हालांकि घर पर हुआ था लेकिन वह कार्यक्रम था सरकारी . वहां पर माहौल फैज़मय था . फैज़ ने बहुत सारी अपनी गज़लें पढ़ीं . फैज़ की शायरी को फैज़ की मौजूदगी में गाने के लिए पाकिस्तान की नामी गज़ल गायिका मुन्नी बेगम भी तशरीफ़ लाई थीं. उन्होंने फैज़ की कई गज़लें गाईं. बीच में थक गयीं और लगा कि वे कुछ मिनटों का एक ब्रेक चाहती थीं ,. इसी बीच अशोक सिंह ने कहा कि माहौल बन चुका है .उसको जारी रखना ज़रूरी है . मुन्नी बेगम थोड़ी देर आराम करेंगीं लेकिन इस बीच उन्होंने अपने बम्बई के एक साथी को फैज़ गाने के लिए प्रस्तुत कर दिया. वहां मौजूद लोगों में किसी ने जगजीत सिंह नाम के इस नौजवान को कभी गाते नहीं सुना था . लेकिन टाइम पास करने के लिए लोगों ने इस नौजवान को भी सुनने के मन बना लिया. पहली ग़ज़ल के बाद ही सब कुछ बदल चुका था.इस खूबसूरत नौजवान की पहली ग़ज़ल सुन कर ही लोग फरमाइश करने लगे. दूसरी, तीसरी और चौथी ग़ज़ल के बाद मुन्नी बेगम ने मोर्चा संभाला लेकिन उन्होंने साफ़ कहा कि जगजीत सिंह की आवाज़ में फैज़ सुनना बहुत अच्छा लगा. प्रोग्राम के आखिर में फैज़ साहब ने खुद कहा कि यह नौजवान ग़ज़ल गायकी की बुलंदियों तक जाएगा. फैज़ की बात में दम था . जगजीत सिंह ने उस दिन बहुत सारे लोगों के अलावा फैज़ और मुन्नी बेगम का नाम भी अपने शुरुआती प्रशंसकों की लिस्ट में लिख लिया था .
उसके बाद बहुत दिन तक जगजीत सिंह को करीब से देखने का मौक़ा नहीं मिला. उनकी फिल्म प्रेमगीत ने यह सुनिश्चित कर दिया कि जगजीत सिंह एक गायक के रूप में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं .फ़िल्मी दुनिय अमन वे चलता सिक्का बन चुके थे. उसके बाद अर्थ आई, फिर फिल्म साथ साथ .उसके बाद तो फिल्मों का सिलसिला ही शुरू हो गया . जगजीत सिंह ने ग़ज़ल गायकी को एक मेयार दिया. जब टी वी में हमने नसीरुद्दीन शाह को गालिब के रूप में देखा तो समझ में आ गया कि करीब डेढ़ सौ साल पहले गालिब उसी हुलिया में दिल्ली में घूमते रहे होंगें लेकिन जगजीत सिंह ने गालिब की गजलों को जिस मुहब्बत के साथ गाया वह आने वाली नस्लों के लिए फख्र की बात है . जगजीत सिंह ने ग़ज़ल गायकी की मूल परम्परा को भी निभाया लेकिन बहुत सारे प्रयोग भी किये. उनके जाने के बाद ग़ज़ल के जानकारों का एक करीबी दोस्त गुज़र गया है . और ग़ज़ल को सुनने वालों का एक बहुत बड़ा हीरो चला गया है . अलविदा जगजीत , अलविदा ग़ज़ल के राजकुमार
मुंबई के पुलिस कमिश्नर ने थानेदारों फटकारा ,राजनीतिक गुंडों को सख्ती से काबू करो
शेष नारायण सिंह
मुंबई,९ अक्टूबर. मुंबई पुलिस ने राजनीतिक गुंडई को काबू में करने का मन बना लिया है . मुंबई के पुलिस कमिश्नर ,अरूप पटनायक ने अपने थानेदारों को हिदायत दी है कि राजनीतिक गुंडों की पहचान करके उन्हें बदमाशी करने से हर हाल में रोकना होगा . अगर किसी थानेदार के इलाके में राजनीतिक गुंडई होती है तो दरोगा को सज़ा दी जायेगी. पुलिस की इस सख्ती से सबसे ज़्यादा लाभ उत्तर भारतीय ऑटो ड्राइवरों को होगा जो आजकल राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ताओं के आतंक को झेल रहे हैं.
मुंबई के पुलिस कमिश्नर का यह बयान बहुत ही ज़रूरी था. मुंबई में अगले तीन चार महीनों ताक बहुत ही ज़्यादा राजनीतिक गहमागहमी रहने वाली है .मुंबई नगर निगम के चुनाव होने वाले हैं जहां आजकल शिवसेना का कब्ज़ा है . शिवसेना से अलग होकर अपना राजनीतिक कारोबार करने वाले शिव सेना प्रमुख के भतीजे ,राज ठाकरे वहां शिवसेना को सबक सिखाना चाहते हैं , इसलिए शिवसेना के कट्टर समर्थकों को अपनी तरफ लाने के लिए वे उत्तर भारतीयों के खिलाफ तरह तरह के हथकंडे अपना रहे हैं . राज ठाकरे का पिछ्ला रिकार्ड ऐसा है कि उनको उत्तर भारतीय तो किसी भी हालत में वोट नहीं देगें. उन्होंने ही हर मौके पर यू पी और बिहार से जाकर मुंबई में रोटी कमाने वाले गरीब लोगों को पिटवाया था.ऐसी ही हालत शिवसेना की भी है . इसलिए उत्तर भारतीयों के खिलाफ भावनाओं को भड़का कर वोट लेने की अपनी कोशिश के तहत राज ठाकरे ने पिछ्ले दिनों राजनीतिक गुंडई के सहारे उत्तर भारतीयों को परेशान करने की राजनीतिक योजना पर काम शुरू कर दिया था. उन्होंने सबसे ज्यादा असंगठित वर्ग , ऑटो रिक्शा चालकों को निशाने पार लिया .इस वर्ग में भी केवल उत्तर भारतीयों पर लाठियां बरसाने का काम शुरू किया गया.ऑटो चालकों में यू पी से जाकर अपनी रोटी कमाने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है .इसी तरह की गुंडागर्दी के खिलाफ पुलिस ने अभियान शुरू करने का फैसला किया है .
पुलिस कमिश्नर अरूप पटनायक का कहना है कि इस तरह की गुंडई से पुलिस की छवि तो खराब होती ही है, मुंबई शहर की भी बदनामी होती है . उन्होंने कहा कि पिछले दिनों पुलिस स्टेशनों के इंचार्ज लोगों की मिलीभगत भी इस तरह की कारस्तानियों में पायी गयी थी . उन्हें रंज है कि आज राजनीतिक गुंडई की हालात लगभग बेकाबू इसलिए हो गए हैं कि शुरू में पुलिस ने अपना काम ठीक से नहीं किया . कमिश्नर पटनायक ने अपनी फ़ोर्स को चेतावनी दी कि चौकन्ना रहो और योजना बनाकर अपराध करने की राजनीतिक पार्टियों की कोशिश को वारदात होने से पहले ही रोक दो.पुलिस कमिश्नर ने कहा कि पिछले दिनों ऑटो रिक्शा वालों पर हुए हमले बेशक छिटपुट घटनाएं लगती हों लेकिन वे घटनाएं शहर में फ़ैली अराजकता को रेखांकित करने में पूरी तरह से सफल रही हैं . उन्होंने चिंता जताई कि अगर इस तरह की घटनाएं होती रहीं तो मुंबई ऐसे शहर के रूप में पहचाना जाने लगेगा जहां कानून व्यवस्था की हालत बहुत ही खराब है .उन्होंने अपने लोगों को आदेश दिया कि स्कूलों में एडमिशन करवाने के लिए भी कुछ लोकल नेता प्रिंसिपलों पर बेजा दबाव डालते हैं . ऐसे नेताओं पार भी सख्ती की ज़रुरत है और कोशिश की जानी चाहिए कि यह छोटे मोटे नेता भी गुंडई करने की हिम्मत न कर सकें.पिछले दिनों उत्तर भारतीयों पर हुए हमलों पर नाराज़गी जताते हुए उन्होंने थानेदारों को फटकारा और कहा कि यह घटनाएं पुलिस गाफिल पड़ने की वजह से हुई थीं .
मुंबई,९ अक्टूबर. मुंबई पुलिस ने राजनीतिक गुंडई को काबू में करने का मन बना लिया है . मुंबई के पुलिस कमिश्नर ,अरूप पटनायक ने अपने थानेदारों को हिदायत दी है कि राजनीतिक गुंडों की पहचान करके उन्हें बदमाशी करने से हर हाल में रोकना होगा . अगर किसी थानेदार के इलाके में राजनीतिक गुंडई होती है तो दरोगा को सज़ा दी जायेगी. पुलिस की इस सख्ती से सबसे ज़्यादा लाभ उत्तर भारतीय ऑटो ड्राइवरों को होगा जो आजकल राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ताओं के आतंक को झेल रहे हैं.
मुंबई के पुलिस कमिश्नर का यह बयान बहुत ही ज़रूरी था. मुंबई में अगले तीन चार महीनों ताक बहुत ही ज़्यादा राजनीतिक गहमागहमी रहने वाली है .मुंबई नगर निगम के चुनाव होने वाले हैं जहां आजकल शिवसेना का कब्ज़ा है . शिवसेना से अलग होकर अपना राजनीतिक कारोबार करने वाले शिव सेना प्रमुख के भतीजे ,राज ठाकरे वहां शिवसेना को सबक सिखाना चाहते हैं , इसलिए शिवसेना के कट्टर समर्थकों को अपनी तरफ लाने के लिए वे उत्तर भारतीयों के खिलाफ तरह तरह के हथकंडे अपना रहे हैं . राज ठाकरे का पिछ्ला रिकार्ड ऐसा है कि उनको उत्तर भारतीय तो किसी भी हालत में वोट नहीं देगें. उन्होंने ही हर मौके पर यू पी और बिहार से जाकर मुंबई में रोटी कमाने वाले गरीब लोगों को पिटवाया था.ऐसी ही हालत शिवसेना की भी है . इसलिए उत्तर भारतीयों के खिलाफ भावनाओं को भड़का कर वोट लेने की अपनी कोशिश के तहत राज ठाकरे ने पिछ्ले दिनों राजनीतिक गुंडई के सहारे उत्तर भारतीयों को परेशान करने की राजनीतिक योजना पर काम शुरू कर दिया था. उन्होंने सबसे ज्यादा असंगठित वर्ग , ऑटो रिक्शा चालकों को निशाने पार लिया .इस वर्ग में भी केवल उत्तर भारतीयों पर लाठियां बरसाने का काम शुरू किया गया.ऑटो चालकों में यू पी से जाकर अपनी रोटी कमाने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है .इसी तरह की गुंडागर्दी के खिलाफ पुलिस ने अभियान शुरू करने का फैसला किया है .
पुलिस कमिश्नर अरूप पटनायक का कहना है कि इस तरह की गुंडई से पुलिस की छवि तो खराब होती ही है, मुंबई शहर की भी बदनामी होती है . उन्होंने कहा कि पिछले दिनों पुलिस स्टेशनों के इंचार्ज लोगों की मिलीभगत भी इस तरह की कारस्तानियों में पायी गयी थी . उन्हें रंज है कि आज राजनीतिक गुंडई की हालात लगभग बेकाबू इसलिए हो गए हैं कि शुरू में पुलिस ने अपना काम ठीक से नहीं किया . कमिश्नर पटनायक ने अपनी फ़ोर्स को चेतावनी दी कि चौकन्ना रहो और योजना बनाकर अपराध करने की राजनीतिक पार्टियों की कोशिश को वारदात होने से पहले ही रोक दो.पुलिस कमिश्नर ने कहा कि पिछले दिनों ऑटो रिक्शा वालों पर हुए हमले बेशक छिटपुट घटनाएं लगती हों लेकिन वे घटनाएं शहर में फ़ैली अराजकता को रेखांकित करने में पूरी तरह से सफल रही हैं . उन्होंने चिंता जताई कि अगर इस तरह की घटनाएं होती रहीं तो मुंबई ऐसे शहर के रूप में पहचाना जाने लगेगा जहां कानून व्यवस्था की हालत बहुत ही खराब है .उन्होंने अपने लोगों को आदेश दिया कि स्कूलों में एडमिशन करवाने के लिए भी कुछ लोकल नेता प्रिंसिपलों पर बेजा दबाव डालते हैं . ऐसे नेताओं पार भी सख्ती की ज़रुरत है और कोशिश की जानी चाहिए कि यह छोटे मोटे नेता भी गुंडई करने की हिम्मत न कर सकें.पिछले दिनों उत्तर भारतीयों पर हुए हमलों पर नाराज़गी जताते हुए उन्होंने थानेदारों को फटकारा और कहा कि यह घटनाएं पुलिस गाफिल पड़ने की वजह से हुई थीं .
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