Wednesday, May 12, 2010

मर्दवादी सोच के बौने नेता देश के दुश्मन हैं

शेष नारायण सिंह

केंद्रीय कानून मंत्री, वीरप्पा मोइली ने साफ़ कह दिया है कि हिन्दू विवाह कानून में परिवर्तन के बारे में खाप पंचायतों के सुझाव बिलकुल अमान्य हैं.. फिलहाल विवाह कानून में कोई भी बदलाव संभव नहीं है .पिछले दिनों हरियाणा, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ से ऐसे बहुत सारे केस सामने आये हैं जिसमें नौजवान लडके लड़कियों को इस लिए मार डाला गया कि उन्होंने अपने परिवार के मर्दों की मर्जी के खिलाफ शादी कर ली थी. दिल्ली के आसपास के इलाकों में समृद्धि तो आ गयी है लेकिन ज़्यादातर आबादी में सही तालीम की कमी है . जिसकी वजह से सोच अभी तक पुरातन पंथी और जाहिलाना है .. इसलिए अपनी स्त्रीविरोधी सोच को इस इलाके के लोग सही तरीके से छुपा नहीं पाते.. यह अलग बात है कि बहुत ज्यादा शिक्षित लोग भी मर्दवादी सोच के शिकार होते हैं लेकिन अपनी तालीम की वजह से वे औरतों के खिलाफ ऐसे जाल बुनते हैं कि वे हमेशा दोयम दर्जे की नागरिक बनी रहने को मजबूर रहती हैं . इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो महिलाओं को उनके जायज़ अधिकार देने के खिलाफ मर्दवादी मुहिम ही शामिल है . लेकिन देहाती इलाकों में तो हद है . मदों की दादागीरी का आलम यह है कि वह औरत की जो बुनियादी आजादी की बातें हैं उनको भी नज़रंदाज़ करके ही खुश रहते हैं . पश्चिमी उत्तरप्रदेश और हरियाणा के मामले मीडिया की नज़र में ज़्यादा आते हैं क्योंकि यह इलाके दिल्ली के आस पास हैं वरना जहालत की हालत उत्तर प्रदेश, बिहार , छत्तीसगढ़ , मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड आदि में एक ही स्तर की है . छत्तीस गढ़ में निरुपमा पाठक को इस मर्दवादी सोच के गुलामों ने इसलिए मार डाला कि उसने अपनी मर्जी से अपना जीवनसाथी चुनने का फैसला कर लिया था. उसकी मौत की खबर भी देश वासियों के सामने इसलिए आ सकी क्योंकि वह खुद मीडिया से जुडी हुई थी और दिल्ली के पत्रकारों ने मामले को उठाया . फिर भी पुरातनपंथी सोच की बुनियाद पर बनी छत्तीसगढ़ की सामंती सरकार की पुलिस उसके प्रेमी को ही फंसाने के चक्कर में है. ज़ाहिर है कि जो लड़कियां गावों में रह रही हैं और एक तरह से हाउस अरेस्ट की ज़िंदगी बिता रही हैं , उनकी तकलीफें कहीं तक नहीं पहुंचतीं . राहुल गाँधी के साथ जब दुनिया के सबसे सम्पन्न व्यक्ति , अमरीकी उद्योगपति बिल गेट्स , अमेठी के देहाती इलाकों में गए तो उन्होंने जिन लोगों से भी बात चीत की उसमें औरतें बिलकुल नहीं थीं. सडकों पर भी बहुत बड़ी संख्या में पुरुष दिख रहे थे लेकिन औरतों का नामो निशान तक नहीं था. उन्होंने लोगों से पूछा कि ऐसा क्यों है तो उन्हें बताया गया कि औरतें समाज में बाहर नहीं निकलतीं. ज़ाहिर हैं हम ऐसे समाज में रहते हैं जहां औरत को मर्द से बराबरी का हक तो बिलकुल नहीं हासिल है जबकि संविधान सहित सभी स्तरों पर उन्हें बराबर का हक दिया गया है .

यह बात सबको मालूम है कि अपने देश में औरतों को हमेशा नीचा करके आँका जाता है . वह भी तब जब कि इस देश के सभी बड़े बड़े संवैधानिक पदों पर महिलायें विराजमान हैं .राष्ट्रपति, नेता विरोधी दल, सबसे बड़ी पार्टी और यू पी ए की अध्यक्ष , लोकसभा की अध्यक्ष आदि ऐसे पद हैं जिन पर महिलायें मौजूद हैं लेकिन बाकी समाज में अभी उनकी दुर्दशा ही है . आज़ादी की लड़ाई का सबक है कि हम एक समाज के रूप में महिलाओं को इज्ज़त देंगें और उनके बराबरी के हक की कोशिश को समर्थन देंगें . कम से कम राजनीतिक नेताओं से यह उम्मीद की ही जाती है , उनका कर्तव्य भी है कि वे समाज में बराबरी की व्यवस्था कायम करने में मदद करें लेकिन हरियाणा के नेताओं के आचरण इस सम्बन्ध में बहुत ही नीचता का उदाहरण है . . राज्य के एक पूर्व मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों गृहमंत्री पी चिदंबरम से मुलाक़ात की . किसी निजी स्वार्थ के काम से गए थे लेकिन साथ में एक प्रतिनिधिमंडल भी ले गए . लौट कर शेखी बघारी के उन्होंने गृहमंत्री से कह दिया है कि हिन्दू विवाह कानून में संशोधन करके अंतर जातीय विवाह पर प्रतिबन्ध लगाया जाए. वे झूठ बोल रहे थे . गृह मंत्रालय की ओर से स्पष्टीकरण आ गया है कि नेता जी ने ऐसी कोई बात नहीं की थी , वे तो सिफारिश के चक्कर में आये थे . इसी तरह हरियाणा के एक नौजवान सांसद ने भी खाप पंचायत के नेताओं से कह दिया कि वे केंद्र सरकार से मांग करेंगें कि हिन्दू विवाह कानून में सुधार किया जाए. अपने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए राजनीति में शामिल हुए यह हज़रत कुछ साल पहले तिरंगे झंडे के बहाने चर्चा में रह चुके हैं . ज़ाहिर है यह नेता लोग अज्ञानी हैं . इन्हें मालूम ही नहीं है कि जिन २७ वर्षों में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में आज़ादी लड़ाई चली उसमें औरतों को बराबरी का हक देने की बात बराबर की गयी थी लेकिन अब धंधे पानी वास्ते राजनीति कर रहे इन बौने नेताओं के बस की बात नहीं है कि यह लोग औरत की आज़ादी की लड़ाई में शामिल हों . ऐसे मौके पर ज़रूरी है यह है कि ऐसा जनमत तैयार हो जो इन पुरातनपंथी सोच वालों को सत्ता से बाहर निकालने का आन्दोलन खड़ा कर सके और बराबरी पर आधारित समाज की स्थापना की आज़ादी के लड़ाई की जो बुनियादी ज़रुरत थी और जिसके लिए हमारे स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों ने बलिदान दिया था , उसकी स्थापना की जा सके सबको मालूम है कि जब तक स्त्री पुरुष में हैसियत का भेद रहेगा , आज़ादी का सपना पूरा नहीं हो सकेगा.