Wednesday, February 20, 2013

इनलैंड वाटरवेज़ अथारिटी बना हुआ है आई ए एस अफसरों का डम्पिंग ग्राउंड



शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,१९ फरवरी . भारत में नदियों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण नेटवर्क है . प्राचीन काल में नदियाँ आवाजाही का सबसे प्रमुख साधन थीं इसीलिये ज़्यादातर पुराने शहर नदियों के किनारे ही बसे हैं .बहादुरशाह ज़फर भी जब दिल्ली से रंगून भेजे जा रहे थे कलकत्ता तक की यात्रा गंगा नदी के रास्ते पूरी की थी. आज़ादी के बाद सरकार ने तय किया कि अपने देश में नदियों के ज़रिये यातायात को बड़े पैमाने पर  विकसित किया जाएगा. इसके लिए इनलैंड वाटरवेज़ अथारिटी भी बना दी गयी . सरफेस ट्रांसपोर्ट मंत्रालय के अधीन सारा सरकारी तामझाम भी बना दिया गया . लेकिन अफसरों के गैर ज़िम्मेदार रवैये के कारण पिछले ४० साल से यह सारा काम बेकार पड़ा है . सरकारी पैसा लग रहा है लेकिन कहीं  कुछ नहीं हो रहा है . केन्द्र सरकार के अफसरों के दिल्ली प्रेम के चलते इनलैंड वाटरवेज़ अथारिटी का  मुख्यालय नोयडा में बना दिया गया है जो कि एक तरह से दिल्ली ही है . इनसे कोई पूछे कि ,’भाई दिल्ली के पास मुख्यालय क्यों रखा गया है जबकि दिल्ली  या नोयडा के पास अथारिटी का कहीं कोई काम नहीं है . यह भी वैसा ही अजूबा है कि जैसे ओ एन जी सी  का मुख्यालय देहरादून में बना दिया गया था जबकि उनका सारा काम समुद्र के आस पास है . इनलैंड वाटरवेज़ अथारिटी काम नेशनल वाटरवेज का विकास करना है लेकिन कहीं कोई खास प्रगति नहीं हो  है .
संसद की इस विभाग का काम देखने वाली ,यातायात,पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध स्थायी संसदीय समिति की नज़र इस मामले पर पड़  गयी और  समिति ने विधिवत जांच की और पाया कि सरकारी तंत्र जो सफ़ेद हाथियों को पालने का बेहद शौक़ीन है ,उसने यहाँ भी एक बेहतरीन क्वालिटी के बहुत ही सफ़ेद हाथी पाल रखा है . कमेटी ने इसी फरवरी में कमेटी ने दोनों ही सदनों के पीठासीन अधिकारीयों को अपनी रिपोर्ट दी है. रिपोर्ट देख कर कुछ ऐसे तथ्य सामने आये हैं जिनको देख कर लगता है कि अगर सरकारी अफसर चाह लें तो बढ़िया से बढिया राष्ट्रीय योजनाओं को अपनी जगह से उठने का कोई मौक़ा ही न नसीब हो .अपने देश में इनलैंड वाटरवेज़ का एक अच्छा नेटवर्क है .नदियों, नहरों,समुद्री क्षेत्रों में करीब १४५०० किलोमीटर की दूरी में जल यातायात संभव है.जिसमें से ५२०० किलोमीटर नदी और ४००० किलोमीटर नहरों में है जिसमें मशीनीकृत छोटे जहाज़  चल सकते हैं जिनसे बहुत सारा व्यापारिक माल ढोया जा सकता है . एक तुलना से बात सही सन्दर्भ में सामने आ जायेगी. अमरीका में पानी के मार्ग से माल ढुलाई उनकी पूरी राष्ट्रीय  क्षमता का २१ प्रतिशत है जबकि अपने देश में दशमलव एक प्रतिशत ( ०.१०) माल की दुलाई जलमार्गों से होती है . माल ढुलाई का यह सस्ता  तरीका है और अपने देश में इसकी बहुत सारी संभावना है लेकिन सरकारी अफसरों के आलस्य की कृपा से राष्ट्र लगातार नुक्सान उठा  रहा  है . यह  कोई आरोप नहीं है , यह सारी जानकारी यातायात,पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध स्थायी संसदीय समिति की १८९वीं रिपोर्ट में संकलित है . रिपोर्ट में मांग की गयी है  कि इस बात को अर्जेंट समझ कर काम किया जाना चाहिए लेकिन भरोसा इसलिए नहीं जम रहा है कि इस तरह के सिफारिशें पहले भी हो चुकी हैं लेकिन अधिकारियों ने हर बार संसद की मंशा को पटरी से उतारने में सफलता  पा ली है.
यातायात,पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध स्थायी संसदीय समिति  ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि देश के अंदर जलमार्गों के यातायात को विकसित करने से भारी माल की ढुलाई आसान हो जायेगी . यह तरीका पर्यावरण की रक्षा में भी मदद करेगा.अभी तक यातायात की इस विधा को सरकार की वह प्राथमिकता नहीं मिली है जो मिलनी चाहिए. सरकार ने देश में आतंरिक जल यातायात के लिए पांच मार्गों की घोषणा की है   जिनमें से दो मार्ग तो बिलकुल बंद  पड़े हैं और जो तीन चल भी रहे हैं वह भी लगभग शून्य के आसपास ही की क्षमता का इस्तेमाल कर रहे हैं . संसदीय समिति ने इस बात पर जोर दिया है कि १२वीं
योजना में १०५०० करोड रूपये इस मद में लगाए जाएँ.और एन टी पी सी ,ओ एन जी सी जैसी सरकारी कंपनियों को इस यातायात के विकास में भागीदार बनाया जाए.इस रकम का इस्तेमाल बुनियादी ढाँचे के विकास में लगाया जाए. और इस यातायात को समयबद्ध तरीके से  विकसित किया जाए. आतंरिक जलमार्गों को पड़ोसी देशों , बांग्लादेश और म्यांमार के साथ जोड़ने के लिए भी कोशिश की जानी चाहिए जिससे आर्थिक पक्ष के अलावा कूटनीतिक लाभ भी हासिल किया जा सके.
इस सब काम के लिए ज़िम्मेदार इनलैंड वाटरवेज़ अथारिटी  है . कमेटी ने उसके कामकाज के तरीकों पर भी सख्त टिप्पणी की है. कमेटी का कहना है कि इनलैंड वाटरवेज़ अथारिटी के पास अपनी क्षमता और लक्ष्य हासिल करने की न तो इच्छाशक्ति है और  न ही ज़रूरी लावलश्कर. सरकार को सुझाव दिया गया है कि  हाइड्रोग्राफी ,नेवीगेशन,सिविल इंजीनियरिंग,नौसैनिक आर्किटेक्चर जैसी सुविधाओं से इनलैंड वाटरवेज़ अथारिटी को लैस  किया जाना चाहिए . इसके प्रबंधन में विशेषज्ञों को शामिल किया जाना चाहिए . अभी तो यह आई ए एस अफसरों के लिए एक तरह से डम्पिंग ग्राउंड बना हुआ है जहां यह अफसर तब तक इंतज़ार करते हैं जब तक कि इन्हें कोई बढ़िया मालदार तैनाती न मिल जाए. अफसरशाही की इस जिद के सामने राष्ट्र का एक अहम संसाधन लुंजपुंज पड़ा है इस पर फौरान लगाम  लगाने की ज़रूरत है .

रेलवे मंत्रालय की मनमानी के कारण होती हैं रेल दुर्घटनाएं


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शेष नारायण सिंह

अपने देश में  रेलों में सुरक्षा की हालत दिन बा दिन बिगडती जा रही है लेकिन रेलवे के अफसरों को कहीं से भी जिमेदार नहीं ठहराया जा सक रहा है .  यह  रहस्य बना हुआ था लेकिन रेलवे सुरक्षा आयुक्त के कामकाज से सम्बंधित संसद की एक स्थायी समिति की रपोर्ट आने के बाद अब बात समझ में आने लगी है . रेल सुरक्षा के लिए केन्द्र सरकार ने रेलवे एक्ट के तहत रेलवे सुरक्षा आयुक्त के संगठन का गठन किया गया था . एक्ट में इस संगठन का काम बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया था. इस संगठन के जिम्मे रेलवे के हर साजो-सामान का  निरीक्षण भी था. एक्ट में यह व्यवस्था थी की अगर कभी कहीं कोई रेल दुर्घटना हो तो रेलवे सुरक्षा आयुक्त को जांच करना था .इसमें कहीं भी किसी आदेश का इंतज़ार करने की व्यवस्था नहीं थी.इस संगठन की  आज़ादी को बनाए रखने के लिए  रेलवे सुरक्षा आयुक्त को रेल मंत्रालय के  कंट्रोल के बाहर रखा गया था. इसे नागरिक उड्डयन मंत्रालय के प्रशासनिक कंट्रोल में रखा गया था. इसके सारे नियम कानून रेलवे एक्ट के प्रावधानों के तहत बनाए  गए थे .लेकिन रेल मंत्रालय के अधिकारियों ने १९५३ में एक एक्जीक्यूटिव आर्डर जारी करके यह अधिकार वापस ले  लिया. यानी निरीक्षण का जो महत्वपूर्ण काम रेलवे सुरक्षा आयुक्त  को करना था वह वापस ले लिया गया .  संसद की इस विभाग से सम्बंधित स्थायी समिति ने सवाल किया है कि जो अधिकार किसी भी संगठन को संसद के किसी एक्ट के कारण मिला है उसे किसी एक्जीक्यूटिव आर्डर  के ज़रिये कैसे वापस लिया जा सकता है . इसके अलावा हमेशा से ही रेल मंत्रालय  का रवैया ऐसा रहा है कि  रेलवे सुरक्षा आयुक्त का दफ्तर पूरी तरह से रेल मंत्रालय के अधिकारियों की कृपा पर बना रहे. मसलन संसद ने रेलवे सुरक्षा आयुक्त की आटोनामी को सुनिश्चित करने के लिए इसे रेल मंत्रालय से हटकार सिविल एविएशन मंत्रालय के जिम्मे किया था लेकिन रेलवे बोर्ड के ताक़तवर अधिकारियों ने इस आर्डर  जारी कर दिया और नियम बना दिया कि रेलवे सुरक्षा आयुक्त का ज़ोन स्तर पर तैनात बड़ा अफसर वहाँ के जनरल मैनेजर के अधीन काम करेगा. इस आदेश एक बाद सब कुछ ऐसे  ही चलता  रहा और रेलवे सुरक्षा आयुक्त पूरी तरह से सफ़ेद हाथी के रूप में काम  करता रहा. देश  भर में रेल में दुर्घटनाएं होती रहीं और रेल मंत्रालय के अफसरों की सुविधा के हिसाब से  रिपोर्ट आती रही. जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने  रेलवे सुरक्षा का जो भरोसेमंद ताम झाम तैयार किया था , उस रेलवे सुरक्षा आयुक्त के संगठन को  कुछ रेलवे अधिकारियों ने दो एक्जीक्यूटिव आर्डर जारी करके छीन लिया . और संसद को बहुत दिन तक इस हेराफेरी का पता भी नहीं चला.
अब बात  पब्लिक डोमेन में आ गयी है . यातायात,पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध संसद की स्थायी समिति ने सारी गडबडी को पकड़ लिया है और अपनी १८८वीं रिपोर्ट में संसद को सब कुछ बता दिया है .रिपोर्ट में बताया गया है कि  रेलवे सुरक्षा आयुक्त में कमांड का दोहरापन है .रेलवे एक्ट में इसे नागरिक उड्डयन मंत्रालय के जिम्मे किया गया है .दुर्घटना के इन्वेस्टीगेशन के नियम तो नागरिक उड्डयन मंत्रालय की तरफ से बनाए जाते हैं जबकि दुर्घटना के इन्क्वायरी से सम्बंधित नियम रेल  मंत्रालय से आते हैं .  कमेटी को यह बात बहुत अजीब लगी क्योंकि इस तरह से कुछ  शब्दों के उलटफेर  के बाद जनहित का काम बहुत बुरी तरह से प्रभावित होता है. नतीजा यह होता है कि सुरक्षा के जो कोड बनाए जाते हैं , रेलवे सुरक्षा आयुक्त को  उसके बारे में कोई जानकारी नहीं होती. सरकारी कायदा यह है कि अगर किसी फैसले में दो मंत्रालय शामिल हैं तो जब तक तो दोनों ही मंत्रालय सहमत न हों कोई फैसला न लिया जाए लेकिन रेलवे सुरक्षा आयुक्त के अधिकार के फैसले रेलवे मंत्रालय वाले बड़े मौज से लेते रहते हैं .रेलवे एक्ट में एक टर्म “ सेन्ट्रल गवर्नमेंट “ लिखा हुआ है . इसी टर्म के कवर में रेल मंत्रालय के अफसर मनमानी करते रहते हैं .कमेटी ने सुझाव दिया है कि इस दुविधा को दूर करने के लिए रेलवे एक्ट में ही ज़रूरी सुधार कर दिया  जाना चाहिए .
 मौजूदा सिस्टम में रेलवे मंत्रालय की मनमानी चलती है क्योंकि रेलवे सुरक्षा आयुक्त को अपना काम करने के लिए रेल मंत्रालय पर निर्भर करना पडता है . उसके  पास अपने एक्सपर्ट नहीं होते और रेल मंत्रालय उनको एक्सपर्ट देता नहीं . कमेटी का विचार है कि सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिसके बाद रेलवे सुरक्षा आयुक्त को अपनी एक्सपर्ट  सीधे भर्ती करने के अधिकार मिल जाएँ . वर्ना आज तो रेलवे सुरक्षा आयुक्त पूरी तरह से रेल मंत्रालय के अधीन ही काम करने के लिए अभिशप्त है . नागरिक उड्डयन मंत्रालय वाले केवल कुर्सी मेज़ आदि के  इंतजाम तक ही सीमित हैं . अभी रेलवे सुरक्षा आयुक्त सभी  दुर्घटनाओं की जांच नहीं कर पाता क्योंकि क्योंकि रेल मंत्रालय सभी दुर्घटनाओं की नोटिफिकेशन नहीं जारी करता . नतीजा यह होता है कि रेल मंत्रालय वाले खुद ही  जांच करके मामले को रफा दफा कर देते हैं. रेलवे सुरक्षा आयुक्त को रेलवे की सुरक्षा के मानकों को बदलने के पहले  भरोसे में लेना ज़रूरी है लेकिन अभी ऐसा कुछ नहीं  है . रेल अफसर जब चाहते हैं रेलवे सुरक्षा आयुक्त को बताए बिना मानकों में परिवर्तन कर देते हैं .
इस सारी दुर्दशा से बचने के लिए कमेटी ने सुझाव दिया है रेलवे सुरक्षा आयुक्त को किसी भी मंत्रालय के अधीन कर दिया जाए उससे कोई फर्क नहीं पडेगा लेकिन ज़रूरी  है कि संसद एक अलग एक्ट पास करके रेलवे सुरक्षा आयुक्त के अधिकार ,कर्तव्य और जिम्मेवारियों को विधिवत कानून की सीमा में लाने की व्यवस्था करे . वरना दुर्घटनाएं होती रहेगीं और रेलवे के अधिकारी अपनी मर्जी के हिसाब से रिपोर्ट बनवाते रहेगें.